–मनोज झा मुक्ति
ओना नेपाल आ ताहुमे मधेशमे जातिपातिक राजनीति आइए आविकऽ शुरु नै भेलैय । अपनासबहकलेल ई कोनो नवका गप्प नई रहिगेल छै । एकसँएक अपनाके बुद्धिजीवी कहनिहार लोक जातिपातिक राजनीतिसँ अछुत नई रहिगेल अछि । किछु वर्ष पहिनेसँ नेपालेमे आ विषेश कऽ मधेशमे जातिपाति एकटा संस्कृतिकेँरुपमे बढैत जाऽरहल अछि ।
टोल सुधार समितिक चुनावसँ लऽकऽ माननीय आ माननीय सबमेसँ मन्त्रीधरिक चुनावमे जातीयता प्रतिष्ठाकरुपमे स्थान वनवैतगेल अछि । आर त आर चोरी,छिनरपन,अपहरण,गुण्डागर्दी लगायत निकृष्टसँ निकृष्ट काजमे जातीयताके ओतवे प्रवल समर्थनक मानिसिकता जाहि तरहें समाजक हरेक वर्ग,समुदायमे देखल जाऽरहल अछि, बहुत चिन्तनीय बात अछि ।
ओना मनुष्यक पहिचानमे जातीयता एकटा बहुत पैघ अवयव छै । सबगोटेके अपना अपना जातिपर गर्व करवाक चाही, मुदा कि अन्धभक्त भेनाई कतेक सही या वेजाय ? एहिपर चर्चा–परिचर्चा के शुरु करत आ कहियासँ ?
प्रदेश नं.२ मे किछुएदिन पहिने एकटा मन्त्रीद्वारा एकटा मन्त्रालयके सचिवके मारिपीटके घटना समाजिक संजालमे खुब चर्चा कमेलक । ओ काज निकृष्ट या उत्कृष्ट रहय तकर सामाजिक न्यायसँ बेसी एकसँएक विद्वानक पंक्तिमे अपनाके ठाढ कएनिहारसब सेहो अपनाके ब्राम्हण आ यादवके कित्तामे बँटवारा कएल देखलगेल । मन्त्री आ सचिवके मारिपीट त मात्र एकटा छोट उदाहरण अछि, एकटा छोटकोनो गल्ती या कमजोरी ककरो भेटवाक मात्र चाही जातीवादके नंगा समर्थन या विरोध विशेषकऽ सामाजिक संजालमे शुरु भऽजाइत अछि ।
विचित्र त तखन बुझाइत अछि कि नीक काज कएनिहार कोनो जातिकलोकके जते सराहना नई होइत अछि, ताहिसँ बेसी खराब काज कएनिहार कोनो जातिक समर्थन या विरोधमे जातिक लडाकासब देखाइदेवऽलगैत अछि । अनेरे कुकर्मोके जाहि तरहें जातीवादके नामपर प्रश्रय जे भेटिरहल अछि ओ समाज,प्रदेश आ देशकलेल कोनो विषसँ कम नई अछि ।
समाज आ देशके सुधरवाक, परिवर्तन करवाक दिनराति चौक–चौराहासँ लऽकऽ सडक,सदन आ मिडियामे बजनिहार कथित बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता आ राजनीतिकर्मीसब जातियताक रंगदेवऽमे सबसँ आगु देखल जाऽरहल अछि । कि एहने परिवर्तनक पक्षधर हमसब छी ?
जतऽ जातिपातिक विष नई पनपल रहैछ, ओतऽ राजनैतिक दलसब जातिपातिक विषक वृक्ष दिनानुदिन रोपिते जाऽरहल अछि । मात्र आ मात्र जातिक भोंट लऽ,सत्ता प्राप्तीकवाद हमसब केहन रस्तापर देशके आगु बढवऽ चाहि रहल छी ? एकर जवाव ककरासँ पुछल जाए ?
जातिपातिक नामपर जाहि तरहें चोरके साधुक मुखिया बनाओल जएवाक काज भऽरहल अछि, केहन विधि आ व्यवस्थाके निर्माण कएल जाऽरहल अछि ? कि इएह आ एहने परिवर्तन हमसब समाजमे चाहि रहल छी जे सबजाति अपन अपन जाति जाहिगाम,टोल या मुहल्लामे अछि ओत्तहि जाऽकऽ वास करओ ? समाजक परिचय जे विविधिता रहल अछि, ओ समाप्त कएल जाए ? जँ, नहिं त मात्र भाषणमे विरोधक स्थान लैत आएल जातीवाद कहियासँ व्यवहारिकरुपमे समाजमे अपन स्थान बनाओत ? जतेक समय बितिरहल अछि, एकर प्रकोप ओतवे समाजमे देखाइ दऽरहल अछि । किया त एकर नाकारात्मक पक्षके पृष्टपोषकक संख्या दिनानुदिन बढिए रहल अछि । बौद्धिक आ सचेत वर्ग जातियताक नामपर पद आ प्रतिष्ठा आर्जन करवाक प्रतिस्पर्धामे लागल अछि आ राजनैतिक दल भोंटक लोभमे जातीवादके मलजल देवऽमे प्रतिस्पर्धी बनल अछि ।
आखिर कहियाधरि ई आगि समाजके मूल्य आ मान्यताके झरकवैत रहत आ समाजिकताके रक्ताम्य बनवैत रहत । आ विशेषकऽ प्रदेश नं.२मे जे जातियताके खेती जाहि तरहें वढैत जाऽरहल अछि, समाज, प्रदेश आ देशके महाभारी द्वन्द्वमे फँसवैत जाऽरहल अछि । जँ आइए आ एखनेसँ समाजक सऽभ वर्ग सचेत नईं होइजाएव त अपना घरक दुहारिपर कालके प्रतिक्षा करैत रहु, कखनो अपना चपेटमे लऽसकैत अछि ।
नीक आ बेजाय कएनिहार हरेक जातिमे होइत छैक । चोर,छिनार,डाकू आ हत्यारा एवम् भ्रष्टाचारीके कोनो जाति नहिं होइत छैक, ओ कोनो जातिक हुए ओकरा समाजसँ दुत्कारे भेटवाक जे हमरासबहक सामाजिक परम्परा रहल, तकरा पुनःसमाजिक प्रचलनमे लाएव आवश्यक अछि । जानकी सबके सदबुद्धि देथुन । समयमे सबके चेत खुलय ।
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