बड़भागी हम मिथिलावासी.......
रचनाकार - अभय दीपराज
बड़भागी हम मिथिलावासी. एहि धरती सन माय कतय |
जेहि आँगन जगदम्बा बेटी, पाहुन राम जमाय जतय ||
पग - पग पोखरि, पान - मखानक और धानक भण्डार भरल |
गंगा - गंडक, कमला - कोसी, अमृत सन जलधार भरल ||
बुद्धि - विवेक, ज्ञान और बल के, परचम नित फहराय जतय |
जेहि आँगन जगदम्बा बेटी, पाहुन राम जमाय जतय ||१||
कालीदास, मदन, विद्यापति, मंडन और अयाचिक धाम |
एहि आँगन में उगना भोला, एहि आँगन चाणक्य ललाम ||
गौतम-कपिल-जनक के तप बल, छाया बनिकय छाय जतय |
बड़भागी हम मिथिलावासी. एहि धरती सन माय कतय ||२||
सादा - सरल - सरस - शुचि भोजन, चूड़ा-दही, साग और भात |
मज्जन-पूजन, संध्या वंदन, नैतिक-चिंतन, सबहक बात ||
पावन और पवित्र मानवता, नित-प्रतिदिन अधिकाय जतय |
जेहि आँगन जगदम्बा बेटी, पाहुन राम जमाय जतय ||३||
धर्मक - धुरी धरा मिथिला के, सभ्य समाजक ई सिरमौर |
करब प्रयास सदा हम सब ई- एहि के गौरव बढ़य और ||
धर्म नैं कहियो जाय एतय सँ, पाप नष्ट भय जाय जतय |
बड़भागी हम मिथिलावासी. एहि धरती सन माय कतय ||४||
बड़भागी हम मिथिलावासी. एहि धरती सन माय कतय |
जेहि आँगन जगदम्बा बेटी, पाहुन राम जमाय जतय ||
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