गुरुवार, 9 जुलाई 2015

कठजीब

कठजीब

मोन मे माया, भारी काया,
आहां सदखन ओझरायल छी।
कहै छी संगी किछ अधलाहे,
आहां बहुत भरमायल छी।
घोर अनथ॔ भ रहल अहिठाम,
आहां तैयौ ऊंधायल छी।
लुट खसोट बबाल मचल या,
आहां तैयौ अलसायल छी।
दुल्हा बनि आहां बिका रहल छी,
किछु पैसा क लोभ मे।
तैयौ आत्म सम्मान नय जागेऽ,
केहन आहां कठजीब छी।
मै बहिनक सम्मान लुटैया,
अहिठाम आंखिक आगु मे।
तैयौ बनि निरजीब रहैछी, 
नय बल आहां केर बाजु मे।
नय जागब त और धकियाअत,
गिरब गत॔ के सागर मे।
कहाऽ पवन सुनू यौ संगी,
नय आहां ऐना कठजीब बनु।
हार मांसक देह बनल या,
आऽबो आहां अधीर बनु।
भागि पराय मरैय सब पापी,
आहां एहेन हुंकार भरु।

 C A  PAWAN KUMAR JHA 

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