रविवार, 22 सितंबर 2013

उठो मिथिला के अमर सपूतो


उठो मिथिला के अमर सपूतो
 पुनः मिथिला का निर्माण करो,

जन-जन के जीवन में फिर से नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो,
नया प्रात है नई बात है नई किरण है ज्योति नई है,
नई उमंगें नई तरंगे नई आस है साँस नई है,
युग-युग के मुरझे सुमनों में नई-नई मुसकान भरो,
उठो मिथिला के अमर सपूतो 
पुनः मिथिला का निर्माण करो !

डाल-डाल पर बैठ विहग कुछ नए स्वरों में गाते हैं,
गुन-गुन-गुन-गुन करते भौरे मस्त हुए मँडराते हैं,
नवयुग की नूतन वीणा में नया राग नवगान भरो,
कली-कली खिल रही इधर वह फूल-फूल मुस्काया है,
धरती माँ की आज हो रही नई सुनहरी काया है,
नूतन मंगलमयी ध्वनियों से गुंजित जग-उद्यान करो,
उठो मिथिला के अमर सपूतो 

पुनः मिथिला का निर्माण करो !

माँ दुर्गा और माँ जानकी का पावन मंदिर, यह संपत्ति तुम्हारी है,
तुम में से हर बालक इसका रक्षक और पुजारी है,
शत-शत दीपक जला ज्ञान के, नवयुग का आह्वान करो,
जन-जन के जीवन में फिर से नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो,
उठो मिथिला के अमर सपूतो

 पुनः मिथिला का निर्माण करो !

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