शनिवार, 28 सितंबर 2013

ककरा कहबई के सुनतै सब लागई बहिर अकान सन


ककरा कहबई के सुनतै सब लागई बहिर अकान सन -

ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन
आब बुझैया भारतक हालत, भ गेल छै कंगाल सन
चुनाव लड़ई लेल ठाढो होई छै, सबटा चोर उच्चका सन
ककरा राखु, ककरा छोरु, विधिना भ गेल वाम सन
मोन त होईया, तेना हटाबी, मडुआ सन किछु पटुआ सन
ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन 

स्वतंत्रत भेला पर देश ख़ुशी भेल, ख़ुशी होयते फेर दुखी भेल
नहि बितल किछुओ दिन, देश दू भाग तत्क्षण बटी गेल
बटिते देरी खून खारापा, कतेक मरि गेल कतेक कटी गेल
ख़ुशी के आँशु दुखी में बटी गेल, कतेक घर के नामोनिशान जे मिटी गेल
देश के किछु भागक हालत, भ गेल छल श्मशान सन
ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन 

माछ भात के बात त छोडू, सागक नै अछि कोनो जोगार
देशक हालत एहन अछि केने, मंहगी चढ़ल अछि बीचे कपार
बाज़ार आ हाटक नामे सुनि क, पकडैत छि अपन कपार
नेता आ राजनेता सब के, नै छनि किनको एकर विचार
इ सब सोची माथ काज नै करैया, भ गेल छि सुन्न अकान सन 
ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन 

पहिले जे छल देशक हितगर, नाम ओकर छल सेनानी
आब कियो छथि एही तरहक ? जकर होई कियो दीवानी
हिनकर सबहक हालत देखि क, मोन करैया खूब कानी
अपना लेल इ सब खूब कमेला, जनता चाहे भरै पानी
आब कहु मोन केहन लगैया ? लगैया उजरल बांग सन
ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन 

संजय कुमार झा 
"नागदह"

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शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

दिल्ली में सौराठ सभा लगेबाक विचार चली रहल अछि - मिथिला वासी के केहन विचार ?

सौराठ सभा दिल्लीमे चाही, 


दिल्ली मे सौराठ सभा होबाक चाही 

दहेज पेर अंकुश लगबाक चाही 
शिक्षित आ अशिक्षित सब दूलहाके
आइ एहेन बात बजबाक चाही
धिक्कार अछि ओहि माता-पिता पर जे दहेज मँगैअ
पुत्र पुत्री दुनु के जन्म द् एकरा खरिद-बिक्री मे लगैअ
प्रेम के बदला मे पाए मँगैअ 
सौराठ सन ऐतिहासिक सभा सँ 
बहुत किछु सिखबाक चाही 
हमर बाबा दादा मूर्ख रहितो 
विद्वताक परिचय देलक 
मुदा आइ पढलहवा सब 
नाम बुरौलक, धर्म डुबौलक, 
दहेज के रुपे सोन चाही, चानी चाही, रुपैया चाही,
सारा सुखक समान चाही 
वाह रे दहेज! केकरो नहि बेटी चाही
केकरो नहि पुतोहु चाही
केकरो नहि बहिन चाही
वाह रे दहेज सब के रुपैए टा चाही 
तहिला हमरा दिल्ली मे मात्र नहि 
हरेक गाउँ मे सौराठ सभा चाही 
तहिला हमरा दिल्ली मे मात्र नहि 
हरेक गाउँ मे सौराठ सभा चाही\



"सौराठ सभा चाही" रचनाकार : अजित झा, 




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मंगलवार, 24 सितंबर 2013

मिथिला राज्य को बनाना है


 जोड़ लगाकर मिथिला राज्य को

          बनाना है साथियों

जोड़ लगाकर मिथिला राज्य को बनाना है साथियों
खींच कर आकाश धरती पर झुकना है साथियों

चीर सीना पर्वतों का गंगा बहाना है साथियो


इतना जोड़ लगाओ कि कांप उठे दश दिशायें एक ही हुंकार से
इतना विश्वास दिला दो लोगो को जो जुड़ जाएँ आप से !
  चल पड़ो तो कोई अड़चन राह में आए नही

   अड़चनों को राह से हटना सिखा दो साथियों


                             कामयाबी ख़ुद-ब-ख़ुद चल कर आता नही अपने आप से

                          कारवाँ इतनी बड़ी बनाओ कि मंज़िल मिलें आसान से



                            मंज़िल अपना मिथिला राज्य को बनाना है साथियों !

                                          भेद-भाव को दूर भगाकर सद्-भाव फैलानी है साथियों
                                             भाव ये जन-जन के मन में जगानि है साथियो




                                                तोड़ कर इस जाति भाषा धर्म की ज़ंजीर को
                                                   मानवता को धर्म अपना बनाना है साथियों
                                                              मंज़िल अपना मिथिला राज्य को बनाना है साथियों !

एक जुट होउ मिथिलावासी, तखनहि बनत मिथिला राज्य



एक जुट होउ मिथिलावासी, 

तखनहि बनत मिथिला राज्य!

आ नहीं,

 त अपने में होईत रहु विभाज्य !!

आ करैत रहु,

 हमरा चाही मिथिला राज्य !

हमरा चाही मिथिला राज्य, 

हमरा चाही मिथिला राज्य !!

मिथिला के भविष्य त,

 उठाये लेने छथि जगदीश !

आबो त सब मिलि - जुलि क, 

हाथ जोड़ी नवाऊ शीश !!

जतेक संघ आ पार्टी, 

सब अपने -अपने करैत रहु तीन - पांच !

ऐना जां करैत रहब,

 त कखनो नै मिळत घांच !!

बेसी हम की कहु----, 

अपने सब छि बड्ड बुझनुक !

कनी ओहो-----, कनी तोंहू----,  

कनि कनिक सब झुक !!

जे सब एही काज में झुकबहक,

 तकरे नाम उठ त !

आ नहि----, 

त सबटा कबिलपंथी घुसरि जे त !!

एतै कियो वीर बहादुर, 

सब के कर जोड़ी निहोरा करत !

आ मिथिला के लोक के------,

 एक जुट करैत, राज्य बनेबे टा करत !!

फेर पुछै छि----,

 बात बुझै छि ----? 

केना बनेबई मिथिला राज्य !

एक जुट होउ मिथिलावासी, 

तखनहि बनत मिथिला राज्य !! --3  


संजय कुमार झा

 "नागदह" 

भारतमें मिथिला राज्यक आन्दोलन तेज

स्पष्ट अछि जे भारतीय गणराज्यमें मिथिलाकेँ राज्यक दर्जा देबाक माँग स्वतंत्रता वर्ष यानि १९४७ ई. सँ पूर्वहिसँ कैल जा रहल अछि। पूर्वमें बौद्धिक आन्दोलन शान्तिपूर्ण प्रकृतिक आ दस्तावेजीरूप में बेसी भेल अछि। आन्दोलनमें उग्रताक नाम पर मिथिलाकेँ दू भागमें बँटल रहबाक नैतिक विरोध करैत कोनो समय नेपाल-भारत सीमा पाया तोडूबाक आन्दोलन कैल गेल, तहिना प्रधानमंत्री नेहरुकेँ घेरावके उद्देश्यसँ दर्जनों कार्यकर्ता कलकत्ता मार्च करबाक क्रममें आसनसोलमें गिरफ्तार सेहो कैल गेल। तथापि अलग राज्य के मुद्दापर उग्र आ आमजन समर्थित आन्दोलनक कोनो पूर्व प्रकरण नहि भेटैत अछि।

भारतमें राज्य निर्माणक अवधारणा:
अंग्रेजी उपनिवेशी भारतमें सक्रिय एकमात्र राजनीतिक दल भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस १९२० में निर्णय केने छल जे राज्यक संरचना भाषायी आधारपर होयत। तर्क छलैक - सहज प्रशासन आ जाति तथा धर्मके आधार पर बढि रहल पहिचानक विवादमें न्युनता लेल भाषिक पहिचान उचित होयत। यैह राजनीतिक लक्ष्यके संग राजनीतिक दल आगू बढल छल। एहि दलक प्रान्तीय समितिक गठन सेहो १९२० सँ यैह आधार पर कैल गेल। १९२७ में काँग्रेस पुन: अपन प्रतिबद्धताकेँ घोषणा भाषायी आधारपर राज्यक गठन करबाक बात कतेको बेर दोहरेलक। यैह पुनरावृत्ति १९४५-४६ के चुनावी घोषणा-पत्रमें सेहो देल गेल। लेकिन स्वतंत्रताक तुरन्त बाद काँग्रेस दुविधामें पडि गेल जे मात्र भाषाक आधारपर राज्यक गठन देशमें राष्ट्रीय एकताक हितमें नहि होयत। १७ जुन, १९४८ केँ संविधान सभाध्यक्ष डा. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा गठित भाषायी प्रान्तीय आयोग अर्थात् डार आयोग (Linguistic Provinces Commission - aka - Dar Commission) द्वारा देल रिपोर्ट अनुरूप "the formation of provinces on exclusively or even mainly linguistic considerations is not in the larger interests of the Indian nation". कहि भाषायी आधार पर राज्यक गठनकेँ भारत राष्ट्रकेँ हितमें नहि कहि नकारल गेल। भौगोलिक अखण्डता, आर्थिक आत्म-निर्भरता आ प्रशासन संचालनक सहजताके आधार पर राज्यक गठन लेल मद्रास, बम्बइ, केन्द्रीय प्रान्त आ बरार केँ मुख्यरूपमें बनाओल जयबाक सिफारिश कैल गेल। एहि सिफारिश पर अध्ययन लेल 'जेवीपी समिति' (जवाहरलाल नेहरु, सरदार वल्लभभाई पटेल व तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्ष पट्टाभी सितारमय्या के संयुक्त समिति) जयपुरक काँग्रेस अधिवेशन द्वारा बनल। १ अप्रील, १९४९ केँ एहि समिति द्वारा ओहि परिस्थितिमें नव प्रान्तक गठन लेल अनुकूलता नहि रहबाक निर्णय देल गेल, लकिन संगहि जनभावना यदि एहि तरहक माँग राखत तऽ प्रजातंत्र के रक्षा हेतु किछु निश्चित सीमामें रहैत भारत लेल समग्र हितकेँ ध्यान में रखैत नव राज्य गठन करबाक बात मानय जायत सेहो कहल गेल।

भीम राव अम्बेदकर एक ज्ञापनपत्र १४ अक्टुबर, १९४८ केँ डार आयोगकेँ देलाह जाहिमें भाषाक आधारपर राज्यक गठन करबाक आ विशेषरूपसँ मराठी-बहुल महराष्ट्र राज्य बम्बइ राजधानी सहित बनेबाक माँग रखलनि। राष्ट्रीय एकता लेल हुनकर सुझाव छलन्हि जे केन्द्र व राज्य दुनू के राजकाजक भाषा एकहि हेबाक चाही। तहिना के इम मुन्शी, गुजराती नेता अम्बेदकरक प्रस्तावकेँ विरोध केलैन - जे एकहि राज्यमें विभिन्न भाषा संग कोनो एकहि भाषाभाषीक राजनीतिक लक्ष्यके पोषणसँ विभेदकारी होयत जेकर समाधान संभव नहि होयत। पुन: १९५२ में तेलगु बाहुल्य क्षेत्रकेँ मद्राससँ पृथक राज्य बनेबाक माँग संग आमरण अनशन केनिहार पोट्टि श्रीरामुलु जिनक मृत्यु १६ दिसम्बर, १९५२ केँ भऽ गेल, परिणामस्वरूप १९५३ में आँध्रा राज्यक स्थापना १९५३ में भेल। आ, एकर प्रभाव-प्रतिक्रिया समस्त राष्ट्रपर भाषायी आधारपर राज्य बनेबाक माँग तेज भऽ गेल। अन्तत: सर्वोच्च अदालतकेर पूर्व जज फजल अली केर अध्यक्षतामें राज्य पुनर्गठन आयोग बनायल गेल। ई आयोग ३० सेप्टेम्बर १९५५ में अपन रिपोर्ट देलक जाहि अनुरूपे “Factors Bearing on Reorganization” अन्तर्गत स्पष्ट कहल गेल जे “it is neither possible nor desirable to reorganise States on the basis of the single test of either language or culture, but that a balanced approach to the whole problem is necessary in the interest of our national unity.“ राष्ट्रीय एकता लेल कोनो एकल भाषा या संस्कृतिक आधारपर राज्यक गठन नहि तऽ संभव अछि नहिये वाँछणीय। यैह आयोगक रिपोर्टके आधार मानि The States Reorganisation Act of 1956 बनाओल गेल, हलाँकि एहिमें आयोगक किछुए सुझाव समेटल जा सकल।

आयोगक अन्य सुझावमें किछु महत्त्वपूर्ण पाँति जे एहि ठाम उल्लेख योग्य बुझैछ:

“We do not regard the linguistic principle as the sole criterion for territorial readjustments, particularly in the areas where the majority commanded by a language group is only marginal”. यैह ओ पाँति मानल जा सकैत अछि जेकर बीज अमैथिल विद्वान् राजनीतिपूर्वक मैथिली विरुद्ध पहिने रोपि चुकल छलाह जेकर खुलाशा डा. अमरनाथ झा द्वारा कैल गेल अछि। मैथिलीकेँ षड्यन्त्रपूर्वक विद्वान् केर भाषा मनबाक, खने हिन्दीक उपभाषा मनबाक, खने मैथिल विद्वान् विद्यापति आ मिथिलाक्षरकेँ बंगालीक रूप मनबाक आदि कतेको षड्यन्त्र कैल गेल।

“We are generally in agreement with this view, but in our opinion, the mere fact that a certain language group has a substantial majority in a certain area should not be the sole deciding factor”. एहि पाँति सँ फेर भारतीयताक विरुद्ध मानू पूर्वाग्रही सोच झलैक रहल अछि, हर क्षेत्रमें एक विशिष्ट भाषा आ संस्कृति रहितो शुरुए सऽ एक परिकल्पना जे मेजरिटी आ माइनारिटी के अलग-अलग भाषारूपी राजनीतिक विभेद जानि-बुझि थोपल गेल बुझैछ।

“It should be mentioned that, owing to my long connection with Bihar, I refrained from taking any part in investigating and deciding the territorial disputes between Bihar and West Bengal, and Bihar and Orissa – S.R.C Chairman, Hon. S. Fazl Ali. एहि पाँति सँ बिहार-बंगाल, बिहार-उडीसा सीमापर टिप्पणी अछि जे आयोग अध्यक्ष अपन अनुभवक आधारकेँ सर्वोपरि मानि अनुसंधानसँ बचबाक बात केने छथि।

मिथिला कतहु सँ एहि चर्चामें नहि पडल अछि। एकर मूल कारण आर जे किछु हो, लेकिन प्रोफेसर अलख निरंजन सिंह आ प्रोफेसर प्रभाकर सिंह द्वारा प्रस्तुत शोध पत्र: Finding Mithila Between India's Centre And Periphery में उद्धृत एक निष्कर्स जे निम्न अछि एहि सँ पूर्ण सहमति आम राय बनैछ:

Sadly Dr. Lakshamn Jha and other leaders of this movement failed to connect the cause of a separate Mithila State with its entire population. Clearly, the language based call for a separate Mithila state did not stand the test of the caste-based pluralism that the region enjoys. Very clearly the Dalit and other communities that have been victim of the age old Hindu orthodoxy and ossified Brahminism distanced themselves from such Maithil identification. But, as discussed in what follows, the failure of the movement did harm the region in some ways. The article connects
Bihar’s present day flood-led destruction and the subsequent migration of people to the industrialised States of the country to the failure of Maithil movement. Thus, instead of seeking to ignite the movement on the urges of Sanskritic-Brahminical elitism, the Maithil leaders should have generated a socialist-linguist movement as the grass-root
level in favour of legitimacy.

उपरोक्त निष्कर्समें स्पष्ट कैल गेल अछि आन्दोलनकेँ आमजनतक पहुँचयसँ रोकल गेल, आन्तरिक वा बाह्य जाहि कारणसँ किऐक नहि हो... मार्गदर्शन सेहो समुचित अछि जे यथार्थक धरातलसँ जोडि जाहि जातीय विविधताक संस्कृति वास्तवमें मिथिला रहल तेकर असलियतकेँ आत्मसात् करैत राज्यक माँग सँ सर्वसाधारणकेँ जोडब आवश्यक अछि। मिथिलामें एखन धरि सामाजिक संगठन, बुद्धिजीवी संगठन या कोनो संघर्ष समिति यथार्थक धरातल सँ एहि मुद्दाकेँ मिथिला क्षेत्रक तथाकथित सीमा धरि नहि जोडि सकल अछि। नहिये एहि दिशामें कोनो राजनीतिक दल द्वारा कहियो कोनो प्रयास भेल - नहिये कोनो एहेन सांस्कृतिक क्षेत्रीय एकता लोक-जुडावकेर द्योतक लोक संस्कृति, पर्व वा परंपरा द्वारा मिथिलाक सांस्कृतिक अखण्डताकेँ कायम राखल जा सकल। सकारात्मक पहल सेहो कोनो तेहेन नहि भऽ सकल जाहि के कारण गंगा उत्तर वा दक्खिन कोनो तरहक आपसी जुडाव के विशालता बनैत।

वर्तमान सुगबुगाहट आ मिथिला राज्यक माँग लेकिन फेर तीव्र भेल जा रहल अछि। एक बेर पूर्वहिके भाँति आँध्र समान तेलंगानाक गठनके बात मिथिला सहित अनेको छोट राज्यक माँगकेँ तीव्रता प्रदान केलक अछि आ फेर दोसर बेर राज्य पुनर्गठन आयोग के स्थापनाक माँग करैत संबोधन करबाक माँग राजनीतिक परिवेशमें उठय लागल अछि। एम्हर पुरान आ नव संस्था सभ आपसी एकता करैतो राज्यक संघर्षकेँ जन-सरोकारक विषय बनाबय लेल व्यग्र देखाइत अछि। सभ सऽ मुख्य दू बात जे परिवर्तन देखय में आयल अछि - मिथिला क्षेत्र के विशालता पर कैल जा रहल अभियानकेँ आम लोक सकारात्मक रूपमें ग्रहण करय लागल अछि आ राज्य केर आवश्यकता उपेक्षा विरुद्ध स्वराज्यक स्थापना थीक सेहो बुझय लागल अछि। संगहि आब संघर्षक क्षेत्रमें नहि केवल विद्वत् बुढ-पुरान लोक टा छथि, वरन् युवा-शक्तिमें अपन संवैधानिक अधिकार प्रति जागृति सेहो प्रसार होवय लागल अछि। लिपि, भाषा, साहित्य, संस्कृति सभ किछु विलोपान्मुख होइत देखि आब राज्यक चिन्ता आम बनब स्वाभाविके छैक। तहिना जाति-पातिमें तोडब आ वोट-बैंक राजनीति टा करब नहि कि असलियतके विकास आनब, एहि सभ सँ पीडा आमजनकेँ होयब सेहो स्पष्ट अछि। स्वराज्य लेल जनयुद्ध तखनहि होइछ जखन ई देखार भऽ जाइछ जे वर्तमान प्रशासन-व्यवस्थापन कथमपि उपेक्षा दूर नहि करत, उलटा विभिन्न तरहक राजनीतिक खेलसँ क्षेत्रीय विशिष्टताके नाश करत। मिथिला राज्यक औचित्य आब जन-सरोकारके रूपमें परिणत भेल जा रहल अछि।

सोमवार, 23 सितंबर 2013

दहेज़ प्रथा

दहेज़ प्रथा   
इस बीमारी का तुम भी
शिकार तो हुई थी
नाना जी के लिए तुम भी
तो भार बनी थी
जरा सोचो तुम
उस समय हाल क्या हुयी थी
नाना नानी का हाल भी
बदहाल तो हुयी थी 
धुप भी यही था
छाव भी यही थी
रास्ते में कंकर भी
अबसे बड़ी थी 
जब आते थे थककर
वो रिश्ता को खोजकर
ना कहते ही आपका
हाल क्या हुई थी 
आप नारी हो
नारी की कीमत तो समझो 
पिताओ की मन की
पीड़ा तो समझो
इस बीमारी को भगाओ माँ
काली तुम बनकर 
मिटादो दहेजो की
लालच को डटकर 
तुम्ही से तो लोगो को
प्रेरणा मिलेगी
दहेज़ की बीमारी
दूर तो भगेगी
बेटी के होने पर
चिंता ना होगी
चारो तरफ
खुशिया ही खुशिया मनेगी 
संजय कुमार झा "नागदह" २५@०५@२०१३ 

रविवार, 22 सितंबर 2013

उठो मिथिला के अमर सपूतो


उठो मिथिला के अमर सपूतो
 पुनः मिथिला का निर्माण करो,

जन-जन के जीवन में फिर से नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो,
नया प्रात है नई बात है नई किरण है ज्योति नई है,
नई उमंगें नई तरंगे नई आस है साँस नई है,
युग-युग के मुरझे सुमनों में नई-नई मुसकान भरो,
उठो मिथिला के अमर सपूतो 
पुनः मिथिला का निर्माण करो !

डाल-डाल पर बैठ विहग कुछ नए स्वरों में गाते हैं,
गुन-गुन-गुन-गुन करते भौरे मस्त हुए मँडराते हैं,
नवयुग की नूतन वीणा में नया राग नवगान भरो,
कली-कली खिल रही इधर वह फूल-फूल मुस्काया है,
धरती माँ की आज हो रही नई सुनहरी काया है,
नूतन मंगलमयी ध्वनियों से गुंजित जग-उद्यान करो,
उठो मिथिला के अमर सपूतो 

पुनः मिथिला का निर्माण करो !

माँ दुर्गा और माँ जानकी का पावन मंदिर, यह संपत्ति तुम्हारी है,
तुम में से हर बालक इसका रक्षक और पुजारी है,
शत-शत दीपक जला ज्ञान के, नवयुग का आह्वान करो,
जन-जन के जीवन में फिर से नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो,
उठो मिथिला के अमर सपूतो

 पुनः मिथिला का निर्माण करो !

शनिवार, 21 सितंबर 2013

समस्त परिवार सदर आमंत्रित छी

अपनेक ----
समस्त परिवार सदर  आमंत्रित  छी 




           दिल्ली में अक्टूबर' - नवंबर  अवीते  विद्यापति पर्व समारोह की धूम मच जैत  अछि , दिल्ली  एन सी आर के कोन- कोन में विद्यापति पर्व समारोह वा  मिथिला महोत्सव बहुत  धूम - धाम के संग  मनायल  जय़त अछि . अहि समय  में "विद्यापति पर्व समारोह - 2013 " भजनपुरा और करावल नगर के नजदीक लोनी में दिनांक 1 अक्टूबर 2013 को मनायल  जारहल अछि .

इ  ध्यान में रखइ के  कि अगिला  दिन 2 अक्टूबर कऐ  महात्मा गाँधी के जन्मदिनक अवकाश रहैक के  कारन  1 अक्टूबर के  मैथिल लोग  भरी  रैत  विद्यापति पर्व समारोहक  और मिथिला महोत्सवक  पूरा आनंद  उठाबैथी  बिना  कोनो  चिंता- फिकर के  |



धन्यवाद !

अपनेक  दर्शनक  अभिलाषी   ---
विद्यापति पर्व समारोह !
आयोजक : मिथिला सेवा समिति (पंजी), लोनी गाजियाबाद।

स्थान - ई ब्लाक पार्क, लाला बाग़, पुलिस चौकी के सामने, लोनी, गाजियाबाद।
नजदीक - करावल नगर , दिल्ली ,
नजदीकी मेट्रो :- शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन।

शनिवार, 14 सितंबर 2013

भगवानकेँ जे नीक लगनि


बाबा भोलेनाथक विशाल मन्दिर। मुख्य शिवलिंग आ समस्त शिव परिवारक भव्य आ सुन्दर मूर्ति। साँझक समय एक-एक कए भक्त सब अबैत आ बाबाक स्तुति वन्दना करैत जाएत। एकटा चारि बर्खक नेना आबि बाबा दिस धियानसँ देखैत। ताबएतमे एकटा भक्त आबि बाबाक सोंझाँ श्लोक, कर्पुर गौरं करुणावतारं.... सुना कए चलि गेला
दोसर भक्त आबि, नमामी शमसान निर्वा..... सुनाबए लगला। एनाहिते आन आन भक्त सब सेहो किछु ने किछु मन्त्र श्लोक प्राथनासँ बाबा भोलेनाथकेँ मनाबेएमे लागल। ई सब देख सुनि ओहि नेनाक वाल मोन सोचए लागल, हम की सुनाबू ? हमरा तँ किछु नहि अबैत अछि ? कोनो बात नहि एलहुँ तँ किछु नहि किछु सुनाएब तँ जरुर।
ई सोचैत नेना अप्पन दुनू कल जोरि, आँखि मुनि धियानक मुदरामे पढ़ लागल, अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ..........
नेनाकेँ ई पढ़ैत देख पुजारी बाबासँ नहि रहल गेलनि। ओ कनीक काल धियानसँ सुनला बाद नेना सँ पूछि बैसला, बौआ ई अ आ किएक पढ़ि रहल छी ?
जकरा देखू किछु ने किछु मन्त्र पढ़ि कए जाइए, हमरा तँ अओर किछु अबिते नहि अछि, तेँ अ आ पढ़ि रहल छी। भगवानकेँ जे नीक लगनि एहिमे सँ छाँति लेता। 
*****
जगदानन्द झा ‘मनु’  

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

गजल

आइ किछु मोन पडलै फेरसँ किए
भाव मोनक ससरलै फेरसँ किए

टाल लागल लहासक खरिहानमे
गाम ककरो उजडलै फेरसँ किए

आँखि खोलू, किए छी आन्हर बनल
नोर देशक झहरलै फेरसँ किए

चान शोभा बनै छै गगनक सदति
चान नीचा उतरलै फेरसँ किए

"ओम" जिनगी अन्हारक जीबै छलै
प्राण-बाती पजरलै फेरसँ किए
(दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)-(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)-(दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ)
(फाइलातुन-फऊलुन-मुस्तफइलुन) - १ बेर प्रत्येक पाँतिमे

रविवार, 8 सितंबर 2013

दहेज़ और ओकर कुप्रथा के निवारण


दहेज़ और ओकर कुप्रथा के निवारण

जखन कतौ दहेज़ पर सार्वजनिक चर्चा होइत अछी त देखबा में अबैत अछी जे सब केओ अपन मत शक्तिशाली ढंग सँ दहेज़ के विरोधे में राखैत छैथ | मुदा अश्चार्यक बात छैक जे दहेज़-प्रथा घटै के बदला में बढिए रहल छैक | एकर कारन इ छैक जे आरम्भे सँ हम सब अहि प्रथा के नै त ठीक जकां बुझै के प्रयास कैलियै आ ने ओकर सही निवारण कै सकलियै | फलतः जे प्रथा समाज में एक नीक उद्देश्य सँ आरम्भ कैल गेल छल से विकृत भ का दानव के रूप ल क हमरा सभक सोझां में मुह बौने ठाढ़ अछी | और हमर इ शशक्त मत अछि जे जावत तक हम सब एही प्रथा के ठीक जकां संबोधित नै करबैक तावत तक एही प्रथा के सही संसोधन नहीं कैल जा सकैत अछी | केवल वार्ता, जुलूस, और आन्दोलन सब एक अरन्यरोदने साबित भ सकैत अछी जाकर प्रमाण इ जे घत्बा के बदला इ प्रथा दिन-दिन बढिए रहल अछि |

प्राचीन समय सँ हिन्दू समाज में दहेज़ प्रथा कहियो नहीं छलैक | 'दहेज़' शब्द तक हमरा संस्कृत के उपज नहीं लागैत अछि | जतेक पौराणिक ग्रन्थ छैक कोनो में दहेज़ के वर्णन नै छैक | इ प्रथा आरम्भ भेल ब्रिटिश सरकार के कानून सँ और शनै शनै विकृत रूप धारण कै लेलक | सन १७९३ में लार्ड कार्नवालिस के समय में "परमानेंट सेटलमेंट ऑफ़ बंगाल" के नियम पारित भेलैक, जाकर फल इ भेलैक जे लोग सब के भूमि के स्वामी बनै के अधिकार भेट गलैक | एही सँ पूर्व सरकार पूरा भूमि के मालिक छलैक और लोग सब मात्र ओहि भूमि पर बसैत छल एवं ओकर उपयोग करैत छल | एही कानून सँ एक और विकृत परंपरा, जमींदारी, के प्रादुर्भाव भेलैक | एकरा बाद अंग्रेज सब एक और कानून पारित किलक जाही सँ स्त्री के संपत्ति के अधिकार सँ वंचित कै देल गेल| एकर फलस्वरूप लोग अपना बेटी के भेंट के रूप में धन, कैंचा, सोना, इत्यादी विदा काल में देबै लग्लै जाही पर केवल आ केवल स्त्री के अधिकार छलैक | कालांतर में इ व्यवस्था दहेज़ के रूप में प्रचलित भ गलैक | एखनो तक एही में कोनो दोष नहीं आयल रहैक और एक प्रकार सँ ई व्यवस्था स्त्री के बहुत हद तक आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करैत छलैक | 

मुदा जेना जेना लोग पश्चिमी शिक्षा प्राप्त करैत गेल और भौतिकवाद के प्रचार-प्रसार होइत गेलै, तेना तेना वर-पक्ष के तरफ सँ दहेज़ के मांग बढ़ल गेलै | अहि दिशा में भारत सरकार सेहो कम दोषी नहीं अछि | अहि प्रथा के ठीक करै हेतु भारतीय सन्दर्भ में समाधान नहीं खोजि क हमर नेता लोगनि ऊंट जक पश्चिम दिस मूड़ी उठा क पश्चिमी संधर्भ में हल निकालै के प्रयास में छोट रास्ता अप्नौलनि और दहेज़ के सोझे गैर-कानूनी बना देलखिन| फेर सँ ओहे संकट स्त्री संग लागु भ गलैक जे अंग्रेज के समय छलैक | स्त्री त पहिने सा संपत्ति के अधिकार सँ वंचित छली, आब वो स्त्री-धन सँ सेहो वंचित होमय लगली | आब दहेज़ अपन असली रूप में उजागर भेल | वर एवं वर-पक्ष के ई बात स्वाभाविक रूप सँ कचोटे लगलैन जे एक स्त्री खली हाथ हुनका घर अबैन आ अपन पति के संपत्ति में आधा के साह्भागी बनी जाय | फलस्वरूप दहेज़ के आब मांग उठे लागल और दिनों-दिन जोर पकरे लागल | दहेज़ के रूप आब विकृत होमय लागल | 

पुनः सर्वोच्य न्यायालय के एक नियम पारित भेल जकर अनुसार स्त्री के अपन पैत्रिक संपत्ति में बराबर के अधिकार भेट गेलै | बिना ई सोचने जे एकर समाज पर की असर परतैक, अनेको नियम बिना सोचने-बुझने पारित भेल गेल | फलाफल भेलैक जे दहेज़ प्रथा समाप्त होई के बदला उग्रतर होइत गेल और अंततः दानव के रूप ल लेलक |

हाले में एक और कानून संसद द्वारा पारित भ रहल अछि जकर अनुसार स्त्री के नै सिर्फ अपन पति के संपत्ति में बल्कि अपन पति के पुस्तैनी संपत्ति में सेहो हिस्सा भेटतै, डाइवोर्स लेला पर | कियो व्यक्ति अंदाज लगा सकैत छैथ जे एकर दूरगामी परिणाम समाज पर की परतैक ? कनेक कल्पना कै के देखिऔ | एकटा लड़का विवाह क क एक लड़की के अपना घर आनैत छैथ | तीन साल तक ( जे की न्यूनतम अवधि मानल गेल अछि नवका क़ानून में डाइवोर्स के लेल) ओ लड़की घर में कोहराम मच्बै छैथ | तकर बाद डाइवोर्स फाइल करैत छैथ ( जे महिला के फाइल केला सा आसानी सँ भेट जतैक) और अलग भ क अपन पति और हुनक पुरूखा के लगभग आधा संपत्ति ल क चलि दैत छैथ | जों कियो वर व वर के पिता गंभीरता सँ अहि पर विचार करैथ, त एहेन सम्भावना के देखैत की ओ अपन बालक के विवाह बिना मोट दहेज़ लेने करता? की एहेन कानून सब सँ दहेज़ के दानव और भयानक नै बनतै ? कतेक लोग हेता जे सब बात जनैत अपन आ अपन परिवार के भविष्य दाऊ पर लगेता ? हम अपन विवाह में एकौ रूपया तिलक व दहेज़ नै लेलौ | एते तक जे हम अपन विवाह के खर्च संपूर्ण रूप सँ अपने केलौ | मुदा आब हमरो एकै टा बालक अछि | और हम आई-काल्हि के हालत देख क गंभीर सोच में पड़ल छि जे अपन पुत्रक विवाह बिना मोट दहेज़ लेने केना क दबैक कोनो एहन लड़की सँ जे खली हाथ आबय और हमर संपत्ति के स्वामिनी बनी जाय ? और जहिया ओकर मोन होई तहिया हमारा बेटा सँ डाइवोर्स ल क हमर मेहनत सँ अरजल संपत्ति आधा बैंट क ल लिया | की अहि तरहक कानून दहेज़ के और प्रश्रय नै दैत छैक? सब सँ आग्रह अछि जे भावना में नै धरातल पर उतरि क सोचैथ | 

आब कानी समग्र रूप सँ हिन्दू विवाह अधिनियम, दहेज़ उन्मूलन कानून एवं स्त्री के संपत्ति के अधिकार पर ध्यान दिऔ | अगर कोनो स्त्री चाहे त अपन पैत्रिक संपत्ति में सँ अपन हिस्सा आसानी सँ ल सकैत अछि | अपन पति एवं ओकर पुस्तैनी संपत्ति में सेहो हिस्सा ल सकैत अछि | लेकिन कोनो स्त्री सँ कोनो पुरुष कोनो हाल में किछु नै हासिल क सकैत छैथ | बहुत घटना एहन होमय लगलैक अछि जाही में देखल गलैक अछि जे किछु स्त्री केवल धन के लोभ में विवाह के अपन पेशा बना लेलक अछि | संगे भाई-बहिन के सम्बन्ध में जे माधुर्य छलैक सेहो बहुत ठाम खट्टा भेल जा रहल अछि | अगर अहिना कानून बनैत रहल आ भाषण चलैत रहल त जल्दिये ओहो दिन निश्चय आयत जहिया रक्षाबंधन और भरदुतिया के पावैन सेहो उठि जायत |

तखन दहेज़ रुपी दानव के कोना समाप्त कैल जाय ? हमरा विचार सँ दहेज़ के कानूनी अधिकार घोषित क स्त्री के ओकर पैत्रिक संपत्ति के हिस्सा के बराबर दहेज़ दै के व्यवस्था कैल जाय और एकरा बाद ओकरा अपन पति के संपत्ति पर सेहो अधिकार देल जाय | मुदा पति के पुरूखा के संपत्ति पर ओकर अधिकार नै हेबाक चाही | संगे, लड़का और लड़की के पूर्ण स्वतंत्रता एवं दायुत्वा अपन विवाह के लेबक चाही | जाबे धरी माता-पिता लड़का और लड़की के विवाह ठीक करैत रह्थीन ताबे धरी दहेज़ उन्मूलन मात्र सपने त रहत |