सोमवार, 10 जून 2019


उत्तरदायी हुए निरुत्तर, क्या ये नैतिक हार नही है।
थाना चौकी सुनें न क्योंकि, ढंग का चौकीदार नही है ।
अपराधी को बेदम कर दे, क्यों ऐसा दमदार नही है ।
पीतल ही पीतल पहरा दे, ऐसा पहरेदार नही है ।
राम राज्य है तब भी राघव, दो की दूनी चार नही है ।
कभी कभी ऐसा लगता है सूबे में सरकार नहीं है।
अब ना हंसी ठिठोली चलती।
खूंखारों की टोली चलती।
सहनशीलता गई मायके,
बात-बात पर गोली चलती।
माफी लिए माफिया घूमें उन में हाहाकार नहीं है।
कभी कभी ऐसा लगता है सूबे में सरकार नहीं है।
खुलेआम दहशतगर्दी है।
चुप लाचार विवश वर्दी है।
शांतिदूत को खुश रखने हित,
ठीक नहीं यह नामर्दी है।
जितनी पुलिस दिखा करती है, उतनी भी लाचार नहीं है।
कभी कभी ऐसा लगता है सूबे में सरकार नहीं है।
आखिर में मजबूरी क्या है।
ट्विंकल तक की दूरी क्या है।
पूरा  देश  प्रतीक्षा रत  है,
सबसे प्रथम जरूरी क्या है।
योगी तेरे भंडारण में क्या कोई हथियार नहीं है।
कभी कभी ऐसा लगता है सूबे में सरकार नहीं है।
अब ना पोषण भरण करो तुम।
और न तुष्टीकरण करो तुम।
चीन रूस जापान तथा
इसराइल का अनुसरण करो तुम।
जो धर्मांध नीच हैं उनको रहने का हकदार नही है।
कभी कभी ऐसा लगता है सूबे में सरकार नहीं है।
कैसे कह दूँ भाई है ये।
सच में बडे कसाई हैं ये।
हद से हद शायद दस फीसद,
बापू के अनुयाई हैं ये ।
जो जिन्ना को बाप मानता, क्या कह दूँ गद्दार नही है ।
कभी कभी ऐसा लगता है सूबे में सरकार नहीं है।
मनोज मिश्रा ' कप्तान '

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