बुधवार, 1 जुलाई 2015

हे मिथिला वाशी




































 हे मिथिला माँ व्याकुल छी जे दर्शन पावी,
जखन जखन करि याद आहाँ हम दौरल आबी,
गौरव अईछ संतान आहाँ के छी हे मईया,
दिय वरदान कि जागैथ हमर मैथिल भईया.
बनि थेथर हम सुतल छी जेना होई सरापे,
देखि दशा माँ छी लज्जित हम अपना आपे,
मोनक व्यथा सुनाबी की हम सुनत के मईया,
जकरा केलौ भरोष सेह सब भेल कसईया.
सोची रहल छी हमहूँ माँ बनि जाई जोगारी,
जौं कियो नहला मारई त हम दहला मारी,
करी परपंच सेहो त आहाँ नई सिखेलौ,
आजुक युग में ताई हम बउधा कहाबेलौ.
टूटी रहल अईछ आब हे माँ सहबा के शक्ति,
सब सपुत में जगा दियौ मिथिला के भक्ति,
नई जागब आब अखनो त नई बचत चिन्हाशी,
पंकज करई नेहोरा सुनु हे मिथिला वाशी.
 Pankaj Jha · 

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