शनिवार, 11 दिसंबर 2010

लन्दन वाली कनियाँ


लन्दन वाली  कनियाँ

लेखक - 
जगदम्बा ठाकुर
पट्टीटोल, कोठिया ,
भैरव स्थान , झांझरपुर
मधुबनी , बिहार -८४७४०४
मोबाईल - 09312460150
ई मेल 
madanjagdamba@rediffmail.कॉम


       ( हम थोर बहुत जे शिक्षा के अध्यन केलो से गाम से केलो , शिक्षा कोनो खास नही अछि जतेक अछि ओतबे में समांबेस अछि

       परिवार ,समाज ,गाम - घर में ऐगो अलगे पहचान होयत अछि , जकरा हर मनुष्य अपन संस्कृति के तोर पर अध्यन आ पालन करैत अछि, चाहे मुर्ख होय या अमूल्य शिक्षा धरी ज्ञानी , देशी होय या कुनू विदेशी सब के लेल अपन-अपन संस्कृति के पहचान होयत अछि , जकर उदाहरण हम अपनेक सबहक सामने उपस्थित करैत छी , )
                     लन्दन वाली कनियाँ
(अनुराधा अपन बाबु जी से उदास स्वर में , ---)

    बाबु जी भैया के गाम से लन्दन गेना तक़रीबन चारिम साल छी ,मुद्दा एखन तक कुनू खोज -खबैर नही अछि , सब साल भरदुतिया आ रक्षा बंधन के दिन उदास बैस परैत छी , मुद्दा भया के कुन्नु चिन्ते नही ?

बाबु जी अनुराधा से -
बुच्ची एतेक उदास जुनी होऊ एक न एक दिन अहांक भैया जरुर ओता , लन्दन अहिठंन से सात समुन्दर पर स्थित अछि , वक्त त लगवे करैत अछि आखिर कत जायत ओ हमर बंस के मान मर्यादा रखबे करत --

(बच्चा काका बाबु जी से बात करैत बजला - )

      भैया , कोइलख गाम से अपन बड़का बउवा पर घटक बनी आयल छल ओ सब हमरा से बहुत निक जेका बात केलनी बुझाना गेल जे घटक सब निक आचार बिचार बाला सब छैथि , आ कनियाँ सेहो आर के कालेज से बी ए केने छैन , यदि अहांक आदेस होय त हुनका सब के अपन दलान दरबज्जा पर बजाबी ?

(बाबु जी काका से धर्य पूर्वक बात करैत -- )

      सुनू बचे लाल , बोउवा हमरा जायत जायत बस ईहा कहैत गेल जे बाबु जी हमरा लन्दन में दू साल के कोर्श अछि ओकर बाद अहाँ जे कहब से हम करैक लेल तैयार भ जायब , वियाह आ शादी त आई-कैल के युग में आम बात अछि ,

       समय बितल गेल घटक पर घटक अबैत छल मुद्दा बड़का बोउवा के लेल धन्य सन, कुनू हाहेबरबादे नही गाम-घर के कुनू चिंता नही

        एक दिन के बात अछि बाबु जी दरिभंगा कुन्नु खास काज के प्रयोजन से गेल छलैथि त ओतहि बाबु जी के स्कुलिया संगी साथी से मुलाकात भेलानी , बहुत देर के बाद बड़का बोउवा के विवाह दान के सेहो चर्चा चलल , सब आदमी बाबु जी से कही सुनी के जबरदस्ती गाछ लेलकैन, मज़बूरी बस बड़का बोउवा के विवाह बाबु जी से ठीक करा लेलकैन
अंत में बाबु जी के हाँ कहै परलैन

      गाम में सब कियो वियाहक तयारी में लगी गेल छल , कन्या गत के त और बेशी चिंता रहित छैक जे कतेक बर्याती आयात कतेको सर कुटुम सब राहत आ सर समाज सेहो सब राहत , ओही हिसाब से वियाहक तयारी करैत छलैथि , मुद्दा बड़का बोउवा के कुन्नु अता-पत्ता नही , कतय छैथि आ की करैत छैथि ?

         कन्या गत के तरफ से बेर बेर ई समाद आबैत छलैन जे अहाँ के लड़का कहिया धरी गम आबैत छैथि , जतेक जल्दी होय ओतेक जल्दी वियाह कन्या दान भ जय त ठीक होयत छैक
       बाबु जी के पास नै कुन्नु फोन नंबर आ ने कुन्नु अता पत्ता जे बड़का बउवा के खबैर करता
गाम में बाबु जी के सब कियो ताना मारैत छलैन जे फला के बेटा एहन छैन , त फला झा के इज्जत नहीं छैन , बेटा के वियाह्य ठीक क लेलैथि आ बेटा के आते - पते नहीं छैन , बाबु जी शर्म से मरेय मान सन लागैत छलथि
बस आशा ईहा छलैन जे कियो किमरोह से आवी के ई कहैं जे बड़का बोउवा आबी गेल बियाहक तयारी करू
दिन ,सप्ताह , महिना सब बितल जायत छल , मुद्दा भैया के कोनो खोज खबैर नै , कएक महिना बीत गेल कन्यागत सब अपन ई कथा के वापस क लेलकैन , ई कहिके जे हम अपन बेटी के वियाह अहि घर में नहीं करब , जकरा अपन परिवार ,समाज में मान मर्यादा के अपन संस्कृति के कुन्नु इज्जत नही छैन , हम दोसर थम कन्या दान क लेब , हमर बेटी सी- एम् सैंस कालेज से डिगरी केने अछि , ओकरा लेल अनेको आइ एस ऑफिसर भेटतैक

      एहन - एहन बात सुईनी - सुईनी के बाबु जी के की हालत होयत छैन से त हमही सब जानैत छि , आखिर भैया किया नै गेलखिन जे गाम - घर के इज्जत ककरा कहैत अछि

        दुखक पहर सन लागैत छल , दिन कटानायं सपना सन लागैत छल , प्रेम से बोल बचन सुनैक लेल कान समायक आश लागोने छल , जे दिन कहिया घुरत , देखलो कईक दिन के बाद हमरा दलान पर डाक पिन आयल छैथ |
     बाबु जी हमरा झट सन अबाज देलैथि - आ कहलैथि जे देखियो ककर ई ,टेल्ली ग्राम आयल अछि , हम झट सन डाक बाबु से टेल्ली ग्राम लके देखय लगलो
देखलो जे ई टेल्ली ग्राम बाबु जी के नाम से लन्दन से आयल अछि
हमरा अपना आप क ख़ुशी के भंडार भेट गेल , ख़ुशी के अंत नहीं छल , जे हम अपन मुँह से केना क कोन रुपे शब्द निकालब ? एक तरफ से भैया के टेल्ली ग्राम के ख़ुशी आ दोसर भैया से जुरल भात्र प्रेम के याद के आंखी से नोर पोछैत कनिते हम बाबु जी से कहलियनि जे , भैया के ई टेल्ली ग्राम आयल अछि , बाबु जी के ई बात सुनी के , आँखी के सामने ख़ुशी क बदल छा गेलानी , जे ओ कुन रुपे कोनाक के अपन मुँह से शब्द के बरशात करता
जे हमर बड़का बोउवा के टेल्ली ग्राम आयल अछि
टोल मोहल्ला सारा गाम सोर भ गेल जे बड़का बोउवा के टेल्ली ग्राम आयल अछि सब कियो सुनी के बहुत खुश्ही भेला , जे आब बड़का बोउवा जरुर अपन गाम आयत


( बाबु जी अनुराधा से --)

बुच्ची ई टेल्ली ग्राम पढ़ी के सुनाऊ जे बड़का बोउवा कहिया धरी गाम आबैत अछि ? ---

अनुराधा - अछ बाबु जी ठीक अछि सुनबैत छी ---
आदरनिय माय - बाबु जी एवं काका- काकी ---

चरण स्पर्श ----

और छोट बुवा - बुच्ची सब के प्यार आ स्नेह संग शुभ आशीर्वाद -----

हम अहिठं अपनेक सबहक आशीर्वाद से कुसल मंगल सं छी ,

आ माँ भगवती सं सदा कामना करैत छी , जे अहुँ सब कुसल

मंगल सं होयब ----

      आगा बात समाचार सब ठिक अछि , हमर चिन्ता नहीं करब ;
हम अगिला महिना धरी अपन परिवारक संग फलाईट से पटना आयब आ पटना से गाम आयब , वाकी बात समाचार गाम एला के बाद करब ----
( अहाँ के बड़का बउवा )---

        ई बात सुनी के जे हम अपन परिवारक संग अगिला महिना धरी गाम आबैत छी , सब कियो पहिने से जायदा मरेय मान सन भगेला , ई सोईची के जे बेटा हमर नालायक भगेल , अपन मान मर्यादा ,अपन संस्कृति के विसैरी गेल , विदेश में जाके बियाह केलक शर्म से हमर नक् कटी गेल , सपनो में नही ई शोच्लो जे बड़का बोउवा ई एहन काज करत , बियाहो केलक त सतसमुन्दर पर जाके जाकरा अपन संस्कृति नही, संस्कृति ककरा कहैत अछि से ज्ञान नही , बोली बच्चन के ताल - मेल नहीं , जाकरा सीता और सावित्री जेका मान मर्यादा नहीं , उटैय - बसैय के तौर तरीका नहीं , ससुर- भैशुर के मान सम्मान नै , पहिरे - सोहारिय के ढंग नहीं , ओ की अपन मथिली संस्कृति के रक्षा करत , ई बात सब कियो सोची -सोची के अपन जिनगी के आखिरी साँस लैत छल

  समाय बितल जायत छल , की एक दिन अचानक बड़का बोउवा के फोन आयल की हम सब दरिभंगा तक आबिगेल छी, कुछीक घंटा में अपन गाम आबी जायब ---

       गामक लोक सब कियो तैयार भगेल छल , ई देखैक लेले जे बड़का बोउवा लन्दन से कनियाँ आनैत छैथि , ओकर केहन रंग , केहन रूप , केहन अंग्रेजी बोल बच्चन आ केहन पहिरे सोहरै के संस्कार हतय ? से देखै लेलेल सब कियो दालान के आगू में ठाड़ छल
मुद्दा माय - बाबु , काका - काकी सब कियो नही सामने एलखिन देखैक लेलेल , कियाकि हुनका से पहिने हजारो लोग दालान के सामने ठाड़ छल , बड़का बोउवा के शर्म से निचा करैक लेल जे ई अहां की काज केलो समाज के नाम रोशन करैक बदला में बिदेशी क बियाह क अनलो ?

      देखलो एतबा काल में एगो टेम्पू में से दू सालक एगो छोट बच्चा आ एगो दुराग्मानिया साड़ी सन पहिरने , हाथ में भरल हाथ लहठी चुरी , मांग में भरल सिनुर , आ माथ पर साडी लेने टेम्पू से बहार एली , देखि के सब कियो अकबक सन भगेला जे ई के आबिगेली , तबे में पछा से बड़का बोउवा सेहो एलैथ , सब के बेरा- बेरी से पैर छू के गोर लगल खिन आ एतेक भीड़ देखि के बड़का बोउवा झट सन बजला जे गाम में कुनह मेला लागल अछि की जे पूरा परपटा के लोक सब अहिठन ठाड़ छी ? तबे में किमरोह से एगो छोट का बच्चा बजल जे सब कियो अहिके कन्या के देखाई क लेल आयल अछि ---

( ई बात सुनी के लन्दन वाली कनिया अचम्भा में पारी गेली जे आब हम ककरा सब के की कहबै -- )

लन्दन वाली वाली कनिया बहुत बिलम्ब के बाद सोइच बिचारी के अपन मुहँ से आबाज निकैलते बजली -----

      हमहूँ एगो आदर्श नारी छी , सीता यदि बड़ सुन्दर आ पतिवर्ता छली तयो हुनका अग्नि परीक्षा देबई परल छलैन, यदि हुनकर रहन - सहन आ बैवहार निक छलैन त हमहूँ ओही सं कम नै छी
अहाँ सब अपन- अपन संस्कृति के बचाबई में जनम गुजारी देत छी , अपन मात्री भाषा शिखई में जनम से अनेको बरस लगाबैत छी , लेकिन हम अहाँ के मात्री भाषा आ संस्कृति सिखाई में केवल मात्र चरिय साल गमेलो

      और एतबा नही अहांक संस्कृति के सात समुन्दर पार रहितो हम मान - सम्मान देलो
हम लन्दन पोस्ट ग्रेजवट जरुर छी , मुद्दा अहाँ सबहक संस्कृति / कल्चर के सामने हम आई नस्त मस्तक छी , ओही कारने से हम आई अपनेक सबहक सामने सीता और साबित्री सन बनय चाहैत छी
लक्ष्मी आ सरस्वती ओताही निवास करैत छैथि जतय नारी के मान - सम्मान आदर के साथ भेटैत अछि , ओ अछि अहाँ के मिथिला
एतय हम बैदेही रूप में अपना - आप के देख चाहैत छी , जे हमहूँ एगो मिथिला के नारी छी ----

     ई दिर्श्य देखि आ सुनी के , माय - बाबु ,काका -काकी सब कियो घर से बहार एला आ सब कियो बेरा - बेरी से लन्दन वाली कनिया के सामने हाथ जोरी का , आदर पुर्बक मिथिला के नारी जेका हुनको बिध क अनुसारे दुरागमन जेका लन्दन वाली कनिया के अपन घर के पुतोहू बनोलथी ,
      

                           ( समाप्त )

6 टिप्‍पणियां:

  1. jagdamba ji bahut nik lagal padhi ke apan mithila ke warnan ego landan wali se kahike je hamhun mithila ke nari chhi , bahut nik

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  2. bahut nik ---
    हमहूँ एगो आदर्श नारी छी , सीता यदि बड़ सुन्दर आ पतिवर्ता छली तयो हुनका अग्नि परीक्षा देबई परल छलैन, यदि हुनकर रहन - सहन आ बैवहार निक छलैन त हमहूँ ओही सं कम नै छी
    अहाँ सब अपन- अपन संस्कृति के बचाबई में जनम गुजारी देत छी , अपन मात्री भाषा शिखई में जनम से अनेको बरस लगाबैत छी , लेकिन हम अहाँ के मात्री भाषा आ संस्कृति सिखाई में केवल मात्र चरिय साल गमेलो

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  3. bastab me bahut nik lagal padhi ke aa suni kas ahina hamr sab maithil bhai - bohin ke vichar hoytain ta hamr mithila aai swarg se upar hoyta ,

    katau rahu maithil kahu mithila washi ke ee nara achhi ,

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  4. E kahani ke conclusion e chhi ki ham sab katahu rahu, magar apan sanskriti aar parampara ke bachaai ke rakhiii...!!

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  5. bahut nik jagdamba ji apan maithili sanskriti ke byakhya kelo ego bideshi se seho maithil bana ke
    dhanywad ,ee soch agar sab maithil washi ke hoytain ta ai hamr mithila swarg se upar rahita

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  6. जगदम्बा जी , बहुत निक आ कनि मार्मिको छल . मुदा कनि आर लम्बा खिस्सा होबा के चाही छल . हुनकर क्रिया कलाप सब भेला सा आर आनंद आयत होत. खैर बहुत बढियां छल . धन्यवाद.

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