dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

AAP SABHI DESH WASHIYO KO SWATANTRAT DIWAS KI HARDIK SHUBH KAMNAE

मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

कक्का हमर उचक्का

कक्का हमर उचक्का ।

( होली पर हास्य कविता)
ओंघराइत पोंघराइत हरबड़ाइत धड़फराइत धांई दिसा
बान्हे पर खसलाह कक्का हमर उचक्का
बरजोरी देखी मुस्की मारैतकाकी मारलखिन दू-चारि मुक्का।।

धिया-पूता हरियर पीयर रंग सॅं भिजौलकनिबड़की काकी
हॅसी क घिची देलखिन धोतीक देका पिचकारी
मे रंग भरने दौगलाह हमर कक्का
अछैर पिछैर के बान्हे पर खसलाह कक्का हमर उचक्का।।

होरी खेलबाक नएका ई बसंतीउमंग
ततेक गोटे रंग लगौलकनि मुॅंह भेलैन बदरंग
के देखैत मातर कक्का बजलाह आई
होरी खेलाएब हम अहींक संग।।

कक्का के देखैत मातर काकी निछोहे परेलीह
आ बजलीहहोरी ने खेलाएब हम कोनो
अनठीयाक संगजल्दी बाजू के छी अहॉं
नहि त मुॅंह छछारि देबघोरने छी आई हम करिक्का रंग।।

भाउजी हम छी अहॉक दुलरूआ दिअर
होरी खेला भेल छी हम लाल पिअरआई
त भैयओ नहि किछू बजताह जल्दी होरी
खेलाउएहेन मजा फेर भेटत नेक्सट ईअर।।

सुहर्दे मुॅंहे मानि जाउ यै भौजी
नहीं त करब हम कनि बरजोरीहोरी मे
त अहॉ जबान बुझाइत
छीलगैत छी सोलह सालक छाउंड़ी।।

आस्ते बाजू अहॉक भैया सुनि लेताह
कहता किशन भए गेल केहेनउचक्का
केम्हारो सॅ हरबड़ाएल धड़फराएल औताह
छिनी क फेक देताह हमर पिनी हुक्का।।

आई ने मानब हम यै भाउजी
फुॅसियाहिक नहि करू एक्को टा बहन्ना
आई दिउर के भाउजी लगैत अछि कुमारि छांउड़ी
रंगअबीर लगा भिजा देब हम अहॉक नएका चोली।।

ठीक छै रंग लगाउ होरी मे करू बरजोरी
आई बुरहबो लगैत छथि दुलरूआ डिअर
ई सुनि पुतहू के भाउजी बुझि होरी खेलाई लेल
बान्हे पर दौगल अएलाह कक्का हमर उचक्का।।

लेखक:- किशन कारीगर ।

कोई टिप्पणी नहीं: