मंगलवार, 29 मार्च 2011

अनमोल रचना@प्रभात राय भट्ट


अनमोल रचना@प्रभात राय भट्ट

रूप अहाँक लगैय चंदाचकोर अन्हार में करैछी ईजोर,
देख अहाँके मोनमें हमरा उठल हिलोर बड़ा बेजोर,

अहाँक केशक गजरा आईखक कजरा जान मारैय,
नशीली नयनक धार हमरा दिल पर वाण मारैय ,

खन खन खन्कैय कंगना छम छम बजैय पाजू,
 घुंघटा उठा सजनी हमरा संग मुस्की मुस्की बाजू,

अहाँके पबैला मंदिर मस्जिद मगैछी दुवा पढ़ैछि कलमा,
हे यै हमर गोरी गरिमा बनालू हमरा अहाँ अपन बलमा,२

चम् चम् च्म्कैछी रानी अहाँ दुतिया के चाँद सन,
गम गम गम्कैछी सुगिया अहाँ बेलीचमेलि फुल सन,

मृग नयनी अहाँक नयन ठोर लगैय रस भरल मधुशाला,
अंग अंगमें तरंग मोनमें उमंग जेना संगीतक पाठशाला,

प्रेम रस स उमरल रूप अहाँक देख भेली हम दीवाना यए,
देख अहाँ संग हमरा गोरी,जईर जईर मरैय जवाना यए,

डोली कहार लक आएब गोरी हम अहाँक अंगना
अहाँ बनब हमर सजनी हम बनब अहाँक सजना,

अहाँक रूप देखि चाँद चकोर सेहो लजागेल,
अहाँक सुन्दरताके तेज स ईन्द्रपरी सेहो झपागेल,

विधाता के रचल सजनी अहाँ छि अनमोल रचना,
अंग अंग में सजल यए अनुपम अनुराग के गहना,

हे यै हमर मोनक रानी गरिमा चलू हमर अंगना,
अहाँ बनब हमर सजनी हम बनब अहाँक सजना,२

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

सोमवार, 28 मार्च 2011

दहेज़ प्रथा रोकबाक लेल विचार करत बिहार - सरकार...

इ समाचार सुईंन के जतेक हम खुश भेलो, शायद अहूँ ओतबे खुश होयब...आय मुंबई में एक समाचार पत्र (यशोभूमि) में एक खबर पढ्लो जाहीं सँ हमरा इ महसूस भेल जे "दहेज़ मुक्त मिथिला" के पुकार बिहार - सरकार सुईंन लेलक...बिहार सरकार आय स्वीकार केलक कि दहेज़ प्रथाक बुराई के समाप्त करबाक लेल मौजूदा उपाय के अलावा जिलाधिकारी आर पुलिस अधीक्षक के व्यापक अधिकार देबाक लेल विचार करब जरुरी अछि, किए कि अदालत में एहेंन मामला के निपटाबै में बहुत बेसी समय लागैत अछि ! समाज कल्याण मंत्री परवीन अमानुल्लाह प्रश्नोत्तर काल में विधान परिषद में कहलखिन जे बिहार में दहेज़ प्रथा रोकबाक लेल कानून लागू अछि आर अलग - अलग जिला में ओई ठामक जिला कल्याण पदाधिकारी दहेज़ निषेध अधिकारीक रूप में काज के रहल छैथ आर महिला विकास निगम के प्रबंध निदेशक के राज्य में पनपल दहेज़ निषेध अधिकारीक रूप में नियुक्त करल गेल अछि!समाज कल्याण मंत्री परवीन अमानुल्लाह कहलखिन जे दहेज़ कुप्रथा के रोकबाक लेल राज्य सरकार बहुत कार्यक्रम चले रहल छैथ आ लोग सभ के जागरूक करबाक प्रयास करल जे रहल अछि..... जितमोहन झा-

Abhay Kant Jha Deepraaj ke hindi GHAZAL -

                    ग़ज़ल

आग  से  था  खेलने  का शौक पर हम  डर गये |
मौत  को  जब  सामने देखा तो खुद ही मर गये ||

उम्र  भर  जो  साथ  देने  के  लिए  घर  से  चले,
शाम ही जो होने आयी,  थक के अपने घर गये ||

रोज़  सुबहो-शाम  मिट्टी,  खून  से  भींगी  रही,
पर हुआ बलिदान जिनका, फालतू वो सर गये ||

बोलियाँ   देते  रहे  जो  हमको  लड़ने  के  लिए,
सामने  दुश्मन दिखा तो खुद किनारा कर गये ||

भाग्य ही शायद बुरा था,  आदमी की ज़ात का,
जो  भी  बोया  पेड़  उसने,  उसके पत्ते झड गये ||

             
              रचनाकार- अभय दीपराज

शनिवार, 26 मार्च 2011

एकटा पत्र छोटका भाय के नाम.

सुने रे रानू लिखेय छौ भानु
हमर हाल छौ उत्तम,
तोहर हाल के हम नै जानी
भला करउ पुरुषोत्तम।

अपन गाम में छुटी गेलों ये,
हमर एकटा अंगा
ओ अंगा के कका लगाय के,
पठा दिए दरभंगा।

बड़की भौजी से तू कहिये
याद बहुत आबय ये,
हुनकर चक्का,सैजमन, आ तिलकौर
बड़ा भावय ये।

माय  से कहिये कानय ले नै
पूरा हेतय ईक्षा,
जल्दी हमहूँ बीडीओ बनबइ
पास करय दे परीक्षा।

मिरिया माय के हाल तू हमरा
सेहो अलग से बतहिये,
कनकिरबा कतबा टा बढलों
फोटो कोनो पठियेह।

कालेज के भए गेलों समय ये
समय के छो कनी तंगी,
माँ-बाबु ले गोर लगय छियो
घोर एबउ हम जल्दी।

प्रेम दीवाना@प्रभात राय भट्ट

by Prabhat Ray Bhatt Uyfm on Saturday, March 26, 2011 at 7:24am
प्रेम दीवाना@प्रभात राय भट्ट
 हम अहाकप्रेम दीवाना अहिं स:प्रीत करैत छी,
सुतैत जगैत उठैत बैसैत अहींक नाम रतैत छी ,
ऐसजनी अहींक नाम रतैत छी .....................२

हम अहाँक प्रेम दीवानी अहिं स:प्रीत करैत छी,
जखन तखन सद्खन सजना अहींक याद करैत छी,
ययौ सजाना अहिं के याद करैत छी.....................२ 

रोज रोज हम लिखैत छी अपन प्रेम कहानी के पोथी ,
अहाँ विन तडपैछी जेना पाईन विन तडपैय पोठी,
वित् जाईय दिन कहना राईत नए वितैय.........
अहिं के सुरता सजनी सद्खन लागल रहैया....२

हमर मोनक बात पिया अहिं सब कहिदेलौं ,
अहुं केर तड़पन पिया हम सब जाईन्गेलौं,
फटईय हिया पिया एक दोसर के प्रीत विन,
बड मुस्किल स कटैय अहाँक हमर राइत दिन,

हम अहाँक प्रेम दीवाना अहिं स प्रीत करैत छी,
सुतैत जगैत उठैत बैसैत अहिक नाम रतैत छी,
ऐ सजनी अहिक नाम रतैत छी.....................२

हम अहाँक प्रेम दीवानी अहिं सा प्रीत करैत छी,
जखन तखन सद्खन सजना अहिक याद करैत छी,
ययौ सजना अहींक याद करैत छी...................२

रचनाकार:प्रभात राय भट्ट

एक चिडिया जो करती है पढाई

http://atulshrivastavaa.blogspot.com/


उसका नाम है रमली। वह कक्षा चार में पढती है। रोज सुबह स्‍कूल जाती है। पहले प्रार्थना के दौरान कतार में खडी होती है और फिर कक्षा में गिनती, पहाडा, अक्षर ज्ञान। इसके बाद मध्‍यान्‍ह भोजन बकायदा थाली में करती है। फिर और बच्‍चों के साथ मध्‍यांतर की मस्‍ती और फिर कक्षा में। स्‍कूल में वह किसी दिन नागा नहीं करती। रविवार या छुटटी के दिन स्‍कूल नहीं जाती, पता नहीं कैसे उसे स्‍कूल की छुटटी की जानकारी हो जाती है। रमली का मन पढाई में पूरी तरह लग गया है और अब उसने काफी कुछ सीख लिया है।

आप सोच रहे होंगे और बच्‍चे स्‍कूल जाते हैं, तो रमली भी जाती है। इसमें ऐसा क्‍या खास है कि यह पोस्‍ट रमली के स्‍कूल जाने, पढने पर लिखना पडा। दरअसल में रमली है ही खास। जानकर आश्‍चर्य होगा कि रमली कोई छात्रा नहीं एक चिडिया है। देखने में तो रमली पहाडी मैना जैसी है लेकिन वह वास्‍तव में किस प्रजाति की है इसे लेकर कौतूहल बना हुआ है। नक्‍सल उत्‍पात के नाम से प्रदेश और देश भर में चर्चित राजनांदगांव जिले के वनांचल मानपुर क्षेत्र के औंधी इलाके के घोडाझरी गांव में यह अदभुद नजारा रोज देखने में आता है।

इस गांव की प्राथमिक शाला में एक चिडिया की मौजूदगी, न सिर्फ मौजूदगी बल्कि शाला की हर गतिविधि में उसके शामिल होने ने इस गांव को चर्चा में ला दिया है। इस गांव के स्‍कूल में एक चिडिया न सिर्फ प्रार्थना में शामिल होती है बल्कि वह चौथी की कक्षा में जाकर बैठती है। अक्षर ज्ञान, अंक ज्ञान हासिल करती है और फिर जब मध्‍यान्‍ह भोजन का समय होता है तो बकायदा उसके लिए भी एक थाली लगाई जाती है। इसके बाद  बच्‍चों के साथ खेलना और फिर पढाई। यह चिडिया खुद तो पढाई करती ही है, कक्षा में शरारत करने वाले बच्‍चों को भी सजा देती है। मसलन, बच्‍चों को चोंच मारकर पढाई में ध्‍यान देने की हिदायद देती है। अब इस चिडिया की मौजूदगी ही मानें कि इस स्‍कूल के कक्षा चौथी में बच्‍चे अब पढाई में पूरी रूचि लेने लगे हैं और बच्‍चे स्‍कूल से गैर हाजिर नहीं रहते।
इस चिडिया का नाम स्‍कूल के हाजिरी रजिस्‍टर में  तो दर्ज नहीं है लेकिन इसे स्‍कूल के बच्‍चों ने नाम  दिया है, रमली। रमली हर दिन स्‍कूल पहुंचती है और पूरे समय कक्षा के भीतर और कक्षा के आसपास ही रहती है। स्‍कूल की छुटटी होने के बाद  रमली कहां जाती है किसी को नहीं पता लेकिन दूसरे दिन सुबह वह फिर स्‍कूल पहुंच जाती है। हां, रविवार या स्‍कूल की छुटटी के दिन वह स्‍कूल के आसपास भी नहीं नजर आती, मानो उसे मालूम हो कि आज छुटटी है।

इस स्‍कूल की कक्षा चौथी की  छात्रा सुखरी से रमली का सबसे ज्‍यादा लगाव है। सुखरी बताती है कि रमली प्रार्थना के दौरान उसके आसपास ही खडी होती है और कक्षा के भीतर भी उसी के कंधे में सवार होकर पहुंचती है। उसका कहना है कि उन्‍हें यह अहसास ही नहीं होता कि रमली कोई चिडिया है, ऐसा लगता है मानों रमली भी उनकी सहपाठी है। शिक्षक जितेन्‍द्र मंडावी का कहना है कि एक चिडिया का  कक्षा में आकर पढाई में दिलचस्‍पी लेना आश्‍चर्य का विषय तो है पर यह हकीकत है और अब उन्‍हें भी आदत हो गई है, अन्‍य बच्‍चों के साथ रमली को पढाने की। वे बताते हैं कि यदि  कभी रमली की ओर देखकर डांट दिया जाए तो रमली रोने लगती है। घोडाझरी के प्राथमिक स्‍कूल में  कुल दर्ज  संख्‍या 29 है जिसमें 13 बालक और 16 बालिकाएं हैं, लेकिन रमली के आने से कक्षा में पढने वालों की संख्‍या 30 हो गई है।

बहरहाल, रमली इन दिनों आश्‍चर्य का विषय बनी हुई है। जिला मुख्‍यालय तक उसके चर्चे हैं और इन चर्चाओं को सुनने के बाद जब हमने जिला मुख्‍यालय से करीब पौने दो सौ किलोमीटर दूर के इस स्‍कूल का दौरा किया तो हमें भी अचरज हुआ। पहाडी मैना जिसके बारे में कहा  जाता है कि वह इंसानों  की तरह बोल सकती है,  उसी की  तर्ज में रमली भी बोलने की कोशिश करती है, हालांकि उसके बोल स्‍पष्‍ट नहीं होते लेकिन ध्‍यान देकर सुना जाए तो  यह जरूर समझ आ जाता है कि रमली क्‍या बोलना चाह रही है। रमली के बारे में स्‍कूल में पढने वाली उसकी 'सहेलियां' बताती हैं कि पिछले करीब डेढ दो माह से रमली बराबर स्‍कूल पहुंच रही है और अब तक उसने गिनती, अक्षर ज्ञान और पहाडा सीख लिया है। वे बताती हैं  कि रमली जब 'मूड' में होती है तो वह गिनती भी बोलती है और पहाडा भी सुनाती है। उसकी सहेलियां दावा करती हैं कि रमली की बोली स्‍पष्‍ट होती है और वह वैसे ही बोलती है जैसे हम और आप बोलते हैं। हालांकि हमसे रमली ने खुलकर बात नहीं की, शायद अनजान चेहरा देखकर। फिर भी रमली है बडी कमाल  आप भी तस्‍वीरों में रमली को देखिए।  

छत्‍तीसगढ में पहाडी मैना बस्‍तर के कुछ इलाकों में ही मिलती है और अब उसकी संख्‍या भी कम होती जा रही है। राज्‍य के राजकीय पक्षी घोषित किए गए पहाडी मैना को संरक्षित करने के लिए राज्‍य सरकार की ओर से काफी प्रयास किए जा रहे हैं, ऐसे में राजनांदगांव जिले के वनांचल में  पहाडी मैना जैसी दिखाई देने वाली और उसी की तरह बोलने की कोशिश करने वाली इस चिडिया की प्रजाति को लेकर शोध की आवश्‍यकता है।  खैर यह हो प्रशासनिक काम हो गया लेकिन फिलहाल इस चिडिया ने वनांचल में पढने वाले बच्‍चों में शिक्षा को लेकर एक माहौल बनाने का काम कर दिया है।  

शुक्रवार, 25 मार्च 2011

Abhay Kant Jha Deepraaj ke hindi Ghazal -

                          ग़ज़ल

हो   सकता  है  बात   हो   तेरी   या   मेरे  अफ़साने  होंगे |
मेरी  नज़रों  में  भी  शायद  कुछ   शम्मा - परवाने   होंगे ||

गैर अगर तुम मुझको समझो तो ये भी एक पागलपन है,
क्योंकि  मेरी  नज्मों  में  कुछ,   तेरे   भी   नजराने  होंगे ||

कहाँ ज़ुल्म है ?  मेरे  दिल  ने,  प्यार अगर माँगा तुझसे,
मुमकिन है कल एक बनें वो ,जो कल तक अनजाने  होंगे ||

अगर  रौशनी  की  हसरत  है,   इतना  तो करना ही होगा ,
नहीं   चिरागां  फिर  भी  राहों  में कुछ  दीप  जलाने  होंगे ||

खिजां  यहाँ जो कर गुजरी  है,  उन ज़ुल्मों का ये ही हल है,
चमन  खिला  कर  इन  राहों  में, हमको फूल सजाने होंगे ||


                                       रचनाकार - अभय दीपराज

वक्त्त नञि – मदन कुमार ठाकुर


सबटा ख़ुशी अछि दमन पर ,
ऐगो हशी के लेल वक्त्त नहीं

दिन – राएत दोरते -दोरते दुनिया में ,
जिनगी के लेल वक्त्त नही |

माय के लोरी के एहाशास त् छैन ,
मुद्दा माय कहैय के लेल वक्त्त नहीं
सब रिश्ता के त छोरी गेला ,
मुद्दा अंतिम संस्कार करैय लेल हुनका वक्त्त नहीं |

सबटा नाम मोबाईल में छैन ,
मुद्दा दोस्तों से बात करैय वक्त्त नहीं
मन मर्जी व फर्जी के की बात करी ,
जिनका अपनोहु लेल वक्त्त नहीं |

अखियों में बसल त् नींद बहुत ,
मुद्दा नींद से आराम करैय लेल वक्त्त नहीं
दिल अछि गमो से भरल ,
मुद्दा कानैय के लेल वक्त्त नहीं |

टका – पैसा के दौर में एहन दौरी ,
की मुरीयो के तकय लेल वक्त्त नहीं
जे गेला हुनकर की कदर करी ,
जखन अपनही सपनों के लेल वक्त्त नहीं |

आब अहि बताऊ हे जिनगी ,
अहि जिनगी के लके की हेतय
की ? हरदम जिनगी से मरेय बाला ,
जिबैय के लेल अछि वक्त्त नहीं ?

 
अपनेक सब के अहि ब्लॉग  में स्वागत  अछि



मदन कुमार ठाकुर
कोठिया , पट्टीटोल,
 भैरब स्थान , झंझारपुर , मधुबनी
 , बिहार , ८४७४०४


मो 9312460150

मधुबनी के पवन भूमि पर विशाल सांस्कृतिक कार्यक्रम..

मैथिलि अकादमी, (पटना) के सोजन्य स २७ अप्रैल २०११ क कालिदास महाविद्यालय उचैठ(दुर्गास्थान), बेनीपट्टी,मधुबनी (बिहार) के पवन भूमि पर विशाल सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन अकादमी के अध्यक्ष मिथिला के चर्चित रचनाकार, कलाकार, संचालक, आ मैथिल प्रेमी श्री कमलाकांत झा (फोन न.०९४३१२५३६६०)के नेतृत्व में कायल जा रहल आइछ, मात्र १ वर्ख में अखन तक मैथिलि अकादमी पटना द्वारा मैथिलि के बहुत राश विलुप्त पुष्तक पुष्तिका के प्रकाशन, मैथिलि धरोहर नाटकक मंचन, पुष्तक मेला के आयोजन, अवं बहुत राश सांस्कृतिक कार्यक्रम नै की सिर्फ दरभंगा, मधुबनी जिला में बल्कि समस्तीपुर,मुजफरपुर, बेगुसराई,भागलपुर, पुरनिया, सहरषा,सुपौल आदि मिथिलांचल के हर छेत्र में मैथिलि भाषक विकाश में अपन क्रन्तिकारी योगदान के रहल. संस्था के अध्यक्ष श्री कमलाकांत झा जे अपन जीवन के महत्वपूर्ण समय मिथिला मैथिलि के प्रचार प्रसार में लगा देला आई अपन कन्धा पर मैथिलि भाषक विकाशक बीरा लेने मिथिलांचल के गाम गाम घूमी रहल छैथ....

मिथिथांचल के जननी छिनामाश्तिका देवी माँ दुर्गा के अस्थान उचैठ में जोर सर स आई कार्यक्रम के सफल बनवा में अस्थानीय लोक सब बहुत उमंग के संग दिन रात लागल छैथ. आई कार्यक्रम में मैथिलि के सुपरिचित कलाकार रंजना झा, कुंजबिहारी,रामबाबू भगवन बाबु, डॉ. नलनी चौधरी, अरविन्द आर बहुत राश मैथिलि के सुविख्यात कलाकार सब औत. आई कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बिहार के उप मुख्यमंत्री श्री सुशिल मोदी, विनोद नारायण झा, सालिग्राम यादव, हुकुमदेव यादव, आरो बहुत अस्थानीय नेता सब रहता. अकादमी के अध्यक्ष कमलाकांत झा के कहब मी अकादमी के मुख्य काज मैथिलि मिथिला के प्रचार के लेल मिथिलांचल के जन जन के जगेनाई थीक...


-----पंकज झा

गुरुवार, 24 मार्च 2011

हमरा बिसैर गेलौं@प्रभात राय भट्ट

हमरा बिसैर गेलौं@प्रभात राय भट्ट

हमरा स की भूल भेलई जे अहाँ हमरा बिसैर गेलौं,
सब केर प्रीतम गाम येलई अहाँ किया नए येलों,  
यौ पिया अहाँ हमरा बिसैर गेलौं...........................२

अहाँ के कोना बिसरबई धनि अहीं छि हमर जान,
अहाँ के जौं बिसरबई त निकेल जेतई हमर प्राण,
ये धनि अहांके कोना बिसरबई ...........................२

सावन वितल भादो वितल,वितल पूस माघ क जारा,
मईर मईरक जिन्दा रहलौं बड मुस्किल भेल गुजरा,
यौ पिया अहाँ हमरा बिसैर गेलौं ...........................२

सावन में रिमझिम रिमझिम बदरा येना  बरसल,
अहांक स्नेह आ प्रीत लेल सजना देह  हमर  तरसल ,
यौ पिया अहाँ हमरा बिसैर गेलौं .......................२

पुर्निमो केर राईत में हमरा लगैय अन्हार ययौ,
माघफागुन येना बितईय जेना जोवन भेल पहार यौ,
सब केर पिया गाम एलई अहाँ किया नए येलौ,
ययौ पिया अहाँ हमरा बिसैर गेलौं .............२

काम काज में दिन बीत जैइय मुदा राईत नए कटईय,
असगर मोन नए लगईय अहिक सुरतिया याद अबैय,
छि हम मजबूर भेल सजनी अईब केर परदेस में ,
अहाँ विन जिबैछी कोना बुझु विशेष में ............२ 

जाईग जाईग करैत छि प्रातः उठैत छि खाली हात,
केकरा स:कहू अपन मोन क बात के बूझत हमर हालत ,
अहि स:हमर यी निर्सल जिनगी केर हिया जुडायत,
 सजनी अहा ला लक आइब मोनभैर  प्रेमक सौगात..२

रचनाकार:प्रभात राय भट्ट

मंगलवार, 22 मार्च 2011

नैन किया भईरगेल@प्रभात राय भट्ट


नैन किया भईरगेल@प्रभात राय भट्ट

अहाक ठोरक मुस्कान सजनी कतय चलिगेल यए,
अहाक नैन में नोर सजनी किया भैरगेल यए ,
नोर नए बहाऊ सजनी यी थीक अनमोल मोती,
अहाँ हैस दी त जगमग करे हमार जीवन के ज्योति,
अहाक ठोरक मुस्कान सजनी कतय चलिगेल यए,

येना नए होऊ अहाँ उठास,मों नए करू उदास,
आई छई दुःख त काईलह सुख हेतई,
यी छन भर के विपति सब टईर जेतई,
रखु मोन में आशा अओर हमरा पर भरोषा,
पूरा हयात मोन क सबटा अभिलाषा,
अहाक ठोरक मुस्कान सजनी कतय चलिगेल यए,

दुःख सुख ता जीवन में अबिते रहतई,
चाहे हवा जाते तेज बहतई,
समुन्दर में लहर जतेय जोर उठतई,
चाहे धरती स ज्वाला फुटतई,
मुदा जीवन के यात्रा कखनो नए रुकतई,
अहाँक ठोरक मुस्कान सजनी कतय चलिगेल यए,
अहाँक नैन में नोर सजनी किया भईरगेल यए,

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

सोमवार, 21 मार्च 2011

Nothing is Impossible: Maithili Rachana

असंभव किछु नहि!!

देखै-सुनैमें कहियो दुषऽ जोगर नहि छल बचबा - गबितो छल बड मीठ आ दिमाग एहेन तेज छलैक जे कतहु अपन प्रखर-बुद्धिसँ अलग छाप छोड़ैमें माहिर छल। तखन नीक के संग किछु बेजाय बात - अवगुण सभ सेहो छलैक ओकरामें - जेना अनेरो बेसी बजनै जाहिसँ ओकरा लोक सभ खौझबैत छलैक फचैंड़ कहि-कहि!! पाइ चोरा-चोराके चाहके दोकानपर जाय आ पाँवरोटी डूबा-डूबाके चाहसंगे खाय। कने पैघ जखन भेल तऽ किछु संगत एहेन भेलैक जे स्कूलसँ लौटेत कालमें चौरी बाधके रखबाड़ि करयवाली बतहियासँ छुपि-छुपि बूटके तऽ केराव के तऽ खेसारियेके झांख छिम्मीके लोभमें उखाड़ि लैत छल। कहियो पकड़ा सेहो जैत छल आ तखन खूब मारि खैत छल बापक हाथे - कारण बतहिया ओकर शिकायत लऽ सीधा घरहि पर आबि जैत छलैक आ बाप एतेक टाइट आदमी छलखिन जे चोरीके नाम सुनैत देरी आगि भऽ जाथिन आ छौंकीसऽ सगर देह फोड़ि दैत छलखिन। लेकिन धिया-पुतामें मारि खेनै बुझू रुटीन बनैत छलैक। कबड्डी, चैत चिक्का, राजा कबड्डी, गुल्ली-डंडा आदि प्रमुख खेल सभ छलैक ओकर प्रिय आ माहिर छल हर खेल में। साँसो खूब देर रोकि सकैत छल कारण अभ्यास करैत छल प्रतिदिन पोखरिमें एक सऽ डेढ मिनट धरि दम धरैक पानिमें डूबकी लगाय - पानिक खेल सभ सेहो बहुत रास खेलाइत छल। एहेन कोनो दिन नहि छलैक जे हेलैत-हेलैत जाठिपर नहि जाय, अथाह पानिमें डूबकी लगाके माटि नहि निकालय - जखन दुनु आँखि लाल भऽ जाय आ हाथक आंगूर सभ सिज्झ भऽ जाय तखनहि पोखैरके चुभकीसँ मुक्ति पाबय... वा कहियो कि बापके कहि देलकनि तऽ बापो बचबाके पकड़ैके क्रममें पोखरिमें कूदिके पकड़िके बाहर निकालैत छलाह। गोलीके विभिन्न खेल ओकर पाइ कमाइके साधन बनि गेल छल... कारण जे गाममें थियेटर आयल छलैक तऽ सेकेण्ड क्लासमें देखय हेतु २ रुपैयाके टिकट लगैत छल... बाप तऽ मारिके फेकि दितथिन यदि हुनका इ पता टा चलितनि जे बचबा सुतय हेतु अवधेश काकाके दलानमें जाइत अछि आ मौका देखि थियेटर देखय बड़काके बिगड़ल बेटासभसंग जाइत छल। आब गोली पाँच पैसामें दु गो बिकैत रहैक आ ठोक्कामें ओकर निशाना सेहो बड अचूक रहैक... घुचोमें एगो तऽ कम से कम हर दानमें पिला लियऽ आ फेर दुखीके जूट आ तीन-चारि गोटे खेलेनहार - पुछै केकरी... कहै ओकरी आ बचबा समधानिके निशाना लगा ओकरीके फोड़ी उठा दैक। हाय रे बचपन आ बचपनमें प्रेमक अजीब रंग!!

बचबा मैट्रिकके परीक्षा फर्स्ट डिविजनसँ पास केलक - विद्यालयमें स्थान सेहो भेटलैक आ सभक प्रशंसा सेहो पेलक। बचबाके दिमागमें परिवर्तन आबि गेल जे आब ओहो पैघ भऽ गेल कारण मैट्रीकके परीक्षा पास कऽ गेल। आब कलेजमें नाम लिखेतै। मुदा आब बचबाके बाप सेहो बचबाके मार-पीट नहि करैथ, हुनको में अजीब माया प्रवेश कय गेलन्हि। ओ बचबाके एडमिशन लेल सोचय लगलाह। लेकिन अपन स्वाभिमानके आइ धरि ओ नहि छोड़ने छलाह, केकरा लग हाथ पसारता, एहेन काज एखन धरि नहि केने छलाह। यदि दु पैली आँटा सेहो घटल तऽ बचबाके माय मात्र अपन व्यवहार-कुशलतासँ इ सभ मेन्टेन कयलीह। मुदा आब तऽ आँटा - चाउर के बात नहि, नगद ३०० टाका के जरुरी रहैक बचबाके एडमिशन लेल। खैर बाप बेर-बेर कहथिन, देखिन भगवान्‌ कोनो न कोनो इन्तजाम करबे करथिन। अस्थीर न रह! ओम्हर बचबाके सभ मित्र सभक एडमिशन भऽ गेलैक आ बचबाके इ बुझा लगलैक जे ओ सभक पाछाँ छूटि गेल। ओकरा नहि पता जे ओकर बाप अपन दवाइ-दारु-सेवासऽ कोनो दिन ५ टाका तऽ कोनो दिन १० टाकाके रोजीना कमाइ सऽ एखन धरि परिवार चलेलखिन। आब जखन एकमुष्ट ३०० टाकाके जरुरी छैक तऽ हुनका लग एहेन कोनो कोसल नहि रहय जाहि सँ बचबाके एडमिशन हेतु पठायल जैतेक। बचबा अपन बाप सऽ मुँह लागि गेल... बड कानल-बाजल। मुदा बाप छलखिन जे कनेकबो झुकथिन नहि आ कहथिन जे लिखलहबा रहतौ तऽ पढबे करमें - मुदा हमरा लग कोनो गाछ अछि जे तो्ड़िके दऽ दियौक? आब माइये कोनो जोगार करतौ तऽ धीरे-धीरे २-४ कऽ के हम चुका देबैक। ओम्हर सऽ माय सेहो बिफरय लगलैक। एह - कतेक बेर एहेन २-४ क‍ऽ के अहाँ चुकेलहुँ। बेटीके बियाहमें लोक सभक पाइ लेलियै से आइ धरि चुकेलियैक? आह! बहुत दर्दनाक रहल ओ समय बचबाके लेल। पहिल बेर ओ अपन माय-बापके गरीबीके बुझलक। ओकरा अपन बचपनके बचपनापर बहुत पश्चाताप भेलैक। कतेक पाइ चोराके ओ चाह आ बिस्कुट आ थियेटरमें स्वयं लुटौने छल... ओकरा एहि तरहक भितरिया खोखलापनके ज्ञान कहाँ छलैक! जेना-तेना ओ तऽ अपना-आपके बड़के कऽ बेटा बुझैत रहल। मुदा आइ!! ओकर ज्ञानज्योति खुजि गेल। ओ हिंचुकि-हिंचुकि के कानय लागल आ एकदम मौन भऽ गेल। मोंनेमें शपथ सेहो खेलक जे आइन्दा आब अपन अति-स्वाभिमानी बापके हृदयके नहि कष्ट पहुँचायत एवं बहुत जल्दी अपन कुशाग्र बुद्धिसँ बाप-मायके सेहो सेवा करत। संध्याकाल मायके चुपके सँ कहलकै जे कतहु सऽ जल्दी ३०० टाका इन्तजाम कऽ दे, हम तोरा दु महीनामें लौटा देबौक। माय बचबाके आँखि फारि-फारि निहारय लगली। लेकिन प्रतिक्रियामें ओहो मौन रहि गेली। रातिये नौ बजे करीब ओकरा हाथ पर तीन सौ टाका देलखिन आ कहलखिन जे बेटा अपन गरीबी जे बुझि गेल से कहियो कतहु हारि नहि सकैछ। जो माय-बापके शान बन।

बचबा दरभंगा पहुँचल आ सी एम साइंस कलेजके गेटपर जा सभ गप पता लगा अचानक हृदयके भीतरका द्वंद्व आ बापक ओ शब्द जे तुँ दरभंगामें रहि कोना पढि सकैत छ... एहि बातपर ओ खूब सोचि-बुझि अपन सिनियर मुदा बच्चहिसँ दोस्त कहैत आयल भाइ लग गेल आ कहलकै जे दोस्त हमरा कमर्समें एडमिशन करबा दिय। हम साइंस नहि पढब। इ फार्म भरि देने छी, २४० टाकामें एडमिशन हेतैक से लियऽ आ हम आब गाम जाइत छी। लौटयकाल बचबा किताबके दोकान पर सेकेण्ड हैण्ड पूरनका किताबक सेट ३० रुपैयामें किनलक आ टावर चौकपर जाय होमियोपैथिक दोकान सँ १३ रुपयाके १०० गोटी लूज डेसिल किनलक आ गाम आबि ८७ ई. के बाढिके प्रकोपसँ पीड़ित फ्लूके रोगीसभके ४ गोटी ४ टाकामें बेचिके ४-५ दिनमें सभटा १०० गोटी बेचि ८७ रुपैया नाफा कमयलक - एहि प्रकारे आब ओ हरेक सप्ताह दरभंगेसँ दवाई आनय लागल - जे संगी दरभंगामें रहिके पढैत छलाह हुनका लोकनिक नोट्स लय-लय तैयारी घरहि सऽ करय लागल। शायद कहियो कॅलेज नहि गेल मुदा ओ कोनो दोसर विद्यार्थीसँ कम नहि छल। ओ अपन मायके हाथ कैल कर्जा सेहो चुका देलक आ गाममें अपन कोर्सके पढाईके संग मैट्रीक तकके कोर्समें जतय फाँकी मारने छल तेकरो सभके रिविजन करय लागल। एहि प्रकारे गरीबीमें सेहो कर्मठतासँ पढाई संभव छैक एकर एक अविस्मरणीय उदाहरण पेश केलक बचबा।

मुदा हाय ईश्वरके लीला - सालो नहि बितलैक कि भूकंपमें बचबाके बाप के कोठरी छोड़ि बाकी समूचा घर ध्वस्त भऽ गेलैक जाहिमें दवाइके दोकान सेहो ध्वस्त भऽ गेल। आब? बचबाके सोझाँमें पैघ समस्या आबि गेल। मुदा ओ हारि मननिहार नहि छल। छोटका भाइ के अपन खुदरा दबाइके कारोबार सौंपि ओ दरभंगामें ट्युशन करब आ पढब से सोचि ५० रुपैयामें विद्यार्थी लजमें रहय लागल आ गामहिके मित्र सभ द्वारा ट्युशन तकैया कय कतहु ३० टाका तऽ कतहु ५० टाका आ कतहु एक संध्याके भोजन करैत अपन पढाई करय लागल। एम्हर बचबाके ओझाजी सेहो बचबाके मेहनत आ लगनसँ प्रभावित भऽ के परीक्षाके अन्तिम चारि महीना २०० टाका महीना पठाबय लगलाह। बचबा बहुत सुन्दर मार्क्स सऽ आइ-काम पास कयलक। गामक जतेक मित्र लगातार दरभंगामें रहि ट्युशन पढिके मार्क्स पयलाह तिनका सभसँ बहुत नीक बचबाके मार्क्स भेटलैक।

क्रमशः....

हरिः ॐ! हरिः हरः!!

रविवार, 20 मार्च 2011

बिहार द्वारा 'बिशेष राज्य का दर्ज़ा' के मांग का औचित्य..........!!


वर्ष 2000 में झारखण्ड से अलग होने के बाद बिहार एक ' विशेष राज्य का दर्ज़ा' तथा अतिरिक्त आर्थिक पैकेज की मांग करता आ रहा है. जैसा की सर्वविदित है कि राज्य के विभाजन के समय खनिज और उद्योग से भरपूर दक्षिण बिहार झारखण्ड के हिस्से में चली गयी और बिहार को मिला बाढ़, सुखा, रेत, गरीबी और बेरोज़गारी. रही सही कसर उस समय राज्य के सत्ता में काबिज़ भ्रष्ट सरकार ने पूरी कर दी. फलतः हरेक दृष्टी से बिहार एक अति पिछड़ा प्रदेश बनता चला गया.


सारी दुनिया जानती है कि बिहार हरेक साल 'बिहार की शोक' कहे जाने वाले कोशी नदी की बिभिषिका का दंश झेलती है जिससे लाखो लोग बेघर हो जाते है तथा करोडो रुपयों के जान-माल की क्षति होती है. बिहार की पूरी अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है लेकिन आये दिन बाढ़ और मौसम की मार की वजह से फसलो को काफी नकुसान होता है. वित्तीय सहायता के अभाव तथा पारंपरिक तरीके से खेती करने के चलते भी उत्पादन पर काफी फर्क पड़ता है. पिछले एक दशक में केंद्र सरकार द्वारा पेश बजट में कृषि पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया गया है. किसानो को इन्द्र के सहारे छोड़ दिया गया है.  अब बात करते है आधुनिक युग में विकास का एक महत्वपूर्ण वाहक बिजली की, जिसके बिना किसी भी क्षेत्र में प्रगति संभव नहीं है. इस मामले में भी जरा केंद्र के ढुलमुल रवयों पर गौर करे जहाँ बिहार को 2400  मेगावाट बिजली की जरुरत है, वह केवल 1000  मेगावाट बिजली की आपूर्ति की जा  रही है, जो जरुरत से बहुत कम है.


             राज्य सरकार के आकलन के अनुसार 1.45 करोड़ ऐसे परिवार है जो गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करते है. इन परिवारों को अनाज उपलब्ध कराने की सीधी जिम्मेदारी  केंद्र की होती है परन्तु केंद्र सरकार की उपेक्षा का आलम यह है की केवल 65 .2  लाख परिवार ही इस  सुविधा का लाभ उठा रही है बाकी 80  लाख परिवार इस सुविधा से बंचित है.अगर हम बिहार की तुलना देश के अन्य राज्यों से करे तो पाएंगे कि उद्योग और आधारभूत ढांचों के विकास में हम बाकी राज्यों से मीलो दूर है.

अगर भारत को भविष्य में एक  महान आर्थिक शक्ति बनना है तो यह जरुरी है की केंद्र देश के सभी राज्यों को एक साथ मिला कर चले तथा उन्हें जरुरत के हिसाब से वितीय सहायता प्रदान करे. जो राज्य विकास के पायदान पर काफी नीचे रह गया है उन्हें सभी तरह से सहायता करे. इसके लिए  केंद्र के सत्ता में काबिज सरकार को राजनीतिक मतभेद भुलाकर पक्षपातपूर्ण रवैया छोड़ना होगा और बिहार द्वारा किये गए 'बिशेष राज्य का दर्ज़ा' के जायज़ मांग को  जल्द से जल्द पूरा करना होगा. बिहार के सभी क्षेत्रीय राजतीनिक पार्टियों और युवाओ को भी एकजुट होना होगा तथा केंद्र सरकार पर जन आन्दोलन के जरिये दबाव डालना होगा.  


 

शनिवार, 19 मार्च 2011

HOLI @PRABHAT RAY BHATT


जीवन और रंग के बिच अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है,दोनों के भीतर एक दूसरेका अस्तित्व बिधमान रहता है,रंग जीवनको सरसरता प्रदान करता है और जीवन रंग को जीवंतता प्रदान करता है ! जन्म के साथ ही मनुष्य में रंग के प्रति उमंग और अनुराग पल्वित होने लगता है,इस सम्बन्ध को कायम रखने के बास्ते हम होली जैसे पर्व त्यौहार को सहृदय आलिंगन करते है,ताकि जीवन और रंग का समागम हो सके!इसे लोक भाषा में होरी कहते है जिसका अर्थ होता है ह का अर्थ आकाश र का अर्थ अग्नि वा तेज होता है ओ प्रणव और ई शक्ति का स्वरुप है !होरी का शाब्दिक अर्थ है सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तेजपूर्ण होना !तो आइये हम लोग भी होरी खेलें:-
होली कुञ्ज भवन खेलतु है नन्दलाल
लाले श्याम लाल भैली राधा
लाले सकल वृज्वाल होली कुंजभवन में
अवीर गुलाल रंग पिचकारी
सब लेलानी लेलेंन कर सम्हारी
मरतु है ताकि ताकि छातियाँ पर
चोली भेल गुलजार
होरी खेले राधा संग बन्सिधारी ..............
होरी है होरी है जोगीरा सारा रा रा रा ,,,,,,,,,


गाम आबिजाऊ हमर दुलरुवा पिया,आबिगेलई होली !!
अहि केर प्रेमक रंग स: रंगाएब हम अपन चोली !!
यी प्रेमक पाती में लिखरहल छि अपन अभिलाशाक बोली !!
अईबेर प्रभात भाईजी गाम अओता की नए पूछीरहल अछि फगुवा टोली !!
बौआ काका के दालान में बनिरहल अछि फगुवाक प्लान !!
चईल रहल छई चर्चा अहिके चाहे खेत होई या खलिहान !!
कनिया काकी कहै छथिन बौआ क देखला बहुते दिन भगेल !!
वित साल गाम आएल मुदा विना भेट केने चईल्गेल !!
अहाक संगी साथी सब एक मास पाहिले गाम आबिगेल्ल !!
अहाक ओझा २५ किल्लो क खसी आ भांगक पोटरी अहिलेल दगेल !!
गाम आबिजाऊ हमर दुलरुवा पिया जुड़ाउ हमर हिया !!
पूवा पूरी सेहो खिलाएब ,घोईर घोईर पियाएब हम अहाक भंग !!
अहि केर हाथक रंग स: रंगाएब हम अपन अंग अंग !!
रंग गुलाल अवीर उडाएब हम दुनु संग संग !!
प्रेमक रंग स: तन मन रंगाएब एक दोसर के संग संग !!
रचनाकार :-प्रभात राय भट्ट

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

अभय कान्त झा दीपराज के मैथिली गीत -

          बेटी   के   दहेज़  के भार..........

बनल   असह्य   संताप   समाजक,   बेटी   के   दहेज़  के भार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार ||

जे     बेटी     जननी    समाज    के,    मूल    प्रेम - स्नेह    के |
अपमानक   हम   पातक  
लैत  छी,   ओहि  बेटी  के  देह  के ||
अपन   मान   सँ  हम   अविवेकी,  अपने  कयलौं   दुर्व्यवहार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार || १ ||

बड़  ज्ञानी,  बड़  शिष्टाचारी,  मानव  बनि   हम   जन्म   लेलौं |
नीति - न्याय  के  परिभाषा  हम  कयलौं,  बड़  सद्कर्म केलों ||
सब   यश   पर   भारी   ई अपयश,  संतानक  कयलौं व्यापार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार || २ ||

जेहि   बेटी   में   दुर्गा - कमला   और   सीता   के   वास  अहि |
ओ   बेटी   अपना   नैहर   पर   बोझ   बनल,   उपहास   अहि ||
एहन  पातकी - पापी  छी  हम,  हाँ,  एहि पातक पर धिक्कार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार || ३ ||

बेटी   के   अपमानक   ई   विष,   उपटा   देलक   जों  ई  फूल |
हमर - अहाँ  के,  सबहक  आँगन  में  नाचत  विनाश के शूल ||
संकट  ई  गंभीर  भेल  अब,  करिऔ  एहि  पर  तुरत  विचार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार || ४ ||

आइ अगर ई व्यथा हमर अछि,  काल्हि अहाँ के  ई अभिशाप |
एक - एक कय पेरि रहल अछि,  सबके  एहि  ज्वाला के दाप ||
सबहक गर्दन, शान्ति और सुख, काटि रहल अछि ई तलवार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार || ५ ||

बनल   असह्य   संताप   समाजक,   बेटी   के   दहेज़  के भार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार ||

                          रचनाकार- अभय दीपराज 

मिथिला गर्भपुत्र@PRABHAT RAY BHATT

माँ हम अहाक गर्भ में पलिरहल्छी,मुदा जन्म लेबS पहिले हम अपन मोनक बात किछ आहा के सुनाब चाहैत छि! यी हमर पुनर्जन्म अछी हम अहि मिथिलांचल के जनकपुरधाम में जन्मलरहलौ ताहि समय में विदेह एकटा समृद्ध राष्ट्र रहैक जेकर अपन भाषा अपन भेष बिदेह के गौरव रहैक,कोशी स गण्डकी तक गंगा स हिमालय के पट यी सम्पूर्ण भूमि मिथिलांचल रहैक जतय कोशी कमला विल्वती यमुनी भूयसी गेरुका जलाधीका दुधमती व्याघ्र्मती विरजा मांडवी इछावती लक्ष्मणा वाग्मती गण्डकी अर्थात गंगा 
आर हिमालय के मध्य भाग में यी पंद्रह नदी के अंतर्गत परम पवन तिरहुत देश विख्यात छल ! जतये कोशी कमला क वेग स संगीत उत्पन होइत्छल दुधमतीस दूध बहथी नारायणी में स्नान कैयला स स्वस्थ काया भेटैत
 छल,गण्डकी के वेग स प्रेरित कवी गंडक काव्यसुधा रचित छल,कवी कौशकी कोशी तट बईस काव्यवाचन
करैत छल ! अनमोलसंस्कृति  आर अनुपम  प्रकृति केर उद्गमस्थल याह मिथिलाधाम छल बागबगीचा में कोइली मीठ मीठ संगीत गबैछल शुभ-प्रभातक लाली स मिथिलाक जनजीवन स्वर्णिम छल !हर घर मंदिर आ लोग इह के साधू संत छल चाहे कोनो मौसम होइक सद्खन ईहा बहैत बसंत छल !पग पग पोखईर माछ मखान मीठ मीठ बोली मुह में पान इ छल मिथिलाक पहिचान,अहि ठाम जन्म लेलैथ पैघ पैघविद्वानवाचस्पति, विद्यापति,गौतम, कपिल, कणाद,जौमिनी,शतानंद,श्रृंगी,ऋषि याज्ञवल्क्य ,सांडिल
,मंडन मिश्र,कुमारिल भट्ट ,नागार्जुन,वाल्मीकि, कवी कौशकी, कवी गंडक ,कालिदास, कवीर दास,महावीर यी सब छलैथ 
मिथिलापुत्र एतही जन्म लेलैथ माँ जानकी राजर्षि जनक के पुत्रीक रूप में !एतही भगवान शिव उगना महादेव के रुपमे महा कवी विद्यापति के चाकर बनलाह ! मिथिला भूमि से अवतरित होइत छल ऋषि मुनि साधू संत भगवान ताहि स कहलगेल की यी मिथिलाभूमि अछि वसुधा के हृदय !मिथिलाक मान समान स्वाभिमान भाषा  भेष प्रेम स्नेह ज्ञान विज्ञान विश्व  बिख्यात छल! अहि ठाम जन्म लेबक लेल देवी देबता सब लालायित होइत छल ! तायहेतु हमहू पूर्व जन्म में माँ जानकी स कमाना 
कयने रहलू जे हे माता जाऊ हम फेर मानव कोइख में जन्म ली ता हमरा मिथिले में जन्म देव !ताहि स हम अपनेक कोइख में पली रहल छि! मुदा  आजुक मिथिलाक दुर्दशा देखिक हम संकोचित भगेल्हू,विस्वास नए बहरहाल अछि जे यी वाह्य मिथिला छई राजर्षि जनक के नगरी वैदेहिक गाम की कोनो दोसर ?सब किछ बदलल बदलल जिका लगैय,कियो कहिय हम नेपाल के मिथिला में छि ता कियो कहैय हम 
विहार के मिथिला में छि यी विदेह नगरी दू भाग में विभक्त कोना भगेलई माए? राजा प्रजा शाषक जनता भाषा भेष व्यबहार व्यापार ज्ञान विज्ञान सब किछ 
बदलल बुझाईय !मिथिलाक अस्तित्व विलीन आ परतंत्र शासन के आधीन में हमर मिथिला  कोना आबिगेल माए ? मैथिल भाषा कियो नए बाजैय, धोती कुरता फाग के उपहास भरह्लय,महा कवी विद्यापति क गीत कियो नए गबैय ! मिथिलाक संस्कृति लोप के स्थिति में कोना आबिगेल माए ?
समां चकेवा ,जट जटिन,झिझिया,झूमर,झंडा निर्त्य,सल्हेश कुमार्विर्ज्वान,आल्हा उदल,कजरी मल्हार यी नाट्यकला सब कतय चलिगेल ? मिथिलाक एतिहासिक स्थल सब एतेक जरजट कोना भगेल ?
माए हम त पुनर्जन्म मांगने छलु मिथिला राज्य में मुदा आहा अछि विहार में,माए हम त पुनर्जन्म मांगने छलु मिथिला राज्य में मुदा आहा अछि नेपाल में ,माए हमर विदेह राज्य कतय चलिगेल ?माए हम त अपन मिथिला राज्य में जन्म लेब चाहैत छि मिथिला माए क कोरा सन निश्छल आ बत्सल प्रेम खोजलो स नए भेटत चहुओरा में !हम अपन मोनक सबटा जिज्ञासा ब्यक्त केनु आब आहा किछ मार्गदर्शन करू माए !हम मजधार में फसल छि हमर करूणा सुनी हमर सपना साकार करू माए !!!
लेखक:-प्रभात राय भट्ट

Abhay Kant Jha Deepraaj ke hindi Ghazal -


                           ग़ज़ल

चक्र प्रगति का ऐसा घूमा जगत आज श्मशान   हुआ है |
ढूंढ - ढूंढ   कर   यहाँ   बसेरा  धर्म  आज हलकान   हुआ है ||

कहाँ न्याय का मंदिर, मंदिर ? सेवा भाव कहाँ अब सेवा ?
ख़ूनी   पंजों  के  नाखूनों  पर   हमको   अभिमान  हुआ  है ||

अब   विश्वास  विषैला  होकर,  बन विश्वास-घात मिलता है,
मानव   मन   ही,  मानवता के  भावों से अनजान हुआ है ||

धरती,  अम्बर   और   सागर   का   बंटवारा   करते - करते,
हवस  स्वार्थ  का  बढा और मन चिंतन से वीरान हुआ है ||

भूल  गए  कर्त्तव्य  आज  हम,  कुल   का   गौरव  बनने  का,
वो   संतान  बने  हम  जिनसे हर माँ का अपमान हुआ है || 



                        रचनाकार - अभय दीपराज





मंगलवार, 15 मार्च 2011

आदर्श विवाह@प्रभात राय भट्ट

आदर्श विवाह@प्रभात राय भट्ट

हम छी मिथिलाक ललना,
दहेज़ ला क बनब नए बेल्गोब्ना,
दहेज़ लेनाए छई अपराध,
कियो करू नए एहन काज,
हम करब विवाह आदर्श,
अहू लिय इ सुन्दर परामर्श,
भेटत सुन्दर शुशील कनिया,
आहा स प्रेम खूब करती सजनिया,
आँगन में रुनझुन रुनझुन,
 बाजत हुनक पैजनिया ,
घर केर बनौती सुन्दर संसार,
भेटत बाबु माए केर सेवा सत्कार,
छोट सब में लुटवती वो दुलार,
अहक भेटत निश्छल प्रेमक प्यार,

जौ दहेज़ लयक  विवाह करबा भैया,
कनिया भेटत कारिख पोतल करिया,
हुकुम चलैतह शान देखैतह,
बात बात में करतह गोर्धरिया,
अपने सुततह पलंग तोरा सुतैत पैरथारिया,
बात बात में नखरा देखैतह,
भानस भात तोरे सा करैतह,
अपने खेतह मिट माछ खुवा मिठाई,
जौं किछ बाजब देतः तोरा ठेंगा देखाई,
रुईस फुइल नहिरा चईल जेताह,
साल भैर में घुईर घर एतः
सूद में एकटा सूत गोद में देतः
पुछला स कहती इ थिक अहाक निशानी,
आब कहू यौ दहेजुवा दूल्हा,
 आहा छी कतेक अज्ञानी ???
तेय हम दैतछी यी सुन्दर परामर्श,
सुन्दर शुशील भद्र कनिया भेटत,
विवाह करू आदर्श,विवाह करू आदर्श!!!
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

Abhay Kant Jha Deepraaj ke hindi Ghazal -

                         ग़ज़ल

मैं एक विद्रोही इन्सां हूँ क्योंकि मैं कमज़ोर नहीं हूँ |
ज्वाला है मेरी आँखों मैं क्योंकि मैं कोई चोर नहीं हूँ ||

मैंने जो  भी  कड़वा  मीठा  देखा  भोगा  कह डाला,
क्योंकि मैं एक जिंदा इन्सां हूँ कोई मुर्दा दौर नहीं हूँ ||

मैंने  ये  शिक्षा  पाई  है  सिद्धांतों  के  लिए  जिओ,
जो  बसंत  को  बहलाने को नाचे मैं वो मोर नहीं हूँ ||

मुझे  पाप  के  झंझावातों  से  टकराना  भाता  है,
आंधी-पानी जिसे मिटा दे मैं वो दुर्बल बौर नहीं हूँ ||

जब भी और जहाँ भी मुझको सच और न्याय पुकारेगा,
मुझे वहीँ पर पाओगे तुम क्योंकि मैं रणछोड़ नहीं हूँ ||

ईश्वर  जितनी  मुझे  रौशनी  देगा, मैं  सबमें  बांटूंगा,
कोई छाया जिस प्रकाश को ढक ले मैं वो भोर नहीं हूँ ||


                          रचनाकार - अभय दीपराज

दुईगोट मैथिली फगुआ गीत - रचनाकार: जितमोहन झा (जितू)...

नव नवेली नवयौवना सँ विवाह रचेलाक बाद पतिदेव रोजगारक तलाश मे परदेश चैल जैत छथिन! ओ अपन अर्धांग्नी सँ वादा के कs गेल छथिन, की किछ दिन मे कमा - धमा कs ओ वापस गाम ओउता! तकर बाद बड्ड धूम - धाम सँ हुनकर दुरागमन करोउता! मुदा एहेंन नै भेल! प्रियतमक बाट जोहैत - जोहैत ओय नवयुवतीक व्यथा कs हम फगुआ गीतक माध्यम सँ अपने लोकैंन के बिच व्यक्त करे चाहे छी!!! जितमोहन झा (जितू)....

(१) पहिलुक फगुआ गीत...

लागल अछि फागुन मास यो पिया !
हमर कहियो नै भेलई सुदिनवां !!

अगहन निहारलो, हम पूष निहारलो,
माघ महिनवां मे जिया अकुलाबय,
चरहल फागुनवां रिझाबई यो पिया !
हमर कहियो नै भेलई सुदिनवां !!
लागल अछि फागुन.........

राह देखि - देखि हमर दिनवां बीतल,
जुल्मी सजनवां परदेशिया मे खटल,
'पंडित' कs हमर सुधिया नै आबई,
चढ़ल अछि हमरो जवनिया यो पिया !
हमर कहियो नै भेलई सुदिनवां !!
लागल अछि फागुन.........

आमक गाछ पर बाजै कोयलिया,
सुनी-सुनी करेजा मs लागैत अछि गोलिया,
चिट्ठी नै सन्देशवां पठेलो यो पिया !
हमर कहियो नै भेलई सुदिनवां !!
लागल अछि फागुन.........

जल्दी सँ अहाँ टिकटवां कटायब,
एहिबेर बलम हमर गवना करायब,
अहाँ सँ मिल कs जियरा जुरायत,
कचका कोरही सँ फूल फुलायत,
छुटत संगतुरियाकें ताना यो पिया !
हमर कहियो नै भेलई सुदिनवां !!
लागल अछि फागुन मास यो पिया.....


(२) दोसर फगुआ गीत....

फगुआ मे जियरा नै जुरायब यो पिया !
हमर पाउते चिट्ठी चल आयब !!

गामक मोहल्ला के राह सजैत अछि,
गल्ली गल्ली मे जोगीरा चलैत अछि,
ढोलक के थाप पर बुढबो नाचैत छैथ,
बुढबो गाबैत छैथ जोगीरा यो पिया !
हमर पाउते चिट्ठी चल आयब !!
फगुआ मे जियरा.............

तोरी उखैर गेल, गहुमो पाइक गेल,
आमक गाछ मे मोजर लैद गेल,
सखी सहेली करैत छली मस्करियां,
दूध भंगा घोटायत अपने दुवरियां,
ननदों के बहकल बोलीयां यो पिया !
हमर पाउते चिट्ठी चल आयब !!
फगुआ मे जियरा.............

देवर जीक मन सन - सन सनकाई,
राह चलैत हुनक खूब मोंन बहकाई,
देखि के जियरा डराबे यो पिया !
हमर पाउते चिट्ठी चल आयब !!
फगुआ मे जियरा..............

गामक छौरा सभ बाजैत अछि कुबोली,
कहलक भोउजी खेलब अहिं संग होली,
रंग गुलाल सँ रंगब अहाँक चोली,
भोउजी भोउजी कैह घेरयाबे यो पिया !
हमर पाउते चिट्ठी चल आयब !!
फगुआ मे जियरा..............

आस परोसक लोग ताना मारैत छैथ,
बूढियो मई सेहो मुह बिच्काबैत छैथ,
छौरा जुआन सभ मिल खिस्याबैत छैथ,
चलैत अछि करेजा पर बाण यो पिया !
हमर पाउते चिट्ठी चल आयब !!
फगुआ मे जियरा.............

अहाँक बिना सेजयो नै सोभई,
रहि रहि जियरा हमर रोबई,
अहाँक कम्मे पर करब कुन गुमानवां,
सबके बलम छैथ आँखक समनवां,
कोरा मे कहिया खेलत लालनमां यो पिया !
हमर पाउते चिट्ठी चल आयब !!
फगुआ मे जियरा..............

सैयां "जितू" कोना गेलो भुलाई,
सावन बीतल आब फगुओ बीत जाई,
अहींक संगे रंगायब हम अपन सारी,
कतो रहब जून पियब भाँग तारी,
फगुआ मे जिया नै जराबू यो पिया !
हमर पाउते चिट्ठी चल आयब !!
फगुआ मे जियरा.............

हमरा आ ब्लॉग परिवारक तरफ सँ समस्त मैथिल बंधूगन के फगुआक हार्दिक शुभकामना....

सोमवार, 14 मार्च 2011

Abhay Kant Jha Deepraaj ke Maithilee GHazal -


                        ग़ज़ल 

कहू कोना ? जे, आम आदमी
बनि कय की - की भोगलौं हम |
खून - खुनामह भेल करेजा, कोना - कोना क ? जोगलौं हम  || 



बड़  उल्लास  भेल  बचपन  में,  हम बड़ सुन्दर, काबिल छी,
गौरव  छल  जे -  बाबू - बौआ  बनि,  कोरा  में  झुललौं हम ||

 
भेलौं  किशोर,  मोंन  बड़  हुलसल,  मुट्ठी  में संसार छलय,
धरती  सँ  आकाश  लोक  धरि,  लहरेलौं  और  बुललौं  हम ||

 
जखन  वयस्क  भेलौं  और  आयल कंधा पर दुनिया के भार,

यौवन  के  गौरव  में  डूबल,  अपन  शक्ति  के  खोजलौं हम ||
 
देश - समाजक  और  कुटुम्बक,  अनुभव  के  क
ड़वाहट में,
बेर - बेर  बनि कय अभिमन्यु ,  चक्र - व्यूह में फँसलौं  हम ||


जाहि घडी तक आन लोक सब दुश्मन छल, मदमस्त छलौं,
बज्र माथ पर बजरल लेकिन,  ओकरो सहि कय बचलौं  हम ||

 
अपन  खून  सँ  चोट जे लागल,  सब बुद्धि - बल बिसरायल,
सुनल  बात  छल  एक  बेर  के,  लाख  बेर  पर  मरलौं  हम ||

 
जीवन  सच  में  बड़  भारी  छल,  आदर्शक पथ और कठिन,
राम - नाम  अवलंब  रहल  त,  कुहरि -
कुहरि कटलौं हम ||


                    रचनाकार - अभय दीपराज

A Big Question Mark on Small Cricket Teams?


There is a big question mark on the small teams of cricket game to play one day series including World Cup matches as International Cricket Council (ICC) has decided that now only 10 teams will play the next World Cup. It means that Associates Members like Canada, Ireland, Netherlands and Kenya will not able to participate in the next world cup.


Before I go ahead, let me clarify what does the Associate Member mean? In 1990's, ICC decided to promote the Cricket amongst the countries where cricket is not very popular. In that campaign, few Countries associated with International Cricket Council, but not entitled to play Test Cricket are called Associates Members.


In 1975, when the 1st World Cup was played, total 8 teams participated including 2 Associate teams East Africa and Sri Lanka. In 2003 World Cup, this number increases to 4 and in next world cup, this number becomes 6. Few countries who got chance to play as Associate members improved a lot and finally got the entitled to play Test Cricket too i.e Sri Lanka, Bangladesh etc. So far, in this world cup 2011, Ireland has really surprised  the world by defeating England in the league matches but rest of the Associate members really disappointed a lot...!


Cricket Specialist, Cricketers from all over the World have mixed reaction on this hot topic. Few people says that Associate members should be allowed to play world cup matches in future too as it will help them to improve their efficiency. But in my Opinion, These Associate teams should not be allowed to play International One day Cricket matches because in 50 over match it becomes very difficult for the weaker team to move forward and give a respectable total for the opposite team. In this format, these team may surprise in 1-2 matches, but it's impossible for them to play consistent good cricket against well established teams in complete one day series. We all know that now cricket is money game so by including these teams in Big events i.e world cup have great impact on market possibilities too. In fact, if you go to see a match where one team is an associate member, you will find a comparatively lower number of spectators witnessing the match in Stadium.


In this regard, According to my views, ICC should follow the standard in Football game made by FIFA. There should be qualifying match amongst the Associate teams before they should be allowed to play World Cup. Apart from that they should be given privilege to play 20-20 cricket so that these teams can get chance to prove themselves. 'Twenty-Twenty' cricket is the best format to promote the Cricket in all over the world as this format is very much exciting and take less time. ICC should try that this format of cricket should be included in the Olympic game in future. 


What's ur Views on this topic? Do write ur comments below this post.

( समस्त भाई - बोहिन के होली के ढेरो सुभकामना )चलू देखैत छी होली मनोरंजन

समस्त  भाई  - बोहिन  के  होली के  ढेरो  सुभकामना 

 चलू देखैत  छी होली  मनोरंजन 
1.


2.
 होली  खेले  रागुबिरा  अब्ध में --
3
.  

4.
रंग  बरसे  भिगे चुनर  वाली -----

5.
 होली  के  दिन सब मिल जाते है  रंगों में -----

6.
धीरे - धीरे  डाल ,   भोज पूरी  मस्ती सोंग ---

7 .
होली  मस्ती  सोंग ------

8.
मैथिलि  मस्ती  सोंग  ,------
9 .


10 .
 होली मस्ती  सोंग मैथिलि ----
तारी वाली  तारी पियादे ----

11.


 12..
मैथिली सोंग  --
भोजी के  देलकै ----


होली  है --------

Prachar se Kya Bach payege VANRAJ


                                             DAILY NEWS ACTIVIST Lucknow
                                                                 14.02.2011

Hindi Ghazal - By Abhay Deepraaj

                            ग़ज़ल

आज  शान  से  इस  दुनिया  में, खोटा सिक्का ही चलता है |
आस्तीन  का  साँप  यहाँ  जो  बन  ले,  दुनिया में पलता है ||

गलत मुकद्दमा हो तो प्यारे, एक मिनिट में निपट जाएगा,
सच  की  होंगी  सौ  तारीखें,  यहाँ   फैसला   यूँ   टलता   है ||

बाग़  सुगन्धित  मीठे  फल  के,  सड़ा खाद पाकर फलते है,
साफ़-सफाई  से  तो  प्यारे,  बाग़  सूखता  और  जलता  है ||

क्या राजा, क्या प्रजा, सभी को, प्यार यहाँ है अपने हित से,
जो  मूरख  परहित की सोचे, व्यर्थ झुलसता और गलता है ||

दानव  जीते  यहाँ  शान  से,  मानवता  है  विकृति - गरीबी,
सीधा - सच्चा  बनकर  जीना,  दुनिया में सबको खलता है ||

स्त्रोत  प्यार  के  सूख  गए  है,  फूल  यहाँ  मसले  जाते  है,
आज  ज़माना  उसका  है  जो  पत्थर  बनकर के घलता है ||


दर्द  बना  जीवन  मानव  का,  आँसू  हैं  उसकी  आँखों  में,
युग  ने  ऐसी करवट ली है, कण-कण मानव को छलता है ||


                         रचनाकार - अभय दीपराज