दहेजक आगि ............................
खाली घरक कोन कोन मे , मकड़ी जाल तैयार छै .
माई बिना छै आगना सुन, बाबा बिन दालान छै.
चिट्ठी अयले आई दैया कई, आफद मे पारल जान छै.
खाली घरक कोन कोन मे , मकड़ी जाल तैयार छै .
माई बिना छै आगना सुन, बाबा बिन दालान छै.
चिट्ठी अयले आई दैया कई, आफद मे पारल जान छै.
... रोज़ रोज़ तगेदा भेज़ई जे दैया के ससूरलाल छै.
भैया आहा छी परदेश मे बैसल, आब हमर के सुधि लैत छै.
ठक्कन बाबू के ख़ाता मे, लगाल गिरबी खेत छै.
कुर्की जब्ती सहो होयत, आबे बाला तेसर साल छै.
घरही मे सेबाटा पानी चुबै, कारी रातिक बरसात मे
शायद एही बेर टिक ना पाबत, साबन भादो के बरसात मे.
दादा दादी कई एक्टा निशानी, केकरा कहबाई ई हाल छै,
तैयो एक्टा दीप जरै छै सांझा मैया के नाम पर,
तैयो एक्टा दीप जरै छै सांझा मैया के नाम पर,
सदिखन बाट तकै छै दैया भैया कहिया एबैई गाम पर,
सादिखान मन रहै छै हमर, दैया कई ससुराल पर,
कोना के हमर दैया बाचत, एही दहेज रूपी असुर के बाप स
ग़रीबक धीया आब न बचाती दहेजक पसरल आगी छै .
केकरा कहबाई के सुनते,आनहार बहिर समाज़ छै
माई बिना छै आगन सुन, बाबा बिन दालान छै .......................
माई बिना छै आगन सुन, बाबा बिन दालान छै .......................
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें