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सोमवार, 30 जनवरी 2023

रचनाकार - श्री बद्रीनाथ राय जी

 


गे बहिना वर हमर बड़ बुरिबक आऔर अनारी छै,

मूर्खशिरोमणि कारी छै ना।..................

दूष्ट दहेजक हम छी मारल ,

यौवन जिबिते गेलै जारल।

बुरिबक बात नञि बुझए,

बापक आज्ञाकारी छै।।

मूर्खशिरोमणि....     .........

एक त गोबर के छै  चोत,

हम छी  लाजे लाहालोट।

लाजक बात की  कहियौ,

नञि पुरूषे नञि नारी छै। ।

मूर्खशिरोमणि ...  .........     .      ...  .

यौवन छिन्न भेल निस्तेज, 

फाटए कोमल  कोढ करेज। 

बुझए प्रणय निवेदन के नञि,

पैघ बीमारी  छै ।।

मूर्खशिरोमणि.....................

कहितो  लाज लगइए भारी,

अकिल के खोलए नञि अलमारी।

बरही बिना ओजारक ,

वुद्धिक बन्द केबारी छै।।

मूर्खशिरोमणि... ..... .. ............

करबै  केकरा पर हम आश ,

बाहर पवन बहै उनचास।

केकरा कहबै मनक बतिया,

बड़  लाचारी छै।।

मूर्खशिरोमणि ... .........

जहिना झरकल सन छै देह,

हमरो जरलै सख सिनेह।

विद्या पढने एक्कहि मात्र  ,

मुदा भैंसबारी छै।।

मूर्खशिरोमणि...   ..... ..........

शिक्षा पहला मे अछि फेल,

हमरा चिन्हलक नञि बकलेल।

नहिरा नीक लगइए, 

रहै जेना कुमारी छै।।

मूर्खशिरोमणि...... .................

पौरूष रखने नञि जरलाहा ,

बथुआ साग सनक नरमाहा।

यौवन धधकि रहल अछि, 

हमरा संङ लाचारी छै।

मूर्खशिरोमणि ......................|

......    .........

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