||मैथिली कव्वाली ||
"शेर"
ऋतुराज वसन्तक यौवन पर
तू उछल एना नै कुसुम कली ।
कुम्हलायल कमल पर भ्रमर एक
घुरि कय नै ताकतौ गै पगली ।।
बात बूझल करू , यै हँसू नै एना
जाल प्रेमक अइ पसरल फॅसा लेत यै ।
इश्क इंजन लगैया अवण्डे जेकाँ
चट भगा,पट दय चित में बसा लेत यै ।।
बात बूझल....
सुभांगी सुकन्या सुनयना सुनू
घोर सावन घटा के छटा छी अहाँ
चारु चितवन के उपवन सुखेलै सभक
बून्द वारिस के सबटा चुरा लेत यै ।।
बात बूझल....
मन पागल पतंग सनक भेल अइ
डोर ज्ञानक हाथे सम्हारु अहाँ
एहि अन्हरायल चित पर अइ काबू ककर
रस भ्रमर पाबि पागल बना देत यै ।।
बात बूझल....
ई उमंगक लहरि में ठहरि जाउ यै
हमसफर ई"रमण"चित भ्रमित नै करू
प्रस्फुटित ई कली जँ समय सं होयत
चारु मकरंद रग - रग बसा देत यै ।।
बात बूझल....
गीतकार
रेवती रमण झा "रमण"
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