धरतीक आँगनमे एलै
लाल रंगक ओढ़नी एकर
हरीयर खेतमे छिरएलै
कोंढ़ी सभ मूरी हिला कए
पंखुड़ीकेँ फैलेलक
नचि-नचि कए नैन्हेंटा भोंडा
खुशीकेँ नाच दखेलक
लए संग अपन साजि बरयाति
खुशी ओ संग अनने अछि
संग एकरे उठल चिड़ै सभ
आर मनुख सभ जगैत अछि
माए सभ आँचरमे भरि कए
नेनापर अमृत बरसेलै
उगैत सूरज पएर पसारि
धरतीक आँगनमे एलै
बरदकेँ संग लए हरबाहा
कन्हापर लादि हर आएल
गाए महीषकेँ रोमि चरबाहा
धरतीक आँगनमे बहि आएल
छोट छोट हाथसँ नेना
डोड़ी पकैर बकरीकेँ अनलक
माथ पर ल' क' ढाकी खुरपी
घसबाहीन झुमति निकलल
एहन सुन्नर मनभाबक
दृश्य भोरका कएलक
उगैत सूरजकेँ त' देखू
केहएन सुन्नर दुनियाँ बनेलक ।
उगैत सूरज पएर पसारि
धरतीक आँगनमे एलै ।
***** जगदानन्द झा 'मनु'
1 टिप्पणी:
ati sundar , bahut nik
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