हम भन्ने नहिं छी
--------तथाकथित कवि
नईं त आई हमहुं रहितहुं
साहित्यक अन्हार कोना में
छल-बल लोकक कोनो खेमा में !
हम भन्ने नहिं छी
-------कोनो साहित्यकार
नईं त आई हमहुं लड़ितहुं
पुरस्कार तुरस्कार के लेल
अहि संग देय टाका के लेल।
हम भन्ने नहिं छी
---------- कोनो कथाकार
नईं त आई हमहुं लिखतहुं
पुरस्कार लोलुपक खिस्सा
खएतहुं गायरक अप्पन हिस्सा !
हम भन्ने नहीं छी
प्रगतिशीलताक कोनो पुरोधा
नहिं त हमहुं पतीत होयतहुं
सब सर्वहारा वर्गक नाम पर
लोक पीठ थपथपी ईनाम पर ।
हम भन्ने नहीं छी
कोनो पत्रिकाक पाठक
नहिं त हमरो मन में रहैत
रचना छपबावक सेहन्ता
फ़ुसफ़ुसिया आ व्यर्थक चिन्ता !
---- भास्कर झा 17 जुलाई 2012
1 टिप्पणी:
SUNDAR KALPANA ACHHI
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