रविवार, 4 मार्च 2012

"विआह"


सुनि गप्प विआह कें

मन अध्हर्षित अध्दुखित भेल |


सुझाए लागल ब्रह्माण्ड हमरा

तन-मन आकुल-व्याकुल भेल ||



क्षणिक सोइच आनन्द विआह कें

हम कुदअ लगलौं चाईर-चाईर हाथ |


द' चौबनियाँ मुस्कान

हम गुद्गुदाए लगलौं भईर-भईर राइत ||



नै छलौं देखने हुनका

नै छल हुनकर कोनो ज्ञान |


नै जानि तइयौ हुनके

कियाक बुझैत छलौं अपन प्राण ||



अचानक केखनो क' हमरा

मन मे भ' जाइत छल  साइत --

नै जानि ओ केहन हेती

अनाड़ी हेती या व्यावहारिक हेती !

बुझल छल हमरा एतबाए

हुनक व्यस(उम्र) छनि सोलह साल |


तांए डेराइत छलौं हम

कोना करब "प्रेमक' बात ||



बुझल छल हमरा एतबाए

ओ नैन्ना हम स्यान |

तांए डेराइत छलौं हम

कोना करब एकहि घाट हम स्नान ||



मुदा मन के बुझअलौं- की करबअ ?

मिथिला कें छै इहाए विधान

"कनियाँ नैन्ना " आ "वर स्यान " ||



:गणेश कुमार झा "बावरा"

गुवाहाटी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें