रविवार, 20 मार्च 2011

बिहार द्वारा 'बिशेष राज्य का दर्ज़ा' के मांग का औचित्य..........!!


वर्ष 2000 में झारखण्ड से अलग होने के बाद बिहार एक ' विशेष राज्य का दर्ज़ा' तथा अतिरिक्त आर्थिक पैकेज की मांग करता आ रहा है. जैसा की सर्वविदित है कि राज्य के विभाजन के समय खनिज और उद्योग से भरपूर दक्षिण बिहार झारखण्ड के हिस्से में चली गयी और बिहार को मिला बाढ़, सुखा, रेत, गरीबी और बेरोज़गारी. रही सही कसर उस समय राज्य के सत्ता में काबिज़ भ्रष्ट सरकार ने पूरी कर दी. फलतः हरेक दृष्टी से बिहार एक अति पिछड़ा प्रदेश बनता चला गया.


सारी दुनिया जानती है कि बिहार हरेक साल 'बिहार की शोक' कहे जाने वाले कोशी नदी की बिभिषिका का दंश झेलती है जिससे लाखो लोग बेघर हो जाते है तथा करोडो रुपयों के जान-माल की क्षति होती है. बिहार की पूरी अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है लेकिन आये दिन बाढ़ और मौसम की मार की वजह से फसलो को काफी नकुसान होता है. वित्तीय सहायता के अभाव तथा पारंपरिक तरीके से खेती करने के चलते भी उत्पादन पर काफी फर्क पड़ता है. पिछले एक दशक में केंद्र सरकार द्वारा पेश बजट में कृषि पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया गया है. किसानो को इन्द्र के सहारे छोड़ दिया गया है.  अब बात करते है आधुनिक युग में विकास का एक महत्वपूर्ण वाहक बिजली की, जिसके बिना किसी भी क्षेत्र में प्रगति संभव नहीं है. इस मामले में भी जरा केंद्र के ढुलमुल रवयों पर गौर करे जहाँ बिहार को 2400  मेगावाट बिजली की जरुरत है, वह केवल 1000  मेगावाट बिजली की आपूर्ति की जा  रही है, जो जरुरत से बहुत कम है.


             राज्य सरकार के आकलन के अनुसार 1.45 करोड़ ऐसे परिवार है जो गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करते है. इन परिवारों को अनाज उपलब्ध कराने की सीधी जिम्मेदारी  केंद्र की होती है परन्तु केंद्र सरकार की उपेक्षा का आलम यह है की केवल 65 .2  लाख परिवार ही इस  सुविधा का लाभ उठा रही है बाकी 80  लाख परिवार इस सुविधा से बंचित है.अगर हम बिहार की तुलना देश के अन्य राज्यों से करे तो पाएंगे कि उद्योग और आधारभूत ढांचों के विकास में हम बाकी राज्यों से मीलो दूर है.

अगर भारत को भविष्य में एक  महान आर्थिक शक्ति बनना है तो यह जरुरी है की केंद्र देश के सभी राज्यों को एक साथ मिला कर चले तथा उन्हें जरुरत के हिसाब से वितीय सहायता प्रदान करे. जो राज्य विकास के पायदान पर काफी नीचे रह गया है उन्हें सभी तरह से सहायता करे. इसके लिए  केंद्र के सत्ता में काबिज सरकार को राजनीतिक मतभेद भुलाकर पक्षपातपूर्ण रवैया छोड़ना होगा और बिहार द्वारा किये गए 'बिशेष राज्य का दर्ज़ा' के जायज़ मांग को  जल्द से जल्द पूरा करना होगा. बिहार के सभी क्षेत्रीय राजतीनिक पार्टियों और युवाओ को भी एकजुट होना होगा तथा केंद्र सरकार पर जन आन्दोलन के जरिये दबाव डालना होगा.  


 

5 टिप्‍पणियां:

  1. गौर करे जहाँ बिहार को 2400 मेगावाट बिजली की जरुरत है, वह केवल 1000 मेगावाट बिजली की आपूर्ति की जा रही है,
    राज्य सरकार के आकलन के अनुसार 1.45 करोड़ ऐसे परिवार है जो गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करते हैपरन्तु केंद्र सरकार की उपेक्षा का आलम यह है की केवल 65 .2 लाख परिवार ही इस सुविधा का लाभ उठा रही है बाकी 80 लाख परिवार इस सुविधा से बंचित है.

    sahi soch sahi taknik sujhalo chandan ji
    dhanywad

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  2. मदन जी एवं आनंद जी, अहाक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यबाद....!!



    एही ना भविष्य में भी अपन सुझाव देत रहब......!!

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  3. bahut nik lagal apnek parstuti chandan ji dhanywad ahina jankari del karu pathak gan kelel
    dhanywad

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  4. जगदम्बा मैडम जी, अहाक प्रशंसा के लिए बहुत बहुत धन्यबाद.....!!

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