dahej mukt mithila

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मंगलवार, 15 मार्च 2011

Abhay Kant Jha Deepraaj ke hindi Ghazal -

                         ग़ज़ल

मैं एक विद्रोही इन्सां हूँ क्योंकि मैं कमज़ोर नहीं हूँ |
ज्वाला है मेरी आँखों मैं क्योंकि मैं कोई चोर नहीं हूँ ||

मैंने जो  भी  कड़वा  मीठा  देखा  भोगा  कह डाला,
क्योंकि मैं एक जिंदा इन्सां हूँ कोई मुर्दा दौर नहीं हूँ ||

मैंने  ये  शिक्षा  पाई  है  सिद्धांतों  के  लिए  जिओ,
जो  बसंत  को  बहलाने को नाचे मैं वो मोर नहीं हूँ ||

मुझे  पाप  के  झंझावातों  से  टकराना  भाता  है,
आंधी-पानी जिसे मिटा दे मैं वो दुर्बल बौर नहीं हूँ ||

जब भी और जहाँ भी मुझको सच और न्याय पुकारेगा,
मुझे वहीँ पर पाओगे तुम क्योंकि मैं रणछोड़ नहीं हूँ ||

ईश्वर  जितनी  मुझे  रौशनी  देगा, मैं  सबमें  बांटूंगा,
कोई छाया जिस प्रकाश को ढक ले मैं वो भोर नहीं हूँ ||


                          रचनाकार - अभय दीपराज

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