सन्देश
|| गीतक चोर गबैया सं ||
बहुत विलक्षण गीत गाबि
मन-वीणा के झनकार देलौ ।
मिथिला स्वर के ताज सुनू
यौ बुद्धि के कियक बेकार भेलौ ।।
बड़ अनुचित अछि आनक कीर्ति
नै तोरि मडोरि कय गाबि ।
साजू सदिखन अपने टा स्वर
बुद्धि नै बृहद लगाबी ।।
कवि वर सीताराम झा कहलनि
जे अपना बुझने बुधियार ।
थोर पाबि गुण अइंठल जुइठल
ओ बुडिवक बुधियारक सार ।।
जतबे टा गुण देलनि विधाता
ओतबे पैर पसारु ने ।
हाथ जोड़ि कय"रमण"कहै छथि
भाभट अपन सम्हारु ने ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
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