बुधवार, 13 दिसंबर 2017

श्रधेय राजकमल के प्रति काव्यांजलि

||  श्रधेय राजकमल के प्रति काव्यांजलि || 

धरती सँ
मुक्त आकाश धरि
अहाँक साहित्यिक उच्चता
समुद्र सन 
तकर गंभीरता
जीवन सन सत्यता
मृत्यु सन यथार्थता
अहाँक साहित्यिक
इएह मूलभूत
उत्स थीक
अहाँक शब्द में
विशाल भावक
परिकल्पना
इएह तें
दर्शन थीक।
छान्हि नै
बान्हि नै
प्रवहमान भाव अछि
छाँटल नै
काढल नै
परम्पराक साँच पर
गढल नै
थाहि थाहि
चढल नै।
जिनक सहजहिं
स्वभाव अछि
दल दल मे
जे नै धँसल
सएह भेलखिन
राजकमल।
 

स्वाती शाकम्भरी
(Swati Shakambhari)
सहरसा।

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