गुरुवार, 30 जुलाई 2015

मधुबनी( मिथिला) पेंटिंग

Sunit Thakur -
माँ जानकी और भगवान श्री राम के  विवाह सअ शुरू भेल इ कला ,आब पूरा संसार में प्रसिद्द भअ गेल अछि ! मिथिला के बहुत गाम जेन
राटी,जितवारपुर,मंगरौनी आदि , अहि कला के प्रति समर्पित अछि !पहिने इ कला उच्च जाति के महिला द्वारा दीवार पर कायल जाइत छल ! लेकिन समय के साथ साथ जाति के बंधन टूटल, आ मिथिला पेंटिंग दीवार स कपड़ा और कैनवास पर उतरि गेल अछि ! आजुक आधुनिक युग में अखनो चित्र में भरल गेल रंग , घरेलु चीज़ ,जेना हरैद,केराक पात ,पीपर छाल,दूध,सिन्दूर ,काजर ,हरियर पात आदि सअ बनायल जाइत अछि !
1934 में मिथिला क्षेत्र में एक टा भूकंप आयल छल! तत्कालीन सब - डिविजनल अधिकारी विलियम जे आर्चर अपन पत्नी मिल ड्रेड के साथ क्षेत्र के भ्रमण के दौरान ,ढहल दीवार पर सुन्दर चित्रकारी देखि दंग रहि गेला !विलियम अहि विलक्षण चीज़ के फोटो खींच कअ , लेख व् फोटो के माध्यम सअ पूरा दुनिया के अहि कलाकृति सअ पहिल बेर परिचय करेलैथ ! आजादी के पश्चात भारतीय हस्तकला बोर्ड के निदेशक पुपुल जयकर , मधुबनी भाष्कर कुलकर्णी के भेजी कअ अहि कला के नमूना सब मंगवेलैथ और देश विदेश के प्रतिनिधि सब के देखेलैथ ! मिथिला पेंटिंग के अंतर्राष्ट्रीय ख्याति दियाबय में "ललित नारायण मिश्रा" जीक बहुत पैघ योगदान छैक ! पहिल बेर 1970 में , जगदम्बा देवी के राष्ट्रीय पुरष्कार देल गेल !1975 में जगदम्बा देवी के पद्मश्री और सीता देवी के राष्ट्रीय पुरष्कार देल गेल ! अहि के बाद तअ गंगा देवी, महासुंदरी देवी, गोदावरी दत्त, शांति देवी, विभा दास आदि प्रतिभावान महिला सब के नाम के डंका पूरा दुनिया में बाजय लागल !फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका और जापान में अहि कला के विशेष प्रचार प्रसार भेल !1988 में जापान के हासेगावा में मिथिला लोकचित्र कला म्यूजियम स्थापना भेल ! 
फ्रांस के विश्वप्रसिद्ध पेंटर "पाब्लो पिकासो" महासुन्दरी देवी के पेंटिंग स प्रभावित भअ हुनका पत्र लिखने रहैथ “लोग हमरा पैघ कलाकार बुझैत छैथ, लेकिन जखन हम अपनेक कला देखैत छी, तअ पाबैत छी कि अहाँ हमरा सअ पैघ कलाकार छी " !

मंगलवार, 28 जुलाई 2015

कलाम सर

आजुक रामायणक राम चलि गेलाह,
इंसानियतके एगो भगवान चलि गेलाह.

लिखि अन्तरिक्षमे भारतक नाम,
विज्ञानक सुच्चा हनुमान चलि गेलाह.

गुमान करए जनिका पर सगरो जमाना,
ओ ज्ञानी-श्रष्टा-महान चलि गेलाह.

साओनक मासमे झहरि रहल नैना,
अपन दुलरुआ कलाम चलि गेलाह.

सोमवार, 27 जुलाई 2015

अपन मिथिला देश

घुइर चलू घुइर चलू मैथिल
अपन मिथिला देश
बाट जोहै छथि माए मिथिला,
आँचर मे लऽ स्नेहक सनेश।
उजइर पुजइर गेल छै ओकर
सभटा खेत पथार
गाम घर सभ भक्क पड़ल छै
डिबिया बाती नै जरै छै
देख ई दशा
माए मिथिला के फाटै छै कुहेश ।...
जाहि धरा पर बहैत अछि
सात सात धार
आई ओहि धरा के छाती अछि सुखाएल
खाए लेल काइन रहल अछि नेन्ना भुटका
माइर रहल छथि माए मिथिला चित्कार ।
देखू देखू हे मिथिलावाशी केहन आएल काल
देब भूमि तपोभूमि
आई बनल आतंकक अड्डा
जतऽ कहियो पशु पंछियोँ वाचैत छल शास्त्र
आई ओहि धरा सँ सुना रहल अछि बम बारुदक राग ।
हे मैथिल!
दोसरक नगरी रौशन केलौँ
छोइड़ अपन देश
आबो जँ नै आएब मिथिला
तऽ भऽ जाएत मिथिला डीह
कुहैर कुहैर क कहैथ माए मिथिला ई..
चलू चलू यौ मैथिल अपन मिथिला देश
फेर सँ बनेबै ओहने मिथिला
देखतै देश विदेश..जय मिथिला

गुरुवार, 23 जुलाई 2015

किया अतेक प्रदेश रहैछी


सुनु योव मिथिलाक लाल कहैछी,
किया अतेक प्रदेश रहैछी ।
मायक आंचर  सब दिन भीजैय,
नीत आंहांक बाट जोहैय,
सोंचैय आइ बोवा एता,
खूब कमाक ढोवा लोवता,
पर हम कोड़ी कि करब
आब त" किछ दिम मे हम मरब,
किया नय बाबू घर अबै छी,
सुनु योव मिथिलाक लाल कहोछी,
किया  अतेक प्रदश रहै छी॥
बोवा बूच्चि नीत कनैय,
हाटक दिन क" बाट तकैय,
कहैय आई बाबू औता ,
झोरा मे खूब सनेश लोता,
आई त' हम खूब खाएब,
बाबू के संग खेलाएब,
कन्हा प बैस घूमअ जाएब,
सांझ क बोवा खूब कनैय,
कैन्ते-कैन्ते शूईत रहैय,
नीत व वतबे काज करैय,
कीया ओकर बच्पन छिनै छी'
सुनु योव मिथिलाक लाल कहै छी'
कियि अतैक प्रदेश लहै छी॥
शुनूयोव सजनी कि कहैय,
भितरे भितरे उ' घूटैय,
निरजान फोटो सं बात करैय,
बैमान बालम किया नइ अबै छी,
पिया मिलन ले' हम तरसै छी,
सुनू योव मिथिलाक लाल कहै छी,
किया अतैक प्रदेश रहै छी॥
बड कमेलों बड कमेलों ,
कौरी ले मिथिला संन देश  गमेलों,
दलानक दिया नित जरैय,
आब नय कियो संगतूरिया बैसैय,
काठक कूर्सि सेहो कनैय,
बूरहः बाबू जी बस मोन रहै य,
मने-मन वहो कनैय,
हे बिधाता आगूक जिनगी कोना जैत,
कि लालक कांधा नसिब नय हैत,
आंहा ले जे खून पसिना बहोलक,
अंगूरी पकैर"क" उ चलोलक,
कन्हा  प' बैठा "क' मेला घुऽमोलक,
आइ उ' कान्हा झूइक गेल ,
आंहाक साथ किया छूइट गेल,
कि "ई' सबहक किछ मोल नय छी,
सूनू योव मिथलाक  लाल कहैछी,
किया अतैक प्रदेश रहै छी॥
प्रदेशिक दूखक सूनोलों बानी,
नय हम कवि नय कोनो ग्यानी,
टूटल-फुटल श्ब्द के जोइर देब,
किछ गलत कहलों त माफि देब,
दूनू हाथ जोइर प्रथना करैछी,
सूनू यव मिथिलाक लाल कहै छी,
किया अतैक प्रदेश रहै छी"॥?
   

सोमवार, 20 जुलाई 2015

झुठि अभिमान

कुर्ता ,धोती ,पाग माथ ध',
झुठहि पोसल अछि अभिमान,
द्वेश-क्लेश सब मोनहिं पोसल,
पाबि करब कि एहेन सम्मान ?

जे अपनहिं संग अन्याय क' रहला,
ओ कि करता अनका संग न्याय ?
बेर-बेर अपने अपराधी बनि क',
कहब उचित गप ककरा सँ जाय ?

हृदय हमर अछि साफ यौ भैया ,
मधुर बोल सुनि पिघलल जाय ,
डेग - डेग ई प्रपंच देखि क' ,
मोन करय मरितौं माहुर-बिख खाय ||

शनिवार, 18 जुलाई 2015

आऊ सूनु कने बात हमर....

ऊ सूनु कने बात हमर..... 2
नै पकरू अहाँ कान हमर,
कहै छि हम आई कनी अप्रियगर,
मुदा पिबहे पडत क्रोधक जहर,
अहंकार आ क्रोध के,
कंठे में धरु,
अहाँ आब नीलकंठ बनू,
जेकरा पुजैत एलहूँ सब दिन,
वैह महादेव बनू अहाँ,
ध्यान करू,
कनि ज्ञान करू,
विज्ञानक अहाँ संग धरु,
परंपरा के बुझु अहाँ,
तर्क तथ्य स तौलू अहाँ,
कसौटी पर कसलाक बादे,
ओकरा अहाँ अंगीकार करू,
अंध मोहि ध्रितराष्ट्र जँका,
आ  गांधारी ने बनू अहाँ,
हिसाब करू,
कनी विचार करू,
अलग अलग विधा स साक्षात करू,
अध्यन करू,
निर्माण करू,
श्रीजनात्मक्ताक अहाँ आयाम बनू,
तास छोडू,
भाँग छोड़ू,
बिना बात के बात छोड़ू,
अपन बड़ाई के राग छोड़ू,
दलानक बैसार छोड़ू,
राजनीत के कौचर्य छोड़ू,
आब समय नै भोज भात के,
आब समय अई समय संग चलै के,
उच्च अध्यन में पाई लगाऊ,
व्यपार बाणिज्य स हाथ मिलाऊ,
अपन सहजता अपन शरलता,
अपन दर्शन के और बढ़ाऊ,
इतिहास में नै,
आब बर्तमान के,
अपन कर्मठता स सजाऊ,
विज्ञान के ज्ञाता बनू,
दर्शन में छलहूँ अग्रणी,
आब विज्ञानक बारी अई,
पूजा पाठ के विज्ञान स जोरू,
नियम निष्ठा के स्वास्थ्य स जोरू,
तहने टा कल्याण हैत,
जहने पान माछ मखान स उबरब,
खेबा टा के सिर्फ बात ने करब,
साँस साँस में ध्यान करब,
आ बात बात में विज्ञान,
गणित गणित के  चर्चा में,
तकनिकक आधुनिकता में,
समय अपन पूरा बितैब,
कनी याद करू,
सीता उठाबै छलीह शिव धनुष,
आ अहाँ दबल छि दहेज़क  दुर्बलता  स,
गाम गाम नशा में डूबल,
कुंठा के निक्षेप स भरल,
आरोप आ प्रत्यारोप स उबरु,
अपना के अहाँ कला स जोरू,
आब समय विश्रामक नै अई,
आब परिश्रम के अई जरूरत,
जनक के गीते टा नै गाऊ,
फेर जनक जँका विज्ञानक हर चलाऊ.
ज्ञानक मटकुर में सीता निकलतिह,
लक्ष्मी स भरपूर धरती,
राम पुरुषार्थ स्वयं औताह,
सीता के वरन करतामे
कतौ दुख के बास नै हैत,
सबहक मोन निर्मल भ जैत,
माता पिता ने डेरैल रहताह,
बाल बच्चा के पढैल करताह,
गाम गाम में हैत विज्ञानक चर्चा,
हर्षित मोन मे
By Pawan Kumar Jha

गुरुवार, 16 जुलाई 2015

एस.एन. झा के गजबे दुनिया- हास्य धारवाहिक

मैथिली भाषा आ मैथिली मीडिया जगत के लेल एकटा अपार हर्ष आ गौरव के विषय ऐछ जे दूरदर्शन बिहार केंद्र एक टा साप्ताहिक हास्य धारवाहिक “एस.एन. झा के गजबे दुनिया” के प्रसारण अहि 16 जुलाई स’ सब वृहस्पति क’ सायं 6:00 बजे स’ कर’ जा रहल ऐछ.. मैथिली के अखन तक के इतिहास में ई दोसर धारावाहिक ऐछ जकर प्रसारण दूरदर्शन कर’ जा रहल.. एहि धारावाहिक केर निर्माण 
Bhavesh Nandan Jha निर्देशन में अप्पन प्रोड्क्शन हाउस “आर्द्रा मूवीज़ (प्रा.) (Aardra Movies Pvt. Ltd.)लिमिटेड” क’ रहल ऐछ. धारावाहिक “एस.एन. झा के गजबे दुनिया” के टीम अहि प्रकार स’ ऐछ– निर्माता आ निर्देशक– भवेश नन्दन (Bhavesh Nandan Jha), मुख्य कलाकार- अनिल मिश्रा (Anil Mishra) आ रौशनी झा(
Roshni Jha ), पटकथा- विकास झा, सिनेमैटोग्राफी-खालिद अब्बास, सम्पादन- एल.के. शशि, कार्यकारी निर्माता- मुकेश चन्दन, प्रशांत कुमार, गुंजन कुमार, सहायक निर्देशन- अविनाश प्रभाकर, अमिताभ भूषण, ओमप्रकाश गुंजन, अपर्णा झा.. एहि धारावाहिक के सफलता के लेल अपने सब सुधीजन के सहयोग आ शुभकामना के आकांक्षी छी..

याद राखब प्रतेक बृहस्पति  दिनक के साँझ ६ बजे  सं --

बुधवार, 15 जुलाई 2015

अहाँ बिनाकs जिनगी !!

अहाँ बिनाकs जिनगी !!
किए हमरा अहाँ एतेक तड़पबैत छी ,
ई तड़प आब हमरा सहल नई जाइय !
ई जिनगी दू दिनके अछि , बस
अहाँ बेगर हमरा जियल नई जाइय !!
अहाँ किए हमर दिल सँ दूर भगैत छी ,
दूर जाक हमर दिल दुःखा रहल छी !
प्रेमकs वादा भुइल रहल छी ,
बिच बाट पs किया साथ छोइड़ रहल छी !!
केने छलौं वादा अहाँ वादा सात जनमके,
जीवनसाथी बनब हम जनम - जनमके !
किए वचन तोइड रहल छी ,
हमरा छोइडक अहाँ कत जारहल छी !!
हमरा सँ की भेल एहन गल्ति जँ ,
अहाँ गेलौं हमर दिल तोइडक !
हम जिय नई सकब अहाँ बिन रहिक ,
किए गेलौं अहाँ हमरा अकेला छोइडक !!
किए हमरा अहाँ एतेक तड़पबैत छी ,
ई तड़प आब हमरा सहल नई जाइय !
हम अही पs आश लगौने छी , बस
अही पर आश लगौने छी

सोमवार, 13 जुलाई 2015

मैथिली सम्मेलनक बैठक संपन्न भेल - मुम्बई


Dharmendra Kumar Jh 
मुम्बई ---


  दिनांक १२.०७.२०१५ के रवि दिन मुंबई स्थित नालासोपारा में दिसम्बर में होमय वाला अंतर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलनक केर बैठक संपन्न भेल और कमल जी, धनंजय झा जी केर देखरेख में ई महान मैथिल सम्मलेन होयत, निर्णय अनुसार शायद ई एखन धरि भेल तमाम सम्मलेन स बेहतर हओयत। तुरंत एही मीटिंग के बाद हमर सभक दहेज़ मुक्त मिथिला द्वारा कार्यक्रम भेल जाहि में दहेज  मुक्त  मिथिलाक  संरक्षक पंडित धर्मानंद झा (PT Dharmanand Jha) जी अपन वचन पूर्ति करैत अपन पुत्र के विवाह दहेज़ मुक्त ठीक कैलथि से शुभ समाचार सब आगंतुक लोकनि के सुनेला। हुनकर उठाओल कदम समाज में एक टा उदहारण अइछ और प्रेरणादाईक ,  सेहो लोक के एही स सिखबाक जरुरत अइछ। और सब स नव गप हमरा सब दहेज़ मुक्त मिथिला महाराष्ट्र इकाई के तरफ स जल्दिए दहेज़ पर आधारित एक टा नाट्य मंचन करब मुंबई (विरार) में जाहि में मैथिली फिल्म आ नाटक स जुरल कलाकार सब अपन प्रस्तुति स दहेज़ रूपी दानव के सफाया करय में दहेज़ मुक्त मिथिला के संग देता एही नाट्य मंचन में दहेज  मुक्त  मिथिला अभियानी भाई धनंजय झा() जी, भाई राम नरेश शर्मा(R Naresh Sharma) जी, और महाराष्ट्र सचिव भाई राजेश राय (Rajesh Rai) जी के विशेष् सहयोग छैन्ह। 

   बैसार / मीटिंग में उपस्थित संरक्षक महोदय पंडित धर्मानंद झा जी, राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री पंकज झा (Pankaj Jha )जी, प्रोफ के के झा जी , श्री एस सी मिश्र जी , पंडित पी के मिश्र जी, बिनीत चौधरी जी, पत्रकार के के झा जी, एवं अन्य बहुत रास दहेज़ मुक्त मिथिलाक अभियानी सब गोटे अपन बात राखला। मीटिंग में फिल्म स जुरल लोक सब सेहो उपस्थित छलाह जाहि में (सस्ता जिनगी फेम गजराज जी) भाई राजीव जी, राहुल सिन्हा (Rahul Sinha)जी, रेनू जी, पुन्नू जी, एवं और बहुत रास कलाकार सब उपस्थित छलाह। ई पहिल नाट्य मंचन जल्दी मुंबई (विरार) में होयत और खास क मुंबई में रहनिहार मैथिल स नम्रा निवेदन जे जहा कही मैथिली नाट्य मंचन होय सपरिवार जा क देखू आ सीखू। 


जय मिथिला जय 
दहेज़ मुक्त मिथिला परिवार 


रविवार, 12 जुलाई 2015

कास हम आहांक दिवाना रैहतौं

मोन परैया आहांक नसीली अखि ,
                आहांक रसीली होंट,
                 आहांक ई मुस्कान ,
 कास हम आहांक दिवाना रैहतौं  !

याद आबैया आहांक कोयल सन आवाज,
                   आहांक हिरनी सन चाईल ,
                   आहांक पतली कमर ,
 कास हम आहांक दिवाना रैहतौं  !

नजर आबैया आहांक नाकक नथुनियां ,
                    आहांक पैरक पैजुनियां ,
                    आहांक हाथक चुरी ,
कास हम आहांक दिवाना रैहतौं

राइत राइत भइर आबैं छी अहीं सपना मे ,
नींद नहिं होइया आब हमरा अंगना में ,
आहॉ ई किया नहि बुझलियै जे
कास हम आहांक दिवाना रैहतौं

शनिवार, 11 जुलाई 2015

चुटकुल्ला

रिजल्ट निकलला के बाद लड़का�� अपेक्षा लड़की के रिजल्ट जाय्दा बढ़िया छल....

प्रभाकर चौधरी नबल सं : नबल हमरा तऽ होय या की हम बड़की पोखेर में डूईब कऽ मरी जय.....

नबल : धुरी जी महराज आहा हमरा कहे छी , हमर बाबु कहेत छथि जे रोउ बौउया आब तुहूँ सल्बार
सूट पहिरल कर तऽ तोरो देख कऽ पास कऽ देतो...

रावरी देवी रिक्शा में पैर बाहर कऽ-कऽ बैसल छल...

रिक्शा ड्राइवर - पैर अंदर कऽ लिय मैडम....

रावरी देवी- नै, रस्ता में नीतीश मिलत त ओकरा लात मरबाक या कैल हम भाल्पट्टी बजार जा रहल छलो तऽ ओ हमरा आंखी   मारी कऽ भागी गेल छल....

पं ताराकांत झा

पं ताराकांत झा
.
मैथिल मंच द्वारा सम्पूर्ण मैथिल के एक मंच पर आनय के प्रेरणास्रोत....हमरा सब सन हजारों मैथिल के मिथिला राज्य के लेल जागरूक करयवला महान विभूति छलथि स्व. पं. ताराकांत झा....
.
हुनक स्वप्न रहनि सम्पूर्ण मैथिल के एक मंच पर जोडि मिथिला राज्य के निर्माण लेल रूद्र आँदोलन कय क अपन अधिकार...अपन "मिथिला राज्य" हासिल करी |
.
आजुक दिन में "भीख नहि अधिकार चाही, हमरा मिथिला राज्य चाही" जे नारा अछि ओ हिनके देल छनि....
विडंबना अछि जे नारा सबगोटे के याद छनि मुदा हिनका लोक बिसरि रहल छनि मात्र एक साल में...

जय मिथिला....
जय जय मैथिल.....

तैयारी छै जयबा लेल

तैयारी छै जयबा लेल।

वयस मारलक चारिम थापड़। आन्हर आँखि कान भेल पाथर।
नहि सूनी नहि देखी आब। करू नीक बा खून - ख़राब।
नेता लूटू, खाउ, पकाऊ। जाति - जाति कें खूब लड़ाऊ।
धर्मक ठेकेदार कहाऊ। खूब अधर्म के पाठ पढाऊ।
बेचू बेटा‚ लिए दहेज़। खाउ कन्यागतक करेज।
पुत्रवधू के आगि लगाउ ।राम राम सत चिता सजाउ।
पूर्वज के करिऔ गुणगान। हम छी मैथिल‚ हम महान।
भाई- भाई मे करू लड़ाई। घर घराड़ी बाँटू आई।
दीन हीन सँ खेत लिखाउ। संस्कार के पाठ पढ़ाउ।
माय बाप के करिऔ भिन्न। स्वयं पलंग पर सुखक निन्न।
एक दोसर के खींचू टांग। आगाँ बढ़य ने अपन समांग।
नहि भेटय जँ सहजहि भांग। करू विदेशी दारूक मांग।
उपजत सहजहिं गप्पक खेती। खूब बघारू अप्पन सेठी।
बना लिऔ मिथिला के नर्क। "विजय" के की पड़तै फर्क।
सकारात्मक "विजय" भेल। तैयारी छै जयबा लेल।

मोन करैया गामे रैहतौं

मोन करैया गामे रैहतौं












पिपरक छांव आ आमक गाछी।
मोन परैया मिथिला क माटी।।
बैठल बांधि मचान रहितौं,
मोन करैया गांम रहितौं।
गांमक खेत पोखैर खऽता।
मोन परैया बच्चा बच्चा।।
बच्चा बनि ने सयान रहितौं,
मोन करैया गांम रहितौं।
शहरक शोर आ शहरक राती।
मोन परैया सांझक बाती।।
देखैत रातिक चांन रहितौं,
मोन करैया गांम रहितौं।
आपन दुःख कहु की यौ भैया।
भोंकल जेना हिया मे कोनो सुईया।।
हमहु अपन ने आन रहितौं,
मोन करैया गांम रहितौं।

शुक्रवार, 10 जुलाई 2015

कोबरक रुसनाई









मऽन पड़ल हमहूँ छलौं रुसल
कोहबर घर में भईर दिन घुसल
सभकियो  मनेलक
सभ कियो जगेलक
कोर्थू वाली  सरोहजनी देली  आवाज
ठाकुरजी की चाहीं, कथिलाऽ छैथ नाराज
शंकरलोहार सँ रसगुल्ला आयल, आशापुर सँ  पेरा
उज्जैना सँ जिलेबी आयल, बहेड़ा सँ केरा
हरिपट्टी सँ मामा एलाह
हाबीबुआर सँ गामा एलाह
बिसरा गेल  किया नाराज भेलौं
कोन बात पर मौनी महाराज भेलौं
भईर गाम खबर इ पसरल
कारी मिशर के जमाय किया रुसल
कनियाक कननाई देखल नञि गेल
रसगुल्ला मिठाई छोड़ल नञि गेल
भुखले भईर दिन हालत छल पस्त
मुदा शंकरलोहारक रसगुल्ला छल मस्त













C A PAWAN KUMAR JHA 

गुरुवार, 9 जुलाई 2015

मिथिला नगरी देश हमर

मिथिला नगरी देश हमर
मिथिला नगरी देश हमर अछि
सुन्दर आ विशाल यौ ।
अप्पन भाषा भेष हमर अछि
दुनियामे कमाल यौ ।।
मिथिला सन पावन धरती
आओर कोनो ने धाम यौ ।
एहन रिति–प्रीति कतऽ
पावए दोसर ठाम यौ ।।
मठ–मंदिरकऽ छवि कि कहु
देखति आँखि रसाएत यौ ।
भक्त जनक अछि मेला लागल
देखू साँझ परात यौ ।।
भक्ति भाव सँ मन भरल अछि
बच्चा आओर जुवान यौ ।
राम सीताकऽ सुमिरन कए
निकलैत अछि सब काम यौ ।।
धन्य अछि मैथिल, धन्य अछि
मिथिला नगर यौ ।
सीताकऽ पवित्रता सँ सिँचल अछि
सागर यौ ।।
धनुषक्षेत्र आ गंगासागरकऽ
शुद्ध जल कमाल यौ ।
अन्न बस्त्र सँ भरल नगरी
दुःखक कोन सवाल यौ ।।
महछि मैथिल, मिथिला अप्पन
देश अछि कमाल यौ ।
नै जायब हम काशी तिर्थ
अपने नगर विशाल यौ ।।











सी ए पवन कुमार झा 

कठजीब

कठजीब

मोन मे माया, भारी काया,
आहां सदखन ओझरायल छी।
कहै छी संगी किछ अधलाहे,
आहां बहुत भरमायल छी।
घोर अनथ॔ भ रहल अहिठाम,
आहां तैयौ ऊंधायल छी।
लुट खसोट बबाल मचल या,
आहां तैयौ अलसायल छी।
दुल्हा बनि आहां बिका रहल छी,
किछु पैसा क लोभ मे।
तैयौ आत्म सम्मान नय जागेऽ,
केहन आहां कठजीब छी।
मै बहिनक सम्मान लुटैया,
अहिठाम आंखिक आगु मे।
तैयौ बनि निरजीब रहैछी, 
नय बल आहां केर बाजु मे।
नय जागब त और धकियाअत,
गिरब गत॔ के सागर मे।
कहाऽ पवन सुनू यौ संगी,
नय आहां ऐना कठजीब बनु।
हार मांसक देह बनल या,
आऽबो आहां अधीर बनु।
भागि पराय मरैय सब पापी,
आहां एहेन हुंकार भरु।

 C A  PAWAN KUMAR JHA 

सोमवार, 6 जुलाई 2015

विद्यापतिक साहित्यमे सामाजिक सन्देश



   
  संसारमे एहन बहुत कम कवि होएताह जे जीवनमे एक्कहुटा महाकाव्य लिखनहि विन महाकवि कहबैत होथि। एहन व्यक्तित्व मैथिल कवि कोकिल विद्यापतिए भेलाह। तत्कालीन समयमे विद्वता आ प्रज्ञा प्रकटीकरणक लेल भारतवर्षक एक मात्र माध्यम संस्कृत भाषामे पूर्ण अधिकार रखितहुँ जन–मन–रञ्जनक लेल ‘देसिल वयना सभजन मिट्ठा’ कहि लोकभाषामे रचना परम्पराक शुरुआत कऽ विद्यापति समस्त उत्तर भारतीय आर्यभाषाक प्रथम जनकविक रूपमे उदित भेलाह। जनभाषामे काव्य सृजन परम्पराक पहिल सशक्त डेग उठौनिहार व्यक्ति विद्यापतिए छलाह। हिनके पदचिह्नपर चलैत अवधी भाषामे तुलसीदास ‘रामचरितमानस’सन अमर काव्यक रचना करबामे सफल भेलाह। तहिना ब्रजभाषामे मीरा तथा सूरदास, भोजपुरीमे कबीरदाससन उद्भट कविसभक उदय भेल। तेँ प्रसिद्ध हिन्दी कवि डा. हरिवंश राय बच्चन महाकवि विद्यापतिक मादे लिखलनि अछि—

थे न कबीर, न सूर न तुलसी
और न थी जब बाबरि मीरा
तब तुमने ही मुखरित की थी
मानव के मानस की पीड़ा
      अपन काव्यपुस्तक ‘आरती और अंगारे’ मे विद्यापतिकेँ एहि तरहेँ सम्बोधित कएनिहार डा. बच्चन ‘टूटी–छूटी कड़ियाँ’ में विद्यापतिक महिमाकेँ विशिष्टीकृत करैत एहुना कहलनि अछि— ‘भाषाक क्षमताकेँ भलहि सरहपाद मानैत होथु, भाषाक ओज दऽ रासो कविसभ भलहि जनैत होथि, मुदा भाषाक असली सुआद सभसँ पहिने विद्यापतिए बुझलनि— देसिल वयना सबजन मिट्ठा। विद्यापति हमरालोकनिक सर्वप्रथम परिस्कृत गीतकार थिकाह। संस्कृतक ध्वनि–माधुर्यकेँ ओ पूर्णतया भाषामे उतारैत छथि। हुनका ‘अभिनव जयदेव’ सेहो कहल जाइत छनि। मार्मिकता आ भावक गहिराइमे ओ जयदेव आ रासो कालक शृङ्गारिक कविसभसँ बहुतो आगाँ छथि | 
     
        देसिल वयनाद्वारा मानवीय भावकेँ एते सूक्ष्मतापूर्वक पहिल बेर विद्यापतिए छूबि सकलाह।  साहित्याकाशक देदीप्यमान नक्षत्र महाकवि विद्यापति (ई.सन. १३६०—१४४८) मूलतः शृङ्गारिक एवं धार्मिक प्रवृत्तिक कवि मानल जाइत छथि। मुदा व्यापकतामे देखलापर हुनक रचनाद्वारा समाजमे अनेको सार्थक सन्देशसभक सम्प्रेषण सेहो प्रचुर मात्रामे भेल हमसभ पबैत छी। हुनक चामत्कारिक काव्यप्रतिभेक कारण अवसानक छ सय वर्षक बादहु ओ जन–मन ओ लोक–जीवनमे जीवित एवं परिव्याप्त छथि। सगरमाथापर फहराइत विद्यापतिक ख्याति, सुयश एवं प्रभावकेँ परवर्ती कालक कतेको साहित्यकार समाजमे सकारात्मक सन्देश प्रवाह करबाक लेल उपयोग करैत सेहो देखल गेल छथि। निश्चित रूपेँ एकटा आम व्यक्ति जखन कोनो बात कहैत अछि तँ ओ ओतेक प्रभावोत्पादक नहि होइत छैक जतेक एक प्रतिष्ठित तथा सामाजिक हैसियतप्राप्त व्यक्तिक कहलासँ होइछ। तेँ बादक किछु कवि जे सामाजिक कुरीतिसभकेँ हटएबादिस संवेदनशील छलथि, सेसभ विद्यापतिक नामकेँ भनिताक रूपमे प्रयोग कऽ ओहन सुसन्देशसभक प्रवाह करैतसन पाओल गेलाह अछि। मिथिलामे रहल अनमेल विवाह–प्रथाकेँ निरुत्साहित करबाक गूढार्थ अन्तर्निहित रहल निम्न गीतकेँ एही श्रेणीक एक उत्कृष्ट गीत मानल जा सकैत अछि, जाहिमे तरुणी स्त्रीक अल्प वयसक पुरुषक सङ्ग विवाह भऽ गेलाक बाद उत्पन्न परिस्थितिक वर्णन कएल गेल छैक—

पिया मोर बालक हम तरुणी गे,
कओन तप चुकलहुँ भेलहुँ जननी गे। 
तहिना प्रौढ पुरुषक सङ्ग नवयौवना स्त्रीक विवाह करबाएल जा रहल प्रसङ्गमे कन्याक माए अपन पति आ समाजकेँ उपराग दैत चेतावनीक भाषामे कहैत छथि—
हम नहि आजु रहब एहि आँगन
जौँ बूढ़ होएत जमाए  | 

 एहन अनमेल विवाहक लेल मिथिलाक लोकव्यवहार मोताबिक भाग्यकेँ दोष देबाक सङहि बेटीक पिता तथा घटककेँ सेहो दोषक भागी बतबैत आगाँ कहल गेल अछि—
एक तँ बैरी भेल बीधि–विधाता
दोसर धियाकेर बाप
तेसर बैरी भेल नारद बाभन
जे बुढ आनल जमाए
     यद्यपि उपर्युक्त गीतसभ मैथिल समाजमे विद्यापतिएक गीतक रूपमे समादृत एवं प्रचलित अछि। ओहुना एहन गीतसभक भनितामे ‘भनहि विद्यापति’ लिखल पाओल जाइत छैक। मुदा विभिन्न विद्वानसभक मतानुसार विद्यापतिक गीत कहि सैकड़ो एहनो गीत लोककण्ठमे व्याप्त अछि, जे यथार्थतः विद्यापति नहि लिखने छथि। उपर देल गेल गीतसभक भाषा आ विद्यापतिकालीन मैथिली भाषाक स्वरूपक तुलनात्मक अध्ययन–विश्लेषण कएलासँ सेहो ई बात स्पष्ट होइत अछि। ओना तँ जे गीतसभ विद्यापतिएद्वारा लिखल गेल बातपर कनेको शङ्का नहि छैक, ताहूमे भक्ति आ शृङ्गर रसक गीत मात्र नहि छैक, जीवनकेँ सुमार्गपर लऽ चलबाक लेल अनेको उद्देश्यपूर्ण गीतसभ विद्यापति स्वयं सेहो प्रचुर मात्रामे लिखने छथि।

विद्यापतिक शतप्रतिशत वास्तविक भक्ति आ शृङ्गार रसक गीतसभक सेहो खास उद्देश्य रहैत छलैक। मिथिलाक तत्कालीन अवस्थापर ध्यान देलापर देखल जाइत अछि जे यवनक आक्रमण तथा जल्दी–जल्दी होइत आएल नेतृत्व परिवर्तनक कारण मिथिलाक आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति दिनानुदिन गिरैत गेल छलैक। प्रायः यवन सेना जखन आक्रमण करैत छल तँ ओहिठामक सम्पूर्णप्रायः धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक पूर्वाधारकेँ लतखुर्दनि कऽ जनजीवनकेँ धङरचास कऽ दैत छल। महिलासभकेँ ओसभ अपन पहिल शिकार बनबैत छल। जबर्दस्ती इस्लाम धर्म कबूल करबएबाक काज सेहो ओतबए मात्रामे कएल जाइत छलैक। एहि सभ क्रियाकलापसँ गार्हस्थ्य जीवन छिन्न–भिन्न भऽ जाइत छलैक। लोक अकर्मण्य एवं किंकर्त्तव्यविमूढ होइत गेल छल। एहन अवस्थामे हतास एवं पलायनोन्मुख समाजकेँ पुनः लीकपर अनबाक उद्देश्यसँ तत्कालीन अवस्थामे जीवन गुजाराक मूल कर्मदिस लोककेँ आगाँ बढ़बाक लेल उत्साहित करऽ वला गीतसभ सेहो रचलनि—
बेरि–बेरि अरे सिव, मोञे तोहि बोलञो
किरिस करिअ मन लाए
बिनु सरमे रहिअ, भिखिए पए मङ्गिअ
गुन गउरब दुर जाए
खटङ्ग् काटि हर हर बन्धबिअ
तिरसिल तोड़िअ करु फारे
बसह धुरन्धर लए हर जोतिअ
पाटिअ सुरसरि धारे

        अत्यन्त प्रगतिशील एवं उत्साहवर्धक सन्देश देल गेल एहि गीतमे विद्यापति अपन आराध्य महादेवकेँ किसानक रूपमे ठाढ़ कऽ कहैत छथि— “हे शिव, अपन कर्त्तव्यक पालन नीकजकाँ करी। भीख माङब ने लाज वा शरमक बात छियैक, जे लोकक गुण आ गौरव दुनूकेँ हरि लैत छैक। मुदा अपन काज करबामे कथीक सङ्कोच? तेँ अपन खटङ्ग काटिकऽ हर बनाउ। त्रिशूलकेँ पीटिकऽ फार बनाउ। अपन बसहाकेँ हरमे जोतू। आ, फसलिक सिञ्चन लेल तँ अहाँक मस्तकसँ बहऽ वला गङ्गाक धार अछिए।

      तत्कालीन विषम परिस्थितिमे जनमानसकेँ कर्मशीलताक दिशामे उन्मुख कराएब समाज सचेतक व्यक्तिक सर्वाधिक महत्त्वक काज छलैक। एही समयमे हिन्दू धर्मावलम्बीसभक बीच सेहो शैव, वैष्णव आदि सम्प्रदायमे मानसिक विभाजनक अवस्था छल, जाहिसँ समाजमे विशृङ्खलता आओर बढ़ैत गेल रहैक। एहनमे समान धार्मिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमिक लोकक बीच वृहद एकताक आवश्यकतापर जोड़ दैत विद्यापति कहलनि जे शैव वा वैष्णव परस्पर विरोधी नहि, बल्कि एक्कहि सिक्काक दू पाट अछि। एकरा अपन पदमे विद्यापति एहि तरहेँ अभिव्यक्ति दैत देखल गेल छथि—

भल हर भल हरि भल तुअ कला
खन पित वसन खनहि बघछला

     एहि तरहेँ विभिन्न तरहक प्रहारसँ विशृङ्खलित जनजीवनकेँ सहज बनएबाक हेतु कर्मशीलताक सन्देश आ भक्तिमार्गक अनुसरण मात्र यथेष्ट नहि छलैक, लोक–जीवनमे आस्थाक रस सञ्चार कराएब सेहो ओतबए आवश्यक छलैक। विद्यापतिद्वारा प्रायः जीवनक आरम्भिक चरणमे लिखल गेल शृङ्गार रसक गीतसभ होइक वा तत्कालीन राजासभक आदेशमे लिखल गेल शृङ्गार रसक गीतसभ कतेक सार्थक, कतेक निरर्थक छलैक, से अलग विश्लेषणक विषय अछि। मुदा कालान्तरमे मिथिला राज्य छिन्न–भिन्न भऽ गेलाक बादो शृङ्गारिक गीतसभक रचनाक्रमकेँ ओ जाहि तरहेँ निरन्तरता देलनि, से पूर्णतः सोद्देश्य छल। ओहि समयक आकुल–व्याकुल परिस्थितिसँ आमजनकेँ मुक्त कऽ जीवनकेँ सरस बनएबादिस उन्मुख करएबाक लेल विद्यापति एकसँ एक शृङ्गारिक गीतसभक रचना कएलनि। मुदा कविक महिमा देखी जे हुनक लिखल कतिपय श्रैङ्गारिको गीत अपनामे एकटा इतिहास समटने अछि। महाकवि विद्यापतिक एखनधरि भेटल आ सार्वजनिक भेल करिब १,२०० गीतमेसँ २०० क करिब गीत बादक कविसभद्वारा लिखल आ मात्र भनितामे विद्यापतिक नाम लिखल गेल विश्लेषकसभक कथन छनि। मुदा एहन व्यक्तित्व कम्मे होएत, जकर अधिकांश गीत वा पदसभ कोनो ने कोनो इतिहासकेँ समटने होइक। इतिहासक एकटा घटनाक्रमकेँ बड़ सजीवताक सङ्ग प्रस्तुत कएल गेल विद्यापतिक ई गीत—

सजनि निहुर फुकू आगि।
तोहर कमल भ्रमर मोर देखल, मदन उठल जागि।।
जौँ तोहें भामिनी भवन जएबह, एबह कोनह बेला।
जौँ एहि सङ्कटसौँ जिव बाँचत होएत लोचन मेला।।
भन विद्यापति चाहथि जे विधि करथि से–से लीला।
राजा शिवसिंह बन्धन मोचन तखन सुकवि जीला।।

     कहल जाइत अछि जे उपर्युक्त शृङ्गार गीत विद्यापति अत्यन्त सङ्कटग्रस्त समयमे लिखने छलाह। यवन सेना हुनक प्रिय राजा शिवसिंहकेँ जखन बन्दी बना दिल्ली लऽ गेल तँ विद्यापति अपन कूटनीतिक कौशलक उपयोग कऽ शिवसिंहक बन्धनमोचन करबौने छलाह। एहि क्रममे बादशाहकेँ जखन ई बुझबामे अएलनि जे विद्यापति कवि छथि तँ हुनका अपन कवित्वक परिचय देबाक लेल कहलनि। ओ चूल्हि पजारैत एक सुन्दरीक कवितात्मक वर्णन करैत अपन कवित्वक उत्कृष्ट परिचय देलनि। किंवदन्ती तँ एहनो छैक जे विद्यापतिक आँखिमे पट्टी बान्हि देल गेलनि आ हुनका कहल गेलनि जे चूल्हि पजारैत सुन्दरीक वर्णन करू। केओ–केओ एहि प्रसङ्गमे विद्यापतिकेँ सन्दूकक भीतर बन्द कऽ सूखल इनारक भीतर राखिकऽ एहि स्थितिक वर्णन करबाक लेल कहल गेल बात सेहो कहैत छथि। अवस्था चाहे जे–जेहन रहल होइक, मुदा एतबाधरि निश्चित जे विद्यापतिद्वारा कएल गेल चित्रण अत्यन्त सजीव आ लोमहर्षक छैक। 

       गीतमे ओ कहैत छथि— “सुन्दरी, अहाँ जे निहुरिकऽ चूल्हि फुकैत छी, ताहिसँ अहाँक स्तनरूपी कमल हमर आँखिरूपी भमराक आगाँ देखार भऽ रहल अछि, जाहिसँ कामदेव जागि गेल छथि। आब कहू जे अहाँ भवनमे कखन घूरब ? जँ एखनुक सङ्टसँ बाँचि गेलहुँ तँ अपना दुनूगोटेक नजरिक परस्पर मिलान होएबे करत। विद्यापति कहैत छथि— विधाता सेहो नहि जानि केहन–केहन लीला करैत छथि। राजा शिवसिंह जँ बन्धनमुक्त होएताह, तखने बुझू जे मृततुल्य अवस्थामे पहुँचल एहि कविक प्राण घूरत।”
   
       विद्यापतिक एहन अनेको श्रैङ्गारिक गीत छनि, जाहिमेसँ कतेको अपनामे एकहकटा इतिहासक दस्तावेज अछि तँ कतिपय कविता जीवनकेँ रसमय आ रोमाञ्चक बनएबामे सहायक अछि। विद्यापतिक बहुतो शृङ्गारिक गीतकेँ कामकलाक पाठ सिखौनिहार विज्ञानसम्मत कलात्मक अभिव्यक्तिक रूपमे सेहो लेल जाइत अछि, जे आजुक समयमे सेहो सजीव आ सार्थक अछि। तेँ ई कहब अनर्गल हएत जे विद्यापतिक रचनाक उद्देश्य केवल रास–रङ्ग वा राजा–महाराजाकेँ मनोरञ्जन प्रदान करब छलनि। विद्यापति जन–मनक, लोकजीवनक महाकवि छलाह आ ओ प्रेम एवं आनन्दक मार्गपर चलैत कर्मशील जीवनक पक्षमे अपन लेखनीकेँ निरन्तर प्रवाहमय बनौने रहलाह।


– दुर्गेश झा'लव 
नरही , मधुबनी , 
मिथिला , भारत 

शनिवार, 4 जुलाई 2015

मैथिल'क मानसिकता

जुक समयमे युवा वर्गक व्यवहार आ संस्कारमे बहुत परिवर्तन आएल अछि। पाश्चात्य सभ्यताक करिया छाँह मैथिलक कर्मठ वर्तमान आ धवल भविष्य दुनुकें प्रभावित केलक अछि। आब बेसीतर युवा आ युवती बस अपने धरि सकुचल छथि। नीक डिग्री, नीक नौकरी, खूब रास आमद, पैघ सन कोठी, नमहर (चरिचकिया) गाड़ी, एकटा जीवन-संगी/संगिनी आ बहुत रास आधुनिक सुख-सुविधा; बस एतबे धरि हुनका लोकनिक जिनगी सिमटल छनि। आ तकर कारणो अछि, ओ लोकनि अपन अतीत बिसरि आ भविष्यसँ अनवगत अपन आइमे जीवैत छथि। कोन बाट चलि एतए तक आएल छलाह आ अपना पाछा की छोड़ि क' जेता तकर कोनो फिकिर नै।     

    समाज या सामाजिक गतिविधि सभसँ हिनका लोकनिकें कोनो लेना-देना नै। बस घरसँ-कार्यालय आ कार्यालयसँ-घर, एतबहिमे जीवन खतम। हाँ, एकटा गप्प त' छुटिए गेल - चाहे कतबो व्यस्त दिनचर्या होइन्ह, टाकाक कतबो तंगी होइन्ह, माए-बापक लेल समय आ टाका होइन्ह वा की नै होइन्ह मुदा सिनेमा-सर्कस, प्रीतिभोज (पार्टी) आ बाजार (माँल) घुमबा लेल समय आ टाका दुनुक ब्योंत कए लैत छथि। ऐ मामलामे ओ सभ बड्ड जोगारू आ बड्ड सचेत रहैत छथि। बस एक्के टा चिंता आ एक्के टा सपना रहैत छनि हिनका लोकनिकें - कोना बिनु मेहनति टाका अबैत रहए आ मौज-मस्तीमे कोनो त्रुटि नै हुवए।
ई सोच समाजक लेल बड्ड हानिप्रद अछि। एकरा दूर करब आ एकरासँ बाँचल रहब बहुत आवश्यक। समाजक सर्वांगीण प्रगतिक लेल युवा वर्गक योगदान अनिवार्य होइछ। समाज युवा वर्गक सकारात्मकता आ ऊर्जाक खगल अछि। तें नवतुरिया सभके सक्रिय होएबाक बेगरता अछि। हमरा लोकनि जाहि समाजमे रहैत छी तकरासँ छुच्छे लेबे टा नै अपितु ओकरा किछु देनाइ सेहो सीखी। ई बूझब जरूरी अछि जे समाजक प्रति अपन कर्त्तव्यसँ आंखि-कान मूनि कात भ' गेलासँ हम सभ अंतिम नोकसान अपने क' रहल छी। किएक त' चाहे कतबो पढ़ि ली, किछु बनि जाए, कतबो कमा ली मुदा रहबाक त' ओही समाजमे अछि।


दुर्गेश झा'लव 
नरही , मधुबनी , 

मिथिला , भारत
[ रोहतक ]