|| लालदाइक चिठ्ठी ||
लिखि रहल छी आमक गाछी सँ ||
कलकतिया केरवी कृष्ण भोग
बम्बइ बिज्जू करपुरिया पर
पातक छाया सँ फुदकि -फुद्कि
कोकिल अछि अपन अलाप दैत
कचकि उठल मोर ह्रदय अहाँ बिनू
ओकर करुण - पिपासी सँ ||
लाल दाई -- लिखि रहल --
पपीहा गबैत , के अछि बुझैत
ओ कोन दर्द मे अछि व्याकुल
की पती विरह में पात -पात
अति विरहाकुल
दू टूक करेजी हमर भेल
देखि ओकर प्रवल अभिलाषी सँ ||
लाल दाई -- लिखि रहल --
तोता आ मैनाक बिवाद
अछि चलि रहल , तोता कहल
सुन रे मैना , ई सत्य थीक
हो नारी या पुरुष जाति
प्रीत जोड़ी , जे लैत तोरि
ओ मानव छली तँ नर्क पौत
मरियो कउ जायत जँ काशी सँ ||
लाल दाई -- लिखि रहल --
बुल - बुल प्रेमक जे हर्ष - विषाद
की थीक स्वाद ?
वर गीत , प्रीत के गाबि रहल
सुख पाबि रहल
अछि तरुण तरुणियाँ पत - दल में
सप्तम स्वर पंचम कल - रव सँ ||
लाल दाई -- लिखि रहल --
निम् कदम्ब इमली छाया तर
बैसल पथ कउ नित पाँतर में
अहाँक कुसल हम हेरि - हेरि
सदिखन पूछैइत
नित अहींक ग्राम - निवासी सँ ||
लाल दाई -- लिखि रहल --
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