dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

apani bhasha me dekhe / Translate

मंगलवार, 29 मार्च 2022

स्वर्ग का सुख : माँ-बाप के चरणों में

 *स्वर्ग का सुख : माँ-बाप के चरणों में* 


 एक आदमी अपने माँ-बाप को भिन्न-भिन्न तरह से बहुत प्रताड़ित करता रहता था। इस कुकृत्य में उसकी पत्नी भी उसका खूब साथ निभाती थी। हमेशा बेचारे सीधे-साधे माँ-बाप की आत्मा बहुत दुःखी रहती थी। जब भी वो अपने बेटे-वहू को कुछ भी समझाने सिखाने की बात करते, उन्हें उल्टे मुँह की खानी पड़ती थी और तमाम तरह की बेइज्जती सहनी पड़ती थी। यहाँ तक कि एक दिन बेटे-बहू दोनों मिलकर माँ-बाप को ही उनके घर से निकाल दिये। माँ-बाप रोते रहे, गिड़गिड़ाते रहे, यहाँ तक कि उल्टे माफ़ी मांगते रहे लेकिन बेटे-बहू एक नहीं सुने। माँ-बाप शर्म के मारे किसी को कुछ नहीं कहे और दूर दराज़ एक मंदिर में जाकर शरण ले लिये। खैर, समय बीतता गया। ईश्वर ने उसके माँ-बाप को उसी शहर में एक आलीशान व्यवस्था बना दी, जहाँ वो दोनों खुशी से रहने लगे। जब भी माँ-बाप को दिल में हूक सी उठती थी, वो परेशान हो उठते थे और अपने बेटे-बहू को फ़ोन कर बैठते थे। उधर बेटा-बहू या तो फ़ोन उठाते नहीं थे और कभी उठाते थे तो अनाप शनाप कुछ ऐसा बोल देते थे कि बूढ़े माँ-बाप का दिल और दुःख जाता था।

इधर वो दोनों बेटा-बहू बहुत बीमार रहने लगे। दोनों हॉस्पिटल से वापस हो रहे थे की उसकी पापीन बहू की सड़क दुर्घटना में अकाल मृत्यु हो गयी। पापी बेटा भी मरते मरते बचा। लेकिन उसका ज़ख्म बहुत ही ज्यादा गहरा था जिससे वो बहुत पीड़ा भोग रहा था। वहाँ काफी संख्या में लोग इकट्ठे हो गये थे। उसी भीड़ में एक महापुरूष भी थे। लोगों ने महापुरूष से पूछा कि इसका पीड़ा देखा नहीं जा रहा है। इसलिए, कृपया आप इसका कोई उपाय बतायेँ जिससे यह पीड़ा से मुक्त होकर अपना प्राण त्याग दे और ज्यादा पीड़ा न भोगे। 

उस महापुरूष ने बताया कि अगर स्वर्ग की मिट्टी लाकर इसको तिलक किया जाये तो ये पीड़ा से मुक्त हो जायेगा। ये सुनकर सभी चुप हो गये और सोचने लगे कि "स्वर्ग कि मिट्टी" कहाँ से और कैसे लाया जाय, ये तो बिल्कुल ही नामुमकिन है? महापुरुष की बात सुनकर एक छोटा सा बच्चा दौड़ा-दौड़ा गया और थोड़ी देर बाद एक मुठ्ठी मिट्टी लेकर आया और बोला - "ये लीजिये, स्वर्ग की मिट्टी। इस मिट्टी से तिलक कर दीजिये, इनकी पीड़ा कम हो जाएगी।" बच्चे द्वारा लाये गये मिट्टी से दर्द से कराहते हुए उस आदमी को जैसे ही तिलक किया गया, कुछ ही क्षण में वो आदमी पीड़ा से एकदम मुक्त हो गया। ये चमत्कार देखकर सब हैरान थे, क्योंकि स्वर्ग की मिट्टी भला ये छोटा सा बच्चा कैसे ला सकता है? ऐसा हो ही नहीं सकता है।

महापुरूष ने बच्चे से पूछा - "बेटा, ये मिट्टी तुम कहाँ से लेकर आये हो? पृथ्वी लोक पर स्वर्ग कहाँ है, जहाँ से तुम कुछ ही पल में ये मिट्टी ले आये हो"? लड़का बोला - "बाबाजी, इस धरती पर माँ-बाप के चरणों में ही सबसे बड़ा स्वर्ग होता है। उनके चरणों की धूल से बढ़कर धरती पर दूसरा कोई स्वर्ग नहीं है। इसलिये मैं ये मिट्टी अपनी माँ-बाप के चरणों के नीचे से लेकर आया हूँ।" 

बच्चे के मुँह से ये बात सुनकर महापुरूष बोले - "बिल्कुल सही, माँ-बाप के चरणों से बढ़कर इस धरती पर दूसरा कोई स्वर्ग नहीँ है। कोई चाहे कितनी भी तरक्की कर ले, कितना भी रूपया-पैसा, धन-संपत्ति जमा कर ले, खूब पद-प्रतिष्ठा पा ले, आसमान की उच्चाईयोँ को छू ले, लेकिन जब तक माँ-बाप खुश नहीं हैं तब तक सबकुछ निरर्थक है। यहाँ तक कि ऐसे लोगों से भगवान भी खुश नहीं होते हैं और कोई भी दान, पुण्य, तीर्थ करने का फल नहीं मिलता है। जिस औलाद की वजह से माँ-बाप की आँखो में आँसू आये, ऐसी औलाद को इस धरती पर ही नरक का भोग भोगना पड़ता है।" 

छोटे बच्चे और महापुरुष की सारी बातें पापी बेटा सुन रहा था। उसके चेहरे पर आत्मग्लानि झलक रही थी, दोनों आँखों से लगातार आँसू बह रहा था और दोनों होंठ कांप रहे थे। वो अपने दोनों हाथों से अपने सर को जोर से पकड़े हुए था। बेटे ने मन ही मन सोचा कि कल माँ-बाप से क्षमा मांगेगा और अब खुद वहीं उनके साथ ही जीवन बितायेगा। दूसरे दिन शाम को बेटा मुँह लटकाए हुए अपने माँ-बाप से मिलने गया। डरते-डरते आहिस्ते से दरवाजा पर दस्तक दिया। अंदर से एक अधेड़ उम्र का आदमी आया और पूछा - "आप कौन"। पूछने पर पता चला कि वो बूढ़े इसके माँ-बाप थे। अधेड़ उम्र का आदमी घर के अंदर गया और "एक चुटकी भभूत" लेकर बाहर आया और बेटे के सर पर लगा दिया। बेटे ने पूछा - "ये कहाँ का भभूत है? मेरे माँ-बाप कहाँ हैं?" अधेड़ उम्र के आदमी ने कहा - "कल रात में क़रीब 9 बजे बूढ़ी माताजी को अचानक बड़े जोर से सीने में दर्द हुआ और तुरंत उनका देहांत हो गया। ठीक उसके आधा घंटा के बाद ही बूढ़े बाबा चक्कर खाकर गिर गए और उनका देहांत हो गया। आज सुबह उनका दाह संस्कार हुआ है, जिसका ये भभूत है। वो दोनों मुझे बोल गए थे कि मेरे बेटा-बहू बहुत ही समझदार है, अभी वो नाराज़ है। अगर मेरी मौत हो जाये और उसके बाद मेरा बेटा-बहू आये तो उनको मेरे आशीर्वाद स्वरूप मेरे अस्थि राख का तिलक लगा देना और मेरे तरफ से बोल देना - 'सदा सुखी रहो'..........।"                                                              अशोक कुमार मिश्रा 

कोई टिप्पणी नहीं: