बाबा भोलेनाथक विशाल
मन्दिर। मुख्य शिवलिंग आ समस्त शिव परिवारक भव्य आ सुन्दर मूर्ति। साँझक समय एक-एक
कए भक्त सब अबैत आ बाबाक स्तुति वन्दना करैत जाएत। एकटा चारि बर्खक नेना आबि बाबा
दिस धियानसँ देखैत। ताबएतमे एकटा भक्त आबि बाबाक सोंझाँ श्लोक, “कर्पुर गौरं करुणावतारं....” सुना कए चलि गेला।
दोसर भक्त आबि, “नमामी शमसान निर्वा.....” सुनाबए लगला। एनाहिते आन आन भक्त सब सेहो किछु ने किछु
मन्त्र श्लोक प्राथनासँ बाबा भोलेनाथकेँ मनाबेएमे लागल। ई सब देख सुनि ओहि नेनाक
वाल मोन सोचए लागल, “हम की सुनाबू ? हमरा
तँ किछु नहि अबैत अछि ? कोनो बात नहि एलहुँ तँ किछु नहि किछु सुनाएब तँ जरुर।
ई सोचैत नेना अप्पन दुनू कल
जोरि, आँखि मुनि धियानक मुदरामे पढ़ लागल, “अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ..........”
नेनाकेँ ई पढ़ैत देख पुजारी
बाबासँ नहि रहल गेलनि। ओ कनीक काल धियानसँ सुनला बाद नेना सँ पूछि बैसला, “बौआ ई अ आ किएक पढ़ि रहल छी ?”
“जकरा देखू किछु ने किछु मन्त्र पढ़ि कए जाइए, हमरा तँ अओर किछु अबिते नहि अछि,
तेँ अ आ पढ़ि रहल छी। भगवानकेँ जे नीक लगनि एहिमे सँ छाँति लेता।”
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जगदानन्द झा ‘मनु’
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