|| वर ऋतुराज तकै छथि मान ||
अलि कलि केलि चाहय मधु पान ।
वर ऋतुराज तकै छथि मान ।।
निन्द अभागलि भंग खन भेल ।
पिक कल - रव कर उठि गण गेल ।।
अलि गण लखि मोर कर उपहास ।
एहि अवसर पहुँ कर दूर वास ।।
धरा धरन धर रिपु तन आन ।
ई अवसर जकरा सैह जान ।।
मौन "रमण" इह अवसर खोय ।
उरग छुछुन्नर धय गति होय ।।
रचयिता
रेवती रमण झा " रमण "
अलि कलि केलि चाहय मधु पान ।
वर ऋतुराज तकै छथि मान ।।
निन्द अभागलि भंग खन भेल ।
पिक कल - रव कर उठि गण गेल ।।
अलि गण लखि मोर कर उपहास ।
एहि अवसर पहुँ कर दूर वास ।।
धरा धरन धर रिपु तन आन ।
ई अवसर जकरा सैह जान ।।
मौन "रमण" इह अवसर खोय ।
उरग छुछुन्नर धय गति होय ।।
रचयिता
रेवती रमण झा " रमण "
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