शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

प्रिये पाठक

      प्रिये  पाठक  

आदर करैत  छी  जन - जन सं ,
प्रिये  पाठक  छी अतिथि  हमर |
हम निर्भर  करैत  छी ओही पर ,                                                                      
जे संतुष्टि  लक्ष्य अछि  हमर |
        आदर करैत छी जन - जन सं ,
         प्रिये  पाठक  छी अतिथि  हमर |

मधुर वचन  जीवनक  श्रेय  अछी ,
प्रेम स्नेह  जग - संसार में |
बोली - वचन  सुख सँ सम्रिध्ह ,
आत्मरक्षा के  अधिकार में |
          आदर करैत छी जन - जन सं ,
          प्रिये  पाठक  छी अतिथि  हमर |

फुरसैतक  कमी  सब के  संग अछी ,
बेश्त  आई          संसार    अछी |
मिथिय्या  जिनगी  छोरी  चलल ,
आस्तित्व  रहस्य   अधिकार में |
          आदर करैत छी जन - जन सं ,
          प्रिये  पाठक  छी अतिथि  हमर |

होर परस्पर आई लागल  ,
आगू बढाइये के प्यास  जागल |
अप्पन  पद  सेवा के खातिर  ,
 जग में आई  अधिकार  भेटल |                           
         आदर करैत छी जन - जन सं ,
          प्रिये  पाठक  छी अतिथि  हमर |

प्रेम - भाव  भाई चारा के संग ,
मानव अहि सँ  प्यासल आई |
एक  - दोसर के  पार लगाऊ ,
जन  - जन से   नारा  हमर  |
          आदर करैत छी जन - जन सं ,
          प्रिये  पाठक  छी अतिथि  हमर |









(मदन  कुमार  ठाकुर  )

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

गलती


 ग़लती भेल छल आय हमरा से
जकर  कुनो जबाब नही आय,
जकर दुःख -दर्द हम बुझैत छी  
लोक लाज से भीने मरैय छी
दूर देश के आय पराई त छी
क्याकी .............
ग़लती भेल छल आय हमरा से ......

छोटका न्नाह बचा संन छेलो
गुली- डांटा मे समय बीतेलो
बाबू- काका डातैत  रहीगेल
मूर्खख संग मूर्खे भोगेल ,
मान मे अयल से हम केलो
अपन उमर के मोज उरेलो
क्याकी ..........
ग़लती भेल छल आय हमरा से ......

पढ़ाई लेल जे कियो किछ बाजे
अपने ही सर पर थापर मारी
मूर्खे अच्छी ई सबटा दुनिया
सोचि -सोच्ची हम नही हिया हरी
बाबा -दादा के संपति नही कम
उही देख के उमर बितैत अच्छी
क्याकी ..........
ग़लती भेल आय हमरा से ......

टी वी भिसियार देखते देखते
गम घर मे घूमते घूमते
नेता सब के भाषण सुन-सुन
ग्न्नू झा के कहानि सुनी -सुनी 
अपन  कपार हम अपने पिटैय  छी  
क्याकी .........
ग़लती भेल छल  आय हमरा से ........

माय -बाबू के बात नही मानलो
सर समाजाक मान नही रखलो
चॉक -चोरहा मे हसी उरबी
बारका भैया की सब केलायत
छोट्कि भोजी नहियर ग़मेलायत
ई बात सब हम सोचिते राहलो
अपन कपार मे आगी लगेलो
क्याकी............
ग़लती भेल छल  आय हमरा से ........

पढ़ल लिखल छैथ लूटन बाबू
की अपन ओ नाम बानेलैथ
ओही से निक अक्वाली भैया
महीस चरबैत कोठा बनबेलैथ
फुलबा के अच्छी फुशिक खेती
मुसाए बाबा के फाटल धोती
देखलो गामक ई सब रीत
गबैत रहलो इहा हम गीत
क्याकी .............
ग़लती भेल आय हमरा से.........

अपन जीवन के हम की कहू
खापैर- बारहैंन से नयन जुरेलो
फIशी चढ़लो हम मरी जायब
ज़हरो ख़ाके स्वरगो से एलो
हारल थाकल मिथिला लैब मे बैस्लो 
 जीतू  जी कहलायत ई की केलो
मिथिला के आहा नाक कटेलो
क्याकी .............
   ग़लती भेल छल  आय हमरा से..........
~: लेखक :~
मदन कुमार ठाकुर
कोठिया पट्टीटोल
झंझारपुर (मधुबनी)
बिहार - ८४७४०४
मो - ९१-९३१२४६०१५०
ई मेल - madankumarthakur@gmail.com 
( आहूँ  गलती  जुनी  करू मिथिला सं )जय मैथिल, जय मिथिला

रविवार, 12 दिसंबर 2010

पटना पुस्‍तक मेला (10-21 DECEMBER, 2010)/

पटना पुस्‍तक मेला  (10-21 DECEMBER, 2010)/ 

 

ANTIKA PRAKASHAN,पटना पुस्‍तक मेलामे 10 से 21 दिसंबर, 2010 तक अंतिका प्रकाशनक स्‍टॉलपर

(E-10) मैथिली पोथीक लेल स्‍वागत अछि।

शनिवार, 11 दिसंबर 2010

लन्दन वाली कनियाँ


लन्दन वाली  कनियाँ

लेखक - 
जगदम्बा ठाकुर
पट्टीटोल, कोठिया ,
भैरव स्थान , झांझरपुर
मधुबनी , बिहार -८४७४०४
मोबाईल - 09312460150
ई मेल 
madanjagdamba@rediffmail.कॉम


       ( हम थोर बहुत जे शिक्षा के अध्यन केलो से गाम से केलो , शिक्षा कोनो खास नही अछि जतेक अछि ओतबे में समांबेस अछि

       परिवार ,समाज ,गाम - घर में ऐगो अलगे पहचान होयत अछि , जकरा हर मनुष्य अपन संस्कृति के तोर पर अध्यन आ पालन करैत अछि, चाहे मुर्ख होय या अमूल्य शिक्षा धरी ज्ञानी , देशी होय या कुनू विदेशी सब के लेल अपन-अपन संस्कृति के पहचान होयत अछि , जकर उदाहरण हम अपनेक सबहक सामने उपस्थित करैत छी , )
                     लन्दन वाली कनियाँ
(अनुराधा अपन बाबु जी से उदास स्वर में , ---)

    बाबु जी भैया के गाम से लन्दन गेना तक़रीबन चारिम साल छी ,मुद्दा एखन तक कुनू खोज -खबैर नही अछि , सब साल भरदुतिया आ रक्षा बंधन के दिन उदास बैस परैत छी , मुद्दा भया के कुन्नु चिन्ते नही ?

बाबु जी अनुराधा से -
बुच्ची एतेक उदास जुनी होऊ एक न एक दिन अहांक भैया जरुर ओता , लन्दन अहिठंन से सात समुन्दर पर स्थित अछि , वक्त त लगवे करैत अछि आखिर कत जायत ओ हमर बंस के मान मर्यादा रखबे करत --

(बच्चा काका बाबु जी से बात करैत बजला - )

      भैया , कोइलख गाम से अपन बड़का बउवा पर घटक बनी आयल छल ओ सब हमरा से बहुत निक जेका बात केलनी बुझाना गेल जे घटक सब निक आचार बिचार बाला सब छैथि , आ कनियाँ सेहो आर के कालेज से बी ए केने छैन , यदि अहांक आदेस होय त हुनका सब के अपन दलान दरबज्जा पर बजाबी ?

(बाबु जी काका से धर्य पूर्वक बात करैत -- )

      सुनू बचे लाल , बोउवा हमरा जायत जायत बस ईहा कहैत गेल जे बाबु जी हमरा लन्दन में दू साल के कोर्श अछि ओकर बाद अहाँ जे कहब से हम करैक लेल तैयार भ जायब , वियाह आ शादी त आई-कैल के युग में आम बात अछि ,

       समय बितल गेल घटक पर घटक अबैत छल मुद्दा बड़का बोउवा के लेल धन्य सन, कुनू हाहेबरबादे नही गाम-घर के कुनू चिंता नही

        एक दिन के बात अछि बाबु जी दरिभंगा कुन्नु खास काज के प्रयोजन से गेल छलैथि त ओतहि बाबु जी के स्कुलिया संगी साथी से मुलाकात भेलानी , बहुत देर के बाद बड़का बोउवा के विवाह दान के सेहो चर्चा चलल , सब आदमी बाबु जी से कही सुनी के जबरदस्ती गाछ लेलकैन, मज़बूरी बस बड़का बोउवा के विवाह बाबु जी से ठीक करा लेलकैन
अंत में बाबु जी के हाँ कहै परलैन

      गाम में सब कियो वियाहक तयारी में लगी गेल छल , कन्या गत के त और बेशी चिंता रहित छैक जे कतेक बर्याती आयात कतेको सर कुटुम सब राहत आ सर समाज सेहो सब राहत , ओही हिसाब से वियाहक तयारी करैत छलैथि , मुद्दा बड़का बोउवा के कुन्नु अता-पत्ता नही , कतय छैथि आ की करैत छैथि ?

         कन्या गत के तरफ से बेर बेर ई समाद आबैत छलैन जे अहाँ के लड़का कहिया धरी गम आबैत छैथि , जतेक जल्दी होय ओतेक जल्दी वियाह कन्या दान भ जय त ठीक होयत छैक
       बाबु जी के पास नै कुन्नु फोन नंबर आ ने कुन्नु अता पत्ता जे बड़का बउवा के खबैर करता
गाम में बाबु जी के सब कियो ताना मारैत छलैन जे फला के बेटा एहन छैन , त फला झा के इज्जत नहीं छैन , बेटा के वियाह्य ठीक क लेलैथि आ बेटा के आते - पते नहीं छैन , बाबु जी शर्म से मरेय मान सन लागैत छलथि
बस आशा ईहा छलैन जे कियो किमरोह से आवी के ई कहैं जे बड़का बोउवा आबी गेल बियाहक तयारी करू
दिन ,सप्ताह , महिना सब बितल जायत छल , मुद्दा भैया के कोनो खोज खबैर नै , कएक महिना बीत गेल कन्यागत सब अपन ई कथा के वापस क लेलकैन , ई कहिके जे हम अपन बेटी के वियाह अहि घर में नहीं करब , जकरा अपन परिवार ,समाज में मान मर्यादा के अपन संस्कृति के कुन्नु इज्जत नही छैन , हम दोसर थम कन्या दान क लेब , हमर बेटी सी- एम् सैंस कालेज से डिगरी केने अछि , ओकरा लेल अनेको आइ एस ऑफिसर भेटतैक

      एहन - एहन बात सुईनी - सुईनी के बाबु जी के की हालत होयत छैन से त हमही सब जानैत छि , आखिर भैया किया नै गेलखिन जे गाम - घर के इज्जत ककरा कहैत अछि

        दुखक पहर सन लागैत छल , दिन कटानायं सपना सन लागैत छल , प्रेम से बोल बचन सुनैक लेल कान समायक आश लागोने छल , जे दिन कहिया घुरत , देखलो कईक दिन के बाद हमरा दलान पर डाक पिन आयल छैथ |
     बाबु जी हमरा झट सन अबाज देलैथि - आ कहलैथि जे देखियो ककर ई ,टेल्ली ग्राम आयल अछि , हम झट सन डाक बाबु से टेल्ली ग्राम लके देखय लगलो
देखलो जे ई टेल्ली ग्राम बाबु जी के नाम से लन्दन से आयल अछि
हमरा अपना आप क ख़ुशी के भंडार भेट गेल , ख़ुशी के अंत नहीं छल , जे हम अपन मुँह से केना क कोन रुपे शब्द निकालब ? एक तरफ से भैया के टेल्ली ग्राम के ख़ुशी आ दोसर भैया से जुरल भात्र प्रेम के याद के आंखी से नोर पोछैत कनिते हम बाबु जी से कहलियनि जे , भैया के ई टेल्ली ग्राम आयल अछि , बाबु जी के ई बात सुनी के , आँखी के सामने ख़ुशी क बदल छा गेलानी , जे ओ कुन रुपे कोनाक के अपन मुँह से शब्द के बरशात करता
जे हमर बड़का बोउवा के टेल्ली ग्राम आयल अछि
टोल मोहल्ला सारा गाम सोर भ गेल जे बड़का बोउवा के टेल्ली ग्राम आयल अछि सब कियो सुनी के बहुत खुश्ही भेला , जे आब बड़का बोउवा जरुर अपन गाम आयत


( बाबु जी अनुराधा से --)

बुच्ची ई टेल्ली ग्राम पढ़ी के सुनाऊ जे बड़का बोउवा कहिया धरी गाम आबैत अछि ? ---

अनुराधा - अछ बाबु जी ठीक अछि सुनबैत छी ---
आदरनिय माय - बाबु जी एवं काका- काकी ---

चरण स्पर्श ----

और छोट बुवा - बुच्ची सब के प्यार आ स्नेह संग शुभ आशीर्वाद -----

हम अहिठं अपनेक सबहक आशीर्वाद से कुसल मंगल सं छी ,

आ माँ भगवती सं सदा कामना करैत छी , जे अहुँ सब कुसल

मंगल सं होयब ----

      आगा बात समाचार सब ठिक अछि , हमर चिन्ता नहीं करब ;
हम अगिला महिना धरी अपन परिवारक संग फलाईट से पटना आयब आ पटना से गाम आयब , वाकी बात समाचार गाम एला के बाद करब ----
( अहाँ के बड़का बउवा )---

        ई बात सुनी के जे हम अपन परिवारक संग अगिला महिना धरी गाम आबैत छी , सब कियो पहिने से जायदा मरेय मान सन भगेला , ई सोईची के जे बेटा हमर नालायक भगेल , अपन मान मर्यादा ,अपन संस्कृति के विसैरी गेल , विदेश में जाके बियाह केलक शर्म से हमर नक् कटी गेल , सपनो में नही ई शोच्लो जे बड़का बोउवा ई एहन काज करत , बियाहो केलक त सतसमुन्दर पर जाके जाकरा अपन संस्कृति नही, संस्कृति ककरा कहैत अछि से ज्ञान नही , बोली बच्चन के ताल - मेल नहीं , जाकरा सीता और सावित्री जेका मान मर्यादा नहीं , उटैय - बसैय के तौर तरीका नहीं , ससुर- भैशुर के मान सम्मान नै , पहिरे - सोहारिय के ढंग नहीं , ओ की अपन मथिली संस्कृति के रक्षा करत , ई बात सब कियो सोची -सोची के अपन जिनगी के आखिरी साँस लैत छल

  समाय बितल जायत छल , की एक दिन अचानक बड़का बोउवा के फोन आयल की हम सब दरिभंगा तक आबिगेल छी, कुछीक घंटा में अपन गाम आबी जायब ---

       गामक लोक सब कियो तैयार भगेल छल , ई देखैक लेले जे बड़का बोउवा लन्दन से कनियाँ आनैत छैथि , ओकर केहन रंग , केहन रूप , केहन अंग्रेजी बोल बच्चन आ केहन पहिरे सोहरै के संस्कार हतय ? से देखै लेलेल सब कियो दालान के आगू में ठाड़ छल
मुद्दा माय - बाबु , काका - काकी सब कियो नही सामने एलखिन देखैक लेलेल , कियाकि हुनका से पहिने हजारो लोग दालान के सामने ठाड़ छल , बड़का बोउवा के शर्म से निचा करैक लेल जे ई अहां की काज केलो समाज के नाम रोशन करैक बदला में बिदेशी क बियाह क अनलो ?

      देखलो एतबा काल में एगो टेम्पू में से दू सालक एगो छोट बच्चा आ एगो दुराग्मानिया साड़ी सन पहिरने , हाथ में भरल हाथ लहठी चुरी , मांग में भरल सिनुर , आ माथ पर साडी लेने टेम्पू से बहार एली , देखि के सब कियो अकबक सन भगेला जे ई के आबिगेली , तबे में पछा से बड़का बोउवा सेहो एलैथ , सब के बेरा- बेरी से पैर छू के गोर लगल खिन आ एतेक भीड़ देखि के बड़का बोउवा झट सन बजला जे गाम में कुनह मेला लागल अछि की जे पूरा परपटा के लोक सब अहिठन ठाड़ छी ? तबे में किमरोह से एगो छोट का बच्चा बजल जे सब कियो अहिके कन्या के देखाई क लेल आयल अछि ---

( ई बात सुनी के लन्दन वाली कनिया अचम्भा में पारी गेली जे आब हम ककरा सब के की कहबै -- )

लन्दन वाली वाली कनिया बहुत बिलम्ब के बाद सोइच बिचारी के अपन मुहँ से आबाज निकैलते बजली -----

      हमहूँ एगो आदर्श नारी छी , सीता यदि बड़ सुन्दर आ पतिवर्ता छली तयो हुनका अग्नि परीक्षा देबई परल छलैन, यदि हुनकर रहन - सहन आ बैवहार निक छलैन त हमहूँ ओही सं कम नै छी
अहाँ सब अपन- अपन संस्कृति के बचाबई में जनम गुजारी देत छी , अपन मात्री भाषा शिखई में जनम से अनेको बरस लगाबैत छी , लेकिन हम अहाँ के मात्री भाषा आ संस्कृति सिखाई में केवल मात्र चरिय साल गमेलो

      और एतबा नही अहांक संस्कृति के सात समुन्दर पार रहितो हम मान - सम्मान देलो
हम लन्दन पोस्ट ग्रेजवट जरुर छी , मुद्दा अहाँ सबहक संस्कृति / कल्चर के सामने हम आई नस्त मस्तक छी , ओही कारने से हम आई अपनेक सबहक सामने सीता और साबित्री सन बनय चाहैत छी
लक्ष्मी आ सरस्वती ओताही निवास करैत छैथि जतय नारी के मान - सम्मान आदर के साथ भेटैत अछि , ओ अछि अहाँ के मिथिला
एतय हम बैदेही रूप में अपना - आप के देख चाहैत छी , जे हमहूँ एगो मिथिला के नारी छी ----

     ई दिर्श्य देखि आ सुनी के , माय - बाबु ,काका -काकी सब कियो घर से बहार एला आ सब कियो बेरा - बेरी से लन्दन वाली कनिया के सामने हाथ जोरी का , आदर पुर्बक मिथिला के नारी जेका हुनको बिध क अनुसारे दुरागमन जेका लन्दन वाली कनिया के अपन घर के पुतोहू बनोलथी ,
      

                           ( समाप्त )

गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

विद्यापति स्मृति पर्व समारोह नॉएडा


समस्त  मैथिल मिथिला  वाशी के ,श्रेष्ठ गन के नमस्कार छोटका नन्हां  बोवा - बची सब के प्यार भरल  शुभ  आशीष)---

          जय  मैथिल    जय  मिथिला
समस्त मैथिल,  मिथिला वाशी  अपनेक सब गोटे  आमंतरण  छी ,
नॉएडा  स्टेडियम के प्रांगन में दिनांक -०४ - १२- २०१० के 
समय -  रात्रि समय के  ७ बजे  से भोर  तक


विद्यापति स्मृति पर्व समारोह 
 के  आयोजन कैय्ल गेल अछि ,
अहि  समारोह  में  अप्पन  मिथिला  के  जानल  - पहचानल  गायक वा गायिका  सब  भाग लेतैथ , हुनक  मनोबल  बढाबाई के लेल  , ओही में  अहूँ लोकेन अप्पन  समस्त  परिवारक संग  आबी के  हुनक लोकेन  के स्वागत  करी    संगीतक  आनंद  उठावी ,
     
   जय  मैथिल  ,  जय  मिथिल

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

बँटवारा

बँटवारा

कियो धर्मक नाम पर कियो जातिक नाम पर
कियो पैघक नाम पर कियो छोटक नाम पर
एहि समाजक किछू भलमानुस लोक
अपने मे कऽ लेने छथि बँटवारा।

हे यौ समाजक कर्ता-धर्ता लोकनि
किएक करेलहुॅं अपने मे बटवारा
आई धरि की भेटल एतबाक ने
छोट पैघक नाम पर अपने मे मैथिलक बॅंटवारा।

आई धरि शोक संतापे टा भेटल
आबो तऽ बंद करू एहेन बँटवारा
नहि तऽ फेर अलोपित भ जाएत
मिथिलांचलक एकटा ओ मैथिल धु्रवतारा।

हे यौ मिथिला केर मैथिल
जूनि करू अपने मे बँटवारा
ई मिथिला धाम सबहक थिक
एक दोसर केर सम्मान करू ई बड्ड निक।

हम कहैत छी मैथिलक कोनो जाति नहि
सभ गोटे एक्के छथि मिथिलाक धु्रवतारा
नहि कियो पैघ नहि कियो छोट
आई सभ मिलि लगाउ एकटा नारा।

कहबैत छी बुझनुक मनुक्ख मुदा
बँटवारा कऽ तकैत छी अपने टा सूख
एक बेर सामाजिक एकता लेल तऽ सोचू
गोत्र सगोत्रक फरिछौट मे आबो तऽ ओझराएब छोरू।

हम छी मिथिला केर मैथिल
हमर ने कोनो जाति अछि
सभ मिली मिथिला केर मान बढ़ाएब
आई सभ सॅं "किशन" एतबाक नेहोरा करैत अछि।

एक्कईसम शताब्दी नवका एकटा ई सोच
नहि कोनो भेदभाव नहि कोनो जाति-पाति
सभ मिली हॅसी खुशी सॅं करब एकटा भोज
एक्के छी सभ मैथिल गीत गाउ आई भोरे-भोर।

सबहक देहक खून एक्के रंग लाल अछि
मुदा तइयो जातिक नाम पर बँटवारा भऽ गेल अछि
सपत खाउ आ सभ मिली लगाउ एकटा नारा
आब नहि करब धर्म जातिक नाम पर हिंदुस्तानक बँटवारा।



लेखक:- किशन कारीग़र


परिचय:- जन्म- 1983ई0(कलकता में) मूल नाम-कृष्ण कुमार राय ‘किशन’। पिताक नाम- श्री सीतानन्द राय ‘नन्दू’ माताक नाम-श्रीमती अनुपमा देबी।
मूल निवासी- ग्राम-मंगरौना भाया-अंधराठाढ़ी, जिला-मधुबनी (बिहार)। हिंदी में किशन नादान आओर मैथिली में किशन कारीग़र के नाम सॅं लिखैत छी। हिंदी आ मैथिली में लिखल नाटक आकाशवाणी सॅं प्रसारित एवं दर्जनों लघु कथा कविता राजनीतिक लेख प्रकाशित भेल अछि। वर्तमान में आकशवाणी दिल्ली में संवाददाता सह समाचार वाचक पद पर कार्यरत छी। शिक्षाः- एम. फिल(पत्रकारिता) एवं बी. एड कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र सॅं।