मंगलवार, 31 अक्टूबर 2017

दिल के कियक कठोर भेलौ

।। दिल के कियक कठोर भेलौ ।।


स्वच्छ धवल मुख चारु चन्द्र सँ, अबितहि घर इजोर केलो ।
प्रस्फुटित कलिए कोमलाङ्गी, मन मधुमासक भोर केलौ ।।
सुभग  सिंह  कटि,कंठ सुराही
पाँडरि  पुट अधर अही के अई
मृग नयनी,पिक वयनी सुमधुर
सुगना   नाक   अही   के  अई
अतेक रास गुण देलनि विधाता,दिल के कीयक कठोर भेलौ।
स्वच्छ  धवल मुख चारु चन्द्र सँ, अबितहि घर इजोर केलौ।।
वक्षस्थल  के  भार  लता  पर
लचक लैत,नयि तनिक सहय
रचि सोलह  -श्रृंगार बत्तीसों-
अभरन, नयि  अनुरूप रहय
ताकू पलटि  चारु  चंचल चित,  हम चितवन के चोर भेलौ।
स्वच्छ धवल मुख चारु चन्द्र सँ,अबितहि घर इजोर केलौ।।
प्रीतक - प्राङ्गण  में  अभिनंदन
प्रणय - पत्र    स्वीकार    करू
"रमण"अपन एक दया दृष्टी सँ
आई    स्वप्न     साकार    करू
घोरघटा   बनि वरसू सुंदरी,    हम   जंगल के मोर भेलौ।
स्वच्छ धरल मुख चारु चंद्र सँ,अबितहि घर इजोर केलौ।।


रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"

मो - 9997313751 

सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

रावण कियाक नहि मरैत अछि ?

   
   रामलीलाक आयोजनक तैयारी पूर्ण भ' गेल छल तहन ई प्रश्न उठल जे रावणक पुतला केना आ कतेक मे ख़रीदल जाए ? ओना रामलीला आयोजनक सचिव रामप्रसाद छल तैं इ भार ओकरे पर द' देल गेल। भरिगर जिम्मेदारी छल। रावण ख़रीदबाक छल। संयोग सँ एकटा सेठ एहि शुभकार्य लेल अपन कारी कमाई मे सँ पांच हजार टाका भक्ति भाव सहित ओकरा द' देलक। मुदा एतबे सँ की होएत ? नीक आयोजन करबाक छलै। चारि गोटा कहलक चन्दा के रसीद बनबा लिअ। जल्दिये टाका भ' जाएत। सैह भेल। चंदाक रसीद छपबा क' छौड़ा सबके द' देल गेल। छौड़ा सब बानर भ' गेल। एकटा रसीद ल' क' रामप्रसाद सेहओ घरे- घर घूम' लागल।
    घुमैत - घुमैत एकटा आलीशान बंगलाक सामने ओ रुकल। फाटक खोलि क' कॉल वेळक बटन दबेलक। भीतर स' कियो बहार नहि निकलल। ( आलीशान घर मे रह' बला आदमी ओहुना जल्दी नहि निकलैत अछि ) रामप्रसाद दोहरा क' कॉलवेळ बजेलक - ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग एहि बेर तुरन्त दरबाजा खुजल आ एकटा साँढ़ जकाँ 'सज्जन' दहाड़इते बाजल - की छै ? की चाही ? ( गोया प्रसाद पुछलक - भिखाड़ी छैं ? ) 
'' हं .... हं , हम रावणक पुतला जडेबाक लेल चन्दा एकत्रित क' रहल छी " रामप्रसाद कने सहमिते बाजल। 
" हूँ ........ चन्दा त' द' देबउ मुदा ई कह रावण कतेक साल स' जड़बैत छैं ?
" सब साल जड़बै छियै। '' रामप्रसाद जोरदैत बाजल। 
" जखन सब साल जड़बै छैं त' आखिर रावण मरै कियाक नहि छौ ? सब साल कियाक जीब जाई छौ ? कहियो सोचलहिन ? " 
" ई त' हम नहि सोचलहुँ। " रामप्रसाद एहि प्रश्न कने प्रभावित भ' गेल।
“त' आखिर कहिया सोचबै ? एह कारण छौ जे रावण कहियो मरिते नहि छौ। . . . . . . ठीक छै रसीद काटि दे।"
" ठीक छै , की नाम लिखु ? "
" लिख - - - रावण। "
" रावण ? ? ? " रामप्रसाद कने बौखलायल ।
" हँ, हमर नाम रावण अछि। की सोचैं छैं की राम राम हमरा मारि देने छल ? नहि, यहां नहि छै। दरअसलमे रामक तीर हमर ढ़ोढ़ी पर जरूर लागल छल। लेकिन हम वास्तव मे मरल नहि रहि। केवल हमर शरीर मरल छल, आत्मा नहि। गीता तू पढ़ने छैं ? हमर आत्मा कहियो नहि मरि सकैत अछि। "
"त' कि आहाँ सच्चे मे रावण छी ? हमरा विश्वास नहि होइत अछि।" रामप्रसाद भौंचक होइत बाजल।
" हँ ! त' कि तोरा आश्चर्य होइत छौ ? हेबाको चाही। मुदा सत्यके नकारल नहि जा सकैत छैक।
जहिया तक संसारक कोनो कोण मे अत्याचार, साम्राज्यवाद, हिंसा आ अपहरण आ की प्रद्युमन एहन ( जे गुड़गांवक रेयान इंटरनेशन स्कूल मे भेल ) जघन्य अपराध होइत रहत तहिया तक रावण जीविते रहत। " तथाकथित रावण बाजल। ": से त' छै , मुदा - - - - ।" रामप्रसाद माथ पर स' पसीना पोछैत बाजल। " मुदा की ? रे मुर्ख ! राम त" एखनो जीविते छै। ओहो हमरे जकाँ अमर छै। ओकर नीक आ हमर अधलाहक मध्य द्वन्द त' सदैव चलैत रहत। हम जनैत छी, ने नीकक अंत हेतै आ ने अधलाहक। एहि तरहेँ तोरो चन्दा के खेल चलिते रहतौ। अच्छा आब रसीद काट। "
" अच्छा जे से कतेक लिखू ? " रामप्रसाद डेराइते बाजल। लिख, पाँच हजार। की, ठीक छौ ने ? हमर भाय धन कुबेर अछि। लाखो रुपया विदेश सँ भेजैत अछि। हमरा रुपयाक की कमी ? एकटा सोनाक लंका जड़ि गेल त' की भ' गेलै ? जयवर्धनक लंका मे एखन तक अत्याचार चलिते छै ? ई ले पाँच हजारक चेक। " रावण चेक काटि रामप्रसाद के द' देलक आ दहाड़ईत बाजल --- " चल आब भाग एतय स'।"
रामप्रसाद डेराइते बंगला सँ बाहर भागल। बाहर देखैत अछि एकटा कार ठाढ़ छै आ दू टा खूंखार गुण्डा एकटा असहाय लड़कीके खिंचैत रावणक आलिशान बंगला दिस ल' ;जा रहल छै। रामप्रसाद घबरा गेल। ओ पाँच हजार रुपयाक चेक फेर सँ जेबी स' निकालि देखलक आ सोच' लागल कि ई सच्चे रावण छल की ओकर प्रतिरूप छल ? ओकरा किछ समझ मे नहि आएल। ओ ओत' स' लंक लागि भागल ओहि मे ओकरा अपन भलाई बुझना गेलैक।
रामलीला आयोजनक अध्यक्षके जखन एहि बातक पता चलल कि रामप्रसाद लग दसहजार रुपया इकट्ठा भ' गेल त' ओ दौड़ल - दौड़ल रामप्रसाद लग गेल आ कहलक ----- " रे भाई रामप्रसाद, सुनलियौ जे चन्दा मे दसहजार रुपया जमा भ' गेलौ ? चल आई राति सुरापान कएल जाए। की विचार छौ ?"
" देखु अध्यक्ष महोदय ! ई रुपया रावणक पुतला ख़रीदबाक वास्ते अछि। हम एकरा फ़ालतूक काज मे खर्च नहि क' सकैत छी। " रामप्रसाद विनम्र भाव सँ कहलक।
अध्यक्ष गरम भ' गेलाह। बजलाह --- " वाह रे हमर कलयुगी राम ! रावण जड़ेबाक बड्ड चिन्ता छौ तोरा ? चल सबटा रुपया हमरा हवाला करै, नहि त' ठीक नहि हेतौ। "
" ख़बरदार ! जे रुपया मंगलौं त' ! आहाँके लाज हेबाक चाही। इ रुपया मौज - मस्ती के लेल नहि बुझू आहाँ ? रामप्रसाद बिगड़ैत बाजल। एतै छै चन्दाक रसीद ल' क' घूम' बला छौड़ा सभक वानर सेना। चारु कात सँ घेर क' ठाढ़ भ' गेल। रामक जीत भेल। अध्यक्ष ( जे रावणक प्रतिनिधि छल ) ओहिठाम सँ भागल।

खैर ! रावणक पैघ विशालकाय पुतला खरीद क' आनल गेल आ विजयादशमी सँ एक दिन पहिनहि राईत क' मैदान मे ठाढ़ क' देल गेल। अगिला दिन खूब धूमधाम सँ झाँकी निकालल गेल। सड़क आ गली - कूची सँ होइत राम आ हुनकर सेना मैदान मे पहुँचल। जाहिठाम दस हजारक दसमुखी रावण मुस्कुराइत ठाढ़ छल। रावणक मुस्कुराहट एहन लागि छल बुझू ई कहि रहल हो कि " राम कहिया तक हमरा मारब' हम त' सब दिन जीबिते रहब। राम रावणक मुस्कुराहट नहि देख रहल छलाह। ओ त' जनताक उत्साह देखैत प्रसन्न मुद्रा मे धनुष पर तीर चढ़ौने रावणक पेट पर निशाना लगबक लेल तत्पर भ' रहल छलाह। कखन आयोजकक संकेत भेटत आ ओ तीर चलोओता। मुदा कमीना मुख्य अतिथि एखन तक नहि आएल छल। (ओहिना जेना भारतीय रेल सब दिन देरिये भ' जाएल करैत छैक ) आयोजक लोकनि सेहओ परेशान छलाह। आधा घंटा बीत गेल। अतिथि एलाह। आयोजकक संकेत भेल। आ ----- राम तुरन्त अपन तीर रावण दिस छोड़ि देलाह। तीर हनहनाईत पेट पर नहि छाती पर जा लागल। आ एहिकसँग धमाकाक सिलसिला शुरू भ' गेल, त' मोसकिल सँ पाँच मिनट मे सुड्डाह। बेसी रोशनीक संग रावण स्वाहा भ' गेल। ओकरा जगह पर एकटा लम्बा बाँस एखनो ठाढ़ छल। किछ लोक छाऊर उठा - उठा क' अपन घर ल' जाए लागल। (पता नै जाहि रावणके लोक जड़ा दैत छैक ओहि रावणक छाऊर के अपना घर मे कियाक रखैत अछि ?)
किछ लोक बाँस आ खपच्ची लेबक लेल सेहओ लपकल। ओहिमे एकटा रामप्रसाद सेहओ छल। लोक सब बाँस आ लकड़ी तोइर - तोइर क' बाँटि लेलक आ अपन घर दिस बिदा भ' गेल। रामप्रसाद बाँसक खपच्ची ल' क' रस्ता पर चलल जाइत छल कि एकाएक एकटा कार ओकरा लग रुकल आ एक आदमी ऊपर मुँह बाहर निकालि क' अट्टहास करैत बाजल - - - " की रावण जड़ा क ' आबि गेलौं ? एहि बेर ओ मरल की नहि ? हा - - - हा - - - हा - - - । " ओ वैह आदमी छल जे अपना आपके रावण कहैत पाँच हजार रुपयाक चेक देने छल। रामप्रसादक मुँह बन्न। घबराईते बाजल - - " जी - - - हाँ - - - हाँ - - - हाँ - - - , जड़ा देलियै। "
" मुदा ई बाँस आ खपच्ची कियाक ल' क' जा रहल छै ? रावण बाजल। " हँ , कहल जाईत छैक जे एहिसँ दुश्मन के मारला सँ ओकर हानि होइत छैक। " रामप्रसाद बाजल। " ठीक, त' एहि सँ लोक अपन बुराई के कियाक नहि अन्त क' दैत छैक ? एकरा घर मे रैखिक' तू सब रावणके जान मे जान आनि दैत छहक। तैं त' हम कहैत छी कि हम मरियो क' जीवित केना भ' जाएत छी ! रावण बाजल। ई सुनिते रामप्रसाद बाँस आ खपच्ची स' ओकरा हमला करबाक लेल लपकल, मुदा रावण कार चलबैत तुरन्त भागि गेल। ओ एखनो जीविते अछि।
कहानी का नाम : रावण मरता क्यों नहीं ?
लेखक : संजय स्वतंत्र 
पुस्तक का नाम : बाप बड़ा न भइया सबसे बड़ा रुपइया 
प्रकाशक : कोई जानकारी पुस्तक पर उपलब्ध नही
अनुदित भाषा : मैथिली 
अनुदित कर्ता : संजय झा "नागदह" 
दिनांक : 29/10 / 2017 , समय : 02 :11 am

कहानीक अनुदित नाम : रावण कियाक नहि मरैत अछि ?

शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2017

छठि मैया आ डूबैत-उगैत सूरुजके पूजा महत्व


छठि मैया आ डूबैत-उगैत सूरुजके पूजा के महत्व 


छैठ परमेश्वरी के पूजा समस्त मिथिलावासी लेल अति प्राचिन पारंपरिक पूजन समारोह थीक। सामूहिक रूपमें बेसीतर महिला लेकिन गोटेक पुरुष व्रतधारी सभ संग अनेको प्रकारके पकवान व ऋतुफल संग संध्याकालीन सूर्यकेँ हाथ उठाय नमस्कार अर्पण करैत पुनः उषाकाल भोरहरबेसँ छठि परमेश्वरी (उगैत सूरज) केर दर्शन लेल व्रतधारी करजोड़ि ठरल जलमें ठाड़्ह इन्तजार करैत छथि। सूर्योदय उपरान्त पुनः विभिन्न पकवान व ऋतुफल भरल डालासँ हाथ उठाय नमस्कार अर्पण करैत छठि मैयाके व्रतकथा सुनैत ओंकरी आ ललका बद्धी - ठोप लगबैत व्रतधारी अपन समस्त परिजनकेँ भगवान्‌केर शुभाशीर्वाद हस्तान्तरित करैत छथि। यैह पूजाके छैठक संज्ञा देल जैछ। क्रमशः मिथिला व आसपासके क्षेत्रसँ शुरु भेल ई पूजा आब समस्त संस्कृतिमें प्रवेश पाबि रहल अछि। आस्थाक बहुत पैघ उदाहरण थीक ई पूजा आ समस्त मनोवाञ्छित फल प्रदान करनिहैर शक्तिशाली छठि मैयाक पूजा लेल के आस्थावान्‌ उद्यत नहि होइछ आइ! 

व्रती (साधक) अत्यन्त कठोर नियम एवं शुद्ध आचार-विचार संग निर्जला व्रत करैत छथि आ शरदकालमें ठरल जलमें ठाड़्ह भऽ व्रती सूर्यकेँ जल-फलसँ हाथ उठबैत विशेषार्घ्यसँ पूजा करैत छथि, पूजा काल सेहो विशेष रहैत छैक। सच पूछू तऽ छठि मैयाके पूजा-अर्चनाके विधान देखि हम सभ नहि सिर्फ प्रभावित रहैत छी, बल्कि एकदम कल जोड़ि शरणापन्न अवस्थामें सेहो रहैत छी जे कहीं एको रत्ती गड़बड़ नहि हो नहि तऽ कखनहु साधनामें विघ्न पड़ि जायत आ तेकर दुष्परिणाम व्रतधारी एवं समस्त परिजन पर पड़त। बहुत गंभीर भावनासँ पूर्णरूपेण शरणागत बनि एहि पूजा में साधना करबाक महत्त्व छैक। लेकिन एतेक गंभीरताके रहस्य कि? कि बात छैक जे व्रत एतेक कठोर करय पड़ैत छैक? डूबैत सूरजके पूजा किऐक? आउ प्रयास करैत छी जे एहि समस्त रहस्य पर सँ पर्दा उठाबी। कम से कम आजुक नवतुरिया (हमरा समेत) लेल ई एक शोधक विषय अछि आ एहिमें सावधानीपूर्वक हम सभ मनन करैत आगू देखी!

सभसँ पहिने छठि मैया के थिकी? वा छठि मैया सूरजरूपमें कोना? 

बहुत रोचक प्रसंग कहल गेल छैक - कहियो नारद ऋषि व्यामोहित (नारी रूपमें आकर्षित) भेल छलाह। भगवान्‌ विष्णुकेँ मायासँ नारदकेँ एहि तरहक अवस्थाक प्राप्ति भेल छलन्हि आ कहल गेल छैक जे ई ताहि समय भेल छलन्हि जखन नारदजी कोनो कुण्ड (सरोवर)में संध्या करबाक लेल प्रवेश केने छलाह आ ताहि समय भगवान्‌के मायास्वरूपा एक नारी ओहि सरोवरमें अपन अंग-प्रत्यंग प्राच्छालन करैत रहलीह आ व्यामोहित नारदजी अपन संध्याके (सूर्य एवं गायत्री उपासना) बिसरि बस ओहि नारीके माया-दर्शनमें लागि गेल छलाह। हिनकर भगवान्‌के मायामें एहि तरहें व्यामोहित देखि सूर्य के सेहो हँसी लागि गेल छलन्हि जाहि कारणे सूर्यास्त सँ किछु समय उपरान्त धरि हुनक अस्त नहि भेलन्हि आ नारदके व्यामोहन छूटिते सूर्यक उपस्थिति देखि सभ बात बूझय में आबि गेलन्हि, तखनहि नारद सूर्यकेँ नारीरूप प्राप्त करबाक शाप देलाह जे बादमें प्रभुजीके मध्यस्थ कयलापर विमोचन करैत केवल एक दिवस लेल कायम राखल गेल, कार्तिक मासक षष्ठी (छठम) तिथिकेँ जेकर समय तेसर संध्या (सूर्यास्तसँ एक पहर पहिले) समय सँ अगिला संध्या याने भोरक सूर्योदय काल के एक पहर उपरान्त धरि नारी स्वरूपमें रहबाक बात तय भेल जिनका भगवान्‌ विष्णु छठि मैयाक शक्तिस्वरूपा नाम व वर प्रदान कयलन्हि। मिथिलामें यैह देवीक उपासना लेल पूर्वकालमें योगी-ऋषि द्वारा प्रजाकेँ उपदेश कैल गेल आ आदिकालसँ हिनक उपासनाक एक निश्चित विधान अनुरूप छठि मैयाक आराधना चलैत आबि रहल अछि। 

छठि मैयाक पूजाक महत्त्व कि?

सूर्यक परिचय सर्वविदित अछि। बिना सूर्य सभ सून्न! विज्ञान - ज्ञान - मान - आन - शान - सभ सूर्यके चारू कात, केन्द्रमें केवल सूर्य! नवग्रह, नक्षत्र, भूमण्डल, पंचतत्त्व, उर्जा, पोषण... हर बात के जैड़में सूर्य! सूर्यक उपासना संसार में आस्तिक-नास्तिक सभ करैछ। मिथिलामें जतय पुरुषवर्ग लेल संध्योपासनामें सूर्यकेँ जलक अर्घ्यसँ नित्य पूजा करैक विधान अछि, तहिना सूर्य नमस्कार समान प्रखर योग-साधना, नारीवर्गलेल सेहो नित्य तुलसी एवं सूर्यकेँ जलार्घ्य देबाक परंपरा रहल अछि। सूर्यकेँ भगवान्‌ मानल जायमें किनको कोनो आपत्ति कहियो नहि रहल अछि। नित्य समयसँ उदय, समयसँ अस्त, दिन व रातिक निर्धारण, अग्नि-वायु-वर्षा-मौसम आ समस्त अवयव जे जीवन लेल आवश्यक अछि तेकर दाता - चक्रवर्ती राजा के संज्ञा देल जाइछ सूर्यकेँ। ओ चाहे मनुष्यलोक हो वा आदित्य-वसु वा कोनो अन्य लोक; सभक राजा सूर्य! प्रत्यक्ष देवता के अधिपति सूर्य! साक्षात्‌ नारायण के - त्रिलोकस्वामीके प्रतिनिधित्व करनिहार सूर्य! हिनकर पूजा तऽ लोक नित्य करैत अछि। तखन यदि एक दिन (कार्तिक षष्ठी) हिनक विशेष रूप छठि मैया साक्षात्‌ शक्तिके भंडारिणी हम मानवलोककेर सोझां रहती तऽ के कृपापात्र बनय लेल नहि चाहत! अत: छठि मैयाके आराधना समस्त सखा-परिजन-राष्ट्र लेल कल्याणकारक होइछ। 

सूर्यकेँ प्रतिदिन प्रातः काल अर्ध्य देलासँ आ प्रणाम कएला सँ आयु, विद्या, यश आ बल के वृद्धि होइत अछि ।

आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने-दिने ।

चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम्‌ ॥


छठि मैयाके व्रतकेर नियम कि?




एहि व्रतमें तीन दिनक कठोर उपवास कैल जाइत अछि। चतुर्थी दिन पवित्र पोखैर वा नदीक जलसँ स्नान करैत एक बेर खयबाक परंपरा अछि जेकरा नहाय-खायके संज्ञा देल जाइछ। पञ्चमी दिन उपवास करैत सन्ध्याकाल लवणरहित गुड़सहित खीरसँ खरना कैल जैछ। षष्ठी दिन निर्जल व्रत राखि सूर्यास्त सँ पहिले एवं कतेको जगह सूर्यास्तक बाद पोखरि वा नदीके पवित्र घाट पर जलमें ठाड़्ह भऽ पकवान एवं फलादिक डालासँ अस्त होइत सूर्य जे आब शक्ति-स्वरूपा छठि मैयाक रूपमें परिणत भऽ गेल रहैत छथि तिनका प्रणाम कैल जाइछ, समस्त बन्धु-बान्धवके कुशलता एवं कल्याण लेल प्रार्थना कैल जाइछ, मनोवाञ्छित फल व व्रतक निष्ठापूर्वक सफलता एवं चरणमें अटूट भक्ति लेल प्रार्थना कैल जाइछ। पुनः उदयकालिक सूर्य याने छठि मैयाकेँ विभिन्न प्रकारक पकवान एवं ऋतुफलके डाला आदिसँ हाथ उठाय नमस्कार अर्पित करैथ व्रतक कथा श्रवण कैल जाइछ। 


छठि मैयाक व्रत कथा

एक छलाह राजा प्रियव्रत जिनक पत्नीक नाम मालिनी छलन्हि। राजा रानी नि:संतान होयबाक कारणे बहुत दु:खी छलाह। महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्ठि यज्ञ करौलन्हि, फलस्वरूप मालिनी गर्भवती भेलीह मुदा नौ महीना बाद जखन ओ बालक के जन्म देलीह तऽ ओ मृत अवस्थामें छल। एहिसँ राजा प्रियव्रत बहुत दुःखी भऽ आत्महत्या लेल उद्यत भेलाह। तखनहि एक देवी प्रकट होइत अपन परिचय षष्ठी देवीके रूपमें दैत पुत्र वरदान देनिहैर कहैत हुनका सँ अपन पूजा-अर्चनामें लीन होयबाक लेल उपदेश केलीह। राजा देवीकेर आज्ञा मानि कार्तिक शुक्ल षष्टी तिथि केँ देवी षष्टीकेर पूजा कयलन्हि जाहिसँ हुनका पुत्र-धनके प्राप्ति भेलन्हि। ताहि दिन सँ छठिक व्रतक अनुष्ठान चलि रहल अछि।

एक दोसर मान्यता अनुसार भगवान श्रीरामचन्द्र जी जखन अयोध्या वापसी कयलाह तखन राजतिलक उपरान्त सियाजी संग कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथिकेँ सूर्य देवताकेर व्रतोपासना कयलन्हि आ ओहि दिनसँ जनसामान्य में ई पावैन मान्य बनि गेल और दिनानुदिन एहि पावैनक महत्त्व बढैत चलि गेल जाहिमें पूर्ण आस्था एवं भक्तिक संग ई पावैन मनाओल जाय लागल।



 प्रवीण नारायण चौधरी

 के कलमसँ --









मंगलवार, 24 अक्टूबर 2017

छैठ गीत

     ||  छैठ  गीत ||


छैठक कोसिया कुरवार छै
चहुँ   घाटे  भरल कतार  छै 
सब  कोनियाँ  लेने छै ठार 
                   देखहिन        दाई         गे  |
                     राणा मैया,   छथिन्ह  सहाय 
                    देखहिन        दाई         गे  ||
हिनकर महिमा के नै  जनैया  
दया  दृष्टि  लय  सब कनैया  
इच्छा  सबहक   पूर्ति   करैया  
               देखहिन        दाई         गे  | 
                  राणा मैया,   छथिन्ह  सहाय  
                देखहिन        दाई         गे  ||
छठी   मैया   छथि  वर    ज्ञानी 
दुःख हरणी  जन - जन  कल्याणी 
ई      कहै   छै    बुढ़िया       नानी 
               देखहिन        दाई         गे  |
                  राणा मैया,   छथिन्ह  सहाय 
                 देखहिन        दाई         गे  ||
पान  फूल  फल  पीयर  केरा 
ठकुआ    भुस्बा  लड़ू   पेड़ा  
 कोनियाँ , ढाकी   भरल चंगेरा 
               देखहिन        दाई         गे  |
                  राणा मैया,   छथिन्ह  सहाय 
                 देखहिन        दाई         गे  ||
                        :-:
                   रचनाकार -
        रेवती रमण झा "रमण "


मो - 9997313751 

रविवार, 22 अक्टूबर 2017

छैठ


 || छैठ ||  

लू  साजि  सखी घाट लय  ढाकी  
 छैठक     कोसिया          कुरवार  | 
सजल अछि झुण्डक झुण्ड कतार 
कोकिल     कण्ठे  सुमधुर    वाणी  
छैठक    गीत  गाबैथ  मिथिलानी 
नव    ऑचर   पर  नाचय   नटुआ 
घुँघरु           के            झनकार || 
                        सजल  अछि -------
जेहन जिनकअछी कबूला पाती 
घाटे  भरल   तेहन  अछि   पाँती 
अस्सी  बरखक  बुढ़ियो  जल में  
कोनियाँ        लेने           ठार  ||  
                     सजल  अछि ---------
ठकुआ  भुसबा     लड़ू     पेडा 
पान   फूल    फल   पीयर   केरा 
हाथी  ऊपर सजल अछि  दीया 
ढाकी        में         कुसियार  ||  
                     सजल  अछि -------
हे    दिनकर , हे     राणा    मैया  
हमर  कियो  नञि  नाव  खेबैया 
बीच    भवँर   में उबडूब    जीवन 
अहिं        "रमणक "   पतवार  || 
             सजल  अछि -----
 चलू  सजि  ---छैठक  कोसिया ---
                       सजल  अछि -------

रचित - 
रेवती रमण झा "रमण "

शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2017

भ्रात - दुतिया

                       
                        ||     भ्रात- दुतिया   ||
                       


  उठि अन्हरौखे   आँगना   नीपलिअई
सब भरदुतिया के विध ओरिएलिअई

भैया अहन कठोर कीय भेलिअई यौ
नै         एलिअई          यौ  ।।
                                  भैया........
मंगितौ  ने  साड़ी,  ने  मंगितौ रुपैया
अबितौ, नयन भरि देखितौ यौ भैया

महल  बुझै  छी, ई  टुटली मरैया के
की    जानि   आहाँ  डेरेलिअई  यौ
नै   एलिअई यौ       ।।              
                                भैया..........

कत  सिनेहे  सॅ  भानस   केलिअई
छाल्ही भरल दूध छाँछ पौरलिअइ
तरल परोड़ , तरल पात कौआ     
तिलकोरो आहाँ लय तरलिअइ यौ
नै एलिअइ यौ।।                      
                              भैया..............

भरि पोख कानि-कानि नोरे नेराओल
नहिरा वियोग कुदिन-दिन गाओल   
उलहन भरैया ननदि सौतिनियाँ।     
दियौरो के ताना सूनलिअई यौ।      
नै एलिअइ यौ।।                         
                         भैया..............

किरण डूबैत धरि बाटे जोहलिअइ
     सरिसो के फूल जेकाँ लोटि खसलिअइ
"रमण" मलान भेलौ यौ भैया          
       माय बिनु नैहर बुझलिअइ यौ              
नै एलिअइ यौ।।                       
                             भैया...........      

रचनाकार


            
रेवती रमण झा " रमण "
गाम- जोगियारा पतोंर दरभंगा ।
फोन - 09997313751.
                         
                   



                       

बुधवार, 18 अक्टूबर 2017

दीयावाती

|| दीयावाती ||

मनुहारी       अति    दिव्य 
सघन  वर  दीपक माला  | 
बाल     वृन्द  बहु  ललित 
चारु    चित चंचल बाला || 
आयल  उतरि  अपवर्ग धरा 
रे, चित   चकित चहुँ ओर  | 
फुल झरी झरि रहल लुभावन  
मन       आनंन्द    विभोर  || 
हुक्का   लोली  बीचे  अड़िपन 
 चमकि  उठल  अच्छी अंगना | 
 मृगनयनी  चहुँ चारु दीया लय 
रून - झुन   बाजल  कंगना || 
सिद्धि  विनायक मंगल दाता  
भक्ति    भाव       स्वीकारु  | 
अन - धन  देवी लक्ष्मी मैया 
"रमणक " दोष  बिसारू || 
लेखक - 
रेवती रमण  झा "रमण" 


मंगलवार, 17 अक्टूबर 2017

दियाबाती गीत

|| दियाबाती  गीत ||   


मंगल    दीप     चहूँ   दिस   साजल 
पग -   पग        पर       अभिराम  | 
चौदह     वरस    बनवास  बिताकय 
आइ      एला       मोर      राम - - || 
                 देखू   आइ  एला --- 

दीपहि      दीप     कतारे      लागल  
चट- दय    जेना   अन्हरिया   भागल 
  जगल जन - जन , पुलकित अछिमन  
 सभतरि         देखू        सुख   - धाम | 
देखू    एला    लखन    सीया    राम  || 
                   देखू  आइ  एला --- 
अड़िपन  उपर   कलश   शुभ  साजल 
ढ़ोल   मृदंग     ख़ुशी    के       बाजल  
 मंगल   गीत   सखी   मिलि   गाओल 
मुदित          अयोध्या            धाम  | 
देखू      एला   लखन  सिया     राम || 
       देखू  आइ  एला --- 
सब       शोक       संतापे       ससरल 
हास्य    विनोदे    सभतरि     पसरल 
"रमण "   मुदित मन नाचय  पुलकित 
शोभा        निरखि              ललाम  | 
देखू      एला   लखन  सिया     राम || 
                    देखू  आइ  एला --- 
रचित -
रेवती रमण झा "रमण "

गुरुवार, 12 अक्टूबर 2017

दियावाती

|| दियावाती || 


चारूकात  चकमक  दीप  जरैया 
जहिना      पसरल    भोर   रे  | 
लक्ष्मी ठारि हँसै छथि खल-खल 
देखू     अंगना      मोर       रे  || 
पसरल   दीया   कतारे  सभतरि 
परहित        काज        करैया  | 
अपन     गाते    सतत   जराकय 
जग    में    ज्योति     भरैया    || 
अधम - अन्हरिया भागल चटदय 
धरमक    भरल      इजोर     रे  || 
                       लक्ष्मी  ठारि--  देखू   अंगना --
नीपल   आँगन  ,अड़िपन ढोरल 
चौमुख बारि कलश पर साजल  | 
 छितरल  चहुँ दिश  आमक पल्लव 
सिन्दूर    ठोप  पिठारे   लागल  || 
आँगन  अनुपम रचि  मिथिलानी 
लाले      पहिर     पटोर          रे || 
                   लक्ष्मी ठारि-- देखू   अंगना --
एक  दंत   मुख  वक्रतुण्ड  छवि  
गौरी           नन्दन          आबू   | 
दुख    दारिद्रक     हारणी   हे  माँ 
 ममता         आबि        देखाबू   || 
 अति  आनंदक  लहरि   में टपटप 
"रमणक "    आँखि   में  नोर   रे ||
                          लक्ष्मी ठारि-- देखू   अंगना --
रचित - 

रेवती रमण झा " रमण" 

सोमवार, 2 अक्टूबर 2017

दिल्ली में सभागाछी (वर-बधु परिचय सम्मेलन)

दिल्ली में सभागाछी (वर-बधु परिचय सम्मेलन)
( पंजीकरण केर अंतिम तिथि : 05 अक्टूबर)
विवाह योग्य लड़का आ लड़की के अभिभावक के लेल योग्य वर आ बधु के चयन सभ स' कठिन काज अछि। एहि समस्याक समाधान हेतु 
दिल्ली में अभूतपूर्व ऐतिहासिक कार्यक्रम के आयोजन कायल जा रहल अछि , जाहि में अभिभावक योग्यतानुसार सरलता आ सुगमता स' वर आ वधू के चयन क' सकताह ।
कार्यक्रम में सम्मिलित हेबाक लेल विवाह योग्य संभावित वर आ वधू के परिचय , बॉयोडाटा भेजू । हजारों के संख्या में उपलब्ध 'कथा' में अपना उम्मीदवार लेल योग्य कथा के चयन करू । 05 नवंबर के दिल्ली के हॉज खास क्षेत्र में स्थित 'श्रीफोर्ट सभागार' में आधुनिक सभागाछी में उपस्थित अभिभावक , वर , वधू स' आमने सामने बातचीत करू आ योग्य एवं सफल जोड़ी बनेबाक लेल आगू बढू ।
समस्त मैथिल भाई बन्धु , सखी बहिनपा स' अनुरोध जे एहि महान सामाजिक कार्य के लेल योग्य वर-बधु के बॉयोडाटा तुरंत पठाऊ । परिचय मेल स' भेज सकय छी । सीधा वेबसाइट पर अपलोड क' सकय छी । WhatsApp क' सकयत छी । कोनों प्रकारक जानकारी के लेल फोन क' सकय छी ।
पोस्ट के शेयर अवश्य करी । एहि महान सामाजिक कार्य में हर एक मैथिल स' सहयोग अपेक्षित ।
सुनीत ठाकुर ,
कार्यकारिणी सदस्य, मैथिल समन्वय समिति, दिल्ली । संपर्क सूत्र : 8700615846, 9711117728.
WhatsApp: 9711117728
मुंबई टोलफ्री नं: 18001202714
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