dahej mukt mithila

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सोमवार, 14 मार्च 2011

Abhay Kant Jha Deepraaj ke Maithilee GHazal -


                        ग़ज़ल 

कहू कोना ? जे, आम आदमी
बनि कय की - की भोगलौं हम |
खून - खुनामह भेल करेजा, कोना - कोना क ? जोगलौं हम  || 



बड़  उल्लास  भेल  बचपन  में,  हम बड़ सुन्दर, काबिल छी,
गौरव  छल  जे -  बाबू - बौआ  बनि,  कोरा  में  झुललौं हम ||

 
भेलौं  किशोर,  मोंन  बड़  हुलसल,  मुट्ठी  में संसार छलय,
धरती  सँ  आकाश  लोक  धरि,  लहरेलौं  और  बुललौं  हम ||

 
जखन  वयस्क  भेलौं  और  आयल कंधा पर दुनिया के भार,

यौवन  के  गौरव  में  डूबल,  अपन  शक्ति  के  खोजलौं हम ||
 
देश - समाजक  और  कुटुम्बक,  अनुभव  के  क
ड़वाहट में,
बेर - बेर  बनि कय अभिमन्यु ,  चक्र - व्यूह में फँसलौं  हम ||


जाहि घडी तक आन लोक सब दुश्मन छल, मदमस्त छलौं,
बज्र माथ पर बजरल लेकिन,  ओकरो सहि कय बचलौं  हम ||

 
अपन  खून  सँ  चोट जे लागल,  सब बुद्धि - बल बिसरायल,
सुनल  बात  छल  एक  बेर  के,  लाख  बेर  पर  मरलौं  हम ||

 
जीवन  सच  में  बड़  भारी  छल,  आदर्शक पथ और कठिन,
राम - नाम  अवलंब  रहल  त,  कुहरि -
कुहरि कटलौं हम ||


                    रचनाकार - अभय दीपराज

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