dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

गजल


अन्हरिया राति मे सँ भोर कखनो निकलबे करतै।
दुखक अनन्त मेघ केँ चीर सुरूज उगबे करतै।

सब फूल बागक झरि गेल सुखा केँ एकर की चिन्ता,
नब कोढी फूटलै कहियो सुवास पसरबे करतै।

टूटल प्याली पर कहाँ कानैत छै मय आ मयखाना,
प्याली फेर कीनेतै, मयखाना मे मस्ती रहबे करतै।

सागर मे सदिखन बिला जाइत छै धारक अस्तित्व,
तैं की धार रूकै छै, बिन थाकल देखू बहबे करतै।

काल्हि "ओम"क नाम लेबाक ककरो फुरसति नै हेतै,
आइ कान किछ ठोढ सँ हमर नाम सुनबे करतै।
------------------ वर्ण २० -------------------

3 टिप्‍पणियां:

virendra sharma ने कहा…

बेहद की मिठास लिए भाषिक प्रयोग और भाव की आंचलिक ग़ज़ल .बधाई .

सागर ने कहा…

behtreen gazal.....

सागर ने कहा…

behtreen gazal prstuti....