बुधवार, 11 जनवरी 2012

गजल


जिनगीक गीत अहाँ सदिखन गाबैत रहू।
एहिना इ राग अहाँ अपन सुनाबैत रहू।

ककरो कहै सँ कहाँ सरगम रूकै कखनो,
कहियो कियो सुनबे करत बजाबैत रहू।

खनकैत पायल रातिक तडपाबै हमरा,
हम मोन मारि कते दिन धरि दाबैत रहू।

हमरा कहै छथि जे फुरसति नै भेंटल यौ,
घर नै, अहाँ कखनो सपनहुँ आबैत रहू।

सुनियौ कहै इ करेजक दहकै भाव कनी,
कखनो त' नैन सँ देखि हिय जुराबैत रहू।
------------- वर्ण १७ ---------------

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रस्तुति .कृपया इन आंचलिक ग़ज़लों को और ज्यादा सराहनीय अपठनीय बनाने के लिए हिंदी अनुवाद मुहैया करवाएं .वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा ,४ सी ,अनुराधा ,नोफ्रा ,कोलाबा ,मुंबई -४००-००५ ,०९३५०९८६६८५ /०९६१९०२२९१४ ).

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