आब केहन जमाना आबि गेल
बर्ख में एक्के दिन
माय कए यादि करै छी,
'मदर डे' कए नाम पर
माय कए याद करै छी
की हुनक सुखएल घा कए
काठी कय क' जगाबै छी |
हम बिसैर गेलहुँ
अपन माय कए
मुदा ओ नहि बिसरली,
जाहिखन हुनका भेटलैन्ह
सुन्दर कार्ड 'हैप्पी मदर डे' लिखल
भेलैन्ह करेजा तार-तार
नोर टघैर क'
अपन स्पर्श सँ
गाल कए छुबैत
हुनक करेजा तक चलि गेल
आ करेजा में बंद
महामाय कए कोंढ़ सँ
सोनित में डुबल शव्द निकलल
आह!
की ई हमर ओहे लाल ?
जेकरा पोसलौं खून सँ
पाललहुँ अपन दूध सँ
अपने सुतलहुँ भिजल में
ओकरा लगेलहुँ करेज सँ |
आई
चारि बर्ख सँ भेटल नहि
रहि रहल अछि परदेश
अपन कनियाँ सँग
बिसरि गेल बिधवा माय कए
आई अकस्मात माय यादि एलैह
ई सुन्दर चिट्ठी (कार्ड) पठेलक
मुदा की लिखल ?
'हैप्पी मदर डे'
बड्ड पैघ शांस लैत
हुनक मन आगु बाजल
जखन मदरे नहि हैप्पी
त' कोना
मदर डे हैप्पी
त' कोना मदर डे हैप्पी ?
जगदानन्द झा 'मनु'
1 टिप्पणी:
रविकर चर्चा मंच पर, गाफिल भटकत जाय |
विदुषी किंवा विदुष गण, कोई तो समझाय ||
सोमवारीय चर्चा मंच / गाफिल का स्थानापन्न
charchamanch.blogspot.in
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