सुनलउ सब पर ध्यान धरैछी
यौ कपि , हमर ने सुधि अहाँ लेलो |
क्रन्दन करि - करि केसरी नंदन
निसदिन नोर नहय लऊ ||
सुनलउ - --यौ कपि--
करुणाकर कपि दया के सागर
सबहक़ मुहें सुनै छी |
नयन निहारैत वयस बीत गेल
किऐ नञि अहाँ जनै छी ||
सबहक काज दौडि कय कयलहुँ
हमर बिसरि किय गेलौ
सुनलउ - -- यौ कपि--
केहन कठोर बनल बैसल छी
बुझि कउ सब अंजान |
की हम दास अहाँ के नञि छी
अतबे कहु हनुमान ||
पवन पूत , हे गुण निधान
हम कते निहोरा कयलौं
सुनलउ - -- यौ कपि--
शंकर सुवन हे गगन विहारी
फांदि गेलौ अहाँ लंका |
विद्यासागर , बुधि के आगर
सभतरि बाजल डंका ||
"रमण " व्याथा चित उझलि देलऊ
अहाँ तैयो नञि पतिएलो ||
सुनलउ - -- यौ कपि--
शंकर सुवन हे गगन विहारी
फांदि गेलौ अहाँ लंका |
विद्यासागर , बुधि के आगर
सभतरि बाजल डंका ||
"रमण " व्याथा चित उझलि देलऊ
अहाँ तैयो नञि पतिएलो ||
सुनलउ - -- यौ कपि--
रचित -
रेवती रमण झा "रमण "
रेवती रमण झा "रमण "
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें