dahej mukt mithila

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रविवार, 14 जनवरी 2024

राम मन्दिर का 22 जनवरी - 2024 का उद्घाटन

 


 राम मन्दिर का 22 जनवरी 2024 का उद्घाटन और शंकराचार्य का नही सम्मिलित होना विरोध का स्वर नही है  

राम मन्दिर अयोध्या में बनना ऐतिहासिक है। जब मन्दिर का निर्माण हुआ है तो मुर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी होना ही है। 22 जनवरी को ज्योतिषियों के मुताबिक  कई शुभ योग बन रहे हैं। इस तिथि को शुरुआत में तीन शुभ योग सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और रवि योग बन रहे हैं  इसके अतिरिक्त यह  ऐसा दिन है जो राम भक्तों की कुर्बानी को याद दिलाता है।  सनातन धर्म महान इसिलिए भी है कि यहाँ लोगों को अपनी बात कहने की स्वतंत्रता है। एक विषय पर अनेक मत सम्भव है। इस सन्दर्भ मे चार शंकराचार्य द्वारा उसमे भाग नही लेना उचित तो नही लग रहा है परंतु यह आश्चर्य  का विषय नही है। शंकराचार्य ज्ञान परम्परा के सर्वश्रेष्ट व्यक्ति ही नही संस्था हैं। इसको सभी जानते हैं। सम्मान भी करते हैं। सभी शंकराचार्य शास्त्र को सर्वोत्तम मानते हैं  और उसी अनुरुप जीवन जीते हैं। लेकिन उनका 22 जनवरी 2024 को अयोध्या नही जाना न तो सरकार विरोधी और न ही सनातन विरोधी कर्म के रूप मे देखने की जरूरत है। लोग बात को जोड़ तोड़ कर कह रहे हैं। यह उचित नहीं है। जो लोग कल तक शंकराचार्य को गाली दे रहे थे आज उन्हें शंकराचार्य का नही जाने का निर्णय अमोघ अस्त्र के समान लग रहा है। वे उनके हितैषी बन रहे हैं। यह तो अलग ही अवस्था है भाई! 

लोग स्वयं के घर और देवालय मे भी पुर्ण निर्माण से पहले प्रवेश करते रहे हैं। यह नूतन और शास्त्र विरुध्ध कार्य नही रहा है। 

कहता चलूं की राजा अद्वैत है क्योंकि वह एक है। प्रधान मंत्री जनप्रतिनिधि होने के कारण राजा हैं। एक ऐसा राजा जिसका चयन जन्म के आधार पर न होकर कर्म के आधर पर हुआ है। एक ऐसा राजा जो जन जन का प्रतिनिधित्व करता है। अतएव प्रधानमंत्री स्वत: यजमान हो जाते हैं।  उन्हें प्राण प्रतिष्ठा करने का अधिकार स्वत: हो जाता है। सभी शंकराचार्य का यह दायित्व हो जाता है कि अपनी भव्य उपस्थिति से और ज्ञान से यज्ञ को सार्थक करें। एक नैयायिक की तरह देखें कि प्राण प्रतिष्ठा का विधान शास्त्र सम्मत हो रहा है या नही। सभी पूजा, धार्मिक कार्य, देवालय इत्यादि का सम्पादन राजा के द्वारा ही होता रहा है। इसपर राजा का ही अधिकार रहा है। राम ने जब त्रेता युग में राजसीयू यज्ञ किया तो राम ही यजमान थे । वशिष्ठ पुरोहित बने थे न कि यजमान। इस यज्ञ मे पुरोहित तो ब्राह्मण ही है।   ब्राहमण का धर्म ही है पुरोहित होना और सम्पादन को सही तरह से अंजाम देना।                                                           डॉकैलाशकुमारमिश्र                                          

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