गुरुवार, 12 सितंबर 2013

गजल

आइ किछु मोन पडलै फेरसँ किए
भाव मोनक ससरलै फेरसँ किए

टाल लागल लहासक खरिहानमे
गाम ककरो उजडलै फेरसँ किए

आँखि खोलू, किए छी आन्हर बनल
नोर देशक झहरलै फेरसँ किए

चान शोभा बनै छै गगनक सदति
चान नीचा उतरलै फेरसँ किए

"ओम" जिनगी अन्हारक जीबै छलै
प्राण-बाती पजरलै फेरसँ किए
(दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)-(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)-(दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ)
(फाइलातुन-फऊलुन-मुस्तफइलुन) - १ बेर प्रत्येक पाँतिमे

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