सोमवार, 16 जुलाई 2018

राजपथ पर ठाढ़ किछु तकैत


राष्ट्रपति भवनक सोझाँ
एहि सहस्रमुखी चौक पर ठाढ़
निहारि रहल छी 

एकटा पत्रहीन नग्न गाछकेँ..
जकर ठाढ़ि पर ध्यानस्थ बैसल
तकैत अछि चिड़ै….

स्वरगंधाक सुगंधिमे मातल हम
अपन प्रेयसीक कानमे नहुँएंसँ
कहैत छी आउ किछु गप्प करी...
एना त' नहि जे महानगरीय मकड़जालमे 
ध्वस्त होइत शान्ति स्तूपकेँ देखैत
हम एहि अघोषित युद्धक विरोधमे
बुद्धक प्रतिहिंसाक प्रतीक्षामे छी….

अचकेमे अबैत अछि नेहाइ पर स्वप्न आ 
हम गामक सीमान पर ठाढ़ गाबए लगैत छी मुक्ति गीत
आ फेर जेना मन आंगनमे ठाढ़
भ' जाइत अछि.…
मुदा गाम लगैत अछि जेना कोनो
मिझायल सूर्जक नगर हो..
बाबूजीकेँ फोन पर कहैत छिअनि 
जे हम नहि रहब कोनो बनिजाराक देसमे.
हम घर घुरि रहल छी....
आकि स्वप्न भंग…..

एतबे टा नहि
हम तकैत छी कोनो ध्वनि
समवेत स्वरसँ आगू.….
ककरा कहियै ई प्रलय रहस्य....
अपरिचित ऋतुक एहि रक्तवर्षामे
हम कोन सुर सजाबी.....

हम आशान्वित छी जे
समयक धाह पर 
परती टूटि रहल अछि….
समयसँ संवाद करैत
एकटा हेरायल दुनियामे औनाइतो
फेरसँ उगतै पाथर पर दूभि...

संग समय के चलैत..
सुरूजक छाहरिमे फकसियारी कटैत….
एखन किछु आओर कहब हम
मुदा किछु प्रेम कविताक बाद....



16 जूलाई, 2018
नई दिल्ली

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें