ग़ज़ल
मैं एक विद्रोही इन्सां हूँ क्योंकि मैं कमज़ोर नहीं हूँ |
ज्वाला है मेरी आँखों मैं क्योंकि मैं कोई चोर नहीं हूँ ||
मैंने जो भी कड़वा मीठा देखा भोगा कह डाला,
क्योंकि मैं एक जिंदा इन्सां हूँ कोई मुर्दा दौर नहीं हूँ ||
मैंने ये शिक्षा पाई है सिद्धांतों के लिए जिओ,
जो बसंत को बहलाने को नाचे मैं वो मोर नहीं हूँ ||
मुझे पाप के झंझावातों से टकराना भाता है,
आंधी-पानी जिसे मिटा दे मैं वो दुर्बल बौर नहीं हूँ ||
जब भी और जहाँ भी मुझको सच और न्याय पुकारेगा,
मुझे वहीँ पर पाओगे तुम क्योंकि मैं रणछोड़ नहीं हूँ ||
ईश्वर जितनी मुझे रौशनी देगा, मैं सबमें बांटूंगा,
कोई छाया जिस प्रकाश को ढक ले मैं वो भोर नहीं हूँ ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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