शनिवार, 4 जुलाई 2015

मैथिल'क मानसिकता

जुक समयमे युवा वर्गक व्यवहार आ संस्कारमे बहुत परिवर्तन आएल अछि। पाश्चात्य सभ्यताक करिया छाँह मैथिलक कर्मठ वर्तमान आ धवल भविष्य दुनुकें प्रभावित केलक अछि। आब बेसीतर युवा आ युवती बस अपने धरि सकुचल छथि। नीक डिग्री, नीक नौकरी, खूब रास आमद, पैघ सन कोठी, नमहर (चरिचकिया) गाड़ी, एकटा जीवन-संगी/संगिनी आ बहुत रास आधुनिक सुख-सुविधा; बस एतबे धरि हुनका लोकनिक जिनगी सिमटल छनि। आ तकर कारणो अछि, ओ लोकनि अपन अतीत बिसरि आ भविष्यसँ अनवगत अपन आइमे जीवैत छथि। कोन बाट चलि एतए तक आएल छलाह आ अपना पाछा की छोड़ि क' जेता तकर कोनो फिकिर नै।     

    समाज या सामाजिक गतिविधि सभसँ हिनका लोकनिकें कोनो लेना-देना नै। बस घरसँ-कार्यालय आ कार्यालयसँ-घर, एतबहिमे जीवन खतम। हाँ, एकटा गप्प त' छुटिए गेल - चाहे कतबो व्यस्त दिनचर्या होइन्ह, टाकाक कतबो तंगी होइन्ह, माए-बापक लेल समय आ टाका होइन्ह वा की नै होइन्ह मुदा सिनेमा-सर्कस, प्रीतिभोज (पार्टी) आ बाजार (माँल) घुमबा लेल समय आ टाका दुनुक ब्योंत कए लैत छथि। ऐ मामलामे ओ सभ बड्ड जोगारू आ बड्ड सचेत रहैत छथि। बस एक्के टा चिंता आ एक्के टा सपना रहैत छनि हिनका लोकनिकें - कोना बिनु मेहनति टाका अबैत रहए आ मौज-मस्तीमे कोनो त्रुटि नै हुवए।
ई सोच समाजक लेल बड्ड हानिप्रद अछि। एकरा दूर करब आ एकरासँ बाँचल रहब बहुत आवश्यक। समाजक सर्वांगीण प्रगतिक लेल युवा वर्गक योगदान अनिवार्य होइछ। समाज युवा वर्गक सकारात्मकता आ ऊर्जाक खगल अछि। तें नवतुरिया सभके सक्रिय होएबाक बेगरता अछि। हमरा लोकनि जाहि समाजमे रहैत छी तकरासँ छुच्छे लेबे टा नै अपितु ओकरा किछु देनाइ सेहो सीखी। ई बूझब जरूरी अछि जे समाजक प्रति अपन कर्त्तव्यसँ आंखि-कान मूनि कात भ' गेलासँ हम सभ अंतिम नोकसान अपने क' रहल छी। किएक त' चाहे कतबो पढ़ि ली, किछु बनि जाए, कतबो कमा ली मुदा रहबाक त' ओही समाजमे अछि।


दुर्गेश झा'लव 
नरही , मधुबनी , 

मिथिला , भारत
[ रोहतक ]

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