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मंगलवार, 21 जनवरी 2020

हेरबरी वियाह कनपटी सिंदूर ।। रचना - कविता झा



    Date : १९,०१,२०२०
( हेरबरी वियाह कनपटी सिंदूर)
स्नेही एक शिक्षित आ
गुणी महिला छलाथी एक दिन हुनकर पुत्र एक सुंदर आ किमती जुता अनलखिन आ कहला
मां आहां लेल अनालाहू, जार छैक। मां पुछलखिन कतेके अछी बेटा बजलाह ५०००
अरे एते क महग जुता के हमरा कोन प्रयोजन
अच्छी। बेस, एक दिन हुनका अपना भाई के
बर्थडे में जायिके छल सोचलिह आई नीक दिन
अच्छी नबके जुता पहिर लैत छी। ओ पहीर ओढ़ी
भाई घर पहुंच लिह।दिन भरी खूब रमन_चमन भेल सांझ में दोसराक संगे बिदा भेलिह हरबर में
दोसर जुता जे सामने भेटलनी बिना देखने पाहिर
लेली। जखन रास्ता में रहथी त हूनका बुझायाल
जे जुता कनि dhil अच्छी, सोचलीह जे ओकर
फिता खियिल गेल हेताई।घर पहुंच स पहिने जखन ओ फीता बनहलेल पैर दिस तकैत छैथ त
जा ई त हुनाकर ओ जूते नहि जे बेटा अनिक देने
छलखिन। बहुत आश्चर्य भेलनी मुदा एखन केना
किछु बजतिह संग में दोसर कियो छलाह। घर आबि सब स पही ने जुता नुकाक रखालिह फेर
भाभी के फोन केली। भाभी हिनकर जुता के ओरिया क रखलिह आ जीनकर जुता रहनी हुनाका अपन सैंडिल दय राजस्थान बिदा केलिह
 एकरे कहैत अछी हरबरी बियाह कनपटी सिंदूर।
                            कविता झा।🙏

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