अपन घर के खोज नहि अन्ना के पुछारि
अपने भ्रष्ट से सोच नहि सभ्यताके बिसारि!
मिथिला राज बनाबय लेल तेलंगाना के वेट
बारीक पटुआ तीत अछि दूरक लगबी रेट!
कौआ कुचरय सांझ के खायब नहि आब गुँह
भिन्सर फेरो बिसरैत अछि दौड़ि मारय मुँह!
मोरक पाँखि पहिरि के नाचि सकय नहि जोर
पाउडर मुँह रगड़ि कतबो बनय केओ कि गोर!
नित्य नया टन्टा झाड़य मारय झटहा तीर
महाबूड़ि कोढिया मनुख बनय हमेशा वीर!
साहित्यक समुद्रमें सुन्दर सनके सम्हारि
हाइकू शेर्न्यू रूबाइ ओ गजलक देखू मारि!
चोर-चोर हल्ला मचबय गाम के भेल जगारि
भेल पुछारि जे चोर कतय चोरहि हल्ला पारि!
देख रे मूढ टेटर अपनहु माथ भरल छौ आगि
प्रवीण भनें गैरखोर बनें चोतमल काजक लागि!
रचना :- प्रवीन नारायण चौधरी
हरिः हरः!
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