शास्त्रीय मान्यताक अनुसार आषाढ़ शुक्लक देवशयनी एकादशी सँ वर्षाकालक चारि माहक अवधि भगवान विष्णुकेँ योगनिद्राक अवधि होइत छनि। हमर सभक सब मांगलिक कार्य श्रीहरिकेँ साक्षीमे होइत अछि। देवोत्थान कार्तिक शुक्ल एकादशीकेँ देव उठान, देवोत्थान, हरिबोधिनी, प्रबोधिनी एकादशी सेहो कहल जाइत अछि।मिथिलामे देवोत्थान एकादशीक बड़ महत्व अछि। कालिदास सेहो मेघदूतमे एहि दिनक उल्लेख कएने छथि।मेघदूतमे यक्षक शापक अंत होयबाक यैह दिन कहल गेल अछि - शापान्तो मे भुजगशयनादुत्थिते शार्डग्पाणौ। एहि सँ स्पष्ट अछि जे कालिदासक समयमे सेहो ई देवोत्थान एकादशी एकटा महत्वपूर्ण अवसर छल आ दिन गिनबाक एकटा नियत तिथि छल। श्रीहरिकेँ तुलसी प्राणप्रिय छैन्ह, ताहि दुवारे जागरणक बाद सर्वप्रथम तुलसीक संग हुनकर विवाहक आयोजन कएल जाइत अछि।
श्रीविष्णु व तुलसीक एहि विवाहक पाछू एक पौराणिक कथा अछि। श्रीमद्भागवतक अनुसार प्राचीन कालमे जलंधर नामक एक महाशक्तिशाली असुर छल। ओ श्रीहरिकेँ परमभक्त अपन पतिव्रता पत्नी वृंदाक तपबलक कारण अजेय बनल छल। जलंधरक उपद्रव सँ परेशान सब देवी-देवता प्रार्थना सुनि कऽ भगवान विष्णु सँ रक्षा करयकेँ गुहार लगेलखिन। देवी-देवताक प्रार्थना सुनि कऽ भगवान विष्णु वृंदाकेँ पतिव्रता धर्म भंग करयकेँ निश्चय केलनि। ओ जलंधरक रूप धरि कऽ छल सँ वृंदाकेँ स्पर्श केलखिन। विष्णुक स्पर्श करैत देरी वृंदाक सतीत्व नष्ट भऽ गेलनि। जलंधर देवता सँ पराक्रम सँ युद्ध करि रहल छल मुदा वृंदाक सतीत्व नष्ट होइत देरी ओ मारल गेल। जखन वृंदाकेँ वास्तविकताक पता चललनि तखन क्रोधमे आबि कऽ ओ भगवान विष्णुकेँ पाषाण भऽ जाइकेँ शाप देलखिन और प्राण त्याग करय लगलीह। ई देखि अपन वास्तविक रूपमे आबि कऽ श्रीहरि वृंदाकेँ हुनकर पतिक अन्याय व अत्याचार सँ अवगत करेलखिन। और हुनका कहलकि कई तरहें ओहो परोक्ष रूप सँ अपन पतिकेँ अत्याचारक सहभागी बनल छलीह।
पूरा गप्प सुनि कऽ वृंदाकेँ अपन भूलक अहसास भेलनि और ओ श्रीहरि सँ क्षमा माँगैत कहलखिन कि आब ओ क्षणभरि जीवित नहिं रहती। एहि पर श्रीहरि हुनका अनन्य भक्तिकेँ वरदान दैत कहलखिन, ' हे वृंदा ' अहाँ हमर प्राणप्रिय छी। ताहि दुवारे अहाँक शाप सेहो हमरा शिरोधार्य अछि। हमर आशीर्वाद सँ अहाँ सृष्टिकेँ सर्वाधिक हितकारी औषधी ' तुलसी ' केँ रूपमे जानल जायब और हमर पाषाण स्वरूप ' शालिग्राम ' सँ अहाँक मंगल परिणय संसारवासीकेँ अह्लादक निमित्त बनत।
देवोत्थान एकादशीक दिन तुलसी और शालिग्रामक विवाहक एहि मांगलिक अवसर पर तुलसी चौराकेँ गोबर सँ नीप कऽ तुलसी पौधाकेँ लाल चुनरी-ओढ़नी ओढ़ा कऽ सोलह श्रृंगारक सामान चढ़ाओल जाइत अछि।फेर गणेश पूजनक बाद तुलसी चौराक लऽग कुशियारक भव्य मंडप बना कऽ ओहिमे श्रद्धा सँ शालिग्रामकेँ स्थापित कऽ विधिपूर्वक विवाहक आयोजन होइत अछि। मान्यता अछि कि तुलसी विवाहक ई आयोजन कयला सँ कन्यादानक बराबर फल भेटैत छैक।
आभा झा
गाजियाबाद
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