विषय : "करवा चौथ के प्रचलन", मिथिलांचल में सेहो तेज़ी सँ हाबी भ रहल।
आजुक समय में मिथिलांचल में “करवा चौथ” के परंपरा सेहो धीरे-धीरे बहुतहिं तेज़ी सँ हाबी भ’ रहल अछि। पहिने मिथिला में ई प्रथा नै छल। मिथिलाक स्त्री सभक अपन अनेक लोकपर्व रहैत छनि - जेना कि शामा-चकेवा, मधुश्रावणी, जीतिया, छठि, तिला संक्रांति, तुलसी विवाह इत्यादि जेकर मूल भावना सेहो पति-पत्नीक प्रेम, निष्ठा आ दीर्घायु स’ जुड़ल अछि।
एहन पवित्र भाव मिथिला संस्कृति में सदिखन रहैत आएल अछि। हम “करवा चौथ”क खूब सम्मान करैत छी, कारण हर परंपरा अपन विश्वासक प्रतीक होइत अछि।
संस्कृति के आदान-प्रदान कथमपि खराब नै छैक, धरि अपन जड़ि सँ कटि क कोनो आर परंपरा में पूर्णतः डूबि गेनाई व ओहि के अहम हिस्सा बना लेनाई, हमर व्यक्तिगत विचार सँ मिथिलाक "सांस्कृतिक हानि" अछि।
दोसरक संस्कृति, परम्परा वा व्यवहार सँ किछु अपनायब एहि दिशि इंगित करैत अछि जे, हमर जे सनातन परम्परा अछि, ओ पूर्ण नहि अछि। ओहि में किछु नव जोड़बाक आवश्यकता अछि। जबकि मिथिला अपन साँस्कृतिक विरासत आ परम्पराक सङ्गे पूर्ण अछि, कोनहुँ अन्यक जरुरैत नहि अछि।
चिंता एहि बातक अछि जे मिथिला समाज अपन मौलिक संस्कार, लोकगीत, लोकव्रत आ रीति-रिवाज छोड़िकेँ दोसर प्रदेशक संस्कृति सँ अत्यंत प्रभावित भ’ रहल अछि। मिथिला के लोग अपन संस्कृति के छोड़ि वा बिसरि क अन्य जगहक संस्कृति अपना रहल छथि।
अपन पहचान बचेनाई बहुत जरूरी अछि, नहि तँ भावी पीढ़ी मिथिलाक मूल लोकपरंपरा सँ बिल्कुल अनभिज्ञ रहि जाएत। मिथिला केवल एकटा भूभाग नहि, बल्कि एकटा जीवंत संस्कृति के प्रतीक अछि। मिथिला संस्कृति अपन मर्यादा, मातृशक्ति के सम्मान, मधुर वाणी, खान-पान, आध्यात्मिकता, प्रकृति सँ संलग्नता, लोकसंस्कृति आ जीवन दर्शन लेल प्रसिद्ध अछि।
अतएव, ई अति आवश्यक अछि जे अपन लोकपर्व, लोकभाषा आ परंपरा केँ स्नेहपूर्वक सहेजि क राखी, जकरा सँ अप्पन मिथिलाक गौरव सदा अमर रहत।
चिंतन - चलू कनी काल लेल मानलौं जे, पति के लेल आर अपन भाग सौभाग्यक लेल कोनो पावनि केनाई कोनो अधलाह नै छै। मुदा, ओहि पति परमेश्वर के माय बाप के गाईर पढ़नाई आर पति के हरदम दुत्कारैत रहनाई कथमपि ठीक नै छैक। कियौ माए बहिन पति लेल कोनहु पर्व करै छथि, त हुनका सॅं हमर विनम्र निवेदन अछि जे अपन पतिदेव केॅं कदर सेहो निष्ठा भाव सॅं करथि।

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