॥ चालनि दुसलक सूप ॥
आँखि पसारी अहाँ सब देखु
बात कहैत छी सांच ।
ज्ञानी मनुष्य आब बसुधा पर
रहल हजार में पांचे ॥
रहल हजार में पांचे
सेष जन ज्ञान छीन जे ।
अछि दुनु जन विकलांग
अंग आ ज्ञान हीन जे ॥
ज्ञान हीन नञि बुझय बुझौने
अछि अतवे टा खेद ।
ज्ञान हीन आ अंग हीन में
सुनू कतेक अछि भेद ॥
नीति कहैत छी ज्ञान हीन जन
मनुषो बड़दे थीक ।
अंग हीन त भला मनुष्य अछि
ज्ञान हीन सँ नीक ॥
अंग हीन निज अंगक पीड़ा
अपनहि तन में पाबय ।
ज्ञान हीन जन सुर संतन मुनि
सज्जन ताकि सताबय ॥
से जन लखि भरि मोन हंसै छथि
हमर देखि कय रूप ।
किन्तु लगैया देख ओहिना
जेना चालनि दुसलक सूप ॥
रचैता
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें