आइ माघ मास कृष्ण पक्षक चतुर्दशी - देवाधिदेव महादेव केर प्रिय दिन, आइये देवता लोकनि परमपिता ब्रह्माजी सँ आदेश लय शिवकेर विवाह हेतु राजा हिमालय पुत्री गौरी संग कथा-वार्ता निश्चित कैल गेल छल।
आजुक दिन अत्यन्त शुभ मानल गेल अछि आ एकर महत्ता बहुते पैघ छैक। मानव प्रजाति गार्हस्थ जीवनमे रहैत जे किछु पापाचार अनचोके केने रहैछ ताहि लेल क्षमायाचना आजुक दिन व्रत राखि करैत अछि। कर्म अनुरूपे फल भेटबाक बात मानव-संसारमे प्रसिद्ध छैक। तुलसीदासजी लिखैत छथि:
कर्म प्रधान विस्व रचि राखा - जो जस करहिं सो तस फल चाखा।
अर्थात् एहि संसारमे जे कियो आयल अछि ओ निहित कर्म करबे करत आ तही लेल एहि संसारकेँ कर्मप्रधान मानल जाइछ, पुन: कर्म अनुरूप क्रियमाण, संचित ओ प्रारब्ध तीन तरहक फल पबैछ। हिन्दू धर्म-संस्कृतिमे जीवन पर्यन्त कर्मफलकेर जे किछु भोग छैक - तेकर अतिरिक्त मृत्युपरान्त सेहो कर्म अनुसार गति मानल गेल छैक। स्वर्ग आ नरक केर परिकल्पना ताहि लेल मानल जाइत छैक। सीधा शब्दमे पुण्यसँ स्वर्ग आ पाप सँ नर्क केर भोगक मान्यता छैक।
गार्हस्थ जीवनमे विभिन्न प्रकारक कर्म करैत अनचोके कतेको पापाचार होइत रहैत छैक। लेकिन दर्शनशास्त्र ओ वैदिक कर्मकाण्ड द्वारा एहेन तरहक पापक भोगकेँ मेटाबय लेल किछु व्रत ओ अनुष्ठान आदिक चर्चा आयल छैक। माघ कृष्ण चतुर्दशीक व्रत एहेन पापसँ मुक्तिकारक होयबाक चलते नरक-निवारण चतुर्दशी कहाइछ। आइ लोक दिन भरि उपास रखैत अछि। आजुक दिन शिव-परिवारक पूजनमे बेल आ तीर्थक जलसँ जलाभिषेक केर विशेष महत्त्व छैक।
मिथिलाक्षेत्रमे मकर संक्रान्तिसँ शुरु भेल शिवमठ पर दर्शन-पूजा, रवि-रवि मकर-मेला जेबाक प्रक्रियामे आइ चतुर्दशी दिन सेहो दर्शन-पूजापाठ लेल शिवमठपर जेबाक विशेष परंपरा छैक। लोक औझका व्रतक पारण लेल मठेपरसँ बेड फर आनैछ, संध्याकाल पारण करैत व्रत समापन कैल जाइछ। कतेक ठाम बेडक संग तील सेहो खाइत नरक निवारण चतुर्दशी व्रतक पारण करैत उपास खत्म करैछ। आजुक व्रत बाल्यावस्थासँ वृद्धावस्थामे रहनिहार सब कियो करैत अछि। मठ सबपर बड पैघ मेला सेहो लगैत छैक। प्राचिनकालसँ मिथिलामे एहेन समय घरक गृहिणी (नारीवर्ग) विशेष रूप सँ मठपर जाइत छथि आ नैहरा सहित अन्य सगा-सम्बन्धी सबसँ सेहो भेंटघाँट होइत छन्हि। कतेको रास वैवाहिक सम्बन्ध आजुक दिन मठेपर कनियां-निरीक्षणसँ पूर्ण होइत छैक। यैह कारण छैक जे संसारक लोकमे ई मान्यता छैक जे वैदिक विधान आ मिथिलाक लोकचर्या बहुत मिलैत छैक।
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