dahej mukt mithila

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रविवार, 2 अगस्त 2015

अपन ह्रदय के आकश बनाऊ
बंद करू,
एक दोसर के,
प्रताड़ित करव,
अपन अहँकार स,
एक दोसर के झरकैब,
याद राखु,
अंततः अहाँ ,
स्वयं के दुखी करैत छी,
कोणठा  में नुका-नुका कनै छी,
मरल मूस के कतवो झापव,
दुर्गध घेरवे टा करत,
ओही स्मृति पर नै इतराउ,
जे अहाँक खुशी के ग्रसने अई,
"बिसरू" अ खुद के सुखी करू,
एक टा बात पुछू ?
खिसियाब त नै ?
कहीं अहाँ भीतर स डेरैल त नै छी,
अपने बात में हेरैल त नै छी,
अपने अइन ओझरैल त नै छी,
कहीं अपने व्यवहार स अशांत त नै छी,
लोक पर त जादू चला लेब,
मुदा भीतर के शर्मिंदगी स केना बचव,
खाली करू स्वयं के भीतर स,
साफ करू स्वयं के भीतर स,
एक बेर चुप रहै के,
प्रयाश त करू भीतर स,
लोक के चुप करेनाई बड्ड आसान छै,
स्वयं के बड्ड कठिन,
एक बेर स्वयं के पुछियौ त सही,
की सचमुच अहाँ के निक लगैया,
जहन लोक अहाँ  स डेराइया,
कही अहाँ अई भ्रम में त नै छी,
जे अहाँक धौंस स,
अहाँक कायरता झपाइया,
खुद के बुरबकी स उबरु,
आ कनि ऊपर देखियौ,
खुला आसमान,
किछ फुसफुसा क,
अहाँक कान में कहैया,
हठ छोड़ू,
दुनू हाथ फैलाऊ,
अपन ह्रदय के आकश बनाऊ,
आ सब पर अपन अमृत बरसाउ,🚩🇮🇳

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