सन 1800 के बाद बंगाल, पंजाब, मद्रास, महाराष्ट्र के विस्तृत क्षेत्र पर ब्रिटिश शासन का अधिकार हो गया । लंदन से आए निर्देशों का पालन करते हुए अंग्रेज अधिकारियों ने भारत के अंदर की शिक्षा व्यवस्था पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की ।
लंदन से ये निर्देश आया था कि हर जिले का कलेक्टर निजी तौर पर गांव गांव में जाकर एक एक छात्र का जातिवार ब्यौरा इकट्ठा करेगा और ये पता लगाएगा कि कितने स्कूल हैं कितने बच्चे हैं और किस किस जाति के हैं ।
बंगाल प्रेसीडेंसी की शिक्षा की रिपोर्ट विलियम एडम्स के द्वारा 1812 में ब्रिटिश हाउस ऑफ कामंस में पेश की गई थी । इसी तरह टोमस मुनरो ने मद्रास प्रेसीडेंसी की रिपोर्ट और विटनर ने पंजाब की रिपोर्ट ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स भेजी थी । इन तमाम रिपोर्ट से निम्नलिखित तथ्य निकले ।
अंग्रेजों की रिपोर्ट प्वाइंट नंबर -1
इन तीनों रिपोर्ट के मुताबिक 1812 तक भारत के अंदर साक्षरता दर 97 प्रतिशत थी । (सवाल ये है कि जब अंग्रेज ही कह रहे हैं कि 100 में से 97 भारतीय साक्षर था तो कथित अंबेडकरवादी कैसे कहते हैं कि दलितों को पढ़ने का अधिकार नहीं था।)
अंग्रेजों की रिपोर्ट प्वाइंट नंबर -2
भारत के हर गांव में एक स्कूल है और इस स्कूल में सभी जातियों के बच्चे पढ़ते थे । शूद्र वर्ण के शिक्षक भी इन स्कूलों में पढ़़ाते थे । सर्वेक्षण के अनुसार शिक्षकों में अब अछूत मानी जाने वाली जातियों के शिक्षक भी शामिल थे।
अंग्रेजों की रिपोर्ट प्वाइंट नंबर -3
अंग्रेजों ने अपनी रिपोर्ट में गुरुकुलों को शामिल नहीं किया था । इसके बावजूद उस वक्त सिर्फ मद्रास प्रेसीडेंसी में ही इंग्लेैंड से तीन गुना ज्यादा स्कूल थे और वो भी तब जब सर्वे में इंग्लैंड के उन चर्च स्कूलों को भी शामिल किया गया था जो हफ्ते में सिर्फ एक दिन रविवार को ही चलते थे ।
अंग्रेजों की रिपोर्ट प्वाइंट नंबर -4
बड़े शहरों में ऐसे कई स्कूल हैं; जहां युवा मूल निवासियों को पढ़ना, लिखना तथा अंकगणित सिखाया जाता है ।
अंग्रेजों की रिपोर्ट प्वाइंट नंबर -5
छात्र छात्राओं के माता-पिता योग्यता के अनुसार शिक्षकों को अनाज से लेकर एक रुपया प्रति माह वेतन के रूप में दिया करते थे ।
सबसे महत्वपूर्ण बात
1929 में ब्रिटेन में हुई राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में मोहन दास करमचंद गांधी ने इन्हीं तीन रिपोर्ट के आधार पर अंग्रेजों पर आरोप लगाया कि ब्रिटिश शासन में भारतीय शिक्षा व्यवस्था के सुंदर वृक्ष को तहस नहस कर दिया । उस वक्त वहां मौजूद एक अंग्रेज बुद्धिजीवी फिलिप हाटडाग ने गांधी से सबूत मांग लिया । तब गांधी के निर्देश पर के टी शाह ने फिलिप हाटडाग को अंग्रेजों की ही ये तीनों रिपोर्ट सबूत के तौर पर भेजी थी । 1939 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी ने ये तीनों रिपोर्ट दोबारा प्रकाशित की थी । बाद में गांधीवादी धरमपाल ने लंदन जाकर ये सारी रिसर्च पूरी करके भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर एक किताब भी लिखी थी जिसें सारी जातियों के छात्रों की पूरी संख्या भी दी गई है ।
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