गुरुवार, 11 जनवरी 2024

हमारी खुशी किस में

      एक महिला ने अपनी किचन से सभी पुराने बर्तन निकाले। पुराने डिब्बे, प्लास्टिक के डिब्बे, पुराने डोंगे, कटोरियां, प्याले और थालियां आदि। सब कुछ काफी पुराना हो चुका था।

*फिर सभी पुराने बर्तन उसने एक कोने में रख दिए और नववर्ष पर लाए हुए बर्तन तरीके से रखकर सजा दिए।

*बड़ा ही सुंदर लग रहा था अब किचन। फिर वो सोचने लगी कि अब ये पुराना सामान भंगारवाले‌ को दे दिया तो समझो हो गया काम।

*इतने में उस महिला की कामवाली आ गई। दुपट्टा खोंसकर वो फर्श साफ करने ही वाली थी कि उसकी नजर कोने में पड़े हुए बर्तनों पर गई और बोली - बाप रे! मैडम आज इतने सारे बर्तन घिसने होंगे क्या ?

*और फिर उसका चेहरा जरा तनावग्रस्त हो गया।

*महिला बोली - अरी नहीं! ये सब तो भंगारवाले को देने हैं।

*कामवाली ने जब ये सुना तो उसकी आँखें एक आशा से चमक उठीं और फिर बोली - मैडम! अगर आपको ऐतराज ना हो तो ये एक पतीला मैं ले लूं ? (साथ ही साथ में उसकी आँखों के सामने घर में पड़ा हुआ उसका तलहटी में पतला हुआ और किनारे से चीर पड़ा हुआ इकलौता पतीला नजर आ रहा था।)

*महिला बोली- अरी एक क्यों! जितने भी उस कोने में रखे हैं, तू वो सब कुछ ले जा। उतना ही पसारा कम होगा।

*कामवाली की आँखें फैल गईं - क्या! सब कुछ ? उसे तो जैसे आज नए साल पर अलीबाबा का खजाना ही मिल गया हो।

*फिर उसने अपना काम फटाफट खत्म किया और सभी पतीले, डिब्बे और प्याले वगैरह सब कुछ थैले में भर लिए और बड़े ही उत्साह से अपने घर की ओर निकली।

*आज तो जैसे उसे चार पाँव लग गए थे। घर आते ही उसने पानी भी नहीं पिया और सबसे पहले अपना पुराना और टूटने की कगार पर आया हुआ पतीला और टेढ़ा मेढ़ा चमचा वगैरह सब कुछ एक कोने में जमा किया, और फिर अभी लाया हुआ खजाना (बर्तन) ठीक से जमा दिया।

*आज उसके एक कमरेवाला किचन का कोना भरा पूरा सुंदर दिख रहा था।

*तभी उसकी नजर अपने बहुत पुराने बर्तनों पर पड़ी और फिर खुद से ही बुदबुदाई - अब ये बेकार सामान भंगारवाले को दे दिया तो समझो हो गया काम।

*तभी दरवाजे पर एक भिखारी पानी मांगता हुआ हाथों की अंजुल करके खड़ा था- माँ! पानी दे।

*कामवाली उसके हाथों की अंजुल में पानी देने ही जा रही थी कि उसे अपना पुराना पतीला नजर आ गया और फिर उसने वो पतीला भरकर पानी भिखारी को दे दिया।

*जब पानी पीकर और तृप्त होकर वो भिखारी बर्तन वापिस करने लगा तो कामवाली बोली - फेंक दो कहीं भी।

*वो भिखारी बोला- तुम्हें नहीं चाहिए ? क्या मैं रख लूँ अपने पास ?

*कामवाली बोली - रख लो, और ये बाकी बचे हुए बर्तन भी ले जाओ और फिर उसने जो-जो भी बेकार समझा वो उस भिखारी के झोले में डाल दिया।

*वो भिखारी भी खुश हो गया।

*पानी पीने को पतीला और किसी ने खाने को कुछ दिया तो चावल, सब्जी और दाल आदि लेने के लिए अलग-अलग छोटे-बड़े बर्तन, और कभी मन हुआ कि चम्मच से खाये तो एक टेढ़ा मेढ़ा चम्मच भी था।

*आज ऊसकी फटी झोली भरी भरी दिख रही थी।*

*ये सब क्या है? सुख किसमें माने, ये हर किसी की परिस्थिति पर अवलंबित होता है।

*हमें हमेशा अपने से छोटे को देखकर खुश होना चाहिए कि हमारी स्थिति इससे तो अच्छी है। जबकि हम हमेशा अपनों से बड़ों को देखकर दुखी ही होते हैं और यही हमारे दुख का सबसे बड़ा कारण होता है..!!*

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें