लखना के बाबू लखना स कहला कि ,
जो जा क हटिया स तरकारी ल क आ .
झोरा -झपटा ल क लखना भेल विदा .
अधे बाट में किछु लोग लखना के लेलेक उठा ,
पट्टी खुजल त देखलक बियाह क मरबा .
लखना बुइझ गेल की हैत ओकर वियाह ,
मुस्काईत लखना बियाह क लेलक ,
ओम्हर बाबू गाइर द क ओरान क देलक ,
इ छौरा पी क कतौ ओंघराइत हैत ,
या दोस-महिम के संग बौआइत हैत .
या देख गेल हैत नटुआ के नाच ,
इ बह्सल छौरा मानैया ने एकोटा बात .
दोसर दिन हुनका पता लागल की ,
लखना कोबर में बैसल अछि वर बनल ,
केलक कोना बियाह हमरा बिन कहल ?
नै यौ अई में लखना के कोनो दोष नै ,
ओकरो नै बुझल छलै कि आई ओकर बियाह भ जेतै .
इ सुइन लखना के बाबु बजला ,
आई स हमही हरदम हटिया जैब ,
तखने कियो बाजल ,
ह यौ सत्ते कहै छी नै त दोसरो बेटा के दहेज़ गमैब ,
इ बाई नै छै महराज ,
वियाह करब लै कियो हमरो त कहियो उठैत ।
हा हा हा .........................
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें