शनिवार, 31 मार्च 2012
मैथिलि--काव्य: Natak:"JAGU" --Doar Drishya
शुक्रवार, 30 मार्च 2012
मैथिलि--काव्य: Natak:"JAGU"----Patra Parichay
नाटक: "जागु"
पात्र परिचय :
१. नारायण : एक गृहस्थ , उम्र ४५ वर्ष
२. लक्ष्मी:नारायण के पत्नी , उम्र ४० वर्ष
३.लाल काकी:नारायण के माए, उम्र ६५ वर्ष
४. विष्णुदेव: एक समाज सेवक , उम्र ४० वर्ष
५.अकबर:एक साधारण बुद्धिजीबी व्यक्ति , उम्र ३५ वर्ष
६.गीता :नारायण के ज्येष्ठ कन्या,उम्र १५ वर्ष
७.बिल्टू:बी.ए.पास एक बेरोजगार युवक ,उम्र २३ वर्ष
८. नन्हकू काका:एक बुजुर्ग ,उम्र ६० वर्ष
९. रहीम: १५ वर्षक अनपढ़ बालक
१०.सोहन:१३ वर्षक अनपढ़ बालक
मैथिलि--काव्य: Natak:"JAGU"---Ank-1, Drishya-1
अंक प्रथम: दृश्य:प्रथम समय: राइत
(दलानक दृश्य , अषाड़क अन्हरिया राइत, लालटेन जरैत, दलान पर चिंतित मुद्रा मे नारायण टहलैत| नेपथ्य मे प्रसूति पीड़ा सँ लक्ष्मी कराहैत , थोड़े देर बाद बच्चाक जन्म आ कनबाक ध्वनि )
लाल काकी : (रुदन करैत प्रवेश ) रे नारायनमा ! रे नारायनमा !!
नारायण : की भेलई माए? की भेलई ??
लाल काकी: तोहर कर्म फुटि गेलौ रौ ! ई कुलक्षणी नामक लक्ष्मी चारीम बेटी कें जन्म देलकौया रौ ! अरे देव रौ देव !! कओन मुखे एकर पाएर हमर घर मे पड़ल रौ देव ! बेटी के बाहिड़ लगा देलकौ रौ देव !!
कोना क' चारिटा बेटी के विआहबाए रौ नारायणमा ? देहो बिकीन लेबा' तइयो नै पार लगतौ रौ ! तोड़ा कहने छलिऔ दोसर विआह क' ले' --एहि मौगिया सँ तोड़ा बेटा नै हेतौ , मुदा , तू नै मानलाए हमर बात ! आब वंश कओना चलतौ रौ नारायणमा ?(जोड़ जोड़ सँ छाती पिटैत)
नारायण :(माए के बुझबैत ) माए! माए!! ई अहाँ किदौन कहाँ दून कियाक बजैत छी ?--एहि मे लक्ष्मी कें कोन दोष थिक ? ई त' भगवतिक कृपा ! एखन लक्ष्मी प्रसूति पीड़ा मे छथि , हुनका ऊपर एहन असहनीय दुर्वचनक बाण नै चलाऊ !!
लाल काकी:(खौझा' क बजैत ) त' तोहर की मुन ? फूल-पान ल' आरती उतारीयनि!!
नारायण: हँ माए हँ ! लक्ष्मी आई फेर एक लक्ष्मी कें जन्म देलिहाए | माए! अहाँ जनैत छी --कन्यादान सभ सँ पैघ यज्ञ थिक | सौभाग्यवश: भगवतिक कृपा सँ हमरा चारिटा यज्ञक फल भेटबाक अवसर भेटलाए | अहाँ जुनि व्यर्थ चिंतित हौ |
(विष्णुदेवक प्रवेश )
विष्णुदेव :लाल काकी , एना कियाक खौंझाएल छी ?
लाल काकी: ई लक्ष्मी रानी फेर बेटी बिएलिहाए !!
विष्णुदेव: ई त' हर्षक गप थिक ! बेटी के जन्म --बुझू साक्षात् लक्ष्मी के जन्म !! एहि मे एतेक खौंझेबाक कोन .....
लाल काकी:(बीचे मे टोकैत) हाँ ...हाँ ...., 'दोसरक घर जरैत छै त' तमाशा देखबाअ मे बड्ड नीक लगैत छै ...मुदा ,जखन अपन घर जरैत छै त' आगिक दाह बुझि पड़ैत छै |' अपना बेटी नै अछि ने , दूटा बेटे अछि --ताँए एहन गप निकलैया....
नारायण: माए....! अहाँ चुप रहब की नै ? (विष्णुदेव के)-- भाई , क्षमा करब ! माएक गप के जुनि .....
विष्णुदेव: .....भाई ! ई की करै छी ? अहाँक माए हमरो माए | हम काकी कें दुःख बुझि सकैत छीयनि ! मुदा मनुष्य की क' सकैत अछि .....??
(लाल काकी के बुझबैत ) काकी जुनि खौंझाऊ ! कने सोचू ! पहिल- जे अहूँ त' बेटी छी ! जौं बेटी नै हेती त' बेटा-बेटी के जन्म के देत ?? दोसर स्त्री भ' स्त्री के प्रति दुर्यव्यव्हार , इ उचित नै थिक !
तेसर- बेटा-बेटी कें जन्म स्त्री द्वारा निर्धारित नै होइत अछि | विज्ञानं बतबैया कि बेटी-बेटा कें निर्धारण पुरुष दवारा होइत अछि |--ताँए जँ नारायण भाई कें चारिटा बेटी भेलनि त' एहि मे लक्ष्मी भौजी कें कोनो दोष नै | ...ओ त' साक्षात् लक्ष्मी छथि |.....काकी !अहाँ के त' पाँच टा पुतौहु छथि --काएटा लग मे रहि सेवा करै छथि ? एक लक्ष्मी भौजी छथि जेँ तन-मन-धन सँ अहाँक सेवा मे समर्पित रहैत छथि |....चलु ,एहि समय हुनका अहाँक जरुरत छन्हि | सास आ माए मे कोनो अन्तर नै होइत छै |
(लाल काकी अन्दर जाईत छथि )
पर्दा खसैत अछि ......प्रथम दृश्य के समाप्ति |||
गीत:-
लचक लचक लचकै छौ गोरी तोहर पतरी कमरियाठुमैक ठुमैक चलै छे गोरी गिरबैत बाट बिजुरिया //२
देख मोर रूपरंग मोन तोहर काटै चौ किये अहुरिया
सोरह वसंतक चढ़ल जुवानी में गिरबे करतैय बिजुरिया //२ मुखड़ा
चमक चमक चमकैय छौ गोरी तोहर अंग अंग
सभक मोन में भरल उमंग देखैला तोहर रूपरंग
ठुमैक ठुमैक चलै छे गोरी गिरबैत बाट बिजुरिया
रूप लगैय छौ चन्द्रमा सन देह लगैय छौ सिनुरिया //२
सोरह वसंतक चढ़ल जुवानी में गिरबे करतैय बिजुरिया
देख मोर रूपरंग मोन तोहर काटै चौ किये अहुरिया
लाल लाल मोर लहंगा पर चमकैय छै सितारा
देख मोर पातर कमर मोन तोहर भेलौं किया आवारा //२
अजब गजब छौ चाल तोहर गोरिया गोर गोर गाल
कारी बादल सन केश तोहर ठोर छौ लाले लाल
चमकैय छे तू जेना चमकैय गगन में सितारा
देख के तोहर रूपक ज्योति मोन भेलैय हमर आवारा //२
मस्त मस्त नैयना मोर गोर गोर गाल
जोवनक मस्ती चढ़ल हमर ठोर लाले लाल
चमकैय छै मोर रूप जेना चमकैय अगहन के ओस
देख के मोर चढ़ल जुवानी उडीगेलय सभक होस //२
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
गुरुवार, 29 मार्च 2012
गजल@प्रभात राय भट्ट
गजल
फुलक डाएरह सुखल सुखल फुल अछी मुर्झाएलवितल वसंत आएल पतझर देख पंछी पड़ाएल
भोग विलासक अभिलाषी प्राणी तोहर नै कुनु ठेगाना
आई एतय काल्हि जएबे जतय फुल अछी रसाएल
अपने सुख में आन्हर प्राणी की जाने ओ आनक दुःख
दुःख सुख कें संगी प्रीतम दुःख में छोड़ी अछी पड़ाएल
कांटक गाछ पर खीलल अछी मनमोहक कुमुदिनी
कांट बिच रहितो कुमुदनी सदिखन अछी मुश्काएल
बुझल नहीं पियास जकर अछी स्वार्थी महत्वकांक्षा
होएत अछी तृप्त जे प्रेम में सदिखन अछी गुहाएल
अबिते रहैत छैक जीवन में अनेको उताड चढ़ाव
सुख में संग दुःख में प्रीतम किएक अछी पड़ाएल
...........वर्ण-२१...................
रचनाकार:-प्रभात राय भ
मंगलवार, 27 मार्च 2012
मैथिलि--काव्य: Kavita--Maithili
गजल
मोनक आस सदिखन बनि कऽ टूटैत अछि।
किछु एना कऽ जिनगी हमर बीतैत अछि।
मेघक घेर मे भेलै सुरूजो मलिन,
ऐ पर खुश भऽ देखू मेघ गरजैत अछि।
हम कोना कऽ बिसरब मधुर मिलनक घडी,
रहि-रहि यादि आबै, मोन तडपैत अछि।
देखै छी कते प्रलाप बिन मतलबक,
चुप अछि ठोढ, बाजै लेल कुहरैत अछि।
मुट्ठी मे धरै छी आगि दिन-राति हम,
जिद मे अपन, "ओम"क हाथ झरकैत अछि।
(बहरे-कबीर)
रेणु जी की धरती से झूमड़ झमकावन लागे रे..
पूर्णिया, जाप्र: मैथिली अहांक भाषा थिक। जं अहां अपन भाषा बिसरि जाएब तं संस्कृति बिसरि जाएब। ताहि हेतु नहि बिसरू खराम, हर, पांचा, मटकूर-मटकूरी, उखड़ि-समाठ आ नहि बिसरू अपन माटि। बिहार शताब्दी के वर्ष के मौके पर बीएमटी ला कालेज के सभाकक्ष में मैथिली अकादमी पटना और कालेज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित मैथिली कवि सम्मेलन में ये बातें अकादमी के अध्यक्ष कमलाकांत झा ने कही।
श्री झा ने कहा कि मैथिली मात्र रजनी-सजनीक भाषा नहि रहल अपितु रोजी-रोटीक भाषा भ गेल अछि। बोले भारत की प्रतिष्ठित आईएएस की परीक्षा में आठ छात्र इसबार मैथिली से सफलता हासिल किये हैं। लेकिन उन्होंने इस बात पर अफसोस भी जताया कि ये सारे छात्र मिथिलांचल के नहीं हैं। कहा कि सासाराम के छात्र संजय कुमार व हिमाचल प्रदेश की छात्रा ने भूगोल की परीक्षा भी मैथिली में दी। नालंदा के छात्र अमित कुमार ने इतिहास व मैथिली विषय से परीक्षा में सफलता हासिल की। कहा कि कोसी महासेतु बन जाने से मिथिलांचल एक हो गया है। जिस दिन इस पुल की आधारशिला पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने रखी उसी दिन मैथिली को संविधान की अष्टम अनुसूची में दाखिल करने की घोषणा की गई। मिथिला के पांच विभूतियों की चर्चा करते हुए कहा कि एक विभूति पूर्णिया के भी थे। जिनके नाम से इस कालेज का नामकरण किया गया है। कहा कि ब्रजमोहन ठाकुर के प्रयास से पहली बार 1917 में कलकत्ता में प्राथमिक से लेकर स्नातकोत्तर की पढ़ाई शुरू हुई।
कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए जयप्रकाश जनक ने रेणुजीक धरती सं झूमड़ झमकावन लागे रे, पूर्णिया नगर सुहावन लागे रे..गाकर लोगों को जहां पूर्णिया की धरती की गुणगान की वहीं हास्य कविता गेले छथि कविजी गाकर लोगों को लोटपोट कर दिया। इसके बाद बारी-बारी से कवियों ने काव्य पाठ किया। इससे पूर्व कार्यक्रम की शुरूआत पंडित लड्डू झा के शांति पाठ से हुई। मैथिली परंपरा के अनुसार कवियों व अतिथियों का स्वागत चादर और पाग देकर किया गया। अमलेंद्र शेखर पाठक के मंच संचालन में स्वागत भाषण जयकृष्ण मेहता द्वारा दिया गया जबकि स्वागत गान कंचन ने गया। गणेश वंदना की प्रस्तुति कुमार अमित द्वारा की गई। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे। इस मौके पर जिप अध्यक्ष सीमा देवी, प्राचार्य वीरेंद्र मोहन ठाकुर, गणपति मिश्र, आनंद भारती आदि मंच पर मौजूद थे।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_9060020.html
सोमवार, 26 मार्च 2012
गजल@प्रभात राय भट्ट
अप्पन आन सभ लेल अहाँ चिन्हार बनल छि
आS हमरा लेल किएक अनचिन्हार बनल छि
अहाँ एकौ घड़ी हमरा विनु नहीं रहैत छलौं
आई किएक हम अहाँ लेल बेकार बनल छि
कोना बिसरल गेल ओ प्रेमक पल प्रीतम
हमरा बिसारि आन केर गलहार बनल छि
हमर प्रीत में की खोट जे देलौं हृदय में चोट
अहाँक प्रीत में आईयो हम लाचार बनल छि
दिल में हमरा प्रेम जगा किया देलौं अहाँ दगा
दगा नै देब कही कs किएक गद्दार बनल छि
..................वर्ण:-१८............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
रविवार, 25 मार्च 2012
सगर राति दीप जरय पर साहित्य अकादेमीक कब्जा/ सरकारी पाइपर भेल बभनभोज/ साहित्य अकादेमीक कथा रवीन्द्र दिल्लीमे समाप्त- रवीन्द्रक कथापर कोनो चर्चा नै भेल- ७६म सगर राति दीप जरय चेन्नैमे विभारानी लऽ गेली (रिपोर्ट प्रियंका झा)
-मात्र १८ टा कथाक पाठ भेल
-आयोजक स्वयं ऐ गोष्ठीकेँ बभनभोजक संज्ञा देने रहथि आ अन्ततः सएह सिद्ध भेल।
-ई गोष्ठी सगर राति दीप जरयक अन्त आ साहित्य अकादेमीक गोष्ठीक प्रारम्भ रूपमे देखल जा रहल अछि। "सगर राति दीप जरय" आब साहित्य अकादेमी संपोषित भऽ गेल आ ओकर इशारापर हिन्दीक लोकक कब्जा भऽ गेल, जइमे हिन्दीक पोथीक लोकार्पणसँ लऽ कऽ रवीन्द्रक कविताक हिन्दी अनुवादक दू पाँतीक पाठ धरि सम्मिलित रहल।
-टी.ए., डी.ए. आदिक परम्पराक घृणित आरम्भ साहित्य अकादेमीक फण्डसँ भेल, आ ऐसँ सगर राति दीप जरयक अन्तक प्रारम्भ मानल जा रहल अछि। मुदा साहित्य अकादेमी द्वारा संपोषित कवि-सम्मेलन आ सेमीनारमे टी.ए., डी.ए. सभ कवि निबन्धकारकेँ देल जाइ छन्हि मुदा एतऽ किछुए गोटेकेँ ई सौभाग्य प्राप्त भेल।
-टी.ए., डी.ए. लेल विभारानीपर सेहो जोर देल गेल मुदा ओ कहलन्हि जे हुनकर आयोजन व्यक्तिगत रहतन्हि तेँ टी.ए., डी.ए. देब हुनका लेल सम्भव नै, जँ कथाकार लोकनि चेन्नै बिना टी.ए. डी.ए. लेने नै जेता तँ ओ ऐ कार्यक्रमकेँ करबा लेल इच्छुक नै छथि। अजित आजाद कहलन्हि जे हुनका टी.ए., डी.ए.भेटतन्हि तखन ओ जेता। कमल मोहन चुन्नू अजित आजादक समर्थन केलन्हि। मुदा टी.ए., डी.ए. आदिक परम्पराक घृणित आरम्भक विरोध आशीष अनचिन्हार केलन्हि तखन जा कऽ मामिला सुलझल।
-विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनीक सभ मैथिली कथा गोष्ठी, सेमीनारमे होइ छल मुदा साहित्य अकादेमीक फण्डिंगक शुरुआतक बाद "कथा रवीन्द्र"मे विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनीक अनुमति नै देबाक पाछाँ फण्ड देनिहार साहित्य अकादेमीक सुविधाजनक दबाब भऽ सकैए, से साहित्यकार लोकनिक बीचमे चर्चा अछि।
[-साहित्य अकादेमीक कथा गोष्ठी दिल्लीमे शुरू भेल/ १२ टा पोथीक लोकार्पण भेल जइमे ४ टा हिन्दीक पोथी छल !!
विनीत उत्पलक कथा निमंत्रण पर मलंगिया जीक विचार छल जे ई उमेरक हिसाबे प्रेमकथा अछि। सारंग कुमार एकरा महानगरीय कथा कहलन्हि मुदा एकर गढ़निकेँ मजगूत करबाक आवश्यकता अछि, कहलन्हि। श्रीधरम ऐ कथामे लेखकीय इमानदारी देखलन्हि मुदा एकर पुनर्लेखनक आवश्यकतापर जोर देलन्हि। हीरेन्द्रकेँ ई कथा गुलशन नन्दाक कथा मोन पाड़लकन्हि मुदा प्रदीप बिहारी हीरेन्द्रक गपसँ सहमत नै रहथि। ओ एकरा आइ काल्हिक खाढ़ीक कथा कहलन्हि।दुखमोचन झाक छुटैत संस्कारपर मलंगिया जी किछु नै बजला, ओ कहलन्हि जे ओ ई कथा नै सुनलन्हि। सारंग कुमार एकरा रेखाचित्र कहलन्हि। कमलकान्त झाकेँ ई संस्कारी कथा लगलन्हि। श्रीधरमकेँ आरम्भ नीक आ अन्त खराप लगलन्हि। शुभेन्दु शेखरकेँ जेनेरेशन गैप सन लगलन्हि आ कमल मोहन चुन्नूकेँ ई यात्रा वृत्तान्त लगलन्हि। दोसर सत्रमे श्रोताक सहभागिता शून्य रहल।..आशीष अनचिन्हार]
प्रभाष कुमार चौधरीक छातीपर औंघाइत---रमानंद झा "रमण" (चित्र साभार आशीष अनचिन्हार) |
प्रभाष कुमार चौधरीक छातीपर सूतल मैथिलीक कुभंकर्ण---महेन्द्र मलंगिया (चित्र साभार आशीष अनचिन्हार) |
प्रभाष कुमार चौधरीक छातीपर सूतल मैथिलीक कुभंकर्ण---विभूति आनंद (चित्र साभार आशीष अनचिन्हार) |
"सगर राति दीप जरय"केर अन्त आ साहित्य अकादेमी कथा गोष्ठीक उदय (रिपोर्ट आशीष अनचिन्हार)
कविता
एक दिन हमहूँ मरब
एक दिन हमहूँ मरबदुनियाँ कए सुख-दुख छोइर कएनिश्चिन्त हेवा हेतुदेखै हेतु दुनियाँ में अपन प्रतिमिम्बकए ख़ुशी होइए कए दुखी होइएएक दिन हमहूँ मरबदेखै लेल समाज मेंहमर की स्थान छलदेखै लेल किनका ह्रदय मेंहमर की स्थान छल
एक दिन हमहूँ मरबकरए लेल अपन पापक हिसाबहमर पाप सँ कए कुपित छलकए क्रोधित छलकए द्रविल-चिंतित छलकए खुसी छलकए दुखी-व्यथित छल
एक दिन हमहूँ मरबपरखै हेतु अपन ह्रदयअपन स्नेही-स्वजनक ह्रदयअपन मितक ह्रदयअपन अमितक ह्रदय*** जगदानंद झा 'मनु'-------------------------------------------------------------
एक दिन हमहूँ मरब
गजल@प्रभात राय भट्ट
अनचिन्हार सं जहिया चिन्ह्जान बढल
तहिया सं हमरा नव पहिचान भेटल
विनु भाऊ बिकैत छलहूँ हम बाजार में
आई अनमोल रत्न मान सम्मान भेटल
काल्हि तक हमरा लेल छल अनचिन्हार
आई हमरा लेल ओ हमर जान बनल
अन्हरिया राईत में चलैत छलहूँ हम
विनु ज्योति कहाँ कतौ प्रकाशमान भेटल
प्रभात केर अतृप्त तृष्णा ओतए मेटल
जतए अनचिन्हार सन विद्द्वान भेटल
.............वर्ण:-१६.................
रचनाकार :-प्रभात राय भट्ट
शुक्रवार, 23 मार्च 2012
गीत
बड्ड आस धेने हम एलौं शरण, अहींक पुत्र थीकौं माँ।
रहऽ दियौ हमरा अपन चरण, अहींक पुत्र थीकौं माँ।
लाल रंग अँचरी, लाले रंग टिकुली, माँ केर आसन लाले-लाल,
सिंहक सवारी शोभै, हाथ मे त्रिशूल, अहाँक चमकैए भाल।
करै छी वन्दना धरती सँ गगन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।
आंगन नीपेलौं, अहाँक पीढी धोएलौं, छी फूल लेने ठाढ,
दियौ दरसन माँ, दुख करू संहार, भरू सुख सँ संसार।
अहीं कहू हम करी कोन जतन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।
नै चाही अन धन, नै चाही जोबन, खाली शरण माँगै छी,
सुनू हमरो पुकार, भरू ज्ञानक भण्डार, एतबा वचन माँगै छी।
कहिया देबै अहाँ हमरा दर्शन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।
जपै छी नाम अहींक, हम सब राति दिन, तकियौ एक बेर,
करू हमर उद्धार, लगाबू बेडा पार, नै ए कोनो कछेर।
अछि नोर भरल "ओम"क नयन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।
गुरुवार, 22 मार्च 2012
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ@प्रभात राय भट्ट
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ@प्रभात राय भट्ट
जनक हमर पिता छथि जनकपुर हमर गाम यौ
जगमे भेटत नै कतहूँ एहन सुन्दर मिथिलाधाम यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ
मिथिला के हम बेट्टा ची मिथिलेश हमर नाम यौ
मिथिला के हम वासी छि जनकपुर हमर गाम यौ
ऋषि महर्षि केर कर्मभूमि अछि मिथिलाधाम यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ
मिथिलाक मैट सं अवतरित भेल्हीं सीता जिनकर नाम यौ
उगना बनी महादेव एलाह पाहून बनी कय राम यौ
धन्य धन्य अछि मिथिलाधाम,मिथिलाधाम जगमे महान यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ
हिमगिरी के कोख सं ससरल कमला कोशी बल्हान यौ
मिथिला के शान बढौलन मंडन,कुमारिल,वाचस्पति विद्द्वान यौ
हमर जन्मभूमि कर्मभूमि स्वर्गभूमि मिथिलाधाम यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ
कपिल कणाद गौतम अछि मिथिलाक शान यौ
विद्यापति के बाते अनमोल ओ छथि मिथिलाक पहिचान यौ
जगमे भेटत नै कतहूँ एहन सुन्दर मिथिलाधाम यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
बुधवार, 21 मार्च 2012
गजल
जीनाइ भेलै महँग, एतय मरब सस्त छै।
महँगीक चाँगुर गडल, जेबी सभक पस्त छै।
जनता ढुकै भाँड मे, चिन्ता चुनावक बनल,
मुर्दा बनल लोक, नेता सब कते मस्त छै।
किछु नै कियो बाजि रहलै नंगटे नाच पर,
बेमार छै टोल, लागै पीलिया ग्रस्त छै।
खसि रहल देबाल नैतिकताक नित बाट मे,
आनक कहाँ, लोक अपने सोच मे मस्त छै।
चमकत कपारक सुरूजो, आस पूरत सभक,
चिन्तित किया "ओम" रहतै, भेल नै अस्त छै।
(बहरे-बसीत)
प्राचीन मिथिला@प्रभात राय भट्ट
स्वम अहाँ छि अन्तरयामी अहाँ सभटा जनैतछी यौ
बसुधाक हृदय छल हमर महान मिथिला
इ हमही नै शाश्त्र पुराण कहैय यौ
मिथिलाक जन जन छलाह जनक एही ठाम
ताहि लेल नाम पडल जनकपुर धाम
राजा जनक छलाह राजर्षि जनकपुरधाम में
सीता अवतरित भेलन्हि मिथिले गाम में
मिथिलाक पाहून बनी ऐलाह चारो भाई राम
विद्यापती के चाकर बनलाह उगना एहि ठाम
चारो दिस अहिं छि महादेव जनकपुर के द्वारपाल
पुव दिस मिथिलेश्वरनाथ पश्चिम जलेश्वरनाथ
उत्तर दिस टूटेश्वरनाथ दक्षिण कलानेश्वरनाथ
किनहू भs सकय मिथिलाक प्राणी अनाथ
इ ध्रुव सत्य अछि प्राचीन मिथिलाक परिभाषा
एखुनो अछि एहन सुन्दर मिथिलाक अभिलाषा
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
गजल@प्रभात राय भट्ट
अहाँ विनु जिन्गी हमर बाँझ पडल अछि
सनेह केर पियासल काया जरल अछि
दूर रहितो प्रीतम अहाँ मोन पडैत छि
प्रीतम अहिं सं मोनक तार जुडल अछि
तडपैछि अहाँ विनु जेना जल विनु मीन
अहाँ विनु जिया हमर निरसल अछि
नेह लगा प्रीतम किया देलौं एहन दगा
मधुर मिलन लेल जिन्गी तरसल अछि
अहाँ विनु प्रीतम जीवन व्यर्थ लगैय
की अहाँक प्रेमक अर्थ नहीं बुझल अछि
..............वर्ण-१६...........
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
रविवार, 18 मार्च 2012
गजल@प्रभात राय भट्ट
गजल@प्रभात राय भट्ट
वसंत ऋतू में आएल सगरो वसंत बहार
वनस्पतिक पराग गमकौने अनन्त संसार
हरियर पियर उज्जर पुष्प आर लाले लाल
पुष्पक राग केर उत्कर्ष अछि वसंत बहार
झूमी रहल कियो गाबी रहल नाचे कियो नाच
पलवित भेल प्रेम मोन में अनन्त उद्गार
सीतल सुन्दर सजल बहैय वसंत पवन
मनोरम प्रकृतिक दृश्य अछि वसंत बहार
मोर मयूरक नृत्य मधुवन कुह्कैय कोईली
मधुर मुस्कान सगरो आनंद अनन्त संसार
प्रेम मिलन मग्न प्रेमी पुष्पित वसंत बहार
मोन उपवन सुरभित भेल अनन्त संसार
.............वर्ण-१८.............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
शनिवार, 17 मार्च 2012
बुधवार, 14 मार्च 2012
रेल बॅज्ट 2012-13 मे लागू काईल गेल नव ट्रेन
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1.माख्या - लोकमान्य तिलक टर्मिनस एसी एक्सप्रेस ( कटिहार , मुगलसराय , इटारसी के रास्ते वीकली )
2 . सिकंदराबाद - शालीमार एसी एक्सप्रेस ( वीकली - विजयवाड़ा के रास्ते )
3 . बांद्रा टर्मिनस - भुज एसी एक्सप्रेस ( सप्ताह में तीन दिन )
4 . दिल्ली सराय रोहिल्ला - ऊधमपुर एसी एक्सप्रेस ( अंबाला , जालंधर के रास्ते सप्ताह में तीन दिन )
5 . कोयंबटूर - बीकानेर एसी एक्सप्रेस ( रोहा वसई रोड , अहमदाबाद , जोधपुर के रास्ते साप्ताहिक )
6 . काकीनाडा - सिकंदराबाद एसी एक्सप्रेस ( सप्ताह में तीन दिन )
7 . यशवंतपुर - कोचुवेली एसी एक्सप्रेस ( साप्ताहिक )
8 . चेन्नै बेंगलुरु एसी डबल डेकर एक्सप्रेस ( दैनिक )
9 . हबीबगंज - इंदौर एसी डबल डेकर एक्सप्रेस ( दैनिक )
10 . हावड़ा - न्यू जलपाईगुड़ी शताब्दी एक्सप्रेस ( माल्दा टाउन के रास्ते सप्ताह में 6 दिन )
11 . कामाख्या - तेजपुर इंटरसिटी एक्सप्रेस ( दैनिक )
12 . तिरुचिरापल्ली - तिरूनेलवेली इंटरसिटी एक्सप्रेस ( मदुरै विरूद्धनगर के रास्ते दैनिक )
13 . जबलपुर - सिंगरौली इंटरसिटी एक्सप्रेस ( न्यू कटनी जंक्शन के रास्ते - दैनिक )
14 . बीदर - सिकंदराबाद इंटरसिटी एक्सप्रेस ( सप्ताह में छह दिन )
15 . कानपुर - इलाहाबाद इंटरसिटी एक्सप्रेस ( दैनिक )
16 . छपरा - मडुआडीह इंटरसिटी एक्सप्रेस ( फेफना , रसरा मऊ औडिहार के रास्ते दैनिक )
17 . रांची - दुमका इंटरसिटी एक्सप्रेस ( देवघर के रास्ते दैनिक )
18 . बारबील - चक्रधरपुर इंटरसिटी एक्सप्रेस ( डोंगोपासी झिंकपानी के रास्ते दैनिक )
19 . सिकंदराबाद - बेलमपल्ली इंटरसिटी एक्सप्रेस ( काजीपेट के रास्ते दैनिक )
20 . न्यू जल्पाईगुडी - न्यू कूचबिहार इंटरसिटी एक्सप्रेस ( सप्ताह में पांच दिन )
21 . अहमदाबाद - अजमेर इंटरसिटी एक्सप्रेस दैनिक
22 . दादर टर्मिनस - तिरूनेलवेली एक्सप्रेस ( रोहा कोयंबटूर इरोड के रास्ते साप्ताहिक )
23 . विशाखापटटनम - चेन्नै एक्सप्रेस ( साप्ताहिक )
24 . विशाखापटटनम - साईनगर शिरडी एक्सप्रेस ( विजयवाड़ा मनमाड के रास्ते )
25 . इंदौर - यशवंतपुर एक्सप्रेस ( इटारसी , नारखेड़ , अमरावती , अकोला और काचेगुडा के रास्ते साप्ताहिक )
26 . अजमेर - हरिद्वार एक्सप्रेस ( दिल्ली के रास्ते सप्ताह में तीन दिन )
27. अमरावती - पुणे एक्सप्रेस ( अकोला , पूर्णा और लातूर के रास्ते सप्ताह में दो दिन )
28. काचेगुडा - मदुरै एक्सप्रेस ( धर्मावरम , पकाला और जोलारपेटटई के रास्ते साप्ताहिक )
29. बीकानेर - पुरी एक्सप्रेस ( जयपुर , कोटा , कटनी , मुरूवाडा , झारसुगुडा और संभलपुर के रास्ते साप्ताहिक )
30. सिकंदराबाद - दरभंगा एक्सप्रेस ( बल्लाडशाह , झारसुगुडा , राउरकेला , रांची , झाझा के रास्ते सप्ताह में दो दिन )
31. बिलासपुर - पटना एक्सप्रेस ( आसनसोल , झाझा के रास्ते साप्ताहिक )
32. हावड़ा - रक्सौल एक्सप्रेस ( आसनसोल , झाझा और बरौनी के रास्ते सप्ताह में दो दिन )
33. भुवनेश्वर - भवानी पटना लिंक एक्सप्रेस ( विजयानगरम के रास्ते दैनिक )
34. पुरी - यशवंतपुर गरीब रथ एक्सप्रेस ( विशाखापटटनम , गुंटूर के रास्ते साप्ताहिक )
35. साईनगर शिरडी - पंढरपुर एक्सप्रेस ( कुर्दूवाड़ी के रास्ते सप्ताह में तीन दिन )
36. भुवनेश्वर - तिरुपति एक्सप्रेस ( विशाखापट्टनम , गुंटूर के रास्ते साप्ताहिक )
37. विशाखापट्टनम लोकमान्य तिलक टर्मिनस एक्सप्रेस ( टीटलागढ़ , रायपुर के रास्ते साप्ताहिक )
38. हावड़ा - लालकुआं एक्सप्रेस ( मुगलसराय , वाराणसी लखनऊ के रास्ते साप्ताहिक )
39. कोलकाता - जयनगर एक्सप्रेस ( आसनसोल , झाझा और बरौनी के रास्ते साप्ताहिक )
40. डिब्रूगढ़ - कोलकाता एक्सप्रेस ( साप्ताहिक )
41. फिरोजपुर - श्रीगंगानगर एक्सप्रेस (फजील्का अबोहर के रास्ते दैनिक )
42. जयपुर - सिकंदराबाद एक्सप्रेस ( नागदा , भोपाल , नारखेड़ , अमरावती और अकोला के रास्ते साप्ताहिक
43. ओखा - जयपुर एक्सप्रेस ( पालनपुर , अजमेर के रास्ते साप्ताहिक )
44. आदिलाबाद - हजूरसाहिब नांदेड़ एक्सप्रेस ( मुदखेड़ के रास्ते दैनिक )
45. शालीमार - चेन्नै एक्सप्रेस साप्ताहिक
46. मैसूर साईनगर शिरडी एक्सप्रेस ( बेंगलुरु , धर्मावरम बेल्लारी के रास्ते साप्ताहिक )
47. वलसाड़ जोधपुर एक्सप्रेस ( पालनपुर , मारवाड़ के रास्ते साप्ताहिक )
48. पोरबंदर - सिकंदराबाद एक्सप्रेस ( वीरमगाम , वसई रोड के रास्ते साप्ताहिक )
49. बांद्रा टर्मिनस - दिल्ली सराय रोहिल्ला एक्सप्रेस ( पालनपुर , फुलेरा के रास्ते साप्ताहिक )
50. हापा - मडगांव एक्सप्रेस ( वसई रोड , रोहा के रास्ते साप्ताहिक )
5 1 . बैरकपुर - आजमगढ़ एक्सप्रेस ( झाझा , बलिया , मऊ के रास्ते साप्ताहिक )
52 बीकानेर - बांद्रा एक्सप्रेस ( जोधपुर , मारवाड़ , अहमदबाद के रास्ते साप्ताहिक )
53 . अहमदाबाद - गोरखपुर एक्सप्रेस ( पालनपुर , जयपुर , मथुरा , फर्खारुबाद कानपुर के रास्ते साप्ताहिक )
54 . दुर्ग - जगदलपुर एक्सप्रेस ( टीटलागढ़ के रास्ते सप्ताह में तीन दिन )
55 . मन्नारगुड़ी - तिरुपति एक्सप्रेस ( तिरूवारूर , विलुपुरम , कटपडी के रास्ते सप्ताह में तीन दिन )
56. गांधीधाम - बांद्रा एक्सप्रेस ( मोरबी के रास्ते साप्ताहिक )
57. कोटा - हनुमानगढ़ एक्सप्रेस ( जयपुर , देगाना , बीकानेर के रास्ते दैनिक )
58 . झांसी - मुंबई एक्सप्रेस ( ग्वालियर , मक्सी , नागदा के रास्ते साप्ताहिक )
59 . सिकंदराबाद - नागपुर एक्सप्रेस ( काजीपेट के रास्ते सप्ताह में तीन दिन )
60 . कानपुर - अमृतसर एक्सप्रेस ( फर्रुखाबाद , बरेली के रास्ते साप्ताहिक )
61 . छपरा - लखनऊ एक्सप्रेस ( मसरख , थावे , पडरौना के रास्ते सप्ताह में तीन दिन )
62. करीमनगर - तिरुपति एक्सप्रेस ( पेदापल्ली के रास्ते साप्ताहिक )
63. आनंदविहार - हाल्दिया एक्सप्रेस ( मुगलसराय , गोमोह , पुरुलिया के रास्ते साप्ताहिक )
64 इंदौर - रीवा एक्सप्रेस ( बीना के रास्ते सप्ताह में तीन दिन )
65 . 12405-12406 भुसावल हजरत निजामुददीन और 12409-12410 रायगढ़ निजामुद्दीन गोंडवाना एक्सप्रेस को डीलिंक कर जबलपुर - हजरत निजामुद्दीन के बीच स्वतंत्र रूप से गाड़ी का चलाना।
66 . दरभंगा - अजमेर एक्सप्रेस ( रक्सौल , सीतापुर , बरेली , कासगंज और मथुरा के रास्ते साप्ताहिक )
67 . सोलापुर - यशवंतपुर एक्सप्रेस ( गुलबर्गा के रास्ते सप्ताह में तीन दिन )
68 . चेन्नै - पुरी एक्सप्रेस साप्ताहिक
69 . हैदराबाद - अजमेर एक्सप्रेस ( मनमाड , इटारसी , रतलाम के रास्ते साप्ताहिक )
70. आसनसोल - चेन्नै एक्सप्रेस ( पुरुलिया , संभलपुर , विजयानगरम के रास्ते साप्ताहिक )
71 . शालीमार - भुज ( बिलासपुर , कटनी , भोपाल के रास्ते साप्ताहिक )
72. अमृतसर - हुजूर साहेब नांदेड एक्सप्रेस साप्ताहिक
73 . सांत्रागाछी अजमेर एक्सप्रेस ( खड़गपुर , चांडिल , बरकाकाना , कटनी और कोटा के रास्ते साप्ताहिक )
74 .मालदा टाउन - सूरत एक्सप्रेस ( रामपुर हाट , आसनसोल और नागपुर के रास्ते साप्ताहिक )
75. द्वारका - सोमनाथ एक्सप्रेस ( दैनिक )
पढ़ें : रेल बजटः 39 ट्रेनों का रूट बढ़ा, 23 ट्रेनों के फेरे
पैसेंजर ट्रेनें :
1 . गोडरमा - नवाडीह पैसेंजर ( छह दि )
2 . श्रीगंगानगर - सूरतगढ पैसेंजर ( दैनिक )
3. येरागुंटला नोसाम - ननगनपल्ली पैसेंजर ( दैनिक )
4 . विष्णुपुरम - काटपाडी पैसेंजर ( दैनिक )
5. गुनुपुर - पलासा ( परलाखेमुंडी के रास्ते पैसेंजर दैनिक )
6 . अजमेर - पुष्कर पैसेंजर ( पांच दिन )
7 . कोटा - झालावाड सिटी पैसेंजर ( दैनिक )
8 . बरेली कासगंज पैसेंजर ( दैनिक )
9 . आनंदनगर - बाराहानी पैसेंजर ( दैनिक )
10 . रांगिया - तेजपुर पैसेंजर ( दैनिक )
11 . मैसूर - श्रवणबेलगोला पैसेंजर ( दैनिक )
12 . जोधपुर - बिलाडा पैसेंजर ( दैनिक )
13 . विष्णुपुरम - मइलादुतुरई पैसेंजर ( दैनिक )
14 . रोहतक - पानीपत पैसेंजर ( दैनिक )
15 . मिरज - कुर्दुवाडी पैसेंजर ( दैनिक )
16 . फुलेरा - रेवाडी पैसेंजर ( दैनिक )
17 . मैसूर - चामराजनगर पैसेंजर ( दैनिक )
18 . गोरखपुर सिवान पैसेंजर ( कप्तानगंज थावे के रास्ते दैनिक )
19 . 5175151752 रीवा - बिलासपुर पैसेंजर और 51753-51754 रीवा - चिरीमिरी पैसेंजर को डीलिंक करके रीवा बिलासपुर और रीवा चिरीमिरी के बीच स्वतंत्र रूप से पैसेंजर गाड़ियां चलाना।
20 . मैसूर - बिरूर पैसेंजर ( अरसीकेरे के रास्ते दैनिक )
21 . झांसी - टीकमगढ पैसेंजर ( ललितपुर के रास्ते )
मिथिलाक गाम घर
माँ जानकी केर जनम भूमि मिथिला . जाही थाम चाकर बनी स्वयं भगवान् शिव संकर उगना रूप धरी आयल छलाह . मुदा ताहि धरती केर आजुक दीन में इ विडंबना अछि जे की अपन अधिकार केर लेल दर दर भटकी रहल अछि मुदा ओकर गुहार सून्निहार कियोक नहीं छैक .
विगत किछु दीन स मिथिला केर पैघ -पैघ मंच पर इ सुनबाक भेटल जे की बिहार सरकार के मैथिलि बीसी पर ध्यान देबाक चाहि आ मास्टर सव केर सेहो बहाल करबाक चाहि .
हम हुनका स आ समस्त मिथिला वासी स कहैक लेल चाहब जे की कखन धरी तक आधा टा सोहारी आ नून खा खा क पेट भरित रहब .
अहि गप में कोनो दू राइ नहीं अछि जे की हमरा सब गोटे केर लेल ई बद्द गर्व केर गप जे की भारत सरकार अहि भाखा केर अष्ठम सूची में मानी ललक , बिहार सरकार ओकरा लागू कैलक मुदा की माँ मैथिलि मात्र एत्बाही टा केर लेल हक़दार अछि ?
कहैक लेल ता सब कियो इ कहैत छि जे की भारते ता क नहीं अपितु सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड केर सभ्यता म स एक टा प्राचीन सभ्यता अछि मिथिला के . तखन मिथिला कियैक आध पेटू भ रहती .
असाम , बंगाल, ओरिसा . आ कतेको एहन राज्य अछि जाहि ठाम मात्र सिक्छा केर भाखा हुनक अपन भाखा छियें . मुदा मिथिला वासी मात्र बिहार सरकार द्वारा एक टा बिषय केर अपनाओल गेल पर कियक नहीं बिरोध करैत छि .
जखन भारत केर आन राज्य में भ सकैत अछि ता मिथिला आ सम्पूर्ण बिहार में एहन कियक नहीं भ सकैत अछि जे की सब टा विषय मैथिलि में होई . मैथिलि केर माध्यम बनेबाक लेल हम सुब हो - हल्ला कियैक नहीं का रहल छि ?
उठू , जागू एखन धरी तक बेसी देर नहीं भेल अछि बिहार सरकार केर बिरोध क ओकरा बता दियू जे की आब हम सब अपन अधिकार नहीं छोराब बसरते हमरा सब केर किछुओ कियक नहीं करे परत .
आबू एक साथ मिल जुली के संक्नाद करी आ बिहार सरकार केर देखा दी जे की तोरा हमर जरूरत छौक नहीं की हमरा तोरा स .
रविवार, 11 मार्च 2012
गजल
धारक कात रहितो पियासल रहि गेल जिनगी हमर।
मोनक बात मोनहि रहल, दुख सहि गेल जिनगी हमर।
मुस्की हमर घर आस लेने आओत नै आब यौ,
पूरै छै कहाँ आस सबहक, कहि गेल जिनगी हमर।
सीखेलक इ दुनिया किला बचबै केर ढंगो मुदा,
बचबै मे किला अनकरे टा ढहि गेल जिनगी हमर।
पाथर बाट पर छी पडल, हमरा पूछलक नै कियो,
कोनो बन्न नाला जकाँ चुप बहि गेल जिनगी हमर।
जिनगी "ओम" बीतेलकै बीचहि धार औनाइते,
भेंटल नै कछेरो कतौ, बस दहि गेल जिनगी हमर।
(बहरे मुक्तजिब)
शुक्रवार, 9 मार्च 2012
निर्मोहिया (कथा)
हुनकर नाम छल सदानन्द मंडल। माता-पिता हुनका सदन कहैत छलखिन्ह। हुनका नेनपने सँ नाटक-नौटंकी सब मे पार्ट लेबाक शौक छलैन्हि। कनी कऽ कविता शेर सब मे सेहो हुनका मोन लागैत रहैन्हि। ओ अपन उपनाम निर्मोही राखि लेने छलैथ। नाम पूछबा पर अपन नाम सदन निर्मोही बताबैत छलाह। शनैः-शनैः हुनकर नाम निर्मोही जी, निर्मोही आ निर्मोहिया प्रसिद्ध भऽ गेल छलैन्हि। घर-परिवारक लोकक अलावे दोस्त महिम सब हुनका निर्मोही नाम सँ जानऽ लागल छल। हुनकर एकटा बाल सखा छलैथ जिनकर नाम छल घूरन सदा। घूरन सेहो निर्मोही जकाँ नाटक कविताक शौकीन छलाह आ एहि सब मे भाग लैत छलाह। ओ अपन नाम दीवाना राखने छलाह। निर्मोही-दीवानाक जोडी पूरा परोपट्टा मे प्रसिद्ध छल। दुर्गा पूजा मे गाम मे नाटक बिना निर्मोही-दीवाना केर सम्भव नै छल। कोनो आयोजन हुए वा ककरो एहिठाम बरियाती आबै आ की कतौ अष्टजाम होय, सबठाँ निर्मोही आ दीवानाक उपस्थिति परम आवश्यक रहै। निर्मोही-दीवाना गामक लेल नौशाद, खैय्याम, रफी, मुकेश, किशोर आदि सब छलाह। जखने गाम मे कोनो सान्स्कृतिक कार्यक्रम होय की लोक जल्दी सँ जा कऽ अगिला सीट लेबाक कोशिश करैत छल जाहि सँ निर्मोही-दीवानाक नीक जकाँ देख सकल जाइ। कहै केर इ तात्पर्य की निर्मोही आ दीवाना सबहक मनोरंजनक पूर्त्ति करैत छलाह। नाटकक आयोजन मे उद्घोषक जखने कहै की आब निर्मोही दीवाना मन्च पर आबि रहल छथि की तालीक गडगडी सँ पूरा आकाश बडी काल धरि गनगनाईत रहै छल। मन्च पर आबैत देरी दुनू गोटे जनता केँ नमस्कार कऽ कए शुरू करैत छलाह- "हम छी निर्मोही-दीवाना, सब दुख सँ अनजाना, लऽ कए आबि गेल छी, मनोरंजनक खजाना।" आ की लोक ताली बजबय लागै। तकर बाद फिल्मी गाना, पैरोडी, कविता, शाईरी आदि सँ ओ दुनू गोटे पूरा मनोरंजन करैत छलखिन्ह। तहिना गाम मे कोनो बरियाती आबै तऽ इ दुनू गोटे ओहि दरबज्जा पर पहुँचि जाइ छलाह। हुनकर सबहक इ सेवा निशुल्क रहैत छल। कियो भोजन करा दैत छल, तऽ ठीक, नै तऽ कोनो बात नै। हिनकर सबहक कोनो माँग नै छलैन्हि। नेनपने सँ हमरा मोन मे हिनका सबहक प्रति बड्ड आदर छल। हिनकर सबहक निस्वार्थ सेवा देखि हमरा सदिखन यैह लागल जे इ सब सही मे साधु छथि। हिनका सबहक परिवारक खर्चा कहुना कऽ चलैत छल। कखनो माता-पिताक हुथनाइ आ कखनो कनियाँक बात कथा। मुदा हिनका सब पर कोनो असर नै छल। साँझ होइत देरी दुनू मुखियाजीक पोखरिक भिंडा पर आबि जाइत छलाह, जतय पहिने सँ छौंडा आ जुआन सब हिनकर सबहक प्रतीक्षा मे बैसल रहैत छलाह। तकर बाद शुरू भऽ जाइत छल मुशायरा इ शायर-द्वय केर।
समयक गाडी तेजी सँ भागैत रहल। हम पढि कऽ किरानीक नौकरी करऽ लागलौं। गाम एनाई कम भऽ गेल। शुरु मे तऽ नियम बना कऽ होली, दुर्गा पूजा, छठि मे आबैत रहलौं। बाद मे इहो एनाई जेनाई बड्ड कम भऽ गेल। गाम मे धीरे धीरे सब किछ बदलि गेल। नाटकक चलन सेहो खतम भेल जाईत छल। ओकर बदला मे थेटर आ बाईजीक चलन बढल जाईत छल। बरियातीक स्वागत सत्कार मे अपनैतीक स्थान पर यान्त्रीकरण जकाँ बेबहार हुए लागल छल। निर्मोही आ दीवानाक पूछनिहारक संख्या सेहो घटल जाईत छल। घूरन सदा अपन परिवारक दारूण स्थिति देखि नौकरीक जोगाड मे लागि गेलाह आ कहुना कऽ एकटा प्राइवेट प्रेस मे दरिभंगा मे नौकरी करऽ लागलाह। ओ अपन बाल सखा सदानन्द मंडल उर्फ सदन निर्मोही केँ सेहो लऽ जेबाक प्रयास केलखिन्ह, मुदा निर्मोही नहि गेलथि। निर्मोहीक स्थिति आरो खराप भेल गेल आ तमाकूलक खर्ची तक निकलनाई भारी हुअ लागल। मुदा निर्मोही अपन कविता शाईरीक शौक नै छोडलैन्हि। एक बेर दुर्गा पूजा मे गाम एलहुँ। साँझ मे मेला घूमै लेल गेलौं। पता चलल जे एहि बेर एकटा पैघ थेटर आयल अछि। हम कक्का सँ निर्मोहीजी दिया पूछलियैन्हि। कक्का कहलथि जे ओ बताह भऽ गेल छथि। कतौ कोनटा मे ठाढ भऽ कऽ अपन बडबडाईत हेताह। हम चारू कात ताकऽ लागलौं। देखलौं जे मेलाक एकटा अन्हार कोन मे ओ वीर रसक कविता पूरा जोश मे पाठ करैत छलाह आ बच्चा सब हुनकर चारू कात घेरा बना कऽ ताली बजबैत छल। हम लग गेलौं। निर्मोहीजीक दाढी पूरा बढल छल। आँखि मे काँची, उजडल केश, फाटल कुरता.... हमर मोन करूणा सँ भरि गेल। हम गोर लागलियैन्हि आ पूछलियैन्हि- "कक्का चिन्हलौं?" ओ हमरा धेआन सँ देखि बजलाह- "अहाँ ओम थीकौं ने।" हम- "अहाँ अपन की हाल बना लेने छी। काकी आ बच्चा सबहक की हाल?" निर्मोही- "यौ सब कहुना कऽ जीबि रहल छै। खेनाईक जोगाड कहुना भऽ जाईत अछि।" हम- "कविता शाईरीक की हाल?" निर्मोही- "कियो पूछनिहार तऽ रहल नै। बस अपने रचना करैत छी आ नित्य साँझ मे पोखरिक भिंडा पर जा कऽ असगरे पाठ करैत छी। लोक बताह कहैत ए। सब बुडिबक छथि। साहित्य आ रचनाक महत्व की बूझताह।" हम- "कोनो नौकरी नै केलियै अहाँ?" निर्मोही- "हमर जन्म नौकरी करबा लेल नै भेल अछि। हम अपन जिनगी गीत-संगीत आ शाईरीक नाम लिख देने छी।" हम- "इ तऽ ठीक अछि। मुदा काकी आ बच्चा सभक तऽ सोचियौ।" निर्मोही- "अरे सभक देखनिहार भगवान छथि। भगवान सभक जोगाड करथिन्ह।" हमरा रहल नै गेल आ हम किछ आर्थिक मदति करबाक कोशिश केलौं, मुदा ओ लेबा सँ मनाही कऽ देलथि। कहलथि- "अहाँक चाह पीबि लेलौं, बस वैह बहुत अछि। हमरा कोनो मदति नै चाही।" हम हुनका सँ अनुमति लऽ कऽ मेला सँ गाम दिस चललहुँ। सोचऽ लागलहुँ जे इ कोन बतहपनी भेल। परिवारक विषय मे नै सोचबाक छलैन्हि तऽ बियाह किया केलाह निर्मोही जी। फेर इहो सोचऽ लागलौं की समाजक लोक मनोरंजन तऽ चाहै छथि, मुदा मनोरंजन पर पाई नै खर्च करऽ चाहै छथि, से किया। नीक सँ नीक कलाकार जँ अपन कोनो रोजगार नै करै तऽ भूखले मरि जाईत ए। समाज एहन निर्मोही कियाक अछि। जे कहियो सबहक तालीक केन्द्र रहैत छलाह, से आब सब केँ बताह किया बूझा रहल छथिन्ह। यैह सब सोचैत हम निर्मोहीजीक आंगन पहुँचि गेलौं। आंगन मे हुनकर कनियाँ बैसि कऽ तरकारी काटै छलीह। हम गोर लागैत कहलियैन्हि- "काकी की हाल चाल?" ओ फाटल आँचर सँ अपन माथ झाँपैत कहलथि- "कहुना कऽ जीबि रहल छी बउआ। तेहेन निर्मोही सँ बाबू बियाह करा देलथि, जिनका पर-परिवारक कोनो मोह नै छैन्हि।" हम- "काकी, कक्का तऽ साहित्य संगीत मे लागल छथि। हुनका एना निर्मोही जूनि कहू।" काकी- "जँ एहन गप अछि तँ साहित्ये संगीत सँ बियाह किया नै कऽ लेलथि? दू टा बेटा जुआन भऽ कऽ कतौ पलदारी करैत छैन्हि। बेटी केँ बियाहक कोनो चिन्ता नहि। एहन कोन साहित्य प्रेम? हमर ससुर बीमार भऽ कऽ दवाईक अभाव मे तडपि तडपि कऽ मरि गेलाह। हुनकर मरलाक बाद ओ केश आ दाढियो नै कटेलथि। इ कोन बतहपनी भेलै?" हम ओतय सँ चलि देलहुँ। सोचऽ लागलौं जे सब लेल ओ निर्मोही आ हुनका लेल सब निर्मोही।
समयक पहिया घूमैत रहल। १० बरख बीत गेल। गरमी छुट्टी मे बच्चा सब केँ लऽ कऽ गाम आयल छलहुँ। एक दिन दलान पर बैसल छलहुँ की रमन भाई कहैत अयलाह- "निर्मोही गोल भऽ गेलाह। किछ दिन सँ बिछौन धेने छलाह। कोनो गम्भीर रोग सँ पीडित भऽ गेल छलाह।" हम रमन भाईक संग निर्मोही जीक दलान पर गेलौं। ओतुक्का दृश्य बड्ड कारूणिक छल। काकी उठा उठा देह पटकै छलीह आ कानैत छलीह इ बाजि बाजि जे जिनगी भरि निर्मोहिया रहलौं आ आइयो निर्मोहिया बनि उडि गेलौं। हम आंगन मे पडल लहाश केँ देखलहुँ। बाँसक चचरी पर सदानन्द मंडल उर्फ सदन निर्मोही उर्फ निर्मोहिया शांति सँ पडल छलथि। एकदम शांत, बिना कोनो मोह केँ दीर्घ विश्राम मे छलाह निर्मोही जी। पूरा गाम ओतय जुटल छल आ निर्मोहीक संगीत कविताक चर्चा करैत छल। हम दलानक कोठरी मे गेलहुँ जतय निर्मोही रहै छलाह। एकटा टूटलाहा काठक अलमीरा मे हुनक हाथ सँ लिखल ढेरी पाण्डुलिपि पडल छल। किछ दीमक सँ खाएल छल आ किछ कागतक सियाही पसरि गेल छलै। हुनकर सिरमा तर मे एकटा कागत छल जै पर किछ लिखल छल। इ हुनकर अन्तिम रचना छल, जे पूरा नै छल। ऐ मे लिखल छलः-
इ जग छै निर्मोही, बन्धन तोडि कऽ उडि जाउ।
आब नै घूमू, कियो कतबो कहै जे घुरि जाउ।.............................................................................
निबंध प्रतियोगिता
दिल्ली सँ प्रकाशित मासिक मैथिलि पत्रिका मिथिलांचल पत्रिका के द्वारा कक्षा ८ सँ ल के बी.ए/बी.एस.सी/ बी.कॉम/इंजीनियरिंग /चिकित्सा विज्ञानं के छात्र हेतु एकटा निबंध प्रतियोगिता रखल गेल अछि .
निबंध के विषय :- "मातृभाषाक माध्यम सँ विज्ञानं एवं प्रोद्योगिकी के शिक्षा कतेक सार्थक अछि "
जाही में प्रतिभागी हेतु नियम :-
१. कक्षा ९ सँ - स्नातक तक के छात्र भाग लय सकैत छथि
२. उम्र सीमा - १२ वर्ष -२२ वर्ष
३.रचना मौलिक हेबाक चाही एवं स्व लिखित हेबाक चाही
४.आलेख मैथिलि भाषा में हेबाक चाही
५.रचना पठेबक अंतिम तिथि - २५ मार्च २०१२
६. प्रतिभागी लोकनि अप्पन आलेख mithilanchalpatrika@gmail.com
या B-2/333 Tara Nagar, Old Palam Road Sec-15 Dwarka New Delhi-110078. पर पठाबी
७. आलेखक संग अप्पन परिचय एवं पत्राचारक पता अबश्य पठाबी
८. विशेष जानकारी हेतु संपर्क करी Mob -9990065181 / 9312460150 / 09762126759.
निर्णयाक मण्डली में छैथि :- १.डॉ. कैलाश कुमार मिश्र २.डॉ. प्रेम मोहन मिश्र ३. श्री गजेन्द्र ठाकुर ४. डॉ. शशिधर कुमार
पुरस्कार :- निबंध प्रतियोगिता में चयनित प्रतिभागी के समुचित पुरस्कार राशी एवं प्रमाणपत्र पठौल जाएत
भबदीय
डॉ. किशन कारीगर
(संपादक ) मिथिलांचल पत्रिका
सोमवार, 5 मार्च 2012
मैथिलि--काव्य: GAJAL
रविवार, 4 मार्च 2012
सुनि गप्प विआह कें
मन अध्हर्षित अध्दुखित भेल |
सुझाए लागल ब्रह्माण्ड हमरा
तन-मन आकुल-व्याकुल भेल ||
क्षणिक सोइच आनन्द विआह कें
हम कुदअ लगलौं चाईर-चाईर हाथ |
द' चौबनियाँ मुस्कान
हम गुद्गुदाए लगलौं भईर-भईर राइत ||
नै छलौं देखने हुनका
नै छल हुनकर कोनो ज्ञान |
नै जानि तइयौ हुनके
कियाक बुझैत छलौं अपन प्राण ||
अचानक केखनो क' हमरा
मन मे भ' जाइत छल साइत --
नै जानि ओ केहन हेती
अनाड़ी हेती या व्यावहारिक हेती !
बुझल छल हमरा एतबाए
हुनक व्यस(उम्र) छनि सोलह साल |
तांए डेराइत छलौं हम
कोना करब "प्रेमक' बात ||
बुझल छल हमरा एतबाए
ओ नैन्ना हम स्यान |
तांए डेराइत छलौं हम
कोना करब एकहि घाट हम स्नान ||
मुदा मन के बुझअलौं- की करबअ ?
मिथिला कें छै इहाए विधान
"कनियाँ नैन्ना " आ "वर स्यान " ||
:गणेश कुमार झा "बावरा"
गुवाहाटी
रंग विरंगक रसरंग सं भौजी के रंगाएल चोली
रंग उडैए छै अवीर उडैए छै देखू आएल होली
होली के रंग में रंगाएल सभक एकही रूपरंग
... दोस्ती के रंग में रंगाएल दुश्मन देखू आएल होली
प्रेम स्नेहक पावैन होली गाबैए गीत फगुआ टोली
रसरंग सरोवर भेल दुनिया देखू आएल होली
रंग में रंगाएल शरीर गाबैए गीत जोगी फकीर
गाबैए जोगीरा बजाबैए मृदंग देखू आएल होली
रंग उड़ाबैए रंगरसिया कियो उड़ाबैए अवीर
तन मोन सभक रंगाएल देखू आएल होली
......................वर्ण-२०.
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
शनिवार, 3 मार्च 2012
मैथिली - मिथिला - मैथिल!
नाम हमर छी मैथिल भैया, मिथिला हमर गाम यौ,
मैथिली भाषी हम सभ सगरो पसरल जग ओ जहान यौ!
एहि धरतीके पावन केलीह जगज्जननी सिया जानकी
जनक समान विदेहराज केँ पाहुन बनलैथ रामजी!
पुण्य भूमि मिथिलामें अयलाह एक पर एक विद्वान् यौ,
मैथिली भाषी हम सभ सगरो, ...
नाम हमर छी मैथिल भैया, ...
कवि विद्यापति जन्म लेलनि रचैत साहित्यिक नव आइना
आनक देक्सी छोड़ू यौ जनगण गाबू निज देसिल वयना
एहि धरतीपर जन्म लेलनि जे जगके देखावथि राह यौ!
मैथिली भाषी हम सभ सगरो...
नाम हमर छी मैथिल भैया...
यैह थीक मिथिला जेकर बीज सँ राजनीति के ज्ञान बनल
लोहिया जेपी कर्पूरी ओ सूरज मिथिला दीपक शान बनल
देव-पितर-ऋषि-मुनिजन ज्ञानी कयलनि जग कल्याण यौ!
मैथिली भाषी हम सभ सगरो...
नाम हमर छी मैथिल भैया...
दिव्य संपदा केवल वाञ्छित नहि चाही जगछूल ढौआ
त्याग समर्पण नींब बनल वैह बेटा बनैछ कहैछ बौआ
आइ स्वार्थ में डूबि छै ढहल मिथिला किला महान यौ
मैथिली भाषी हम सभ सगरो...
नाम हमर छी मैथिल भैया...
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२
पंचतत्व रचित इ अधम शरीर
घाऊ अछि सभक मोन में गंभीर
सुख के खोज में दुनिया लागल
राजा रंक जोगी फकीर .............
हो भैया, राजा रंक जोगी फकीर
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर//
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२
सुख नहि हुनका भेटल जग में
जे दुःख सं मुह मोड़ी पड़ाएल
जराबू मोन में जीवन दर्शन ज्योति
दुःख क सागरमे भेटै छैक
सुख स्वरुप अपार हिरामोती
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर//
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२
भाग्य सं बढ़ी के जगमे किछु नहीं बलवान
पल में राजा रंक भेल विप्र बनल धनवान
राजपाठ सभ त्यागी भेल राम लखन वनवासी
बिक गेल राजा हरिश्चंद्र बनल डोमक दासी
हो भैया,राजा हरिश्चंद्र बनल डोमक दासी
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर //
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२
जीवन एक संघर्ष दुःख छै महा संग्राम
कांटक डगैर चलैत रहू लिय नै विश्राम
दुःख क संघर्ष सं भेटैय छै सुख आराम
दुःख सुख छै जीवन,जिनगी एकरे नाम
हो भैया,जिनगी एकरे नाम ..............
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर //
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
शुक्रवार, 2 मार्च 2012
Koyali Ke Kuhu-Kuhu!
प्रकृतिके सुन्दर लीला - बसन्त ऋतुके आगमन आ बाग-बगिया सँ - बारी-झारी सँ - कलम-गाछीसँ - खेत-खरिहानसँ - चर-चाँचरसँ कोयलीके कू-कू कानमें पड़ैछ, आवाज एहेन सुरम्य - एहेन मीठ जे स्वतः मनमें मिश्री घोरैछ। जेम्हर देखू तेम्हर मादकता आ सरसता छलैक रहल अछि एहि सुन्दर सुहावन मौसममें। मिथिला के कण-कण मगन भेल रहैछ। मगन होयबाक बहुत रास कारण छैक। एहि मासके मधुमास सेहो कहल जाइछ - आममें मज्जड़ लागि गेल छैक आ रस टपैक रहल छैक, मौह सन कठोर काठके गाछ सेहो एहि मास फुलायल छैक आ फूलसँ रस एक सुन्दर भावभिनी सुगंधसँ सराबोर टपैक रहल अछि - समूचा वातावरण में जेना कामदेव किछु विशेष छटा पसैर देने होइथ, रति संग विचरण करैत समूचा संसारके अपन विशेष पुष्पवाणसँ बेध के कामित-कल्पित सुधारसमें डूबा देने होइथ। ऊपर सँ होलीके खुमारी - रंग-अबीर आ भांगक मद पसरि रहल अछि। मुनिगामें फूल - लिचीमें मज्जर - नेबो में मज्जर - सुन्दर-सुहावन फूल चारू दिस खिलल - सभ गाछ-वृक्ष नवपल्लवसँ लदब शुरु भऽ गेल अछि। वातावरणमें प्रकृति एहेन सुगंध पसारने आ ताहिपर सँ पछवा हवा के झोंक - ठोड़ धिपल, रक्त-संचार तीव्र, आँखि लड़लड़, प्रेयसी ओजसँ भरल चारुकात देखाय लागलि छथि। सजनीके कोनो वस्तु नीक नहि लागि रहल छन्हि - बस एकटकी सजनाके बाट जोहय लगलीह छथि। लोक के कि कहू - चरा-चुनमुनी-जीव-जन्तु सभ अपन बिपरीतलिंगीके तरफ आकर्षित होइत मानू प्रकृति द्वारा प्रदत्त विशिष्ट प्रजननशक्तिसँ लवरेज केवल किछु क्षण प्रेममें डूबय चाहि रहल अछि। हाय रे बसन्त! बसन्तके पूर्वैयाके शीतलता तऽ आरो मारूख! जनलेवा! बस स्नेहीजन अपन खोंतामें गुप्तवास-सहवास लेल आतूर छथि। कोयली के कुहू-कुहू एहि मस्त वातावरणमें प्राकृतिक संगीतके धुन भरैछ। अपन धुनसँ प्रेमी-प्रेयसीकेँ मानू किछु विशेष दिव्य संदेश प्रदान कय रहल हो। यैह मासमें कोयली सेहो अपन डीम पाड़ैछ। लेकिन फगुवाके धुनकीके इलाज लेल प्रकृति नीमक टूस्सी - मुनिगाके फूल सेवन लेल कहैछ तऽ मिथिलाके निछच्छ गाममें भाँग सेवनके विशेष परंपरा चलैछ। हर तरहें तीव्र रक्त संचारकेँ अपन नियंत्रणमें राखय लेल विवेकी मनुष्य तत्पर रहैछ। एहि मासक दुपहरिया आ अर्द्धरात्रि विशेष रूपसँ ऊफान पर रहैछ - चारू कात जखन सभ किछु शान्त रहैछ ताहि घड़ी प्रेमी-प्रेयसी एक-दोसरके स्मृतिमें डूबल ओ सजल नेत्र सँ एक-दोसरक दिव्यताके दर्शन लेल व्याकुल रहैछ। हवाके रुइख एहेन जे असगरे घूमैत किछु नजैर पर चैढ गेल तँ मदमस्तीमें आँखि भैर जैछ। खेत आ गाछी भ्रमण के विशेष चलन मिथिलाके बसन्तक अलगे शान - भ्रमित घूमैत युवा लेल अलगे ध्यान के परिचायक एहि मासकेँ होलीके रंग आ रगड़ संग रभस मात्र ओरिया सकैत अछि। होलीके आगमन जौँ -जौँ नजदीक भेल जा रहल अछि - बसन्त तौँ-तौँ परवान चढल जा रहल अछि। गीतक बोल फगुआ के रस घोरैछ आ चैतावर सऽ शमन करैछ। एहेन में कोयली जँ अर्द्धरात्रिकाल कुहकय तऽ प्रेयसीकेँ तामस चढब उचिते कहल गेल छैक। तामसो एहेन जे भिनसर होइते ओकर खोता उजड़बा देतीह। हाय रे प्रकृति! हाय रे बसन्त! हार रे रस-मद भरल मधुमास! आ, हाय रे कोयलियाके कुहुकब!
लेकिन चिन्ता नहि करू हे सन्त-ज्ञानीजन! पहिले तऽ होली दिन भीतरका अहंरूपी हिरण्यकशिपुके मारैत आत्मारूपी प्रह्लादके रक्षार्थ प्रभुजी स्वयं नरसिंहरूपमें खंभा फाड़िके प्रकट हेताह आ तदोपरान्त खेलल जायत दानवकेर खून सँ होली आ रिझायल जायत प्रह्लादकेँ - आ फेर सभके अवलम्ब राम स्वयं अवतरित हेताह चैतक नवमी अर्थात् रामनवमी!
स्मरण करब हम सभ - सीताराम चरित अति पावन - मधुर सरस अरु अति मनभावन!
हरिः हरः!
बसन्त ऋतुके सुन्दर लीला
प्रकृतिके सुन्दर लीला - बसन्त ऋतुके आगमन आ बाग-बगिया सँ - बारी-झारी सँ - कलम-गाछीसँ - खेत-खरिहानसँ - चर-चाँचरसँ कोयलीके कू-कू कानमें पड़ैछ, आवाज एहेन सुरम्य - एहेन मीठ जे स्वतः मनमें मिश्री घोरैछ। जेम्हर देखू तेम्हर मादकता आ सरसता छलैक रहल अछि एहि सुन्दर सुहावन मौसममें। मिथिला के कण-कण मगन भेल रहैछ। मगन होयबाक बहुत रास कारण छैक। एहि मासके मधुमास सेहो कहल जाइछ - आममें मज्जड़ लागि गेल छैक आ रस टपैक रहल छैक, मौह सन कठोर काठके गाछ सेहो एहि मास फुलायल छैक आ फूलसँ रस एक सुन्दर भावभिनी सुगंधसँ सराबोर टपैक रहल अछि - समूचा वातावरण में जेना कामदेव किछु विशेष छटा पसैर देने होइथ, रति संग विचरण करैत समूचा संसारके अपन विशेष पुष्पवाणसँ बेध के कामित-कल्पित सुधारसमें डूबा देने होइथ। ऊपर सँ होलीके खुमारी - रंग-अबीर आ भांगक मद पसरि रहल अछि। मुनिगामें फूल - लिचीमें मज्जर - नेबो में मज्जर - सुन्दर-सुहावन फूल चारू दिस खिलल - सभ गाछ-वृक्ष नवपल्लवसँ लदब शुरु भऽ गेल अछि। वातावरणमें प्रकृति एहेन सुगंध पसारने आ ताहिपर सँ पछवा हवा के झोंक - ठोड़ धिपल, रक्त-संचार तीव्र, आँखि लड़लड़, प्रेयसी ओजसँ भरल चारुकात देखाय लागलि छथि। सजनीके कोनो वस्तु नीक नहि लागि रहल छन्हि - बस एकटकी सजनाके बाट जोहय लगलीह छथि। लोक के कि कहू - चरा-चुनमुनी-जीव-जन्तु सभ अपन बिपरीतलिंगीके तरफ आकर्षित होइत मानू प्रकृति द्वारा प्रदत्त विशिष्ट प्रजननशक्तिसँ लवरेज केवल किछु क्षण प्रेममें डूबय चाहि रहल अछि। हाय रे बसन्त! बसन्तके पूर्वैयाके शीतलता तऽ आरो मारूख! जनलेवा! बस स्नेहीजन अपन खोंतामें गुप्तवास-सहवास लेल आतूर छथि। कोयली के कुहू-कुहू एहि मस्त वातावरणमें प्राकृतिक संगीतके धुन भरैछ। अपन धुनसँ प्रेमी-प्रेयसीकेँ मानू किछु विशेष दिव्य संदेश प्रदान कय रहल हो। यैह मासमें कोयली सेहो अपन डीम पाड़ैछ। लेकिन फगुवाके धुनकीके इलाज लेल प्रकृति नीमक टूस्सी - मुनिगाके फूल सेवन लेल कहैछ तऽ मिथिलाके निछच्छ गाममें भाँग सेवनके विशेष परंपरा चलैछ। हर तरहें तीव्र रक्त संचारकेँ अपन नियंत्रणमें राखय लेल विवेकी मनुष्य तत्पर रहैछ। एहि मासक दुपहरिया आ अर्द्धरात्रि विशेष रूपसँ ऊफान पर रहैछ - चारू कात जखन सभ किछु शान्त रहैछ ताहि घड़ी प्रेमी-प्रेयसी एक-दोसरके स्मृतिमें डूबल ओ सजल नेत्र सँ एक-दोसरक दिव्यताके दर्शन लेल व्याकुल रहैछ। हवाके रुइख एहेन जे असगरे घूमैत किछु नजैर पर चैढ गेल तँ मदमस्तीमें आँखि भैर जैछ। खेत आ गाछी भ्रमण के विशेष चलन मिथिलाके बसन्तक अलगे शान - भ्रमित घूमैत युवा लेल अलगे ध्यान के परिचायक एहि मासकेँ होलीके रंग आ रगड़ संग रभस मात्र ओरिया सकैत अछि। होलीके आगमन जौँ -जौँ नजदीक भेल जा रहल अछि - बसन्त तौँ-तौँ परवान चढल जा रहल अछि। गीतक बोल फगुआ के रस घोरैछ आ चैतावर सऽ शमन करैछ। एहेन में कोयली जँ अर्द्धरात्रिकाल कुहकय तऽ प्रेयसीकेँ तामस चढब उचिते कहल गेल छैक। तामसो एहेन जे भिनसर होइते ओकर खोता उजड़बा देतीह। हाय रे प्रकृति! हाय रे बसन्त! हार रे रस-मद भरल मधुमास! आ, हाय रे कोयलियाके कुहुकब!
लेकिन चिन्ता नहि करू हे सन्त-ज्ञानीजन! पहिले तऽ होली दिन भीतरका अहंरूपी हिरण्यकशिपुके मारैत आत्मारूपी प्रह्लादके रक्षार्थ प्रभुजी स्वयं नरसिंहरूपमें खंभा फाड़िके प्रकट हेताह आ तदोपरान्त खेलल जायत दानवकेर खून सँ होली आ रिझायल जायत प्रह्लादकेँ - आ फेर सभके अवलम्ब राम स्वयं अवतरित हेताह चैतक नवमी अर्थात् रामनवमी!
स्मरण करब हम सभ - सीताराम चरित अति पावन - मधुर सरस अरु अति मनभावन!
शिवताण्डवस्तोत्रम् ।
शिवताण्डवस्तोत्रम् ।
अनुवाद :-डा0 चन्द्रमणि.
जटारूप अटवी वन निकसलि जाह्नवीक पावन धारा
गरदनि अवलम्बित फणिमाला ताण्डव नृत्य प्रचण्ड परा,
डिमिक डिमिक डिम डमरु बाजे स्वर लहरी अनुगुंज करे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।1।
जटा कड़ाही मध्य तरंगित गंग सुशोभित शीश जनिक,
धह-धह ज्वाल ललाटक मध्ये राजित बालक शोम तनिक,
शुचि शरीर सुन्दर शशि शेखर सदा हृदय अनुराग भरे
करु कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।2।
धन-धन गिरि तनया विलास निर्लिप्त निरासक्ते योगी,
हुलसित लखि चहुँदिशि प्रकाश निज शिर-भूषण जन-उपयोगी,
सतत् कृपा दृग पाबि दिगम्बर कष्ट हरे आमोद भरे,
करु कल्याण हमर शिव शंकर जयशिव जयशिव हरे-हरे ।3।
जटाजूट आवर्तित फणि-मणि कुंकुम रागालेप प्रभा,
आलोकित चहुँ दिशा हस्ति चर्माम्बर पहिरन हरक सदा,
ताहि विलक्षण भूतनाथ मे मन विनोद सदिकाल करे,
करू कल्याण हमर शिव शंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।4।
इन्द्रादिक मस्तक आवर्तित पुष्प पराग चरण-पनही,
नागराज केर हार निबद्धित जटा शिखर शशि टा धनही,
चिर संपत्ति घटय नहि कहियो रिक्त हमर भंडार भरे,
करु कल्याण हमर शिव शंकर जयशिव जयशिव हरे-हरे ।5।
अग्नि प्रज्वलित भालक वेदी मन्मथ शमन तेज सं भेल,
भाल विशाल कलाधर शोभित छथि आराध्य इन्द्रहुक लेल,
मस्तक महाजटिल शिवशंभुक मम अभिष्ट श्री सिद्ध करे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे ।6।
धह धह अनल भाल विकराले कयल कामदेवहुक हवन,
गिरितनया-कुच पत्रभंग रचना कारीगर शिवा रमण,
अटल भक्ति एकाग्रचित्त हो तीन नयन मे ध्यान धरे,
करू कल्याण हमर शिव शंकर जयशिव जयशिव हरे हरे ।7।
अमारात्रि केर नवल मेघमाला सन कारी कण्ठ जनिक,
हस्तिचर्म धारक तारक विश्वेश गंगपति चन्द्रमणिक,
परम मनोहर कान्तिवान भगवान धनक विस्तार करे,
करू कल्याण हमर शिव शंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।8।
नील कमल दल श्याम प्रभा अनुगमना हरिणी-छवि ग्रीवा,
त्रिपुर काम भव दक्ष यक्ष हरि अन्धक यम हति देव-शिवा,
विघ्न विनाशक पिता महादेव सकल ताप परिताप हरे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।9।
दंभ रहित गिरिजाक मधुप जे कला कदम्ब मंजरी पान,
दक्ष यक्ष हरि यम भव अन्तक मन्मथ त्रिपुर असुर अवशान,
महादेव मम कष्ट विनाशक दिवा राति मन भजन करे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।10।
सिर भुजंग फुफकार वेग सं अनल ललाट धधकि रहलइ,
शिव प्रचणड ताण्डव आलोकित धिमि धिमि नाद धमकि रहलइ,
गुंजित मंगल घोष चहुँदिशि मंगल मंगल सदा करे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।11
पाथरवत् पुनि कोमल सेजे साँप आर मुक्ता माला,
रत्न माँटि मित शत्रु अभेदे दुर्वादल अक्षी-कमला,
प्रजा आर पृथ्वीपति में समभाव राखि मन जपन करे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।12।
ललित ललाट भाल चन्दा मे सदिखन स्थिर चित्त रहय,
सुरसरि तट करजोरि भाव निर्मल मन शिव केँ जाप करय,
सजल नेत्र शिव चरण कमल मे पल पल छिन छिन नमन करे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे ।13।
अति उत्तम स्तोत्रक वर्णन पाठ नित्य स्मरण करय,
शिवगुरू भक्ति मिलय तहि जन केँ नहि विलोम गति लेश रहय,
गिरिजापति पद भक्ति अहर्निश भवबंधन सं मुक्त करे,
करू कल्याण हमर शिव शंकर जयशिव जयशिव हरे हरे ।14।
इति पूजा संध्याकाले दसकंधर पठितक पाठ करे,
से नर गज रथ सुत धन पावे सदा सुखी संतान रहे,
अटल भक्ति सं अचल संपदा आशुतोष धन धान्य भरे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव जयशिव हरे हरे ।15।
अनुवादक: डा0 चन्द्रमणि.