गजल
जन-गणक सेवक भेल देशक भार छै
जनताक मारि टका बनल बुधियार छै
चुप छी तँ बूझथि ओ, अहाँ कमजोर छी
मुँह ताकला सँ कहाँ मिलल अधिकार छै
बिन दाम नै वर केर बाप हिलैत अछि
घर मे गरीबक सदिखने अतिचार छै
हक नै गरीबक मारियौ सुनि लियऽ अहाँ
जरि रहल पेटक आगि बनि हथियार छै
झरकल सिनेहक बात "ओम"क की कहू
सगरो पसरल जरल हँसी भरमार छै
(बहरे-कामिल)
मुतफाइलुन(ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ)- ३ बेर प्रत्येक पाँति मे
ओम प्रकाश, गजल
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