शनिवार, 14 दिसंबर 2019

मोर ललना परम सुकमार ।। गीतकार - रेवती रमण झा "रमण"

       !! हजमा गीत !!



धीरे धीरे छूरिया चलबि है
नै बौआ के कनबि हैं रे ।
मोर ललना परम सुकमार
तू बौआ के बचबि है रे ।।

बौआक दीदी सुभग वर
लागै सुहनगरा रे ।
हजमा रे ताही संग देबौ दुशाला
कि धोती कुरता तोरे देबौ रे ।।

गाबू हे मंगल गीत कि परम पुनीत
जे शुभ दिन आओल हे ।
ललना रे धन धन बाबा के भाग
कि नेग लुटाओल हे ।।

चारु कात नीपल आँगन
अडिपन ढेयौरल हे ।
ललना रे छाओल विमल बसंत
"रमण" मन नाचल हे ।।

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

#श्री_बद्री_नाथ_राय_अमात्य’क एगो नव काव्य- #मैथिल_के?


#श्री_बद्री_नाथ_राय_अमात्य’क एगो नव काव्य-  
#मैथिल_के? 





माछी मैथिल 
मच्छर मैथिल 
मैथिल मिथिलाक पवन वसात..।  
घास-पात सेहो अछि मैथिल 
काँटक सहित मखानक पात..।। 

चूरा-दही चिन्नियोँ अछि मैथिल 
तरुआ आ तिलकोरक पात। 
अँमट अँचार सेहो अछि मैथिल 
तुलसीफूल गमकौआ भात।। 

पौरुष-पाग मैथिल मिथिलाक 
मैथिल मिथिलाक अन्न जजात। 
चोटी चानन दाढ़ी मैथिल 
मिथिलानीकेँ मिलन-मिलाय।। 

चौरचन मैथिल अदरा मैथिल 
मरुआ मैथिल पान-मखान। 
हमर विवाहक पद्धति मैथिल 
विद्यापति केर गीतक तान।। 

लगनी मैथिल झिझिआ मैथिल 
मैथिल मिथिलाक कन्यादान। 
बाट चलैत बटगवनी मैथिल 
मैथिल उगल कोजगरा चान।। 

मुङ्गरी माछक महँको मैथिल 
मैथिल हमर बलचनमा।   
ललचनमा सेहो अछि मैथिल  
मैथिल हमर ललनामाँ।। 

धनिकलाल मण्डलक मिथिला 
मिथिला अछि सलहेसक। 
सभसँ सुन्दर, रसगर 
मीठगर भाषा हमरे देशक।। 

संस्कार संस्कृति मैथिल 
मैथिल हमर प्रकृति। 
हमर रजोखैर पोखैर मैथिल 
हमर महीपक कृति।। 

माछी मैथिल 
मच्छर मैथिल 
मैथिल मिथिलाक पवन वसात..।  
घास-पात सेहो अछि मैथिल 
काँटक सहित मखानक पात..।।  

© बद्री नाथ राय ‘अमात्य’ 
ग्राम+पोस्ट : करमौली 
भाया : कलुआही 
जिला : मधुबनी (बिहार) 
मो. ७६३१६३८१८५






                   


गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

चोर-उचक्का मुखिया भेल ।।। रचनाकार - बद्रीनाथ राय

 


       #कवि_बद्री_नाथ_राय_अमात्य


हेहर, थेथर, आँकड़, पाथर
चोर-उचक्का मुखिया भेल
सुगरक खूरकेँ पूजा होइए
कुकुरक मुँह गमकौआ तेल।

कनहा कुत्ता प्रतिनीधि अछि
गिद्ध बिलाइ विचारक
हरियर-हरियर फसल चरैए
साँढ़ समाज सुधारक।

ने पौरुष आ ने पग पथपर
राजनीति अछि स्तर हीन
सत्ता सुन्दरी विलासितामे
भाँग खा सुतल अछि नीन।

सोलह सिंगार कुतिया मुख मण्डल
आँखिमे काजर लाली ठोर
अंग प्रदर्शन करैत चलैए
ऐंठ नगरमे पहीरि पटोर।

साँढ़ पहिरने खादी कुर्ता
कुम्भकरण सन ठेकैर रहल अछि
जिन्दा पर अधिकार ओकर छै
मुर्दा खाकऽ अकैर रहल अछि।

कौआ-मेना शिक्षक भेल अछि
गद्ध सियार अधिकारी
शिक्षा क्षेत्रकेँ चरलक सभटा
भ्रष्ट साँढ़ सरकारी।

अर्थेटा सँ छैन अपेक्षा
कहबै छैथ छैथ अध्यापक
जान अधुरा बॉंटि रहल छैथ
नहि विचार छैन व्यापक।

चोटी चानव हकन कनैए
दाढ़ी बैसल कोरामे
राम रहिमक राजनीति अछि
लागल लोक निहोरामे।

मुक्ताचारी गगन विहारी
वाहन व्योम बिहारमे
भ्रष्ट शिरोमणि ऊँच्चासनपर
बैसल अछि सरकारमे।।

जाति धर्म और भाषा क्षेत्रक
जन-जनपर अधिकार जमौने
कारण एतबे हम मूर्ख छी
प्रतिनीधि परिवेश घिनौने।

प्रतिनिधि पतित बनि बैसल
आँखिमे हुनका मोतियाबिन्द
नैतिकताकेँ बेचि खेने छैथ
सुतल छैथ कुम्भकर्णक नीन।

चौसठ आवरण अंग प्रदर्शन
विषवला सन बनि घुमैए
प्रणय घड़ीमे प्रणय निमंत्रण
कुत्ताकेँ ललकारैत घुमैए।

मन्दिर-मस्जिद केर झगड़ामे
विद्या-वैभव भेल समाप्त
भ्रष्टाचारक मेघ लगैए
सगरो अछि अन्हारे व्याप्त।

अन्हरिया केर जन्मल बालक
अन्धकारमे करैए खेल
अन्हरियाकेँ पूजा होइए
बिनु बाती दीपक ओ तेल।

अर्थप्रतिष्ठित अर्थक भूखल
पौरुषकेँ ललकार दैत अछि
हम यदि किछु बाजए चाही
नहि बाजक अधिकार दैत अछि।

जनम-जनमक भूखल-प्यासल
प्रतिनीधि और पंच बनैए
नंगा ओ भीखमंगा मिलिकऽ
बाढ़िमे व्योम बिहार करैए।

हमर घर अन्हारक राजमे
अछि इजोतक आशा
कहिया देखब पूर्ण चन्द्रमा
एतबे अछि अभिलाषा।

 
संपर्क  : ग्राम+पोस्ट- करमौली, भया : कलुआह, जिला- मधुबनी (बिहार)

सोमवार, 9 दिसंबर 2019

हजमाक गीत ।। रचनाकार - रेवती रमण झा "रमण"

         
                                !! हजमाक गीत !!

   

                             कडरिक बीर सन पातर
                             कुसुम रंगि तोरे देबौ रे ।
                             हजमा बौआ के काटै नामी केस
                             पीयर धोती तोरे देबौ रे ।।

                             हजमा रे चिन्ह क लीहैं रे
                             गोरे - गोरे कनियाँ लीहैं रे

                             हजमा रे कमलक फूल सन मामी
                             बौआ के सबटा तोरे देबौ रे ।। कडरिक....

                              मधुरे  भोजन  देबौ  रे
                              भरि भरि थारी देबौ रे

                               हजमा रे व्यंजन तरि तिलकोर
                               पडोरे तरि तोरे देबौ रे ।।  कडरिक....

                              आँगन नीपि ढेयोरि अडिपन
                               मंगल गाओल हे

                               "रमण" हे युग युग जीबू मोर लाल
                                बधाई सब तोरे देबौ रे ।।  कडरिक.....

                                     रचनाकार
                             रेवती रमण झा "रमण"



शनिवार, 7 दिसंबर 2019

वर परिछन ।। गीतकार - रेवती रमण झा "रमण"

                              
                     !! वर परिछन !!
    
                             

   चलू आइ परिछन , वर अयला अली ।
   श्याम सुन्दर के नयना निरेखू भली ।।

   अधर  विम्ब लाली कमल के  कली ।
   वर पयलौ धिया मोर जेहने छली ।।

   गे डनियाँ योगिनियाँ योगिनियाँ सम्हारै टोना
   बिनु हँकारे के अयली हम बाजू कोना ।।

   राति अनुपम सखी चान्द देखू भली ।
   आजु मिथिलानी मिथिला "रमण" कय गेली ।।


                        गीतकार

        रेवती रमण झा "रमण"

सोमवार, 2 दिसंबर 2019

Mithila - Maithili Ke samasya

Manoj shreepati  -                                                                                           मिथिला में सबसे नीक लागे ये "विरोध" के स्वर ।
कखनों मैथिली मंच पर 'भोजपुरी' के विरोध ते , कखनो 'सिनेमा में लालटेन' किये जरल , तकर विरोध । कखनो 'सिनेमा में मैथिली नायिका' किए नहि, तकर विरोध ,ते कखनो हीरो के चचेरा भाई के 'भाषा' पर विरोध । बात ते एतेक तक कहल जायत अछि जे सिनेमा के कहानी में दहेज , विधवा विवाह , किये देखायल जायत अछि , तकर विरोध ।
कखनो कोनो गायक - गायिका के विरोध, ते कखनो नायक नायिका के विरोध ।
कखनो सहरसा से ते, कखनो बेगूसराय से ते कखनो दरभंगा से आवाज अबैत रहे ये जे मिथिला मंच पर, मिथिला उत्सव में या dj पर भोजपुरी किए ?
हम अहं जनता के पसन्द के नही रोकि सके छि । जनता अगर भोजपुरी सुने चाहे छैथ ते अपने किछ ने कय सके छि । अपने कतबो ठीकेदारी कय लियो किछ ने होयत !
सुधार हमरा अहं में करे परत । मिथिला में अधिकतर गायक गायिका कोनो एक टा या दु टा गीत से फेमस छैथ ।
हम करीब 3 साल से मैथिली मंच के प्रोग्राम सोशल मीडिया या सीधा देखैत रहैत छि । बस ओतबे टा गीत # ब्राह्मण बाबू यो.... मंजर में आबि या नही आबि टिकला में जरूर आबि .... कोना के टुटलो मोती के हार .... छोड़ु छोड़ु ने सैया भोर भय गेले .....
मंच पर उदघोषक सब से भी एके रंग , एके तरह के दोहा , खिस्सा पिहानी सुनाय के मिले ये ।
लोकतंत्र में विरोध जरूरी छैक , मुदा हमर विचार वर्तमान गीत संगीत पर कनि अलग अछि ।
पहिलुक गप जे स्थानीय कलाकार के मंच या कोनो भी विधा में, अगर ओ कैपेबल छैथ, ते जरूर जगह मिलबाक चाही ।
दोसर गप जे मंच या विषय के अपने बान्हि के नही रखियो । जनता के पसंद नापसंद के नज़रअंदाज़ नहि करियो ।
बस हमरा अहं के एतबे टा करबाक अछि जे मैथिली में किछ एहेन चीज दी , जे दर्शक या श्रोता आन चीज सुनबे बन्द करि देथ ।
मैथिली में नव प्रयोग बहुत कम भय रहल अछि । ई बात सिर्फ संगीत आ सिनेमा में ही नही छैक , सब विधा में छैक ।
मिथिला मैथिली में हमरा अहं के किछ मौलिक काज करे परत । सफलता या असफलता के चिंता से परे भय के लगातार प्रयास करे के आवश्यकता छे । दर्शक आ श्रोता के तरफ बारीकी से देखय परत ।
अध्ययन जरूरी छैक ।
जय जानकी । 

शनिवार, 30 नवंबर 2019

Nipata bharahal achhi

निपत्ता भऽ रहल अछि

 निपत्ता  भऽ रहल अछि यौ
 निपत्ता  भऽ रहल अछि

  घर सऽ दलान
पोखरि सऽ मखान
खेत सऽ बासमतिक धान
बालकक मधुर जवान ।

  निपत्ता  भऽ रहल अछि -- --

दलानक लोक
ओहीठामक नोंक झोंक
कनियाक घोघ
खेनाई भरि पोख  ।

निपत्ता भऽ रहल अछि -- - -

बारी सऽ खमरूआ
थारी सऽ तरूआ
खेत सऽ  मरुआ
मेला सऽ झिली आ झरूआ ।

निपत्ता भऽ रहल अछि - - - -

  आमक अमोट
   घर सऽ सिलौट
  थी् पीस कोट
  दु टकाक नोट ।

 निपत्ता  भऽ रहल अछि - - -

ऊखरि-मुसरि आ ढेकी
बांसक कलमक सुलेखी
दालि दररबाला जांत
भोजन हेतु पुरैनिक पात ।

निपत्ता भऽ रहल अछि- - -

कंसासरक भुजाक फक्का
बारीक अरनेबाक झख्खा
घर में कोठी आ सिक्का
सवारी में टमटम आ एक्का ।

निपत्ता भऽ रहल - --- -

लालसर,चाहा आ बगेरी
कच्ची पक्की पसेरी
गुड़क बगिया
सिमरक रुई केऽ तकिया ।

निपत्ता भऽ रहल अछि - -

कुतरुमक चटनी
अमराक अंचार
सजबी दही
संझिया परिवार ।

निपत्ता भऽ रहल अछि- -

फुलही लोटा आ थाली
शुध्द दुधक मोटगर छाली
कबई, मांगूर आ इचना माछ
मेला सऽ कठपुतलीक नाच  ।

निपत्ता भऽ रहल अछि -- --- -

भोरक पराती
कोजराक जगराति
नारीक मान
पैघक सम्मान

निपत्ता भऽ रहल अछि -- - - -

🙏 *सादर समर्पित*🙏

गुरुवार, 17 अक्टूबर 2019

लक्ष्मी ठारि--देखू अंगना--- ।। गीतकार - रेवती रमण झा "रमण"

                        ||   दियावाती   ||                   

 Male -                 चारूकात चकमक दीप जरैया
                        जहिना    पसरल     भोर   रे ।
                        लक्ष्मी ठारि हँसै छथि खल-खल
                        देखू     अंगना      मोर     रे ।।

   Female -    एक  वर्ष  पर  आयल  पावनि
                        मनुआँ     भेल     विभोर    रे

  Male / female -    लक्ष्मी ठारि हँसे छथि खल-खल
                                  देखू     अंगना      मोर     रे ।।
                     
                      पसरल दिया कतारे सभतरि
                      परहित      काज     करैया ।
                      अपन  गाते  सतत  जराकय
                       जग   में   ज्योति   भरैया ।।
                      अधम-अन्हरिया भागल चटदय
                       धरमक  भरल   इजोर  रे ।।
                                          लक्ष्मी ठारि--देखू अंगना---
                      नीपल आँगन , अडिपन ढयौरल
                      चौमुख  दीप कलश  पर  साजल ।
                      छितरल चहुँ दिश आमक पल्लव
                      सिन्दूर ठोप पिठारे लागल ।।
                      आँगन अनुपम रचि मिथिलानी
                      लाले     पहिर    पटोर   रे ।।
                                        लक्ष्मी ठारि--देखू अंगना---   
                       एक दन्त मुख वक्रतुण्ड छवि   
                       गौरी       नन्दन         आबू ।    
                       दुख  दारिद्रक  हारणी  हे  माँ     
                       ममता      आबि     देखाबू ।।  
                      अति आनन्दक लहरि में टपटप
                      "रमणक" आँखि में नोर रे ।।
                                       लक्ष्मी ठारि--देखू अंगना---
                                  गीतकार
                       रेवती रमण झा "रमण"

शनिवार, 12 अक्टूबर 2019

chalu dekhai lel

सिनेमा के रूप आब बहुत बदैल गेल, ऐ सेटेलाइट युग मे सिंगल थिएटर सब के व्यवसाय बंद हैवाक कगार पर ऐ। PVR स आव सिनेमा उद्योग ठाढ ऐ। LOVE YOU दुल्हिन पहिला मैथिली सिनेमा ऐ जे अपन प्रदर्शन के शुरुआत PVR स क रहल ऐ। अहाँ सब स आग्रह जे 18,19आ 20 Oct. क दिल्ली के प्रशांत विहार आ विकास पूरी मे 3स6 सिनेमा देखे जरूर जाय।
आब पूछव जे "LOVE YOU दुल्हिन " देखइ लेल किएक कियो मैथिल जेता त नीचा किछु खास बिंदु पर गौर करू।
१.बाढ़ मिथिलाक सनातनी समस्या ऐ। ई विपदा के जावे देखव नै तावे निदान हेतु जनमानस के मन मे आंदोलन हेतु प्रेरणा नै भेटत । कने देखियौ जे जकरा पर बीतइ छै ई विपदा त की होइ छै।
2. ग्रामीन जीवन मे मन्नूखक संग मालजाल के केहन संबंध होईत छै आ ओ हम मनुष्य हेतु कि की क सकैत ऐ जे पर्यावरण के समस्याक युग मे एकर महत्ता ऐ मूवी मे देखे के अवसर भेटत जे अहम ऐ।
3.मिथिला मे कई युग स किछु कुप्रथा प्रचलित ऐ जे हमरा समाज लेल कलंक ऐ ओकर सहज निदान देखवाक अवसर भेटत।
4. मिथिलाक संस्कृतिक परम्परा के मीठास भेटत जे आज पश्चिमी संस्कृतिक होर मे हम सब अपन जैर स कैट क बकाटा गुड्डी भेल जा रहल छी।.
5. पारिवपरीक ईर्ष्या, द्वेष के दुष्प्रभाव स परिवार के ज्ञान भेटत आ पारिवारक मूल्य के पता चलत जे बेसी जरूरी ऐ जीबन हेतु
6. बिल्कुल पैसा वसूल फिल्म जे मनोरंजन स भरपुर ऐ, संगीत मन के मुग्ध करत आ एक्शन, इमोशन स भरल ऐ जे सम्पुर्ण परिवार संग हॉल मे देखि सकैत छी।
त जा रहल छी ने "लव यू दुल्हिन" देखे?                                               shubh narayan jha 

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2019

क्यो कदम रुकता हमेशा ।।

                              " गजल "
                                      


       जिन्दगी पीती रही , रोज सुबहोशाम तक ।
       क्यो कदम रुकता हमेशा, चलते चलते जाम तक ।।

       लोग कहते,वो शराबी, कहाँ पीके जा रहा
       कुछ तो हँसता देखकर , कुछ तरस मुझ पे खारहा ।।

       मयकसी की जिन्दगी,मुझे ले गई बेनाम तक ।।
                                                                    क्यो ....
       अश्क का हर घूँट पीकर, बेबसी में सो गया
       अपनी मस्ती ,अपना आलम,में पाया कुछ खोगया

       लड़खड़ाता हर कदम, हर कोशिसे नाकाम तक
                                                                    क्यो ....
       हर घड़ी , हर पल हमेशा , ठोकरे खाता रहा
       बजह से , हर बेबजह में , हरकदम जाता रहा 

       मधुशाला का एक प्याला , बहुत है बदनाम तक
       क्यो कदम रुकता.......

                               गीतकार
                      रेवती रमण झा "रमण"

शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

मंगलवार, 24 सितंबर 2019

हे अम्बे आइ कीय भेलौ उदास ।।। गीतकार - रेवती रमण झा "रमण"

               || अम्बे आइ कीय भेलौ उदास ||
                                      


                नवोरूप धरि आहे अयलौ नवदुर्गे
                नवो दिन कयलहुँ वास ।
                हे अम्बे आइ कीय भेलौ उदास ।।

                जग कल्याणी आहे दुःख हरनी
                जगत जननी  आहे सुख करनी

                ममतामयी मैया कोना  बिसरबै
                एक अहींक अछि आश ।
                हे अम्बे आइ कीय भेलौ उदास ।।

               चहल पहल मैया नवो दिन केलिअई
               अपन कृपा चहुँ दिश बरसेलिअइ

               अपन  दया  केर वर वारिधि  सँ
               पूरल  सबहक  आश ।
               हे अम्बे आइ कीय भेलौ उदास ।।

               भव विपदा सँ जीवन घायल
               देखू "रमण" शरण अछि आयल

               महिषासुर  मर्दिनी  मैया पुनि
               आयब आसिन मास ।
               हे अम्बे आइ कीय भेलौ उदास ।।

                               गीतकार
                     रेवती रमण झा "रमण"


                   


        
    

शनिवार, 14 सितंबर 2019

तर्पण मन्त्र -TARPAN MANTRAS


  तर्पण मन्त्र -TARPAN MANTRAS

आवाहन: दोनों हाथों की अनामिका (छोटी तथा बड़ी उँगलियों के बीच की उंगली) में कुश (एक प्रकार की घास) की पवित्री (उंगली में लपेटकर दोनों सिरे ऐंठकर अंगूठी की तरह छल्ला) पहनकर, बाएं कंधे पर सफेद वस्त्र डालकर  दोनों हाथ जोड़कर अपने पूर्वजों को निम्न मन्त्र से आमंत्रित करें 

'ॐ आगच्छन्तु मे पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम'  
ॐ हे पितरों! पधारिये तथा जलांजलि ग्रहण कीजिए।  

तर्पण: जल अर्पित करें 
निम्न में से प्रत्येक को 3 बार किसी पवित्र नदी, तालाब, झील या अन्य स्रोत (गंगा / नर्मदा जल पवित्रतम माने गए हैं) के शुद्ध जल में थोडा सा दूध, तिल तथा जावा मिला कर जलांजलि अर्पित करें। 

पिता हेतु  --

(गोत्र नाम) गोत्रे अस्मतपिता पिता का नाम शर्मा वसुरूपस्त्तृप्यतमिदं तिलोदकम (गंगा/नर्मदा जलं वा) तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः।
------. गोत्र के मेरे पिता श्री वसुरूप में तिल तथा पवित्र जल ग्रहण कर तृप्त हों।  
तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः।

उक्त में अस्मत्पिता के स्थान पर अस्मत्पितामह पढ़ें  --

पिता के नाम के स्थान पर पितामां का नाम लें ----
माता हेतु  तर्पण  - 
(गोत्र नाम) गोत्रे अस्मन्माता माता का नाम देवी वसुरूपास्त्तृप्यतमिदं तिलोदकम (गंगा/नर्मदा जलं वा) 
तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः।
 ........... गोत्र की मेरी माता श्रीमती ....... देवी वसुरूप में तिल तथा पवित्र जल ग्रहण कर तृप्त हों। तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः। 
निस्संदेह मन्त्र श्रद्धा अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ माध्यम हैं किन्तु भावना, सम्मान तथा अनुभूति अन्यतम हैं।

जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार तथा दक्षिण दिशा में 14 बार अर्पित करें 

______________________________________________________________________________ 
संक्षिप्त पितृ तर्पण विधि:
 पितरोंका तर्पण करनेके पूर्व इस मन्त्र से हाथ जोडकर प्रथम उनका आवाहन करे -
ॐ आगच्छन्तु मे पितर इमं गृह्णन्तु जलान्जलिम ।

अब तिलके साथ तीन-तीन जलान्जलियां दें -
(पिता के लिये)
अमुकगोत्रः अस्मत्पिता अमुक (नाम) शर्मा वसुरूपस्तृप्यतामिदं तिलोदकं (गंगाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः ।
(माता के लिये)
अमुकगोत्रा अस्मन्माता अमुकी (नाम) देवी वसुरूपा तृप्यतामिदं तिलोदकं तस्यै स्वधा नमः, तस्यै स्वधा नमः, तस्यै स्वधा नमः ।

जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार तथा दक्षिण दिशा में 14 बार अर्पित करें 

गुरुवार, 5 सितंबर 2019

विधवा विवाह - ममता झा


विधवा विवाह


         विधवा शब्द एकटा श्राप जकाँ लगईया।ई शब्दे झकझोरने अई।पहिने त छुत जकाँ व्यवहार कैल जायत रहै।लोग एना विधवा के देखईत छल जेना ओ कते पैघ गुनाहगार हुए।आब कनिक लोग जागरूक भेल अई।विधवा के जीवन सुरक्षित कर के लेल  ,सबस बात विचार करी क ,फेर स विवाह केनाई उचित मानल गेल।

      कोनो आदमी मृत्यु के कालचक्र मे कहिया परत ई बात क्यो नई जानंई या| स सिर्फ भगवाने टा जनईत छईथ|जन्म-मृत्यु हुनके हाथ मे अई ,तखन नारी कोना दोषी भेल|नारी के हम दुत्काइर आ बाइज क अबला बना दई छी,जखन की ओकर कोनो गल्ती नै|
      ई बात त सब जानई छी कि जई नारी के पति गुजैर गेल ओकरा पर आसमान टुट बला विपत्ति पईर गेल |ओई स्थिति मे ई समाज ओई नारी के संतावना देव के बदले ओल सनक बोल कहई छैथ|  ई त भेल लोग,समाज आ परिवारक विचार विधवा के लेल |किछुए घर मे मान -सम्मान भेटईत अई विधवा के|हम एकटा सिनेमा देखने रही प्रेम रोग ओई मे जे विधवा के दुर्दशा देखलौ रौगटा सिहईर गेल |समाज मे मिडिया के असर बेसी परइया|विधवा के देख समाज के त छोडू परिवारो के नियत खराब भ जैत अई |ओकरा (विधवा)अनेको उप नाम डायन ,चुडैल,कुलकलंकनि सन अनेको नाम स पुकारैत छैथ|ई सब दोष के देखैत हमरा हिसाब स विधवा विवाह बहुत जरूरी अई उम्र के हिसाब स| ऑगुर उठेनाइ आसान अई सहयोग केनाई मुस्किल |हमसब मिल क संकल्प करी त काज आसान होयत विधवा के सहयोग कर मे|


        विवाह कम उम्र के विधवा के लेल ,सबमिल क योग्य वर स पुनरविवाह कराबी | दोसर स्थिति,अगर विवाह के १५/२०साल भ गेल छइन आ बच्चा छइन त बच्चो के विचार जरूरी अई|दुनू तैयार विवाह कर मे कोनो हर्ज नै|कारण बच्चा के परवरिश कर मे अनेक तरहक कठिनाई अबई छै जीवन मे||पढाई लिखाई महग तकर बादो अनेक तरहक दिक्कत बच्चा के निक नागरिक बनाब मे|इयाह सब कारणे जीवन साथी के जरूरत |


      तेसर समय ५०स६० अई| अई उम्र मे अगर क्यो विधवा होई छैत त हमर हिसाब स हुनक धिया पुता के पढाई लिखाई ,विवाह दान सब भ जाइ छै|अई अवस्था मे अगर क्यो मनोनुकुल साथी भेटै त कोनो हर्ज नै|ओना अई अवस्था में लोग अध्यात्म स जुडी जाइया |अपन बाल बच्चा कमायो लागई छई|अगर बच्चा माय के भरण पोषण कर के लेल स्वेछा स तैयार छै तखन विवाह जरूरी नई अई|एखुनका अवस्था सबस विचित्र ,सब बेटा अगर लाईक रहितै त बृद्धा आश्रम के की जरूरत |ओहन स्थिति मे नारी स्वतंत्र छइथ अपन खुशी के अनुसार निर्णय लेब के लेल|हुनक जे निर्णय हेतइन से समाज आ परिवार के मान्य हेबाक चाहि|इयाह हमर ईक्छा|


रविवार, 1 सितंबर 2019

चौरचन

पावनि-तिहार: लोक पावनि चौरचन 

(प्रो. पवन कुमार मिश्र)
 


   
मस्त विज्ञजन केँ विदित अछि जे समग्र विश्‍व मे भारत ज्ञान विज्ञान सँ महान तथा जगत्‌ गुरु कऽ उपाधि सँ मण्डित अछि । एतवे टा नहि भारत पूर्व काल मे "सोनाक चिड़िया" मानल जाइत छल एवं ब्रह्माण्डक परम शक्‍ति छल। भूलोकक कोन कथा अन्तरिक्ष लोक मे एतौका राजा शान्ति स्थापित करऽ लेल अपन भुज शक्‍तिक उपयोग करैत छलाह । एकर साक्ष्य अपन पौराणिक कथा ऐतिह्‌य प्रमाणक रुप मे स्थापित अछि ।
      हमर पूर्वज जे आई ऋषि महर्षि नाम सँ जानल जायत छथि हुनक अनुसंधानपरक वेदान्त (उपनिषद्‍) एखनो अकाट्‍य अछि । हुनक कहब छनि काल (समय) एक अछि, अखण्ड अछि, व्यापक (सब ठाम व्याप्त) अछि । महाकवि कालिदास अभिज्ञान शकुन्तलाक मंगलाचरण मे "ये द्वे कालं विधतः" एहि वाक्य द्वारा ऋषि मत केँ स्थापित करैत छथि । जकर भाव अछि व्यवहारिक जगत्‌ मे समयक विभाग सूर्य आओर चन्द्रमा सँ होइछ ।

‘प्रश्नोपनिषद्‍’ मे ऋषिक मतानुसार परम सूक्ष्म तत्त्व "आत्मा" सूर्य छथि तथा सूक्ष्म गन्धादि स्थूल पृथ्वी आदि प्रकृति चन्द्र छथि । एहि दूनूक संयोग सँ जड़ चेतन केँ उत्पत्ति पालन आओर संहार होइछ ।
    आत्यिमिक बौद्धिक उन्‍नति हेतु सूर्यक उपासना कैल जाइछ । जाहि सँ ज्ञान प्राप्त होइछ । ज्ञान छोट ओ पैघ नहि होइछ अपितु सब काल मे समान रहैछ एवं सतत ओ पूर्णताक बोध करवैछ । मुक्‍तिक साधन ज्ञान, आओर मुक्‍त पुरुष केँ साध्यो ज्ञाने अछि । सूर्य सदा सर्वदा एक समान रहैछ । ठीक एकरे विपरीत चन्द्र घटैत बढ़ैत रहैछ । ओ एक कलाक वृद्धि करैत शुक्ल पक्ष मे पूर्ण आओर एक-एक कलाक ह्रास करैत कृष्ण पक्ष मे विलीन भऽ जाय्त छाथि । सम्पत्सर रुप (समय) जे परमेश्‍वर जिनक प्रकृति रुप जे प्रतीक चन्द्र हुनक शुक्ल पक्ष रुप जे विभाग ओ प्राण कहवैछ प्राणक अर्थ भोक्‍ता । कृष्ण पक्ष भोग्य (क्षरण शील वस्तु) ।
     विश्‍वक समस्त ज्योतिषी लोकनि जातकक जन्मपत्री मे सूर्य आओर चन्द्र केँ वलावल केँ अनुसार जातक केर आत्मबल तथा धनधान्य समृद्धिक विचार करैत छथिन्ह । वैज्ञानिक लोकनि अपना शोध मे पओलैन जे चन्द्रमाक पूर्णता आओर ह्रास्क प्रभाव विक्षिप्त (पागल) क विशिष्टता पर पड़ैछ । भारतीय दार्शनिक मनीषी "कोकं कस्त्वं कुत आयातः, का मे जनजी को तात:" अर्थात्‌ हम के छी, अहाँ के छी हमर माता के छथि तथा हमर पिता के छथि इत्यादि प्रश्नक उत्तर मे प्रत्यक्ष सूर्य के पिता (पुरुष) आओर चन्द्रमा के माता (स्त्री) क कल्पना कऽ अनवस्था दोष सं बचैत छथि ।
     अपना देश मे खास कऽ हिन्दू समाज मे जे अवतारवादक कल्पना अछि ताहि मे सूर्य आओर चन्द्रक पूर्णावतार मे वर्णन व्यास्क पिता महर्षि पराशर अपन प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘वृद्ध पराशर’ मे करैत छथि । "रामोऽवतारः सूर्यस्य चन्द्रस्य यदुनायकः" सृ. क्र. २६ अर्थात्‌ सूर्य राम रुप मे आओर चन्द्र कृष्ण रुप मे अवतार ग्रहण केलन्हि ।
       ई दुनू युग पुरुष भारतीय संस्कृति-सभ्यता, आचार-विचार तथा जीवन दर्शनक मेरुद्ण्ड छथि आदर्श छथि । पौराणिक ग्रन्थ तथा काव्य ग्रन्थ केँ मान्य नायक छथि । कवि, कोविद, आलोचक, सभ्य विद्धत्‌ समाजक आदर्श छथि । सामान्यजन हुनका चरित केँ अपना जीवन मे उतारि ऐहिक जीवन के सुखी कऽ परलोक केँ सुन्दर बनाबऽ लेल प्रयत्‍नशील होईत छथि ।

      एहि संसार मे दू प्रकारक मनुष्य वास करै छथि । एकटा प्रवृत्ति मार्गी (प्रेय मार्गी)- गृहस्थ दोसर निवृत्ति मार्गी योगी, सन्यासी । प्रवृत्ति मार्गी-गृहस्थ काञ्चन काया कामिनी चन्द्रमुखी प्रिया धर्मपत्‍नी सँ घर मे स्वर्ग सुख सँ उत्तम सुखक अनुभव करै छथि । ओहि मे कतहु बाधा होइत छनि तँ नरको सँ बदतर दुःख केँ अनुभव करै छथि ।
       कर्मवादक सिद्धान्तक अनुसार सुख-दुःख सुकर्मक फल अछि ई भारतीय कर्मवादक सिद्धान्त विश्‍वक विद्धान स्वीकार करैत छथि । तकरा सँ छुटकाराक उपाय पूर्वज ऋषि-मुनि सुकर्म (पूजा-पाठ) भक्‍ति आओर ज्ञान सँ सम्वलित भऽ कऽ तदनुसार आचरणक आदेश करैत छथिन्ह ।
      हम जे काज नहि केलहुँ ओकरो लेल यदि समाज हमरा दोष दिए, प्रत्यक्ष वा परोक्ष मे हमर निन्दा करय एहि दोष "लोक लाक्षना" क निवारण हेतु भादो शुक्ल पक्षक चतुर्थी चन्द्र के आओर ओहि काल मे गणेशक पूजाक उपदेश अछि ।

हिन्दू समाज मे श्री कृष्ण पूर्णावतार परम ब्रह्म परमेश्‍वर मानल छथि । महर्षि पराशर हुनका चन्द्रसँ अवतीर्ण मानैत छथिन्ह । हुनके सँ सम्बन्धित स्कन्दपुराण मे चन्द्रोपाख्यान शीर्षक सँ कथा वर्णित अछि जे निम्नलिखित अछि ।

    नन्दिकेश्‍वर सनत्कुमार सँ कहैत छथिन्ह हे सनत कुमार ! यदि अहाँ अपन शुभक कामना करैत छी तऽ एकाग्रचित सँ चन्द्रोपाख्यान सुनू । पुरुष होथि वा नारी ओ भाद्र शुक्ल चतुर्थीक चन्द्र पूजा करथि । ताहि सँ हुनका मिथ्या कलंक तथा सब प्रकार केँ विघ्नक नाश हेतैन्ह । सनत्कुमार पुछलिन्ह हे ऋषिवर ! ई व्रत कोना पृथ्वी पर आएल से कहु । नन्दकेश्‍वर बजलाह-ई व्रत सर्व प्रथम जगत केर नाथ श्री कृष्ण पृथ्वी पर कैलाह । सनत्कुमार केँ आश्‍चर्य भेलैन्ह षड गुण ऐश्‍वर्य सं सम्पन्‍न सोलहो कला सँ पूर, सृष्टिक कर्त्ता धर्त्ता, ओ केना लोकनिन्दाक पात्र भेलाह । नन्दीकेश्‍वर कहैत छथिन्ह-हे सनत्कुमार । बलराम आओर कृष्ण वसुदेव क पुत्र भऽ पृथ्वी पर वास केलाह । ओ जरासन्धक भय सँ द्वारिका गेलाह ओतऽ विश्‍वकर्मा द्वारा अपन स्त्रीक लेल सोलह हजार तथा यादव सब केँ लेल छप्पन करोड़ घर केँ निर्माण कऽ वास केलाह । ओहि द्वारिका मे उग्र नाम केर यादव केँ दूटा बेटा छलैन्ह सतजित आओर प्रसेन । सतजित समुद्र तट पर जा अनन्य भक्‍ति सँ सूर्यक घोर तपस्या कऽ हुनका प्रसन्‍न केलाह । प्रसन्‍न सूर्य प्रगट भऽ वरदान माँगूऽ कहलथिन्ह सतजित हुनका सँ स्यमन्तक मणिक याचना कयलन्हि । सूर्य मणि दैत कहलथिन्ह हे सतजित ! एकरा पवित्रता पूर्वक धारण करव, अन्यथा अनिष्ट होएत । सतजित ओ मणि लऽ नगर मे प्रवेश करैत विचारऽ लगलाह ई मणि देखि कृष्ण मांगि नहि लेथि । ओ ई मणि अपन भाई प्रसेन के देलथिन्ह । एक दिन प्रंसेन श्री कृष्ण के संग शिकार खेलऽ लेल जंगल गेलाह । जंगल मे ओ पछुआ गेलाह । सिंह हुनका मारि मणि लऽ क चलल तऽ ओकरा जाम्बवान्‌ भालू मारि देलथिन्ह । जाम्बवान्‌ ओ लऽ अपना वील मे प्रवेश कऽ खेलऽ लेल अपना पुत्र केऽ देलथिन्ह ।
    एम्हर कृष्ण अपना संगी साथीक संग द्वारिका ऐलाह । ओहि समूहक लोक सब प्रसेन केँ नहि देखि बाजय लगलाह जे ई पापी कृष्ण मणिक लोभ सँ प्रसेन केँ मारि देलाह । एहि मिथ्या कलंक सँ कृष्ण व्यथित भऽ चुप्पहि प्रसेनक खोज मे जंगल गेलाह । ओतऽ देखलाह प्रदेन मरल छथि । आगू गेलाह तऽ देखलाह एकटा सिंह मरल अछि आगू गेलाह उत्तर एकटा वील देखलाह । ओहि वील मे प्रवेश केलाह । ओ वील अन्धकारमय छलैक । ओकर दूरी १०० योजन यानि ४०० मील छल । कृष्ण अपना तेज सँ अन्धकार के नाश कऽ जखन अंतिम स्थान पर पहुँचलाह तऽ देखैत छथि खूब मजबूत नीक खूब सुन्दर भवन अछि । ओहि मे खूब सुन्दर पालना पर एकटा बच्चा के दायि झुला रहल छैक बच्चा क आँखिक सामने ओ मणि लटकल छैक दायि गवैत छैक-


सिंहः प्रसेन भयधीत, सिंहो जाम्बवता हतः ।

सुकुमारक ! मा रोदीहि, तब ह्‌येषः स्यमन्तकः ॥

      अर्थात्‌ सिंह प्रसेन केँ मारलाह, सिंह जाम्बवान्‌ सँ मारल गेल, ओ बौआ ! जूनि कानू अहींक ई स्यमन्तक मणि अछि । तखनेहि एक अपूर्व सुन्दरी विधाताक अनुपम सृष्टि युवती ओतऽ ऐलीह । ओ कृष्ण केँ देखि काम-ज्वर सँ व्याकुल भऽ गेलीह । ओ बजलीह-हे कमल नेत्र ! ई मणि अहाँ लियऽ आओर तुरत भागि जाउ । जा धरि हमर पिता जाम्बवान्‌ सुतल छथि । श्री कृष्ण प्रसन्‍न भऽ शंख बजा देलथिन्ह । जाम्बवान्‌ उठैत्मात्र युद्ध कर लगलाह । हुनका दुनुक भयंकर बाहु युद्ध २१ दिन तक चलैत रहलन्हि । एम्हर द्वारिका वासी सात दिन धरि कृष्णक प्रतीक्षा कऽ हुनक प्रेतक्रिया सेहो देलथिन्ह । बाइसम दिन जाम्बवान्‌ ई निश्‍चित कऽ कि ई मानव नहि भऽ सकैत छथि । ई अवश्य परमेश्‍वर छथि । ओ युद्ध छोरि हुनक प्रार्थना केलथिन्ह अ अपन कन्या जाम्बवती के अर्पण कऽ देलथिन्ह । भगवान श्री कृश्न मणि लऽ कऽ जाम्ब्वतीक स्म्ग सभा भवन मे आइव जनताक समक्ष सत्जीत के सादर समर्पित कैलाह । सतजीत प्रसन्‍न भऽ अपन पुत्री सत्यभामा कृष्ण केँ सेवा लेल अर्पण कऽ देलथिन्ह ।
      किछुए दिन मे दुरात्मा शतधन्बा नामक एकटा यादव सत्ताजित केँ मारि ओ मणि लऽ लेलक । सत्यभामा सँ ई समाचार सूनि कृष्ण बलराम केँ कहलथिन्ह-हे भ्राता श्री ! ई मणि हमर योग्य अछि । एकर शतधन्वान लेऽ लेलक । ओकरा पकरु । शतधन्वा ई सूनि ओ मणि अक्रूर कें दऽ देलथिन्ह आओर रथ पर चढ़ि दक्षिण दिशा मे भऽ गेलाह । कृष्ण-बलराम १०० योजन धरि ओकर पांछा मारलाह । ओकरा संग मे मणि नहि देखि बलराम कृष्ण केँ फटकारऽ लगलाह, "हे कपटी कृष्ण ! अहाँ लोभी छी ।" कृष्ण केँ लाखों शपथ खेलोपरान्त ओ शान्त नहि भेलाह तथा विदर्भ देश चलि गेलाह । कृष्ण धूरि केँ जहन द्वारिका एलाह तँ लोक सभ फेर कलंक देबऽ लगलैन्ह । ई कृष्ण मणिक लोभ सँ बलराम एहन शुद्ध भाय के फेज छल द्वारिका सँ बाहर कऽ देलाह । अहि मिथ्या कलंक सँ कृष्ण संतप्त रहऽ लगलाह । अहि बीच नारद (ओहि समयक पत्रकार) त्रिभुवन मे घुमैत कृष्ण सँ मिलक लेल ऐलथिन्ह । चिन्तातुर उदास कृष्ण केँ देखि पुछथिन्ह "हे देवेश ! किएक उदास छी ?" कृष्ण कहलथिन्ह, " हे नारद ! हम वेरि वेरि मिथ्यापवाद सँ पीड़ित भऽ रहल छी ।" नारद कहलथिन्ह, "हे देवेश ! अहाँ निश्‍चिते भादो मासक शुक्ल चतुर्थीक चन्द्र देखने होएव तेँ अपने केँ बेरिबेरि मिथ्या कलंक लगैछ । श्री कृष्ण नारद सँ पूछलथिन्ह, "चन्द्र दर्शन सँ किएक ई दोष लगै छैक ।
      नारद जी कहलथिन्ह, "जे अति प्राचीन काल मे चन्द्रमा गणेश जी सँ अभिशप्त भेलाह, अहाँक जे देखताह हुनको मिथ्या कलंक लगतैन्ह । कृष्ण पूछलथिन्ह, "हे मुनिवर ! गणेश जी किऐक चन्द्रमा केँ शाप देलथिन्ह ।" नारद जी कहलथिन्ह, "हे यदुनन्दन ! एक वेरि ब्रह्मा, विष्णु आओर महेश पत्नीक रुप मे अष्ट सिद्धि आओर नवनिधि के गनेश कें अर्पण कऽ प्रार्थना केयथिन्ह । गनेश प्रसन्न भऽ हुनका तीनू कें सृजन, पालन आओर संहार कार्य निर्विघ्न करु ई आशीर्वाद देलथिन्ह । ताहि काल मे सत्य लोक सँ चन्द्रमा धीरे-धीरे नीचाँ आबि अपन सौन्द्र्य मद सँ चूर भऽ गजवदन कें उपहाल केयथिन्ह । गणेश क्रुद्ध भऽ हुनका शाप देलथिन्ह, - "हे चन्द्र ! अहाँ अपन सुन्दरता सँ नितरा रहल छी । आई सँ जे अहाँ केँ देखताह, हुनका मिथ्या कलंक लगतैन्ह । चन्द्रमा कठोर शाप सँ मलीन भऽ जल मे प्रवेश कऽ गेलाह । देवता लोकनि मे हाहाकार भऽ गेल । ओ सब ब्रह्माक पास गेलथिन्ह । ब्रह्मा कहलथिन्ह अहाँ सब गणेशेक जा केँ विनति करु, उएह उपय वतौताह । सव देवता पूछलन्हि-गणेशक दर्शन कोना होयत । ब्रह्मा वजलाह चतुर्थी तिथि केँ गणेश जी के पूजा करु । सब देवता चन्द्रमा सँ कहलथिन्ह । चन्द्रमा चतुर्थीक गणेश पुजा केलाह । गणेश वाल रुप मे प्रकट भऽ दर्शन देलथिन्ह आओर कहलथिन्ह - चन्द्रमा हम प्रसन्‍न छी वरदान माँगू । चन्द्रमा प्रणाम करैत कहलथिन्ह हे सिद्धि विनायक हम शाप मुक्‍त होई, पाप मुक्‍त होई, सभ हमर दर्शन करैथ । गनेश थ बहलाघ हमर शाप व्यर्थ नहि जायत किन्तु शुक्ल पक्ष मे प्रथम उदित अहाँक दर्शन आओर नमन शुभकर रहत तथा भादोक शुक्ल पक्ष मे चतुर्थीक जे अहाँक दर्शन करताह हुनका लोक लान्छना लगतैह । किन्तु यदि ओ सिंहः प्रसेन भवधीत इत्यादि मन्त्र केँ पढ़ि दर्शन करताह तथा हमर पूजा करताह हुनका ओ दोष नहि लगतैन्ह । श्री कृष्ण नारद सँ प्रेरित भऽ एहिव्रतकेँ अनुष्ठान केलाह । तहन ओ लोक कलंक सँ मुक्‍त भेलाह ।
   
      एहि चौठ तिथि आओर चौठ चन्द्र केँ जनमानस पर एहन प्रभाव पड़ल जे आइयो लोक चौठ तिथि केँ किछु नहि करऽ चाहैत छथि । कवि समाजो अपना काव्य मे चौठक चन्द्रमा नीक रुप मे वर्णन नहि करैत छथि । कवि शिरोमणि तुलसी मानसक सुन्दर काण्ड मे मन्दोदरी-रावण संवाद मे मन्दोदरीक मुख सँ अपन उदगार व्यक्‍त करैत छथि - "तजऊ चौथि के चन्द कि नाई" हे रावण । अहाँ सीता केँ चौठक चन्द्र जकाँ त्याग कऽ दियहु । नहि तो लोक निंदा करवैत अहाँक नाश कऽ देतीह ।
       एतऽ ध्यान देवऽक बात इ अछि जे जाहि चन्द्र केँ हम सब आकाश मे घटैत बढ़ैत देखति छी ओ पुरुष रुप मे एक उत्तम दर्शन भाव लेने अछि । जे एहि लेखक विषय नहि अछि । हमर ऋषि मुनि आओर सभ्य समाजक ई ध्येय अछि, मानव जीवन सुखमय हो आओर हर्ष उल्लास मे हुनक जीवन व्यतीत होन्हि । एहि हेतु अनेक लोक पावनि अपनौलन्हि, जाहि मे आवाल वृद्ध प्रसन्‍न भवऽ केँ परिवार समाज राष्ट्र आओर विश्‍व एक आनन्द रुपी सूत्र मे पीरो अब फल जेकाँ रहथि ।

आवास - आदर्श नगर, समस्तीपुर
सभार : मिथिला अरिपन 

बुधवार, 7 अगस्त 2019

जय शंकर प्रसाद जी रचित ये पंक्तियां


जय शंकर प्रसाद जी रचित ये पंक्तियां सुषमा जी के व्यक्तिव को सही प्रकार से प्रदर्शित करती हैं......

भावुक मन के शब्द नहीं,
 श्रद्धा के थोड़े पुष्प है ये।
तुम प्रथमा थी,
 तुम अजातशत्रु,
तुम गरिमामय नारी का रूप रही।
तुम मृदु भाषी,
तुम ओजस्वी,
तुम अनुशासित योगी स्वरूप रही।
तुम ममतामय,
तुम करुणामय,
तुम आवश्यक शक्तिस्वरूपा भी।
 तुम क्षमाशील,
 तुम अनासक्त,
 तुम जन-गण आसक्त मां रूपा भी।
बैकुंठ तुम्हारे स्वागत में,
और धरती पे है मौन अहे।
स्वीकार करो मेरा वंदन,
 श्रद्धा के थोड़े पुष्प है ये।------

मंगलवार, 6 अगस्त 2019

mayak aas

मायक आस
नै दैत छी हम किनको दोष
नै अछि हमरा कनिको दुख ,
जे
'ओ 'कियक चलि गेल !!
ई त होबाके छल !
बरख दर बरख सँ त इहे त भ रहल छैक !!
हमहू जनैत छी,जे
हमर दुख ,हमर उपराग
ओहि उसिर खेत के हरियर नै क सकैत अछि ,
जे आब अनेरूवा घास सँ पाटल अछि !
हमरा अकरो दुख नै अछि ,जे
हमर फगुवाक रंग मलिन
आ ,जुड़िशीतलक हुडदंग सून भ गेल अछि !!
हम त बुझै छियेक ,जे
परदेसी बनल हमर संतान सभ
दोसरक रंग में रंगल ,
फुसिक हँसी हँसैत अछि ;
आ ,
मातृभूमि सँ दूर रहबाक दर्द
पाथर बनि क सहैत अछि !!
हं,
हम इहो मानैत छी जे
पलायनक दंश ,
हमर करेज चालनि क देने अछि ;
आ ,हमर सुन पड़ल घर -दुअारि
हमरे मुँह दुसैत रहैत अछि !!
मुदा ,
हमरा अडिग विश्वास अछि ,
फेरु आओते ओ दिन
जहिया ,
हमर आंगनक तुलसी निपायत ,
फेर सँ पंछी सभ रंग -बिरंगक गीत गाओत ;
अरहुलक झोंझर सँ बहराइत बुलबुल,
 फेरु सँ चहकतै;
आ ,
घरक मुंडेरी पर सँ 'ओ '
फेरु इन्द्रधनुषि छटा निहारतै ।
हमरा पूर्ण आस अछि
जहन ,
आमक गाछी सँ अबैत
कोइलिक मधुर स्वर ओकरा बजौते ;
जहन ,
 साओनक पनियैल सोन्हायल
माटिक सुगंध ओकरा ईयाद आओतै ;
तहन,
घुरि अओतैेक हमर बच्चा
हमरा आँचर तर !हमरा कोर में!!
       काशी मिश्रा ✍✍